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करुणा-स्रोतः आचरण में अहिंसा
कत्लखाने की प्रक्रियाः
आधुनिक कत्लखाने आंशिक रूप में फैक्ट्री और अधिकांश रूप में (माँस के) छोटे-छोटे टुकडे करने की दुकान जैसे हैं । बडे कत्लखाने प्रति घंटे २५० गाय-भैंसों की कत्ल करते हैं और वे प्रतिदिन १६ घंटे कार्यरत रहते हैं। यहाँ गाय-भैंस के मृत शरीर को लोहे के हूक के आधार से ज्यों-ज्यों आगे धकेला जाता है त्यों-त्यों उसके अनेक छोटे टुकडे होते जाते हैं।
सर्वप्रथम जीवित गाय-भैंस को ढलान वाले ऊपर के हिस्से में ले जाया जाता है- वहाँ उसका सिर एक पकड (औजार) में जकड दिया जाता है और इस तरह उसे बेहोश किया जाता है। उसके पश्चात् 'स्टीकर' नामक कर्मचारी द्वारा तेज छुरी से उस गाय-भैंस के गले की मुख्य नस काटी जाती है जिससे गाय-भैंस मर जाती हैं। नस में से प्रवाहित रक्त हो एक बड़े बर्तन में इकट्ठा किया जाता है। बाद में इस रक्त को सुखाकर उसका पावडर बनाया जाता है और वही प्रोटीनयुक्त पशु आहार के रूप में पशुओं को खिलाया जाता
पश्चात् पाँव के खुर अलग किये जाते हैं एवं विक्रय हेतु चमडा उतार लिया जाता है। यदि गाय-भैंस गर्भवती होती है तो उसके अजन्मे गर्भस्थ बछडों के चमडे को उच्चकोटि के नरम चमडे (Slunk) के रूप में विक्रय किया जाता है। इसके बाद इसके मस्तक के टुकड़े किये जाते हैं एवं उस गाय-भैंस की छाती को चीरकर अंदर के अंगों को अलग किया जाता है।
कूड़ा-कचरा कहलाने वाले अंगों को (Waste) कूटा खंड में भेज दिया जाता है। वहाँ उस पट्टे पर रख दिया जाता है जहाँ कारीगर चीमटे (औजार) से उनके अंगों को अलग-अलग करते हैं।
कारीगरों का एक समूह होजरी के अंग भागों को पृथक करता है तो दूसरा फेफडे अलग करता है। अन्य कारीगर उनके हृदय, पेन्क्रियास अथवा थाइरोइड ग्रंथियों को अलक करते हैं। विशेष रूप से हड्डियों और खुरों का उपयोग आहार, खाद एवं उच्चकोटि के प्रोटीनयुक्त पशुआहार एवं खाद बनाने में किया जाता है। अन्य बचा हुआ कचरा व हड्डियाँ कोलन, जिलेटीन एवं खिलौने बनानेवालों को बेच दिया जाता है। कत्लखानों के उपउत्पादनः गाय-भैंस के शरीर के अंग एवं उनका उपयोग
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