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यहाँ यह स्मरणीय है कि ष० ख० में जहाँ प्रसंगवश उन उन ज्ञानों की आवारक ज्ञानापरणीय प्रकृतियों का निर्देश है वहाँ नन्दिसूत्र में ज्ञानावरणीय प्रकृतियों के द्वारा आश्रियमाण ज्ञानों का निर्देश हुआ है।
नन्दिसूत्र में आगे ज्ञान के प्रत्यक्ष और परोक्ष इन दो भेदों का निर्देश करते हुए उनमें प्रत्यक्ष के ये दो भेद प्रकट किये गये हैं--इन्द्रियप्रत्यक्ष और नोइन्द्रियप्रत्यक्ष । इनमें भी नोइन्द्रियप्रत्यक्ष को अवधिज्ञान, मनःपर्ययज्ञान और केवलज्ञान के भेद से तीन प्रकार का कहा गया है।'
प० ख० में इस प्रकार से इन ज्ञानभेदों या उनकी आवारक कर्मप्रकृतियों का कुछ भी उल्लेख नहीं है।
२. षट्खण्डागम में आगे उक्त पाँच ज्ञानावरणीय प्रकृतियों में से प्राभिनिबोधिकज्ञानावरणीय के चार, चौबीस, अट्ठाईस और बत्तीस भेदों को ज्ञातव्य कहते हुए उनमें चार भेदों का उल्लेख इस प्रकार किया गया है-अवग्रहावरणीय, ईहावरणीय, अवायावरणीय और धारणावरणीय । इनमें अवग्रहावरणीय अर्थावग्रहावरणीय और व्यंजनावग्रहावरणीय के भेद से दो प्रकार का है। आगे अर्थावग्रहावरणीय को स्थगित करके व्यंजनावग्रहावरणीय के ये चार भेद निर्दिष्ट किये गये हैं—श्रोत्रेन्द्रिय व्यंजनावग्रहावरणीय, घ्राणेन्द्रियव्यंजनावग्रहावरणीय, जिह्वन्द्रिय-व्यंजनावग्रहावरणीय और स्पर्शनेन्द्रियव्यंजनावग्रहावरणीय । तत्पश्चात् स्थगित किये गये उस अर्थावग्रहावरणीय के इन छह भेदों का निर्देश है-चक्षुइन्द्रियअर्थावग्रहावरणीय, श्रोत्रेन्द्रियअर्थावग्रहावरणीय, घ्राणेन्द्रियअर्थावग्रहावरणीय, जिहन्द्रिय अर्थावग्रहावरणीय, स्पर्शनेन्द्रिय अर्थावग्रहावरणीय और नोइन्द्रिय अर्थावग्रहावरणीय । आगे इसी क्रम से ईहावरणीय, अवायावरणीय और धारणावरणीय इनमें से प्रत्येक के भी छह-छह भेदों का निर्देश किया गया है। ___ नन्दिसूत्र में पूर्वोक्त पाँच ज्ञानभेदों में से आभिनिबोधिकज्ञान के श्रुतनिःसृत और अश्रुतनिःसृत ये दो भेद प्रकट किये गये हैं। इनमें अश्रुतनिःसृत चार प्रकार का है-औत्पत्तिकी, वनयिकी, कर्मजा और पारिणामिकी बुद्धि ।
१० ख० में इन श्रुतनिःसृत और अश्रुतनिःसृत आभिनिबोधिकज्ञानभेदों या उनके आवारक शानावरणीय भेदों का कहीं भी उल्लेख नहीं है। इसी प्रकार अश्रुतनिःसृत के प्रोत्पत्तिकी आदि चार भेद के विषय में भी वहाँ कुछ भी निर्देश नहीं है।
ष० ख० की धवला टीका में प्रज्ञाऋद्धि के भेदभूत उन औत्पत्तिकी आदि चारों के स्वरूप को अवश्य स्पष्ट किया गया है।
नन्दिसूत्र में आगे इसी प्रसंग में पूर्वोक्त श्रुतनिःसृत आभिानबोधिकज्ञान के ये चार भेद
१. अनिन्द्रिय प्रत्यक्ष या अतीन्द्रियप्रत्यक्ष ये नोइन्द्रियप्रत्यक्ष के नामान्तर हैं । नन्दिसूत्र __ हरि० वृत्ति (पृ० २८) और अनु० हेम० वृत्ति (पृ० २१२) द्रष्टव्य हैं । २. ५० ख० सूत्र ५,५,२२-३३ ३. नन्दिसूत्र ४६-४७ (इनका स्वरूप गाथा ५८,५६,६०-६३, ६४-६६ और ६७-७१ में
निर्दिष्ट किया गया है)। ४. धवला पु०६, पृ० ८१-८३
२७८ / पदसण्डागम-परिशीलन
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