Book Title: Vardhaman Shakra Stav
Author(s): Siddhasensuri, Mahabodhivijay
Publisher: Ramanlal Vadilal Shah
Catalog link: https://jainqq.org/explore/020878/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्रीसिद्धसेनसूरि विरचित ॥ श्रीवर्धमानशक्रस्तवः ॥ : निमित्तम् ऋ १३५० सिद्धितपना तपस्वीओनी अनुमोदनार्थे... : लाभार्थी : श्री रमणलाल वाडीलाल शाह - चाणस्मावाला परिवार : संपादक : पंन्यास महाबोधिविजय For Private and Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्रीसिद्धसेनसूरि विरचित ॥ श्रीवर्धमानशक्रस्तवः ॥ ॐ नमोऽर्हते, १ भगवते, २ परमात्मने, ३ परमज्योतिषे, ४ परमपरमेष्ठिने, ५ परमवेधसे, ६ परमयोगिने, ७ परमेश्वराय, ८ तमसः परस्तात्, ९ सदोदितादित्यवर्णाय, १० समूलोन्मूलितानादिसकलक्लेशाय ॥१॥ ॐ नमोऽर्हते, १ भूर्भुवःस्वस्त्रयीनाथमौलिमन्दारमालार्चितक्रमाय, २ सकलपुरुषार्थयोनिनिरवद्यविद्याप्रवर्तनैक वीराय, ३ नमःस्वस्तिस्वधास्वाहावषडथैकान्तशान्तमूर्तये, ४ भवद्भाविभूतभावावभासिने, ५ कालपाश For Private and Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " नाशिने, ६ सत्त्वरजस्तमोगुणातीताय ७ अनन्तगुणाय, ८ वाङ्मनोगोचरचरित्राय, ९ पवित्राय, १० करणकारणाय, ११ तरणतारणाय १२ सात्त्विकदैवताय, १३ तात्त्विकजीविताय, १४ निर्ग्रन्थपरमब्रह्महृदयाय, १५ योगीन्द्रप्राणनाथाय १६ त्रिभुवनभव्यकुलनित्योत्सवाय, १७ विज्ञानानन्दपरब्रह्मैकात्म्यसात्म्यसमाधये, १८ हरिहरहिरण्यगर्भादिदेवतापरिकलितस्वरूपाय, १९ सम्यक् श्रद्धेयाय, २० सम्यग्ध्येयाय, २१ सम्यक्शरण्याय २२ सुसमाहितसम्यक् - स्पृहणीयाय ॥ २ ॥ " ॐ नमोऽर्हते, १ भगवते, २ आदिकराय ३ तीर्थङ्कराय ४ स्वयंसम्बुद्धाय, " For Private and Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५ पुरुषोत्तमाय, ६ पुरुषसिंहाय, ७ पुरुषवरपुण्डरीकाय, ८ पुरुषवरगन्धहस्तिने, ९ लोकोत्तमाय, १० लोकनाथाय, ११ लोकहिताय, १२ लोकप्रदीपाय, १३ लोकप्रद्योतकारिणे, १४ अभयदाय, १५ दृष्टिदाय, १६ मुक्तिदाय, १७ मार्गदाय, १८ बोधिदाय, १९ जीवदाय, २० शरणदाय, २१ धर्मदाय, २२ धर्मदेशकाय, २३ धर्मनायकाय, २४ धर्मसारथये, २५ धर्मवरचातुरन्तचक्रवर्तिने, २५ व्यावृत्तच्छद्मने, २७ अप्रतिहतसम्यग्ज्ञानदर्शनसद्मने ॥ ३ ॥ ॐ नमोऽर्हते, १ जिनाय, २ जापकाय, ३ तीर्णाय, ४ तारकाय, ५ बुद्धाय, ६ बोधकाय, ७ मुक्ताय, ८ मोचकाय, ९ त्रिकालविदे, १० पारङ्गताय, For Private and Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११ कर्माष्टकनिषूदनाय, १२ अधीश्वराय, १३ शम्भवे, १४ जगत्प्रभवे, १५ स्वयम्भुवे, १६ जिनेश्वराय, १७ स्याद्वादवादिने, १८ सार्वाय, १९ सर्वज्ञाय, २० सर्वदर्शिने, २१ सर्वतीर्थोपनिषदे, २२ सर्वपाषण्डमोचिने, २३ सर्वयज्ञफलात्मने, २४ सर्वज्ञकलात्मने, २५ सर्वयोगरहस्याय, २६ केवलिने, २७ देवाधिदेवाय, २८ वीतरागाय ॥ ४ ॥ ॐ नमोऽर्हते १ परमात्मने, २ परमाप्ताय, ३ परमकारुणिकाय, ४ सुगताय, ५ तथागताय, ६ महाहंसाय, ७ हंसराजाय, ८ महासत्त्वाय, ९ महाशिवाय, १० महाबोधाय, ११ महामैत्राय, १२ सुनिश्चिताय, For Private and Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org " १३ विगतद्वन्द्वाय जितमारबलाय ॥ ५॥ ॐ नमोऽर्हते ५ " 1 १ सनातनाय, २ उत्तम श्लोकाय ३ मुकुन्दाय, ४ गोविन्दाय, विष्णवे, ६ जिष्णवे, ७ अनन्ताय, ८ अच्युताय ९ श्रीपतये, १० विश्वरूपाय, ११ हृषीकेशाय, १२ जगन्नाथाय १३ भूर्भुवः स्वःसमुत्ताराय, १४ मानंजराय, १५ कालंजराय, १६ ध्रुवाय १७ अजाय, १८ अजेयाय १९ अजराय, २० अचलाय, २१ अव्ययाय, २२ विभवे, २३ अचिन्त्याय, २४ असंख्येयाय, २५ आदिसंख्याय, २६ आदिकेशवाय, २७ आदिशिवाय, २८ महाब्रह्मणे, २९ परमशिवाय, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४ गुणाब्धये १५ लोकनाथाय १६ ६ For Private and Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३० एकानेकान्तस्वरूपिणे, ३१ भावाभावविवर्जिताय, ३२ अस्तिनास्तिद्वयातीताय, ३३ पुण्यपापविरहिताय, ३४ सुखदुःखविविक्ताय, ३५ व्यक्ताव्यक्तस्वरूपाय, ३६ अनादिमध्यनिधनाय, ३७ नमोऽस्तु मुक्तीश्वराय, ३८ मुक्ति स्वरूपाय ॥ ६ ॥ ॐ नमोऽर्हते १ निरातङ्काय, २ निःसङ्गाय, ३ निःशङ्काय, ४ निर्मलाय, ५ निर्द्वन्द्वाय, ६ निस्तरङ्गाय, ७ निरूर्मये, ८ निरामयाय, ९ निष्कलङ्काय, १० परमदैवताय, ११ सदाशिवाय, १२ महादेवाय, १३ शङ्कराय, १४ महेश्वराय, १५ महाव्रतिने, १६ महायोगिने, १७ महात्मने, १८ पञ्चमुखाय, १९ मृत्युञ्जयाय, २० अष्टमूर्तये, २१ भूतनाथाय, For Private and Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२ जगदानन्दाय, १३ जगत्पितामहाय, २४ जगद्देवाधिदेवाय, २५ जगदीश्वराय, २६ जगदादिकन्दाय, २७ जगद्भास्वते, २८ जगत्कर्मसाक्षिणे, २९ जगच्चक्षुषे, ३० त्रयीतनवे, ३१ अमृतकराय, ३२ शीतकराय, ३३ ज्योतिश्चक्रचक्रिणे, ३४ महाज्योति?तिताय, ३५ महातमः पारे सुप्रतिष्ठिताय, ३६ स्वयंकर्त्रे, ३७ स्वयंहर्ने, ३८ स्वयंपालकाय, ३९ आत्मेश्वराय, ४० नमो विश्वात्मने ॥ ७ ॥ ॐ नमोऽर्हते, १ सर्वदेवमयाय, २ सर्वध्यानमयाय, ३ सर्वज्ञानमयाय, ४ सर्वतेजोमयाय, ५ सर्वमंत्रमयाय, ६ सर्वरहस्यमयाय, ७ सर्वभावाभावाजीवाजीवेश्वराय, ८ अरहस्यरहस्याय, ९ अस्पृहस्पृहणीयाय, १० For Private and Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अचिन्त्यचिन्तनीयाय, ११ अकामकामधेनवे, १२ असङ्कल्पितकल्पद्रुमाय, १३ अचिन्त्यचिन्तामणये, १४ चतुर्दशराज्ज्वात्मक जीवलोकचूडामणये, १५ चतुरशीतिलक्षजीवयोनिप्राणिनाथाय, १६ पुरुषार्थनाथाय, १७ परमार्थनाथाय, १८ अनाथनाथाय, १९ जीवनाथाय, २० देवदानवमानवसिद्धसेनाधिनाथाय ॥ ८ ॥ ॐ नमोऽर्हते १ निरञ्जनाय, २ अनन्तकल्याणनिकेतनकीर्तनाय, ३ सुगृहीतनामधेयाय, (महिमामयाय) ४ धीरोदात्तधीरोद्धतधीरशान्तधीरललितपुरुषोत्तमपुण्यश्लोकशतसहस्रलक्षकोटिवन्दितपादारविन्दाय, ५ सर्वगताय ।। ९ ॥ For Private and Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॐ नमोऽर्हते १ सर्वसमर्थाय २ सर्वप्रदाय, ३ सर्वहिताय, ४ सर्वाधिनाथाय, " ५ कस्मैचन क्षेत्राय, ६ पात्राय, ७ तीर्थाय ८ पावनाय ९ पवित्राय, " , १० अनुत्तराय, ११ उत्तराय, १२ योगाचार्याय १३ संप्रक्षालनाय, १४ प्रवराय, १५ आग्रेयाय, १६ वाचस्पतये, १७ माङ्गल्याय, १८ सर्वात्मनीनाय, १९ सर्वार्थाय २० अमृताय, २१ सदोदिताय, २२ ब्रह्मचारिणे, २३ तायिने, २४ दक्षिणीयाय २५ निर्विकाराय २६ वज्रर्षभनाराचमूर्त्तये, २७ तत्त्वदर्शिने, २८ पारदर्शिने, २९ परमदर्शिने, ३० निरुपम - ज्ञान-बल-वीर्यतेज:- शक्त्यैश्वर्यमयाय, आदिपुरुषाय, ३२ आदिपरमेष्ठिने, ३३ आदिमहेशाय ३४ महा ३१ १० , For Private and Personal Use Only 1 Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्योतिः स(स्त )त्त्वाय, ३५ महाचिर्धनेश्वराय, ३६ महामोहसंहारिणे, ३७ महासत्त्वाय, ३८ महाज्ञामहेन्द्राय, ३९ महालयाय, ४० महाशान्ताय, ४१ महायोगीन्द्राय, ४२ अयोगिने, ४३ महामहीयसे, ४४ महाहंसाय, ४५ हंसराजाय, ४६ महासिद्धाय, ४७ शिवमचलमरुजमनन्तमक्षयमव्याबाध-मपुनरावृत्ति महानन्दं महोदयं सर्वदुःखक्षयं कैवल्यं अमृतं निर्वाणमक्षरं परब्रह्म निःश्रेयसम-पुनर्भवं सिद्धिगतिनामधेयं स्थानं संप्राप्तवते, ४८ चराचरं अवते, ४९ नमोऽस्तु श्रीमहावीराय, ५० त्रिजगत्स्वामिने श्रीवर्धमानाय ॥ १० ॥ ॐ नमोऽर्हते, १ केवलिने, २ परमयोगिने, ३ ( भक्तिमार्ग-योगिने), ४ विशाल For Private and Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शासनाय, ५ सर्वलब्धि-सम्पन्नाय, ६ निर्विकल्पाय, ७ कल्पनातीताय, ८ कलाकलापकलिताय, ९ विस्फुरदुरुशुक्लध्यानाग्निनिर्दग्धकर्मबीजाय, १० प्राप्तानन्तचतुष्टयाय, ११ सौम्याय, १२ शान्ताय, १३ मङ्गलवरदाय, १४ अष्टादशदोषरहिताय, १५ संसृतविश्वसमीहिताय स्वाहा, १६ ॐ ह्रीं श्रीं अहँ नमः ॥११॥ लोकोत्तमो निष्प्रतिमस्त्वमेव, त्वं शाश्वतं मङ्गलमप्यधीश ! त्वामेकमर्हन् ! शरणं प्रपद्ये, सिद्धर्षिसद्धर्ममयस्त्वमेव ॥१॥ त्वं मे माता पिता नेता, देवो धर्मो गुरुः परः । प्राणाः स्वर्गोऽपवर्गश्च, सत्त्वं तत्त्वं गतिर्मतिः ॥ २ ॥ १२ For Private and Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनो दाता जिनो भोक्ता, जिनः सर्वमिदं जगत् । जिनो जयति सर्वत्र, यो जिनः सोऽहमेव च ॥ ३ ॥ यत्किञ्चित् कुर्महे देव !, सदा सुकृतदुष्कृतम् । तन्मे निजपदस्थस्य, हुं क्षः क्षपय त्वं जिन ! ॥ ४ ॥ गुह्यातिगुह्यगोप्ता त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम् । , सिद्धिः श्रयति मां येन त्वत्प्रासादात्त्वयि स्थितम् ॥५॥ " इति श्रीवर्धमानजिननाममन्त्रस्तोत्रं समाप्तम् । प्रतिष्ठायां शान्तिविधौ पठितं महासुखाय स्यात् । । इति शक्रस्तवः । १३ For Private and Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९. इतीमं पूर्वोक्तमिन्द्रस्तवैकादशमन्त्रराजोपनिषद्गर्भं अष्टमहासिद्धिप्रदं सर्वपापनिवारणं सर्वपुण्यकारणं सर्वदोषहरं सर्वगुणाकरं महाप्रभावं अनेकसम्यग्दृष्टिभद्रकदेवताशतसहस्त्रशुश्रूषितं भवान्तरकृतासंख्यपुण्यप्राप्यं सम्यग् जपतां पठतां गुणयतां शृण्वतां समनुप्रेक्षमाणानां भव्यजीवानां चराचरेऽपि ( जीवलोके) सद्वस्तु तन्नास्ति यत्करतलप्रणयि न भवतीति । किं च २. इतीमं पूर्वोक्तमिन्द्रस्तवैकादशमन्त्रराजोपनिषद्गर्भं अष्टमहासिद्धिप्रदं सर्वपापनिवारणं सर्वपुण्यकारणं सर्वदोषहरं सर्वगुणाकरं महाप्रभावं अनेकसम्यग्दृष्टिभद्रकदेवताशतसहस्त्रशुश्रूषितं भवान्तरकृतासंख्यपुण्यप्राप्यं सम्यग् जपतां पठतां गुणयतां शृण्वतां समनु १४ For Private and Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रेक्षमाणानां भव्यजीवानां भवनपतिव्यन्तरज्योतिष्कवैमानिकवासिनो देवाः सदा प्रसीदन्ति । व्याधयो विलीयन्ते । ३. इतीमं पूर्वोक्तमिन्द्रस्तवैकादशमन्त्रराजोपनिषद्गर्भं अष्टमहासिद्धिप्रदं सर्वपापनिवारणं सर्वपुण्यकारणं सर्वदोषहरं सर्वगुणाकरं महाप्रभावं अनेकसम्यग्दृष्टिभद्रकदेवताशतसहस्त्रशुश्रूषितं भवान्तरकृतासंख्यपुण्यप्राप्यं सम्यग् जपतां पठतां गुणयतां शृण्वतां समनुप्रेक्षमाणानां भव्यजीवानां पृथिव्यप्तेजोवायुगगनानि भवन्त्यनुकूलानि । ४. इतीमं पूर्वोक्तमिन्द्रस्तवैकादशमन्त्रराजोपनिषद्गर्भं अष्टमहासिद्धिप्रदं सर्वपापनिवारणं सर्वपुण्यकारणं सर्वदोषहरं सर्वगुणाकरं महाप्रभावं अनेकसम्यग्दृष्टिभद्रकदेवताशतसहस्त्रशुश्रूषितं भवान्तरकृता For Private and Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संख्यपुण्यप्राप्यं सम्यग् जपतां पठतां गुणयतां शृण्वतां समनुप्रेक्षमाणानां भव्यजीवानां सर्वसम्पदां मूलं जायते जिनानुरागः । ५. इतीमं पूर्वोक्तमिन्द्रस्तवैकादशमन्त्रराजोपनिषद्गर्भं अष्टमहासिद्धिप्रदं सर्वपापनिवारणं सर्वपुण्यकारणं सर्वदोषहरं सर्वगुणाकरं महाप्रभावं अनेकसम्यग्दृष्टिभद्रकदेवताशतसहस्त्रशुश्रूषितं भवान्तरकृतासंख्यपुण्यप्राप्यं सम्यग् जपतां पठतां गुणयतां शृण्वतां समनुप्रेक्षमाणानां भव्यजीवानां साधवः सौमनस्येनाऽनुग्रहपरा जायन्ते । ६. इतीमं पूर्वोक्तमिन्द्रस्तवैकादशमन्त्रराजोप-निषद्गर्भं अष्टमहासिद्धिप्रदं सर्वपापनिवारणं सर्वपुण्यकारणं सर्वदोषहरं सर्वगुणाकरं महाप्रभावं अनेकसम्यग्दृष्टिभद्रकदेवताशतसहस्त्रशुश्रूषितं भवान्तरकृता For Private and Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संख्यपुण्यप्राप्यं सम्यग् जपतां पठतां गुणयतां शृण्वतां समनुप्रेक्षमाणानां भव्यजीवानां खलाः क्षीयन्ते । ७. इतीमं पूर्वोक्तमिन्द्रस्तवैकादशमन्त्रराजोपनिषद्गर्भं अष्टमहासिद्धिप्रदं सर्वपापनिवारणं सर्वपुण्यकारणं सर्वदोषहरं सर्वगुणाकरं महाप्रभावं अनेकसम्यग्दृष्टिभद्रकदेवताशतसहस्रशुश्रूषितं भवान्तरकृतासंख्यपुण्यप्राप्यं सम्यग् जपतां पठतां गुणयतां शृण्वतां समनुप्रेक्षमाणानां भव्यजीवानां जल-स्थल-गगनचराः क्रुरजन्तवोऽपि मैत्रीमया जायन्ते । ८. इतीमं पूर्वोक्तमिन्द्रस्तवैकादशमन्त्रराजोपनिषद्गर्भं अष्टमहासिद्धिप्रदं सर्वपापनिवारणं सर्वपुण्यकारणं सर्वदोषहरं सर्वगुणाकरं For Private and Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महाप्रभावं अनेकसम्यग्दृष्टिभद्रकदेवताशतसहस्रशुश्रूषितं भवान्तरकृतासंख्यपुण्यप्राप्यं सम्यग् जपतां पठतां गुणयतां शृण्वतां समनुप्रेक्षमाणानां भव्यजीवानां अधमवस्तून्यपि उत्तमवस्तुभावं प्रपद्यन्ते । ९. इतीमं पूर्वोक्तमिन्द्रस्तवैकादशमन्त्रराजोपनिषद्गर्भं अष्टमहासिद्धिप्रदं सर्वपापनिवारणं सर्वपुण्यकारणं सर्वदोषहरं सर्वगुणाकरं महाप्रभावं अनेकसम्यग्दृष्टिभद्रकदेवताशतसहस्त्रशुश्रूषितं भवान्तरकृतासंख्यपुण्यप्राप्यं सम्यग् जपतां पठतां गुणयतां शृण्वतां समनुप्रेक्षमाणानां भव्यजीवानां धर्मार्थकामा गुणाभिरामा जायन्ते । १०. इतीमं पूर्वोक्तमिन्द्रस्तवैकादशमन्त्रराजोपनिषद्गर्भं अष्टमहासिद्धिप्रदं सर्वपापनिवारणं सर्वपुण्यकारणं सर्वदोषहरं सर्वगुणाकरं For Private and Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महाप्रभावं अनेकसम्यग्दृष्टिभद्रकदेवताशतसहस्त्रशुश्रूषितं भवान्तरकृतासंख्यपुण्यप्राप्यं सम्यग् जपतां पठतां गुणयतां शृण्वतां समनुप्रेक्षमाणानां भव्यजीवानां ऐहिक्यः सर्वा अपि शुद्धगोत्रकलत्र-पुत्र-मित्र-धनधान्य-जीवित-यौवन-रूपाऽऽरोग्ययशःपुरस्सराः सर्वजनानां सम्पदः परभागजीवितशालिन्यः सदुदर्काः सुसंमुखी भवन्ति । किं बहुना ? ११. इतीमं पूर्वोक्तमिन्द्रस्तवैकादशमन्त्रराजोपनिषद्गर्भं अष्टमहासिद्धिप्रदं सर्वपापनिवारणं सर्वपुण्यकारणं सर्वदोषहरं सर्वगुणाकरं महाप्रभावं अनेकसम्यग्दृष्टिभद्रकदेवताशतसहस्त्रशुश्रूषितं भवान्तरकृतासंख्यपुण्यप्राप्यं सम्यग् जपतां पठतां गुणयतां शृण्वतां समनुप्रेक्षमाणानां भव्यजीवानां आमुष्मिक्यः सर्वमहिमास्वर्गापवर्गश्रियोऽपि For Private and Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्रमेण यथेष्टं च्छं) स्वयं स्वयंवरणोत्सवसमुत्सुकाः भवन्तीति / सिद्धिः( सिद्धिदः) श्रेयः समुदयः / यथेन्द्रेण प्रसन्नेन, समादिष्टोऽर्हतां स्तवः / तथाऽयं सिद्धसेनेन, प्रपेदे सम्पदां पदम् // 1 // // इति शक्रस्तवः // For Private and Personal Use Only