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करुणा-स्रोतः आचरण में अहिंसा
यत्किंचित मनुष्य के मन में अपने मनोभाव अन्य व्यक्तियों के समक्ष प्रस्तुत करने की तीव्र भावना होती है। उसी से प्रेरित होकर उसका मन सहज रूप से आलेखन करने को तत्पर होता है। इसी पुस्तक के आलेखन में भी इन्हीं भावनाओं का प्रतिबिंब है । हमारी एवं अन्य लेखकों की अहिंसा, दया एवं विश्व के सर्व प्राणियों के प्रति सन्मान की भावना इस पुस्तक में प्रतिबिंबित हैं। अहिंसा भारतीय धर्मो का सर्वोत्कृष्ट सिद्धांत है । भारतीय प्रजा अत्यंत दयावान एवं परंपरा से प्राणियों के प्रति गहरी सहानुभूति रखती है। अनेक भारतीय माँस, मच्छी, अंडा एवं शराब का सेवन नहीं करते । शाकाहारी होने के साथ ही वे समस्त प्राणियों के हित की कामना करते हैं। भारतीय धर्मों में प्राणियों के प्रति सदैव आदर भाव रहा है। उनके शास्त्रों में उनके प्रति अपार करुणा प्रदर्शित है। प्राणियों के चिन्ह / प्रतीक एवं कथायें व्यापक प्रमाण में हैं। सदियों से भारतीय प्रजाने उन प्राणियों का रक्षण किया है एवं उनकी देखभाल की है। उन्होंने गाँव-गाँव में पशु-पक्षियों के आश्रय स्थान (पांजरापोल-गौशाला) एवं औषधालयों का निर्माण किया है। इसके बावजूद, वर्तमान औद्योगिक विकास के आर्थिक लाभ के कारण हिंसा का एक नया पर्यावरण उत्पन्न हुआ है जो सामान्य जन की दृष्टि से परे है। प्राणियों के प्रति पनप रही निर्दयता डेयरी उद्योग एवं कत्लखानों की चार दीवारों के अंदर भयानक स्वरूप धारण किया है। पशु-पक्षियों का उनके मालिक अब दैनिक व्यापार के रूप में उपयोग कर रहे हैं। कृत्रिम गर्भाधान एवं फलिनीकरण एवं अन्य साधनों का उपयोग करके वे विपुल संख्या में पशुपक्षियों का उत्पादन करते या कराते हैं। एसे लोग पशु-पक्षियों के अस्तित्व के प्रति यत्किंचित् दया या सन्मान प्रदर्शित किए बिना पशु-पक्षियों की बाल्यावस्था से ही स्वार्थ हेतु उनका दुरूपयोग, शोषण करके उन्हें घोर यातनायें देकर उन पर क्रूरता पूर्वक जुल्म करते हैं। परिणाम स्वरूप एसे प्राणी अपनी कुदरती आयु से पूर्व ही मृत्यु की शरण चले जाते हैं या उनका कत्ल कर दिया जाता है। वैसे अधिकांश भारतीय शाकाहारी हैं फिर भी डेयरी उत्पादनों का प्रयोग अवश्य करते हैं। कई रेशमी एवं ऊनी वस्त्रों का प्रयोग करते हैं। इसके अलावा अन्य प्राणिज पदार्थों का उपयोग भोजन, केन्डी, वस्त्र, चरण पादुका,
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