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धर्मामृत ( अनगार) गुणाः-निःस्वेदत्वादयो वर्णादयश्च । वर्णमुखेन यथा
'श्रीचन्द्रप्रभनाथपुष्पदशनी कुन्दावदातच्छवी, रक्ताम्भोजपलाशवर्णवपुषी पद्मप्रभद्वादशी। कृष्णौ सुव्रतयादवौ च हरितौ पाश्वः सुपावश्च वै,
शेषाः सन्तु सुवर्णवर्णवपुषो मे षोडशाऽघच्छिदे ॥' [ उच्छायः-उत्सेधः । तन्मुखेन यथा
'नाभेयस्य शतानि पञ्चधनुषां मानं परं कीर्तितं सद्भिस्तीर्थकराष्टकस्य निपुणैः पञ्चाशदूनं हि तत् ॥ पञ्चानां च दशोनकं भुवि भवेत् पञ्चोनकं चाष्टके ।
हस्ताः स्युर्नव सप्त चान्त्यजिनयोर्येषां प्रभा नौमि तान् ॥' [ जनकादि-जनकश्च जननी च जनको मातापितरौ । मातृद्वारेण यथा
यहाँ शरीरपर पाये जाने वाले तिल, मसक आदि चिह्नोंको व्यंजन कहते हैं और शंख, कमल आदिको लक्षण कहते हैं। महापुराणके पन्द्रहवें सर्ग में एक सौ आठ लक्षणोंको तथा नौ सौ व्यंजनोंको बताया है ॥४१।।।
तीर्थंकरोंके चिह्न इस प्रकार कहे हैं-बैल, हाथी, घोड़ा, बन्दर, चकवा, कमल, स्वस्तिक, चन्द्रमा, गैण्डा, भैंसा, शूकर, सेही, वज्र, मृग, बकरा, मत्स्य, कलश, कछुआ, नीलकमल, शंख, सर्प और सिंह ये क्रमसे चौबीस तीर्थंकरोंके चिह्न हैं। पसीना न आना आदि गुणके द्वारा स्तवन इस प्रकार होता है-'कभी पसीना न आना, मल मूत्रका न होना समचतुरस्र संस्थान, वन ऋषभनाराच संहनन, अत्यन्त सुगन्ध, उत्कृष्ट सौन्दर्य, एक हजार आठ लक्षण और व्यंजन, अनन्तवीय, हित रूप प्रिय वचन, श्वेत वर्णका रक्त ये अर्हन्तके शरीरमें दश स्वाभाविक अतिशय होते हैं।' - वर्णके द्वारा स्तुतिका उदाहरण इस प्रकार है-श्रीचन्द्रप्रभनाथ और पुष्पदन्तके शरीरका वर्ण कुन्द पुष्पके समान श्वेत है। पद्म प्रभके शरीरका वर्ण लाल कमलके समान और वासुपूज्यका पलाशके समान लाल है । मुनि सुव्रत नाथ और नेमिनाथके शरीरका रंग काला है। पार्श्व और सुपाश्वका शरीर हरितवर्ण है । शेष सोलह तीर्थंकरोंका शरीर सुवर्णके समान है। ये सभी तीर्थकर मेरे पापोंका नाश करें। १. तिलोयपण्णत्ति (४।६०४) में सुपार्श्वनाथका चिह्न नन्द्यावर्त, और शीतलनाथका चिह्न 'सोतीय' कहा।
है जिसका अर्थ स्वस्तिक किया गया है । तथा अरहनाथका चिह्न तगर कुसुम कहा है जिसका अर्थ मत्स्य किया है । श्वेताम्बराचार्य हेमचन्द्रने शीतलनाथका चिह्न श्रीवत्स, अनन्तनाथका चिह्न श्येन और
अरहनाथका चिह्न नन्द्यावर्त कहा है । इस तरह चिह्नोंमें मतभेद है। २. 'निःस्वेदत्वमनारतं विमलता संस्थानमाद्यं शुभम् ।
तद्वत्संहननं भृशं सुरभिता सौरूप्यमुच्चैः परम् । सौलक्षण्यमनन्तवीर्यमुदितिः पथ्या प्रियाऽसृक् च यः । शुभ्रं चातिशया दशेह सहजाऽ सन्त्वहंदङ्गानुगाः ॥[ . तिलोयपण्णत्ति (४।५८८) में मुनिसुव्रत और नेमिनाथको नीलवर्ण कहा है। तथा हेमचन्द्रने मल्लि और पार्श्वको नीलवर्ण कहा है। हरितवर्ण किसी भी तीर्थकरको नहीं कहा, सुपार्श्वको शेष सोलहमें लिया है।
३. तिलाय
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