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________________ उपसंहार षट्खण्डागम और अनुयोगद्वार में संक्षेप से विषयविवेचन की पद्धति में समानता इस प्रकार देखी जा सकती है विषय १. नामनिक्षेप २. स्थापनानिक्षेप ३. आगमद्रव्यनिक्षेप ४. आगमद्रव्यनिक्षेप से सम्बद्ध नैगम और व्यवहारनय ५. संग्रहनय ६. ऋजुसूत्र ७. शब्दनय ८. नोआगम द्रव्य निक्षेप के तीन भेद ६. नोआगम ज्ञायकशरीरद्रव्यनिक्षेप [ष० ख० सूत्र पु० ६, सूत्र ५१ ( कृति से सम्बद्ध) Jain Education International " 31 "3 " 13 37 31 " ५२ ५४-५.५ ५६ ५७ ५८ ५६ ६१ ६३ "" 21 22 23 93 21 11 अनु० सूत्र १० (आवश्यक से सम्बद्ध) ११ १४ For Private & Personal Use Only १६ 33 १५ [१-२], १५ [३] १५ ]४] १५ [५] १७ 1) 23 11 21 "1 विशेषता जिसका स्पष्टीकरण मूल ष० ख० में नहीं किया गया है उसका स्पष्टीकरण मूल अनुयोगद्वार सूत्र में किया गया तथा प्रसंग के अनुरूप दृष्टान्त भी दिया गया है । जैसे--- I १. नाम व स्थापना निक्षेपों में भेद को प्रकट करना । (सूत्र १२, ३३, ५५ और ४५० ) २. नैगम व व्यवहार नय से आगमद्रव्य के प्रसंग में अनुप्रेक्षा का निषेधपूर्वक स्पष्टीकरण । (सूत्र १४ व ४८२ ) ३. तीन शब्द नयों का निर्देश । (सूत्र १५ [५], ५७ [५], ४७४,४७५ व ५२५ [३]) ४. समभिरूढ और एवम्भूत नयों का नामोल्लेख (सूत्र ६०६ और गाथा १३७) जबकि षट्खण्डागम में इन दो नयों का नामोल्लेख कहीं भी नहीं किया गया है । ५. ज्ञायकशरीर व भव्यशरीर- द्रव्यनिक्षेप में मधुकुम्भ और घृतकुम्भ का दृष्टान्त । (सूत्र १७,१८,३८, ६०, ४८५, ४८६, ५४१, ५४२ व ५८६ ) ६. ज्ञायकशरीरद्रव्यावश्यक के प्रसंग में 'च्युत-च्यावित त्यक्त देह से व्यपगत' इत्यादि विवरण । (सूत्र १७, ३६, ५४१, ५४२,५६३ व ५८५ ) ( षट्खण्डागम में इस प्रसंग में 'च्युत-च्यावित त्यक्त शरीर से युक्त' ऐसा कहा गया है। ( सूत्र ६३, पु० ६ ) ७. भव्यशरीरद्रव्यनिक्षेप में षट्खण्डागम की अपेक्षा 'शरीर' शब्द की अधिकता । ( सूत्र १८,३६,३८,५८,६०,५४०-४२, ५६२ व ५६५ ) ८. लौकिक और लोकोत्तरिक भावश्रुत का स्पष्टीकरण । (सूत्र ४९-५०) " षट्खण्डागम की अन्य ग्रन्थों से तुलना / २६६ www.jainelibrary.org
SR No.001016
Book TitleShatkhandagama Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Ethics
File Size18 MB
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