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________________ Jain Education International करुणा-स्रोतः आचरण में अहिंसा डाला जाता है । ऐसे ये बछड़े-पाड़े सामान्यतः अत्यंत दारूण दुःख भोगते हुए एक सप्ताह में मृत्यु पाते हैं । कुछ बछड़ो-बछड़ी, पाड़ा-पाड़ी को ट्रको में ठूंसठूंसकर भरकर अनधिकृत कत्लखाने भेज दिया जाता है जहाँ उनकी रेस्टोरन्ट / होटलों के हेतु कोमल मॉस हेतु कत्ल कर दी जाती है। होटलों में भी यह सब गैरकानूनी चलता रहता है । कुछ बछड़े - बछड़ी, पाड़ा-पाड़ी को पनीर का उद्योग चलाने वालों को बेच दिया जाता है। जब ये जीवित होते है तब उनकी होजरी में चित्र करके उसमें से रेनेट (Rennet) नामक प्रवाही पाचर रस, जो बट्टा एसिड होता है, उसे निकाल लिया जाता है । जिसका पनीर बनाने में उपयोग होता है। कुठ स्वस्थ बछड़ो या पाड़ो को पसंद करके उनका उपयोग कृत्रिम गर्भाधान कराने के लिए उन्हें अंधेरे एकांत अहाते में रखा जाता है । कितनी ही बार ऐसे बड़े बैल और पाड़ों को गलियों में भटकने के लिए छोट दिया जाता है जहाँ वे वाहनों से टकरा कर मरते हैं। मुझे पता है कि मैने एक सप्ताह में इस प्रकार मरने वाले आठ बैलों को पकड़ा है। गाय-भैंस का मूल स्वभाव क्या है ? वे अपने बच्चों का समर्पित भाव से अपने जीव का जोखिम उठाकर भी उनका पालन करते हैं। उनका कार्य है घासचारा खोजना, खाना, जुगाली करना एवं धैर्यपूर्वक प्रकृति के साथ संवादिता स्थापित करके २० वर्ष की आयु पूर्ण करना । गाय-भैंस मात्र चार पाँव वाली दूध दोहन की मशीन नहीं हैं कि जिनको कम से कम मूल्य में दूध प्राप्त कर अनाथ बनाकर, गर्भाधान करवाकर, अनाज खिलाकर, दवायें देकर, कृत्रिम वीर्यदान कर चालाकी की जाये। क्या आपने भारतीय डेरी का वर्षो पुराना फूकन नामका रिवाज देखा है ? जो कानूनन भी अयोग्य है, फिर भी आज भी हजारों गाय-भैंसो पर उनका प्रयोग हो रहा है। गाय-भैंस जैसे ही कम दूध देने लगे तो तुरंत उसके मालिक उसके मूत्र मार्ग में एक लकड घुसेड़ते हैं एवं तीव्र वेदना देने हेतु उसे गोल गोल घुमाते हैं । इसका मूल कारण यह है कि ग्वालों की ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से गाय-भैंस अधिक दूध देती हैं। इससे उनके गर्भाशय में छाले पड़ जाते हैं। विचार करो यदि किसी स्त्री के साथ ऐसा व्यवहार किया जाये तो ? गाय-भैंस को तो किसी भी तरह अधिक दूध देने हेतु यह क्रूर कार्य किया जाता है और जब वह कम देने लगती है तो एक जगह बाँधकर भूखा मार डाला जाता है या फिर अन्य ४०-५० गाय-भैंसो के साथ ट्रक में भरकर कसाई के यहाँ ले जाया जाता है। 65 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.000225
Book Title$JES 921H Karuna me Srot Acharan me Ahimsa Reference Book
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramoda Chitrabhanu, Pravin K Shah
PublisherJAINA Education Committee
Publication Year2006
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Jaina_Education, 0_Jaina_education, D000, & D005
File Size657 KB
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