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________________ करुणा-स्रोतः आचरण में अहिंसा ८. अंडा विषयक वास्तविकता - प्रमोदा चित्रभानु तुम्हें याद है कि तुम्हारी बाल्यावस्था में तुम्हारी माता तुम्हें बिस्कुट खाने को मना करती थी क्योंकि उनमें अंडों का प्रयोग होता है और हम शाकाहारी हैं। मैने अनेक लोगों को यह कहते सुना है कि अंडा शाकाहारी भोजन है जो स्वास्थ्य के लिए उत्तम हैं, अतः अंडे खाने चाहिए। शाकाहारी अंडों की बात काल्पनिक है और उससे स्वास्थ्य सुधरता है यह बात भी विपरीत दिशा में ले जाने वाली है। अनेक शाकाहारी लोग भी अंडा खाते हैं यह बडी दुःखद बात है। अंडे के विषय में गलत मान्यतायें इस हद तक फैलाई गई है कि अंडे में सुषुप्त जीवन होता है, उसके अंदर चूजा होता है- यह बात भी मानने को कोई तैयार नहीं होता। मनुष्य की भोजन और स्वाद की प्रबल आकांक्षाने उसे हिंसक एवं क्रूरता पूर्वक तैयार की गई भोजन सामग्री (वानगी) के लिए प्रेरित किया। प्रकृति ने अंडों को मुर्गी और पक्षियों की वंशवृद्धि हेतु सर्जित किया हैं न कि मनुष्य के भोजन के लिए। हिंसक भोजन की तलप/लालसा वास्तव में तो मनुष्य की विचारशक्ति एवं भावनात्मक लगाव को नष्ट करते हैं, और मनुष्य को जड़ बनाते हैं जिससे वह किसी भी विषय की गहराई में जाने से और सत्य के प्रति कतराता है। परंतु यह अज्ञान-अंधकार कब तक रहेगा ? वास्तविकता तो वास्तविकता ही है वह कभी भी परिवर्तित नहीं होती चाहे कोई उसका स्वीकार करे या न करे। अब हमें अंडे के विषय में कुछ वास्तविकताओं, सत्य हकीकतों को जानना चाहिए एवं हमारे मस्तिष्क में जो अज्ञानता, गलत मान्यतायें घर कर चुकी हैं उन्हें दूर करना होगा। अंडे के संदर्भ में यहाँ जो प्रस्तुतिकरण है वह इन्दौर निवासी डॉ. नेमीचंदजी द्वारा लिखित पुस्तक "अंडे के संदर्भ में १०० वास्तविकतायें" पुस्तक से उद्धृत हैं। प्रत्येक पक्षीके अंडे की रचना अलग-अलग होती है। (देखें: Mc Donald Encyclopedia of Birds of the world) अंडे की आंतरिक रचना भी प्रजोत्पत्ति हेतु ही होती हैं- मनुष्य के उपयोग के लिए नहीं। मनुष्य ने अंडे का प्रयोग करके स्वयं को शिकारी की भूमिका में रख दिया है। अंडे का आहार के रूप में उपयोग करके उसने प्रकृति और पक्षियों के प्रजनन के कार्य में टाँग अडाई है। जो अहिंसा और जीवदया में विश्वास रखते हैं उनके लिए अंडा पूर्ण 53 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.000225
Book Title$JES 921H Karuna me Srot Acharan me Ahimsa Reference Book
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramoda Chitrabhanu, Pravin K Shah
PublisherJAINA Education Committee
Publication Year2006
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Jaina_Education, 0_Jaina_education, D000, & D005
File Size657 KB
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