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२२. संसारदावानल-थुई
[श्री महावीरस्तुतिः] સંસારદાવાનલ-સ્તુતિ
(१) भूसा संसार-दावानल-दाह-नीरं, संमोह-धूली-हरणे समीरं । माया-रसा-दारण-सार-सीरं, नमामि वीरं गिरि-सार-धीरं ॥१r भावावनाम-सुर-दानव-मानवेन चूला-विलोल-कमलावलि-मालितानि । संपूरिताभिनत-लोक-समीहितानि, कामं नमामि जिनराज-पदानि तानि ॥२॥ बोधागाधं सुपद-पदवी-नीर-पूराभिरामं, जीवाहिंसाविरल-लहरी-संगमागाहदेहं । चूला-वेलं गुरुगम-मणी-संकुलं दूरपारं, सारं वीरागम-जलनिधि सादरं साधु सेवे ॥३॥ आमूलालोल-धूली-बहुल-परिमलाऽऽलीढ-लोलालिमाला झंकाराराव-सारामलदल-कमलागार-भूमिनिवासे । । छाया-संभार-सारे ! वरकमल-करे ! तार-हाराभिरामे !, वाणी-संदोह-देहे ! भव-विरह-वरं देहि मे देवि ! सारं ॥४॥
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॥था-१ "64%' छम छे.
था-२ 'वसंतति ' छम छे. गाथा-3 'भंtitu' छम छे. गाथा-४ '०५२।' छम छे.
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