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स्थापना सूत्र नवकार महामंत्र नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाणं नमो आयरियाणं नमो उवज्झायाणं
नमो लोए सव्व-साहूणं एसो पंच-नमुक्कारो, सव्व-पाव-प्पणासणो; मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवइ मंगलं.
पंचिंदिय सूत्र पंचिंदिय-संवरणो, तह नव-विह-बंभचेर-गुत्तिधरो चउविह-कसाय-मुक्को, इअ अट्ठारस-गुणेहिं संजुत्तो १ पंच-महव्वय-जुत्तो, पंच-विहायार-पालण-समत्थो पंच-समिओ तिगुत्तो, छत्तीस-गुणो गुरू मज्झ २
699069069 • प्रभु दर्शन के समय बोलने की स्तुतियाँ . प्रभु दरिशन सुख संपदा, प्रभु दरिशन नव-निध. प्रभु दरिशनथी पामीए, सकल पदारथ सिद्ध. भावे जिनवर पूजीए, भावे दीजे दान. भावे भावना भावीए, भावे केवल-ज्ञान. जीवडा! जिनवर पूजीए, पूजानां फल होय. राजा नमे प्रजा नमे, आण न लोपे कोय. फूलडां केरा बागमां, बेठा श्री जिनराय. जेम तारामां चन्द्रमा, तेम शोभे महाराय.
धन सम्हाले वह मंसारी, मन संभाले वह संयमी.
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त्रि-भुवन नायक तुं धणी, मही मोटो महाराज. मोटे पुण्ये पामीयो, तुम दरिशन हुं आज. आज मनोरथ सवि फल्या, प्रगट्या पुण्य कल्लोल. पाप करम दूरे टल्यां, नाठां दुःख दंदोल. पंचम काले पामवो, दुलहो प्रभु देदार. तो पण तेना नामनो, छे मोटो आधार. प्रभु नामनी औषधि, खरा भावथी खाय. रोग शोक आवे नहीं, सवि संकट मिट जाय. पांच कोडीने फूलडे, पाम्या देश अढार. राजा कुमारपालनो, वो जय-जय-कार. छे प्रतिमा मनोहारिणी, दुःखहरी श्री वीर जिणंदनी; भक्तोने छे सर्वदा सुखकरी, जाणे खीली चांदनी. आ प्रतिमाना गुण भाव धरीने, जे माणसो गाय छे; पामी सघलां सुख ते जगतनां, मुक्ति भणी जाय छे. आव्यो शरणे तमारा जिनवर! करजो आश पूरी अमारी; नाव्यो भवपार मारो तुम विण जगमां सार ले कोण मारी?. गायो जिनराज! आजे हरख अधिकथी परम आनंदकारी; पायो तुम दर्श नासे भव-भय-भ्रमणा नाथ! सर्वे अमारी. भवोभव तुम चरणोनी सेवा, हं तो मांग छं देवाधिदेवा, सामु जुओने सेवक जाणी, एवी उदयरत्ननी वाणी. दादा तारी मुखमुद्राने, अमिय नजरे निहाळी रह्यो, तारा नयनोमांथी झरतुं, दिव्य तेज हुँ झीली रह्यो; क्षणभर आ संसारनी माया, तारी भक्तिमां भूली गयो, तुज मूर्तिमा मस्त बनीने, आत्मिक आनंद माणी रह्यो. देखी मूर्ति श्री पार्श्वजिननी, नेत्र मारा ठरे छे, ने हैयुं आ फरी फरी प्रभु, ध्यान तारुं धरे छे,.
परमात्मा की भक्ति ही सर्वश्रेष्ठ ति है.
