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प्रस्तावना
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शाब्दिक अनुवाद तदनन्तर विशेषार्थ देनेका विधान है। विशेषार्थमें भव्यकूमदचन्द्रिका टीकामें आगत चर्चाओंको बिना विस्तारके संक्षेप रूप में देना आवश्यक है। यदि आशाधरका किसी विषयपर अन्य ग्रन्थकारोंसे मतभेद हो तो उसे भी स्पष्ट करना चाहिए तथा आवश्यक प्रमाण उद्धृत करना चाहिए इत्यादि बातें हैं । इन सबका ध्यान रखते हुए ही मैंने यह अनुवाद किया है। प्रारम्भमें ज्ञानदीपिका पंजिका प्राप्त नहीं हुई थी। प्राप्त होनेपर उसका भी उपयोग यथायोग किया गया है। पं. आशाधरने अपनी टीकामें आगत विषयके समर्थनमें ग्रन्थान्तरोंके इतने अधिक उद्धरण दिये हैं कि उन सबको समेटना ही कठिन होता है। मतभेद यदि कहीं हुआ तो उसे भी स्वयं उन्होंने ही स्पष्ट कर दिया है कि इस विषयमें अमुकका मत ऐसा है। आशाधर किसी भी विषयमें आग्रही नहीं हैं। वे तो पूर्व परम्पराके सम्यक अध्येता और अनुगामी विद्वान् रहे हैं । अस्तु,
खेद है कि डॉ. उपाध्ये इसका मुद्रण प्रारम्भ होते ही स्वर्गत हो गये। उनके जैसा साहित्यानुरागी और अध्यवसायी ग्रन्थ-सम्पादक होना कठिन है। उनके प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है। श्री दि. जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी जयपुरके मन्त्रीजी तथा महावीर भवनके कार्यकर्ता डॉ. कस्तूरचन्दजी काशलीवालके द्वारा हस्तलिखित प्रतियां प्राप्त होती रहती हैं अतः उनके प्रति भी आभारी हूँ। भट्टारक श्री यशःकीर्ति दि. जैन शास्त्र भण्डार श्री ऋषभदेवके श्री. पं. रामचन्दजी से ज्ञानदीपिकाकी एकमात्र प्रति प्राप्त हो सकी। जिससे उसका प्रकाशन हो सका। अतः उनका विशेष रूपसे आभारी हैं। भारतीय ज्ञानपीठके मन्त्री बा. लक्ष्मीचन्द्रजी, मतिदेवी ग्रन्थमालाके व्यवस्थापक डॉ. गुलाबचन्द्रजीको भी उनके सहयोगके लिए धन्यवाद देता हूँ।
श्री स्याद्वाद महाविद्यालय भदैनी, वाराणसी महावीर जयन्ती २५०३
-कैलाशचन्द्र शास्त्री
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