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क्षेत्रकायोत्सर्गः । सावद्यकालाचरणद्वारागत दोषपरिहाराय कायोत्सर्गपरिणतसहित कालो वा कालकायोत्सर्गः । मिथ्यात्वाद्यतीचारशोधनाय कायोत्सर्गः कायोत्सर्गव्यावर्णनीयप्राभृतज्ञ उपयुक्तस्तज्ज्ञानं ३ जीवप्रदेशा वा भावकायोत्सर्ग इति ॥७०॥
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धर्मामृत (अनगार )
कायोत्सर्गः
अथ कायोत्सर्गस्योत्तममध्यम जघन्यपरिणामनिरूपणार्थमाहकायोत्सर्गस्य मात्रान्तर्मुहूर्तोऽल्पा समोत्तमा । शेषा गाथाभ्यंशचिन्तात्मोच्छ्वासै नैकधा मिता ॥ ७१ ॥
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अन्तर्मुहूर्तः–समयाधिकामावलिकामादि कृत्वा समयोनमुहूर्तं यावत्कालः । अल्पा—जघन्या । समा-वर्षम् । गाथेत्यादि - गाथायाः ' णमो अरिहंताणं' इत्यादिकायाः त्र्यंशस्त्रिभागो द्वे द्वे एकं च नमस्कारपदं तच्चिन्ता आत्मा स्वरूपं यस्यासो गाथात्रयंशचिन्तात्मा स चासावुच्छ्वासश्च । तत्र ' णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं' इति पदद्वयचिन्तनमेक उच्छ्वासः । एवं ' णमो आयरियाणं णमो उवज्झायाणं' इति चिन्तनं द्वितीयः । तथा ' णमो लोए सव्वसाहूणं ' इति चिन्तनं तृतीयः । एवं गायायास्त्रिधा चिन्तने त्रय उच्छ्वासाः । नवधा चिन्तने सप्तविंशतिरित्यादिकल्पनया परिगणनीयम् । उक्तं च
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'सप्तविंशतिरुच्छ्वासाः संसारोन्मूलनक्षमाः ।
सन्ति पश्ञ्चनमस्कारे नवधा चिन्तिते सति ॥' [ अमित श्राव. ८/६९ ]
ये नोआगम द्रव्यकायोत्सर्ग हैं | सावद्य क्षेत्र के सेवनसे लगे हुए दोषों की विशुद्धिके लिए जो कायोत्सर्ग किया जाता है वह क्षेत्रकायोत्सर्ग है । अथवा कायोत्सर्ग करनेवाले महर्षियोंसे सेवित क्षेत्र क्षेत्रकायोत्सर्ग है। सावद्य कालमें आचरण करनेसे लगे हुए दोषोंकी विशुद्धिके लिए किया गया कायोत्सर्ग कालकायोत्सर्ग है । अथवा कायोत्सर्ग करने वालोंसे सहित कालको कालकायोत्सर्ग कहते हैं । मिथ्यात्व आदि सम्बन्धी अतिचारोंके शोधनके लिए जो कायोत्सर्ग किया जाता है वह भावकायोत्सर्ग है । अथवा कायोत्सर्गका वर्णन करनेवाले शास्त्रका जो ज्ञाता उस शास्त्रमें उपयुक्त है वह आगम भावकायोत्सर्ग है । उसका ज्ञान या उस जीवके प्रदेश नोआगम भाव कायोत्सर्ग है । इस तरह छह भेद हैं ॥ ७० ॥
आगे कायोत्सर्ग के उत्तम, मध्यम और जघन्य परिमाणको कहते हैं
कायोत्सर्गका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल एक वर्ष प्रमाण है । शेष अर्थात् मध्यकालका प्रमाण गाथाके तीन अंशोंके चिन्तनमें लगनेवाले उच्छ्वासोंके भेदसे अनेक प्रकार है ॥७१॥
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विशेषार्थ–एक समय अधिक आवलीसे लेकर एक समय कम मुहूर्तको अन्तर्मुहूर्त कहते, हैं । यह कायोत्सर्गका जघन्य काल है और उत्कृष्ट काल एक वर्ष है जैसा बाहुबलीने किया था । मध्यमकाल अन्तर्मुहूर्त और वर्ष के मध्यकालकी अपेक्षा दो मुहूर्त, एक पहर, एक दिन आदिके रूप में अनेक प्रकार है । कहा है- कायोत्सर्गका उत्कृष्ट काल एक वर्ष और जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है । शेष कायोत्सर्ग शक्तिकी अपेक्षा अनेक स्थानोंमें होते हैं। वह अनेक भेद इस प्रकार होते हैं - णमोकार मन्त्र गाथारूप होनेसे गाथासे णमोकार मन्त्र लेना चाहिए । उसके तीन अंश हैं- णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं एक, णमो आइरियाणं, णमो उवज्झायाणं दो और णमो लोए सव्व साहूणं तीन । इनमें से प्रत्येकके चिन्तनमें एक उच्छ्वास १. 'संवच्छर मुक्कस्सं भिण्णमुहुत्तं जहण्णयं होदि ।
सेसा काओसग्गा होंति अणेगेसु ठाणेसु ॥ ' - मूलाचार ७११५९
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