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________________ xo धर्मामृत ( अनगार) 'स्वोपज्ञधर्मामृतधर्मशास्त्रपदानि किंचित् प्रकटीकरोति' । अर्थात स्वरचित धर्मामृत नामक धर्मशास्त्रके पदोंको किचित् रूपसे प्रकट करता है। अतः इसमें प्रत्येक पद्यके कुछ पदोंकी व्याख्या मात्र है। अनगार धर्मामृतकी भव्यकुमुदचन्द्रिका टीकाका प्रारम्भ करते हए तो ग्रन्थकारने ज्ञानदीपिकाका कोई उल्लेख नहीं किया है। किन्तु सागार धर्मामतकी टीकाके प्रारम्भमें लिखा है समर्थनादि यन्नात्र वे व्यासभयात क्वचित् ।। तज्ज्ञानदीपिकाख्यैतत् पञ्जिकायां विलोक्यताम् ।। अर्थात् विस्तारके भयसे किसी विषयका समर्थन आदि जो यहाँ नहीं कहा है उसे इसकी ज्ञानदीपिका नामक पंजिकामें देखो। अतः पंजिकामें आगत विषयसे सम्बद्ध ग्रन्थान्तरोंसे उद्धृत पद्योंका बाहुल्य है। उदाहरण के लिए दूसरे अध्यायके प्रारम्भमें मिथ्यामतोंका निर्देश करनेके लिए अमितगतिके पंचसंग्रह तथा मिथ्यात्वके भेदोंके समर्थन में अमितगतिके श्रावकाचारसे बहुत-से श्लोकादि उद्धृत किये हैं। इस तरह ज्ञानदीपिकामें भी ग्रन्थान्तरोंके प्रमाणोंका संग्रह अधिक है । इसी दृष्टिसे उसका महत्त्व है । ४. अष्टांगहृदयोद्योत-वाग्भट विरचित अष्टांगहृदय नामक ग्रन्थ आयुर्वेदका बहुप्रसिद्ध ग्रन्थ है। यह उसकी टीका थी जो वाग्भट संहिताको व्यक्त करनेके लिए रची गयी थी। यह अप्राप्य है । धर्मामृतकी टीकामें आयुर्वेदसे सम्बद्ध जो श्लोक उद्धत हैं वे प्रायः वाग्भट संहिताके हैं। ५. मूलाराधनाटीका-भगवती आराधना अतिप्राचीन प्रसिद्ध आगम ग्रन्थ है। इसमें साधुके समाधिमरणकी विधिका विस्तारसे कथन है। इसपर अपराजित सूरिकी विजयोदया टोका संस्कृतमें अतिविस्तृत है। उसीके आधारपर आशाधरजीने भी संस्कृतमें यह टीका रची थी जो विजयोदया टीकाके साथ ही शोलापुरसे प्रथमबार १९३५में प्रकाशित हुई थी। इसमें विजयोदया टीका तथा एक टिप्पण और आराधनाकी प्राकृत टीकाका निर्देश आशाधरजीने किया है। इसमें भी ग्रन्थान्तरोंसे उद्धरणोंकी बहुतायत है। प्राकृत पंचसंग्रहका निर्देश इसी टोकामें प्रथमबार मिलता है। इससे पूर्व किसीने इसका उल्लेख नहीं किया था। ६. इष्टोपदेश टीका-पूज्यपाद स्वामीके इष्टोपदेश पर यह टीका रची गयी है और माणिकचन्द्र ग्रन्थमाला के अन्तर्गत तत्त्वानुशासनादि संग्रहमें प्रथम बार मुद्रित हुई थी। उसके पश्चात् वीर सेवामन्दिर दिल्लीसे हिन्दी टीकाके साथ १९५४ में प्रकाशित हई। यह टीका मल ग्रन्थका हार्द समझने के लिए अति उपयोगी है। इसमें अनेक उद्धृत पद्य पाये जाते हैं। ७. अमरकोश टीका-यह अप्राप्य है। ८. क्रिया कलाप-इसकी प्रति बम्बई ऐलक पन्नालाल सरस्वती भवन में बतलायी गयी है। ९. आराधनासार टीका-यह अप्राप्य है। १०. भूपाल चतुर्विशतिका टीका-भूपाल चतुर्विशतिका स्तोत्रकी यह टीका अप्रकाशित है। ११. काव्यालंकार- संस्कृत साहित्यमें रुद्रटका काव्यालंकार एक मान्य ग्रन्थ है उसपर यह टीका रची थी जो अप्राप्य है। अनगार धर्मामृतकी टीकामें (पृ. २५५) रुद्रटके काव्यालंकारका नामनिर्देश पूर्वक उद्धरण दिया है। १२. जिन सहस्रनामस्तवन सटीक-जिन सहस्र स्तवन टीका सहित भारतीय ज्ञानपीठसे प्रकाशित हुआ है । इसपर श्रुतसागर सूरिने भी टीका रची है वह भी उसीके साथ प्रकाशित हुई है। १३. नित्यमहोद्योत-यह भगवान् अर्हन्तके महाभिषेकसे सम्बन्धित स्नान शास्त्र है इसका प्रकाशन श्रुतसागरी टीकाके साथ हो चुका है। १४. रत्नत्रयविधान-इसमें रत्नत्रयके विधानको पूजाका माहात्म्य वर्णित है। अभी तक प्रकाशित नहीं हुआ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001015
Book TitleDharmamrut Anagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1977
Total Pages794
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size19 MB
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