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________________ ६६२ धर्मामृत ( अनगार) अथ सद्यः प्रत्याख्यानाग्रहणे दोषमल्पकालमपि तद्ग्रहणे च गुणं दर्शयति प्रत्याख्यानं विना दैवात् क्षीणायुः स्याद विराधकः । तदल्पकालमप्यल्पमप्यर्थपृथु चण्डवत् ॥३८॥ अर्थपृथु-फलेन बहु भवति । चण्डवत्-चण्डनाम्नो मातङ्गस्य । चर्मवरवानिर्मातुः क्षणं मांसमात्रनिवृत्तस्य यथा। उक्तं च 'चण्डोऽवन्तिषु मातङ्गः किल मांसनिवृत्तितः। अप्यल्पकालभाविन्याः प्रपेदे यक्षमुख्यताम् ॥' [ सोम. उपा., ३१३ श्लो. ] ॥३८॥ अथ प्रत्याख्यानादिग्रहणानन्तरकरणीयं दैवसिकप्रतिक्रमणादिविधिमाह प्रतिक्रम्याथ गोचारदोषं नाडीद्वयाधिके । मध्याह्न प्राल्ववृत्ते स्वाध्यायं विधिवद् भजेत् ॥३९॥ भोजनके अनन्तर तत्काल ही प्रत्याख्यान ग्रहण न करनेपर दोष और थोड़ी देरके लिए भी उसके ग्रहण करने में लाभ बतलाते हैं प्रत्याख्यानके बिना पूर्व में बद्ध आयुकर्मके वश यदि आयु क्षीण हो जाये अर्थात् मरण हो जाये तो वह साधु रत्नत्रयका आराधक नहीं रहता। तथा थोड़े भी समयके लिए थोड़ा भी प्रत्याख्यान चण्ड नामक चाण्डालकी तरह बहुत फलदायक होता है ॥३८॥ विशेषार्थ-बिना त्यागके सेवन न करनेमें और त्यागपूर्वक सेवन न करने में आकाश-पातालका अन्तर है। यद्यपि साधुके मूलगुणोंमें ही एक बार भोजन निर्धारित है। फिर भी साधु प्रतिदिन भोजन करनेके अनन्तर तत्काल दूसरे दिन तकके लिए चारों प्रकारके आहारका त्याग कर देते हैं। इससे दो लाभ हैं-एक तो त्याग कर देनेसे मन भोजनकी ओर नहीं जाता, वह बँध जाता है। दूसरे यदि कदाचित् साधुका मरण हो जाये तो सद्गति होती है अन्यथा साध रत्नत्रयका आराधक नहीं माना जाता। अतः थोडी देरके लिए थोडा सा भी त्याग फलदायक होता है। जैसे उज्जैनीमें चण्ड नामक चाण्डाल था। वह चमड़ेकी रस्सी बाटता था और एक ओर शराब रख लेता था दूसरी ओर मांस । जब रस्सी बाटते हुए शराबके पास आता तो शराब पीता और मांसके पास पहुँचता तो मांस खाता। एक दिन आकाशमार्गसे मुनि पधारे। उस दिन उसकी शराबमें आकाशसे विषैले जन्तुके गिरनेसे शराब जहरीली हो गयी थी। चण्डने मुनिराजसे व्रत ग्रहण करना चाहा तो महाराजने उससे कहा कि जितनी देर तुम मांससे शराबके पास और शराबसे मांसके पास जाते हो उतनी देरके लिए शराब और मांसका त्याग कर दो। उसने ऐसा ही किया और रस्सी बटते हए जब वह मांसके पास पहँचा तो उसने मांस खाया और जबतक पुनः लौटकर मांसके पास न आवे तबतकके लिए मांसका त्याग कर दिया। जैसे ही वह शराबके पास पहुँचा और उसने जहरीली शराब पी उसका मरण हो गया और वह मरकर यक्षोंका मुखिया हुआ। कहा है-'अवन्ति देशमें चण्ड नामक चाण्डाल बहुत थोड़ी देरके लिए मांसका त्याग करनेसे मरकर यक्षोंका प्रधान हआ ॥३८॥ प्रत्याख्यान आदि ग्रहण करनेके पश्चात् करने योग्य भोजन सम्बन्धी प्रतिक्रमण आदि की विधि कहते हैं प्रत्याख्यान आदि ग्रहण करनेके अनन्तर भोजनमें लगे दोषोंका प्रतिक्रमण करना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001015
Book TitleDharmamrut Anagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1977
Total Pages794
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size19 MB
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