Page #1
--------------------------------------------------------------------------
________________
६८
सुखडी (वर्द्धमान रसोई)
अनुसन्धान-५५
सं. साध्वी समयप्रज्ञाश्री
पूज्य आ. श्रीविजयसोमचन्द्रसूरि म. तरफथी प्राप्त थयेल एक जूना - प्रकीर्ण पत्रनी झेरोक्ष उपरथी ऊतारेली आ रचना छे. तेना अन्त भागे 'इति सुखडी' एवं नाम छे, तथा छेल्ली कडीमां 'वर्धमान रसोई' शब्द छे, ते उपरथी अहीं मथाळं बांधेलुं छे. चौपाई छन्दमां रचायेली आ रचनामां मारवाडी भाषानी प्रधानता छे. घणां वानगीनां नामो मारवाडी होय तेवुं लाग्युं छे. कर्तानुं नाम पत्रमां नथी. २३मी कडीमां आवतो 'गुणचंदा' शब्द कर्ताना नामना उल्लेखरूप होय तो ना नहि. पानांनी झेरोक्ष बहुज झांखी होवाथी आवड्युं तेवुं उकेल्युं छे. भूलचूकनी क्षमा मांगुं छं. आ पानुं सूरतना हुकममुनीजी भण्डारना ग्रन्थसंग्रहमांनुं छे.
सुखडी ( वर्धमान रसोई )
माय कहै मैरै चगनां मगनां, ल्युं रे बलैयां खेलौ मेरे अंगनां । ताजि कुलै तनसुख की ज गलीयां पाय घुघर गलै सोना की तगलीयां ॥१॥ वर हीनक थीनक भोजन मांगै, धाय जननीकै अंचल लागै । लीयौ कंठसु कंठ लगाई, फुनि बोलैं त्रिसलादे माई ||२|| ज्यां लगि ललनांकु हुवै रे भुंजाइ, देवुं फलोली मेवा मिठ्याइ । आंण धर्या जब मिष्ट मतीरा, उर छुली खरबुजाकी चीरा ॥३॥ पीसी मसरी महीय अनुंरी, कुंअर आरौगै पींड खजूरी ।
करणा रायण अंबकी साखा, नालकेर अर दाडिम द्राखा ॥४॥ अर तरबुज जंभीरी केला, निर्मल घृत खांडसुं भेला ।
पाक सदाफल लींबुकी खटाई, ल्यों मेरे ललणां रुचिक मिठाई ॥५॥ हरखिय मा दीयें दूध का पेडा, फुनि आणै लघुवडा गिदोडा, कालाकंद भलाऽमृतकुंजा, चंद्रसाही तणुं गणयरनुंजा ( ? ) ॥६॥ चौखी रेवडी कल्यांणसाही, पीठापाक बहुत कर ल्याई पीपल मरी एलची पाक, गाज सिंघोडां अरबजपाक ॥७॥
Page #2
--------------------------------------------------------------------------
________________
मई २०११
बरबर गुलकी सूकी बरैयां, ठांण धरी बेसनकी पटैयां, अर घोले मेरे पीयौ निवाता, जे पीधां हुई अंगै साता ॥८॥ एहौ कंत जिब गइ रे वधाई, उठौ कुमर तुम हुवै रे भुंजाई, वडीवारको भुखौ मेरे लाला, अंगोली गहकै चाल्यौ पाला ॥९॥ कनक थाल रुपा की तवाई, चौकी बैठी परसै माई, बरबर घेवर मीष्ट जलेबी, अर फीना फीनी मरलेबी ॥१०॥ दहीवडा दहोवडी नीकी, उपर उजली खांड ज मुंकी । गुजागुंथमाहे छै सजुडी, हेसमी इंद्रव खाजा पुडी ॥११॥ खुची(?) मैदाकी घीमै चकोली, सेव गंठ्या सेव सुंहाली धकोली, खुरमां सीरौ सकरपारा पुरा गुणांगुलका गुलगुला रुडा ॥१२॥ साकोली थापडा पापड मुंरकी, अर लापसी परुसी गुलकी, सेवलडु मोतीलडु अ कसारा, नगद मगद बहुतविसवारा ॥१३॥ ए पकवांन परुस्या आंणी, जीमो मेरे ललणां म करौ कांनी, भात उजला रायभोगसाल, मुग मंड्योवर छोली दाल ॥१४॥ माय परुसै घी मोटी धारा, कांजीवडा मांहै बहुतविसवारा । बिहु बिहु पापड एक एक जूडी, कैर कर्मदा नै राय डौडी ॥१५॥ कैर पखोडी फलोली तलोली, काचर पेठ पीठां की तलोडी । भुजीवडां छाछवडी अचकोडी, कुरवडी मुंगोडी कठोडी ॥१६॥ कहै कविजन मांहै घाल्यौ आदौ, जीमौ कुंअर जीवण ससवादौ । अर मेली कचनारकी डोडी, वणी साक जीमणकी जोडी ॥१७॥ इम पलेव धौँ भरभेली, जीरौ मरी तस मांहै मेली ।। पोच्या लालरीको कीयौ खाटौ, माहै मेल्यौ चणांको आटौ ॥१८॥ घाली आंमला कीयौ रहडको, जि कोइ जीमतां हुइ सरडकौ । भीगा चणा वघार्या वटला, कीया सूर्ण बेसनकी कतला ॥१९॥ कडूइआ पड मधरेज करेला, सांगरी कैर करेला मरेला । माय परुसै आछी पोली, ते घृत खांड ज मांहै झकोली ॥२०॥ नीकी हुवै तवाकी रोटी, छंगधरी आछै दल मोटी । थोडा घीसुं करीअक कूनी, खांड एक मा देड अमकुंनी ॥२१॥
Page #3
--------------------------------------------------------------------------
________________
७०
अनुसन्धान-५५
महिकी दूध तणी खीर रांधी, कीधौ सखरण बहु दही बांधी । भात पछै वड ल्यौ दूध घोली, खांड साकर तस मांहे भेली ॥२२॥ गंगोदक भरी निर्मल पांणी, करौ चलू इम बोलत त्रिशलादे राणी ।
साहिब के साहिब गुणचंदा, सिद्धारथ कुल उदयो दिणंदा ॥२३॥ भणै गुणै वर्धमान रसोई त्यां घर मंगल नित नित होइ - ईति सुंखडी ॥
C/o. प्रसन्नचन्द्र आराधना भुवन,
तलाटी रोड, पालीताणा