Book Title: Tejbai Vrat Grahan Sazzaya
Author(s): Suyashchandravijay, Sujaschandravijay
Publisher: ZZ_Anusandhan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ डिसेम्बर २००९ श्रीदेवचन्द्रमुनिकृत तेजबाई व्रतग्रहण सज्झाय १०१ सं. मुनिसुजसचन्द्र-सुयशचन्द्रविजयौ काव्यनुं मूल्य मुख्यत्वे कर्तानी काव्य रचवानी शैली, काव्यना विषय, काव्यनी भाषाकीय सामग्री, काव्यनी ऐतिहासिकता आदि बाबतो उपर आधार राखे छे. प्रस्तुत कृति ऐतिहासिक दृष्टिए महत्त्वनी होइ अहीं प्रस्तुत करी छे. जिनेश्वर भगवंतोओ विराधना - (पाप) थी बचवा महाव्रतो ( चारित्रमार्ग) नो उपदेश आप्यो. जेओ महाव्रतो न लई शके तेवा जीवो माटे महाव्रतनी अपेक्षाओ नानां अने सरळ (सुगम) अवां पांच अणुव्रतो, अणुव्रतोनी पुष्टि करनारां त्रण गुणव्रतो अने संयमजीवननुं शिक्षण आपतां चार शिक्षाव्रतो अम बार व्रतोनो उपदेश आप्यो. तेजबाई नामनी श्राविकाओ सं. १६८२मां पूज्य विजयानन्दसूरिजी पासे जे व्रतो स्वीकार्यां तेनुं वर्णन करती सुन्दर अवी आ सज्झाय देवचन्द्रजी नामना कविओ रची छे. कर्ताओ पोते कोना शिष्य छे ? कइ संवतमां कृतिनी रचना करी छे ? ते कोईपण बाबतनो काव्यमा उल्लेख कर्यो नथी. जैन गुर्जर कविओ भाग - ३मां १७मी सदीना उत्तरार्धमां देवचन्द्रजी नामना कविनी नवतत्वचोपाई, शत्रुंजय तीर्थ परिपाटी, पृथ्वीचंदकुमाररास आदि केटलीक रचनाओ नोंधायेली छे. तेओ हीरसूरिजी म.नी परम्परामां महोपाध्याय भानुचन्द्रजी गणिना शिष्य हता. ते ज देवचन्द्रजी प्रस्तुत कृतिना कर्त्ता पण होई शके छे. आ बाबतनो कोई स्पष्ट उल्लेख मळतो नथी. परन्तु जैन परम्पराना इतिहास भाग - ३, पृष्ठ ४०८मां आ अंगे नीचे मुजब नोंध मळे छे. "भट्टारक विजयसेनसूरिना स्वर्गगमन बाद सं. १६७२मां तपागच्छमां बे पक्ष पड्या त्यारे महो. भानुचन्द्रगणि वगेरे श्री विजयानन्दसूरिना पक्षमां दाखल थया. " आ उपरथी अटलुं कही शकाय जो सं. १६७२ पछी भानुचन्द्रजी Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२ अनुसन्धान-५० विजयानन्दसूरिना पक्षमां गया होय तो कदाच व्रतग्रहण प्रसंगे भेगा थवानुं बन्युं होय. ते वखते देवचन्द्रजी पण उपस्थित होय अने तेमना गुणोथी आकर्षाई अथवा तेजबाई श्राविकाना आग्रहने लई देवचन्द्रजीओ आ कृति रची होय ओम बने. कृतिमां केटलांक स्थानो अस्पष्ट छे, जे मूळरूपे ज अहीं उतार्या छे. आ प्रत श्रीनेमि-विज्ञान- कस्तूरसूरि भण्डारना संग्रहनी छे. प्रत आपवा बदल व्यवस्थापकोनो आभार. शब्दकोश १. पोति आवी मळे. २. साची ३ mr x ४. ५. ६. ७. ८. ९. १०. ११. १२. १३. १४. १५. १६. १७. १८. १९. = = = वासर = मारे वांहणि मेहूण लोहडीनीत वरसइ कुटि = = वाहन मैथुन दिवस = जुवटुं जुगार क्रम = करमियां = भाख्य = भाख थापिणमासो साख्य = साख (साक्षी) अदता(त्ता)दान = = लघुशङ्का ? झुंडी = = = सइं = बधा छाकाछोल माणसइ मनसि अधकी धारानी थापण ओळववी न आपेलुं लेवुं ते - मनमां ? छोळो उपर छोळो गाथा नं. ढा. १.१ ४ ७ ७ ८ ८ ९ ९ १० ११ ११ ११ १२ १३ १७ 10 10 10 10 १७ १८ १९ १९ Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ डिसेम्बर-२००९ १०३ * * * * २०. उपदसी = ? २१. दिसिपरिमाण = ओक के वधु दिशामां गमनागमन- माप ढा. २.१ धुरंधर = बळद २२. वेहलि = वहेल - गाडं पोठी = पोढियो ढा.२ गा.८ २३. संपुतसय्या = ? २४. खलकंकोड = खंखोळियुं (?) २५. अंघोल = नाह २६. बरटी = बंटी (ओक हलकुं धान्य) २७. झालर = वाल २८. नागली = बावटां जेवू ओक अनाज २९. भांग = वटाणां जेवू ओक कठोळ ३०. चीणो = ओक जातनुं अनाज ३१. राजकदैवकई = ? ३२. गोटा - ? ३३. डोडी - एक वनस्पति ३४. आरिआं - काकडी ३५. खीजडी - एक झाड ओढवां - ? शिंघोडा – शिंगोडा ३८. निलुआ - ३९. सरघुओ - सरगवो ४०. निवाहलोलि - ? ४१. अगथिआ - ओक झाड ४२. आउलि - दातण माटे ४३. अघाडों - ओक छोड. ४४. आखडी - नियम ४५. करमादान - जे व्यापारथी कर्म घणा बंधाय तेवो * * * * * * * * , * mm * * * * * * * * * * * Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ अनुसन्धान-५० व्यापार * * * * * * ة م به یه سه له سه ४६. चुहला - चूला ४७. पाणी पाट - ? | ४८. माटि टोपला - ? ४९. घोणी - नाहवं समंध - सम्बन्ध ५१. आदेसथी - ? ढाळ ३.१ ५२. अनरथडंड - प्रयोजन वगरनी हिंसारूप ५३. योउं - जोउं ५४. सोकठां - जुगार ५५. पाली - छरी ५६. कटारडी - बे बाजु धारवाळु शस्त्र ५७. चूहलेतरूं? ५८. देसावगासि - व्रतो लेती वखते मोकळा राखेला क्षेत्रनो संक्षेप करी एक अल्प आरंभवाळा भागमा रहेQ ५९. अतिथसंविभाग - अतिथिने दान आपq ६०. गुरुनिग्रह - गुरुभगवंतनो आदेश ६१. अन्नत्थणाभोगेणं - पच्चक्खाण भूलाई जवाथी वस्तु वपराय ते ६२. सहसागारेणं - सहसागारथी - इच्छा न होवा छतां __पराणे वस्तु वापरवी पडे ते ११ ६३. महत्तरागारेणं - कोई विशिष्ट प्रयोजन ऊ, थाय ने । वस्तु वापरवी पडे ११ ६४. सव्वसमाहिवत्तिआगारेणं - चित्तमां समाधि टकाववा । ____ माटे वस्तु वापरवी पडे ते १० ऐं नमः अहँ नमः ॥ ए ०॥ Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ डिसेम्बर-२००९ १०५ श्रीसरसतिनइं करूं प्रणाम, जिम सिझइ मनवंछितकाम, बार व्रतनो करूं सज्झाय, पुण्य घणुं जिम पोति थाय ॥