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________________ द्वितीय अध्याय तत्र क्रियावादिनामास्तिकानां कौत्कलकांठविद्धि-कोशिक-हरिश्मश्रु-मांद्यविक-रोमश-हरीत-मुण्डाश्वलायनादयोऽशीतिशतप्रमाणभेदाः । तेषामानयनमुच्यते-स्वभाव-नियति-कालेश्वरात्मकर्तृत्वानां पञ्चानामधो जीवादिपदार्थानां नवानामधः स्वतः परतो नित्यत्वानित्यत्वानि च चत्वारि संस्थाप्य अस्ति जीवः स्वतः स्वभावतः ॥१॥ अस्ति परतो जीवः स्वभावतः ॥२॥ अस्ति नित्यो जीवः स्वभावतः ॥३॥ अस्त्यनित्यो जीवः स्वभावत: ॥४॥ इत्याधुच्चारणतो राशित्रयस्य परस्परवधे नव भेदा लभ्यन्ते ॥१८०॥ स्वभावादीनाह कः स्वभावमपहाय वक्रतां कण्टकेष विहगेषु चित्रताम् ।। मत्स्यकेषु कुरुते पयोगति पङ्कजेषु खरदण्डतां परः॥ [अमित. पं. सं. ११३१०] . बाह्या अप्याहुः काकाः कृष्णीकृता येन हंसाश्च धवलीकृताः। मयूराश्चित्रिता येन स मे वृत्ति विधास्यति ।। परके उपदेशसे उत्पन्न हुए गृहीत मिथ्यात्वको अतत्त्वाभिनिवेश कहते हैं। उसके तीन सौ त्रेसठ भेद हैं। कहा भी है-क्रियावादी, अक्रियावादी, वैनयिक और अज्ञानवादी गृहीत मिथ्यादृष्टियोंके तीन सौ त्रेसठ भेद हैं। उनमें से क्रियावादियोंके १८० भेद हैं, अक्रियावादियोंके ८४ भेद हैं, वैनयिकोंके ३२ भेद हैं और अज्ञानवादियोंके ६७ भेद हैं। क्रिया कर्ताके बिना नहीं होती और वह आत्माके साथ समवेत है ऐसा कहनेवाले क्रियावादी हैं । अथवा, जो कहते हैं कि क्रिया प्रधान है ज्ञान प्रधान नहीं है वे क्रियावादी हैं । अथवा, क्रिया अर्थात् जीवादि पदार्थ हैं इत्यादि जो कहते हैं वे क्रियावादी हैं [ भग. सूत्र, टी. ३०।१] ___ इन क्रियावादियोंके कौत्कल, काण्ठेविद्धि, कौशिक, हरिश्मश्रु, मांद्यविक, रोमश, हारीत, मुण्ड, आश्वलायन आदि एक सौ अस्सी भेद हैं। उनको लानेकी विधि इस प्रकार है-जीव, अजीव, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा, मोक्ष, पुण्य, पाप ये नौ पदार्थ हैं । ये नौ पदार्थ स्वतः, परतः, नित्य, अनित्य, इन चार विकल्पोंके द्वारा तथा काल, ईश्वर, आत्मा, नियति और स्वभाव इन पाँच विकल्पोंके द्वारा हैं। यथा-जीव स्वतः स्वभावसे है ॥१॥ जीव परतः स्वभावसे है ।।२।। जीव स्वभावसे नित्य है ॥३॥ जीव स्वभावसे अनित्य है ।।४।। इस प्रकार उच्चारण करनेसे ९४५४४ इन तीनों राशियोंको परस्पर में गुणा करनेसे १८० भेद होते हैं। कहा भी है ___ जीवादि पदार्थ नहीं है ऐसा कहनेवाले अक्रियावादी हैं। जो पदार्थ नहीं उसकी क्रिया भी नहीं है । यदि क्रिया हो तो वह पदार्थ 'नहीं' नहीं हो सकता। ऐसा कहनेवाले भी अक्रियावादी कहे जाते हैं [ भग. सूत्र, टीका ३०११, स्था. टी. ४।४।३४५ ] अक्रियावादी नास्तिकोंके मरीचिकुमार, कपिल, उलूक, गार्ग्य, व्याघ्रभूति, वाद्वलि, माठर, मौद्गलायन आदि ८४ भेद हैं। उनके लानेकी विधि इस प्रकार है-स्वभाव आदि पाँचके नीचे पुण्य-पापको छोड़कर जीवादि सात पदार्थ स्थापित करो। फिर उनके नीचे स्वतः-परतः स्थापित करो। जीव स्वभावसे स्वतः नहीं है ॥१॥ जीव स्वभावसे परतः नहीं १. अत्थि सदो परदो वि य णिच्चाणिच्चत्तणेण य णवत्था । कालीसरप्पणियदिसहावेहि य ते हि भंगा हु॥ -गो. कर्म., गा. ७८७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001015
Book TitleDharmamrut Anagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1977
Total Pages794
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size19 MB
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