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६२. संतिनाह- सम्मद्दिट्ठिय- रक्खा । [ शान्तिनाथ - जिन स्तवनम् ॥]
‘સંતિક’ સ્તવન
(१) भूसपाठ (गाहा)
संतिकरं संतिजिणं, जग-सरणं जय - सिरीइ दायारं । समरामि भक्त - पालग-निव्वाणी- गरुड-कय-सेवं ॥१॥ ॐ सनमो विप्पोसहि पत्ताणं संतिसामि पायाणं । झाँ स्वाहा-मतेण सव्वासिव - दुरिय- हरणाणं ॥२॥
ॐ संतिनमुक्कारो, खेलोसहिमाइ - लद्धि - पत्ताण ।
सौं ह्रीं नमो य सव्वोसहि पत्ताणं च देइ सिरिं ॥३॥
वाणी - तिहुयण - सामिणि * - सिरीदेवी - जक्खराय - गणिपिडगा । गह- दिसिपाल - सुरिंदा, सया वि रक्खंतु जिणभत्ते ॥४॥ रक्खंतु ममं रोहिणि पन्नत्ती वज्जसिंखला य सया । वज्जंकुसि - चक्केसरि - नरदत्ता कालि-महाकाली ॥५॥ गोरी तह गंधारी, महजाला माणवी य' वइरुट्टा * । अच्छुत्ता माणसिया, महमाणसिआ उ देवीओ ॥६॥ जक्खा गोमुह महजक्ख-तिमुह जक्खेस - तुंबरु कुसुमो । मायंग-विजय * अजिआ, बंभो मणुणए सुरकुमारो ॥७॥
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वयरुट्टा- पाठां०
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• मणुय-पाठां
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