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________________ પાક્ષિકાદિ-અતિચાર ૦૪૯૯ ज्ञानोपगरण पाटी, पोथी, ठवणी, कवली, नोकारवाली, सांपडा, सांपडी, दस्तरी, वही ओलिया-प्रमुख प्रत्ये पग लाग्यो, थूक लाग्यूं, धुंके करी अक्षर भांज्यो, ओशीसे धर्यो, कन्हे छतां आहारनीहार कीधो । ज्ञान-द्रव्य भक्षतां उपेक्षा कीथी, प्रज्ञापरा) विणास्यो, विणसतो उवेख्यो. छती शक्तिए सार-संभाल न कीधी । ज्ञानवंत प्रत्ये द्वेष-मत्सर चिंतव्यो, अवज्ञा-आशातना कीधी, कोई प्रत्ये भणतां-गणतां अंतराय कीधो, आपणा जाणपणा तणो गर्व चिंतव्यो, मतिज्ञान श्रुतज्ञान, अवधि ज्ञान, मनःपर्यवज्ञान, केवलज्ञान, ए पंचविध ज्ञानतणी असद्दहणा कीधी । कोई तोतडो, बोबडो [देखी] हस्यो, वितक्यों, अन्यथा प्ररूपणा कीधी । ज्ञानाचार-विषइयो अनेरो जे कोई अतिचार पक्षदिवसमांहि सूक्ष्म, बादर जाणतां, अजाणतां हुओ होय, ते सविहु मने, वचने, कायाए करी मिच्छा मिदुक्कडं ॥१॥ दर्शनाचारे आठ अतिचारनिस्संकिय निक्कंखिय, निव्वितिगिच्छा अमूढदिट्ठी अ । उववूह-थिरीकरणे, वच्छल्ल-पभावणे अट्ठ ॥२॥ देव-गुरु-धर्म-तणे विषे निःशंकपणुं न कीधुं, तथा एकान्त निश्चय न कीधो, धर्म-सम्बन्धीयां फलतणे विषे निःसन्देह बुद्धि धरी नहीं, साधु-साध्वीनां मल-मलिन गात्र देखी दुगंछा नीपजावी, कुचारित्रीया देखी चारित्रीया ऊपर अभावहुओ, मिथ्यात्वी-तणी पूजा प्रभावना देखी मूढदृष्टिपणुं कीधुं । तथा संघमाहे गुणवंत-तणी अनुपबृंहणा कीधी; अस्थिरीकरण, अवात्सल्य, अप्रीति, अभक्ति नीपजावी, अबहुमान कीधुं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001009
Book TitleShraddha Pratikramana Sutra Prabodh Tika 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay, Kalyanprabhavijay, Amrutlal Kalidas Doshi
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageGujarati, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Worship, & Spiritual
File Size11 MB
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