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________________ Jain Education International करुणा-स्रोतः आचरण में अहिंसा कारखाने में उत्पन्न किए जा रहे हों ऐसे अंडे वास्तव में आरोग्य के लिए अहितकर हैं अतः सर्वश्रेष्ठ बात तो यह है कि अंडे खाने ही नहीं चाहिए । मुर्गे के समागम के बिना जो अंडे प्राप्त किए जाते हैं वे फलिनीकरण रहित माने जाते हैं, परंतु उमनें भी जीव तो होता ही है। अर्थात् वे भी सजीव ही हैं क्योंकि अंडे की उत्पत्ति तो मुर्गी से ही हुई है जो मुर्गी के ही रक्त व कोषों से निर्मित होता है। अतः उसका भोजन में उपयोग १००% ( शत प्रतिशत) मांसाहार ही है । मि. फिलीप जे. स्केम्बल (Mr. Philip J. Scambla) नामके प्रसिद्ध अमरीकन वैज्ञानिक के कथनानुसार कोई भी अंडा कभी भी शाकाहारी नहीं होता । अमरीका की मिशिगन (Michigen) युनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध किया है कि इसमें कोई शंका नहीं है कि अंडा चाहे फलित हो, चाहे फलित न हो परंतु वह कभी भी निर्जीव नहीं होता । मादापक्षी नरपक्षी की अनुपस्थिति में फलित हुए बिना के अंडे देती हैं परंतु अवलोकन से यह स्पष्ट पता चला है कि मुर्गे-मुर्गी के समागम से पूर्व दिन वह अफलित अंडे देती है परंतु समागम के पश्चात् दूसरे दिन भी अंडा देती है । दूसरे शब्दों में कहें तो वह मुर्गे के समागम के अलावा भी फलित अंडा दे सकती है । इसका यह अर्थ हुआ कि मुर्गे के शुक्राणु मुर्गी में लंबे काल तक रहते हैं। कुछ परिस्थितियों में यह समय छ महिनों तक के अन्तराल तक रहता है। फलित अंडा वह चूजे के जन्म की पूर्व भूमिका है। फलित अंडा मुर्गी के प्रजनन चक्र का ही परिणाम है और वह अत्यंत अप्राकृतिक है । दोनों प्रकार के अंडे मांसाहार ही है । 'Campassion ! The Ultimate Ethics' पुस्तक के लेखक विक्टोरिया मोरन (Victoria Moran) का कथन है कि फलित अंडा खाना अर्थात् बच्चे के जन्म से पूर्व उसका भक्षण करना है जो अनैतिक है । मैंने कहा है कि फलित हुए बिना अंडा मुर्गी के प्रजनन चक्र की पैदाइश है जो शायद ही मनुष्य का प्राकृतिक आहार है ही नहीं। अंडा चाहे फलित हो या अफलित उसमें जीवन होता है और उसमें जीवन के सभी लक्षण जैसे कि श्वासोच्छवास, मस्तिष्क, आहार प्राप्ति की शक्ति आदि होते हैं । अंडे के छिलके में श्वासोच्छवास के लिए १५००० छिद्र होते हैं । ८ डिग्री सेल्सियस उष्णतामान में अंडा सड़ने लगता है। यह सड़ने की प्रक्रिया का प्रारंभ होते ही तुरंत स्वयमेव उसके अंदर के पानी के बाष्पीभवन द्वारा इस सडने की क्रिया को स्पष्ट करता है । अंडे पर सूक्ष्म जीवाणु आक्रमण करते हैं 55 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.000225
Book Title$JES 921H Karuna me Srot Acharan me Ahimsa Reference Book
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramoda Chitrabhanu, Pravin K Shah
PublisherJAINA Education Committee
Publication Year2006
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Jaina_Education, 0_Jaina_education, D000, & D005
File Size657 KB
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