१॥ प्रणमुं देव सदा अरिहंत, श्रीसुसाधु गुरु किरिआवंत, धर्म केवलीनो भाख्यो सार, तणि तत्त्व धारूं निरधार ॥२॥ कुगुरू कुदेव कुधर्म परिहरूं, मिथ्यामति संगति नवी(वि)करूं, देव सदा जांहरू (जूहारूं) मनरूलि, छतइ योगि वांदुं गुरु वली ॥३॥ देवतणी सामग्री विना, करवी एक चईतवंदना, पूर्व दिसिनई साहमा रही, एह वात सुधि सदही ॥४॥ दिन प्रति गणवा दस नोकार, सुधो भाव धरि निरधार, आगल पाछल पोहोचाईं वली, जो न गणाय कारण भणी ॥५॥ नोकारसि(सी) तणुं पचखाण, करवं नित उगमतइं भाण, रात्रि पणि करवो दुविहार, कारणि जयणा कोईक वार ॥६॥ व(वा)सर प्रति देहरइ दोकडा, पांच मुकवा मे रोकडा, साधारणनई ज्ञान अमारि, दोकडा पाँच पाँच मन धारिं ॥७॥ जे मोटि दस आसातना, देहरइ टालुं एकमनां, पाणि भोजन नई तंबोल, वांहणि मेहूण सयण कल्लोल ॥८॥ वडीणि(नी)त नइं लोहडीनि(नी)त, थु(यूं)क जुवटुं वरजु नित, देवगभारइ ए टालीइ, तो समकित सुधुं पालीए (इ) ॥९॥ पिहलई व्रत मोटा त्रस जीव, संकलपी(पि) नि[र]पीराध अजि(जी)व, न हणुं क्रम बालादिक तणी, जयणा आप कुटंबह भणी ॥१०॥ कन्या गाय भोमिनइं भाख्य, थापी(पि)णमोसो कुडि साख्य, ए मोटां जे जु(जू)ठां पांच, तेह तणो परिहरूं प्रपंच ॥११॥ खात्र खणी चोरि नवी करूं, वाट पाडि कोइनुं नवि हरूं, राजडंड जेहथी होय, अदतादान, पचवु(खु) सोय ॥१२॥ दाणचोरि वरसई मोकली, रूपइया सोनि सवी(वि)मली, लाधी वस्तु घणीनइं दीउं, घणी न मिलइ अरध धर्मइं दीउं ॥१३॥ चोथइ व्रत कायाइं सदां, पालुं जिम पा{ संपदा, मन वचनि जयणा योइ, ब्रह्मव्रत मुझ एणी परि होइ ॥१४॥ Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६ अनुसन्धान-५० पांचमइं परिग्रहनु पचखाण, इच्छाई कीधुं परिमाण, धन रूपईया पांच हजार, धान तणा मण त्रणि हजार ॥१५॥ वाडि(डी)खेत तणो परिहार, घर खडकीबध कलपइ च्यार, हाट पांच रूपुं मण एक, हेम सेर दस राखं छेक ॥१६॥ कुटि मोकली भणसइ च्यार, वली मोकली पांच वखारि, पांच फरत खांनां राखी(खि)यां, चोपद ते पणि [इहां] भाखी(खि)यां ॥१७॥ गाय भूइंसनई बोकडी, पांच पांच अधकी आरवडी, पांच जोडि धुरंधर तणी, पांच दास-दासी तिम गणी ॥१८॥ जहवेर मुझ कलपइ बे सेर, करि संवर टालुं भवफेर, साकर खांड तेल घी गोल, मण ब-बे सई छाकाछोल ॥१९॥ सेर अग्यार कपु(पू)र प्रमार(ण), कस्तुरी नव टांक वखाणि सुझइ सोपारी मण वीस, केसर कलपइं टांक च्यालीस ॥२०॥ पांच सेर हींगलो सिंदूर, वरस दिवस माहरई भरपूर, साडला नई कपडा च्यालीस, वली कपासीआ भण पांचवीस ॥२१॥ गंधिआणुं भण कलपइ वीस, वणिज काजि मुझ वसु जगीस, पांच हजार रूपैया तणूं ए सर्वमान वरस प्रति गणुं ॥२२॥ सजनादिक कारणि उपदसी ? जयणा सु(सू)क्षम मनि वसी, एणिपरि लीधुं व्रत पांचमुं, अतीचार टाली दुख दमुं ॥२३॥ ढाल - २ छठं दिसी(सि) परिमाण, व्रत हवइ आवरूं, चिहूं (हुं) दीसी (दिसि) गाऊ सोलसई ए ॥१॥ जलवट-थलवट मान, ए सवी(वि) जाणवू, जिहां वसुं तिहां थकी ए ॥२॥ ऊंचं निचूं(नीचुं) बार, गाऊ जायQ कगल कासी(सि)दनी जयणा ए ॥३॥ व्रत सातमुं हवइ सार, रंगि आदरूं, मान भोग-उपभोगनुं ए ॥४॥ Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ डिसेम्बर-२००९ १०७ दिन प्रति सचित वीस, पांच विगय वली, साठि द्रव्य मुझ मोकलां ए ॥५॥ वाहणी(वाणहि?) जोडां पांच, तंबोल, अध सेर, वस्त्र वि(वी)स मुझ मोकलां ए ॥६॥ कुसुम भोग नि[षे]ध, जयणा कारणि, पांच वेहलि छ गाडला ए ॥७॥ अवर वाहन वली सात, उंट तुरंगम, पोठी बलद सहू मली ए ॥८॥ संपुन सय्या सात, आसन ओग(णि)णीस, सेर डोढ विलइपन ए ॥९॥ अब्रह्म तणो निषेध, गाऊ च्यालीस चिहू(हुं) दिसी(सि) दिन प्रति मोकलुं ए ॥१०॥ मासई नाहण पांच, खलकंकोडिई, नित अंघोल बे मोकली ए ॥११॥ दिन प्रति भात अधमण, पाणि(णी) छ घडा, पीवा वावरवा थईए ॥१२॥ अनंतकाय बत्रीस, बावीस अभख्य, जावजीव कलपइ नही ए ॥१३॥ गहूं चोखा तिल जारि, चोला मठ चिणा, मग अडदनई बाजरी ए ॥१४॥ कलथी बरटी कांग-अलसी ओली(लि)या, तुयरि झालर जव मेथी ए ॥१५॥ नागली लांग मसुर, चीणो कोदरा, धानजाति मुझ मोकली ए ॥१६।। अवर सवइं पचखाण, राजकदैवकइं, कालादि तगरणि जयणा ए(?) ॥१७॥ श्रीफल आंबा जाति, गोटा शेस(ल)डी ? चोला गुला(वा)र तणीं फली ए ॥१८॥ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८ अनुसन्धान-५० चणा फलीनी जाति, सूआनि (नी) भाजी, भाजी तांदलजा तणी ए ॥१९॥ डोडि(डी) डाडिम पान, पहोक गहूतणो, बाजरी जारिनो मोकला ए ॥२०॥ तुरिआं आरी (रि)आं जाति, खीजडि (डी) खडबु(बू)जां, केलां ली(लीं)बु ओढवां ए ॥२१॥ कोठ सीं (शिं) घोडा द्राख, निलुआ कारिलां, गलो सरघुओ ली (लीं) बडो ए ॥ २२ ॥ टींठुरां कंकोडा, सेलडी सोपारि (री), बि (बी) जरूं नइ करमदा ए ॥२३॥ आबुआ निवाहलो लींबू (बु) सफरजन, अरणी अगथी (थि)आनी फली ए ॥ २४ ॥ केला आंबलां सार, दातणनि (नी) जाति, आउलि अघाडों लिं(लीं) बडो ए ॥२५॥ बीजी नीलवणि जाति, सघली आखडी, अरडु (डू) सो मुझ मोकलो ए ॥ २६ ॥ पनर करमांदान, आजीवका हेतई, जावजीव मई वरजवा ए ॥२७॥ वरस प्रति व्यापार, पांच हजारनो, घरनुं भाडुं मोकलुं ए ॥२८॥ दिन प्रति चुहला पांच, माथा गुथवा सात, अघी (धि)क[मटूं] सुझई नही ए ||२९|| दिन प्रति मण पांच, मुझनई मोकलूं, दलवुं खांडवुं भरडवुं ए ||३०|| विहवापगरणि(?) काजि, जयणा अधिकनि (नी), बार सेर वलि(ली) सेक ए ॥३१॥ नित पाणी पाट एक, माटि टोपला, वरसई च्यार चीर मोकला ए ||३२|| Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ डिसेम्बर-२००९ १०९ दस भण खारूं शाम्व, वीस मण आंबली, दस मण मीठे मोकलुं ए ॥३३।। मध तणो निषेध, धोणि(णी) आठज, मासइं धोणी मोकली ए ॥३४॥ सगपणनइ समंध, विहवा मेलवा, च्यार सु(सू)झइ वरसना ए ॥३५।। ढाल - ३ हवई पालुं व्रत आठमुं अनरथडंड टालुं दुरध्यान पाप आदेसथी, खप करि(री)मन वालुं, बारे व्रत मुझ मन वस्यां ॥१॥ चोर मारतो नवी(वि)जोउं, सति(ती) चढति(ती)काठि, रमता भवाईआ नवी(वि) योउं, न जाउं सोकठां वाटइ बारे व्रत मुझ मन वस्यां ।२।। सुडि (सूडी) पाली कटारडी, चूहलेतरूं अगनि, विणि दाखीण आपु नहिं, न थाउं परमादई मगन ____ बारे व्रत मुझ मन वस्यां ॥३॥ नोमइं सामायक व्रतइं, पडिकमणुं सोई, मासई दस पोहचाडवां, परमाद गमाई, बारे व्रत मुज मन वस्यां ॥४॥ दसमई देसावगासी(सि)इं, चउद नि[य]म संभारूं, साझइं संखइंपुं वली, मनथी न वी(वि)सारूं बारे व्रत मुज मन वस्यां ॥५॥ अग्यारमइ पौषध व्रतइं, वरसई पोसइ एक, रूडि परि आराधवो, मन धरि(री) वी(वि)वेक, बारे व्रत मुज मन वस्यां ॥६॥ अतित[थ] संविभाग व्रत बारमई, करूं साधनि(नी)भगतइ, Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 110 अनुसन्धान-५० साधवी श्रावक श्राविका, छतइ योगि संयुगत, __ बारे व्रत मुज मन वस्यां // 7 // चार आगार संयुत ए, पालुं पचखाण, छ छींडी छ मोकली, सुणयो गुण जाण, बारे व्रत मुज मन वस्यां // 8 // पचखांणभंगई करूं, एकासणुं एक, श्रीगुरु प्रचरण पसाउलइं, मुझ हयो विवेक बारे व्रत मुज मन वस्यां // 9 // राजा गण बलवंतनो, देवता अभियोग गुरूनिग्रह आजीविका, छ छींडी योग बारे व्रत मुज मन वस्यां // 10 // अन्नत्थणाभोगेणं सही, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं सव (व्व), समाहिवत्तिआगारेणं बारे व्रत मुज मन वस्यां // 11 // जाणो च्यार आगार ए, एणे पचखाण, भाजे नही मुझ इम कयुं, श्रीगुरु गुण जाणि बारे व्रत मुज मन वस्यां // 12 // संवत सोलते ब्यासीइं, ऊचर्या व्रत बार, श्रीविजयाणंदसूरी(रि)कहनई, तरवा संसार बारे व्रत मुज मन वस्यां // 14 // श्राविका तेजबाई तणो, ए व्रत सज्झाय, देवचंद्र मुनि इम भणइ, एह सुगति उपाय, बारे व्रत मुझ मन वस्यां // 15 // छ / छ / छ // छ // छ / छ / छ / C/o. अश्विन संघवी कायस्थ महोल्लो, गोपुपुरा, सूरत-१