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आत्मा मारो प्रभु तुज कने, आववा उल्लसे छे, आपो एवं बळ हृदयमां, माहरी आश ए छे. दया सिंधु दया सिंधु, दया करजे दया करजे, हवे आ जंजीरोमांथी, मने जल्दी छूटो करजे; नथी आ ताप सहेवातो, भभूकी कर्मनी ज्वाळा, वरसावी प्रेमनी धारा, हृदयनी आग बुझवजे. आबु अष्टापद गिरनार, समेतशिखर शत्रुंजय सार, ए पांचे तीरथ उत्तम ठाम, सिद्धि गया तेने करुं प्रणाम. प्रभु माहरा प्रेमथी नमुं, मूर्ति ताहरी जोईने ठरुं, अरर! ओ प्रभु पाप में कर्या, शुं थशे हवे माहरी दशा, माटे प्रभुजी तुमने विनवुं, तारजो हवे जिनजीने स्तवुं, दीनानाथजी दुःख कापजो, भविक जीवने सुख आपजो. पार्श्वनाथजी स्वामि माहरा, गुण गाउ हुं नित्य ताहरा प्रभु जेवो गणो तेवो, तथापि बाळ तारो छं,
तने मारा जेवा लाखो, परंतु एक मारे तुं; नथी शक्ति नीरखवानी, नथी शक्ति परखवानी, नथी तुज ध्याननी लगनी, तथापि बाळ तारो छं. सुण्या हशे पूज्या हशे, निरख्या हशे पण को क्षणे; जगत - बंधु ! चित्तमां, धार्या नहि भक्तिपणे. जन्म्यो प्रभु ते कारणे, दुःखपात्र आ संसारमां; हा! भक्ति ते फलती नथी, जे भाव शून्याचारमां. जे दृष्टि प्रभु दर्शन करे, ते दृष्टिने पण धन्य छे; जे जीभ जिनवरने स्तवे, ते जीभने पण धन्य छे. पीए मुदा वाणी सुधा, ते कर्ण-युगने धन्य छे; तुज नाम मंत्र विशद धरे, ते हृदयने नित धन्य छे. हे देव तारा दिलमां, वात्सल्यनां झरणां भर्या,
हे नाथ तारा नयनमां, करुणातणां अमृत भर्या;
धर्म कठिन लगता है? समस्या धर्म नहीं, कुसंस्कार है.
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वीतराग तारी मीठी मीठी, वाणीमां जादु भर्या, तेथी ज तारा शरणमां, बाळक बनी आवी चडया. बहुकाळ आ संसार सागरमां, प्रभु! हुं संचर्यो; थई पुण्यराशि एकठी, त्यारे जिनेश्वर तुं मळ्यो; पण पापकर्म भरेल में, सेवा सरस नव आदरी, शुभ योगने पाम्या छतां, में मूर्खता बहु ये करी. शत कोटी कोटी वार वंदन, नाथ मारा हे तने, हे तरण तारण नाथ तुं, स्वीकार मारा नमनने; हे नाथ शुं जादु भर्या, अरिहंत अक्षर चारमां, आफत बधी आशिष बने, तुज नाम लेता वारमा. सागर दयाना छो तमे, करुणा तणा भंडार छो, ने पतितोने तारनारा, विश्वना आधार छो; तारे भरोसे जीवननैया, आज में तरती मूकी, कोटी कोटी वंदन करूं, जिनराज तुज चरणे झूकी.
690699069 दर्शनं देव-देवस्य, दर्शनं पाप-नाशनम्. दर्शनं स्वर्ग-सोपानं, दर्शनं मोक्ष-साधनम्. अन्यथा शरणं नास्ति, त्वमेव शरणं मम. तस्मात् कारुण्य-भावेन, रक्ष रक्ष जिनेश्वर!. मंगलं भगवान् वीरो, मंगलं गौतमः प्रभुः; मंगलं स्थूलभद्राद्या, जैनो धर्मोस्तु मंगलम्. पूर्णानन्द-मयं महोदय-मयं, कैवल्य-चिट्टङ्मयम्; रूपातीत-मयं स्वरूप-रमणं, स्वाभाविकी-श्रीमयम्. ज्ञानोद्योत-मयं कृपा-रस-मयं, स्याद्वाद-विद्यालयमा श्री सिद्धाचल-तीर्थराज-मनिशं, वन्देह-मादीश्वरम्.
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धर्म मे दूर भागते हो/ कौन? तुम या कुसंस्कार?
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________________ 12 नेत्रानन्द-करी भवोदधि-तरी, श्रेयस्तरोर्मंजरी; श्रीमद्धर्म-महा-नरेन्द्र-नगरी, व्यापल्लता-धूमरी. हर्षोत्कर्ष-शुभ-प्रभाव-लहरी, राग-द्विषां जित्वरी; मूर्तिः श्रीजिन-पुंगवस्य भवतु, श्रेयस्करी देहिनाम्. अद्या-भवत् सफलता नयन-द्वयस्य; देव! त्वदीय-चरणांबुज-वीक्षणेन. अद्य त्रिलोक-तिलक! प्रति-भासते मे; संसार-वारिधि-रयं चुलुक-प्रमाणः. तुभ्यं नमस्त्रि-भुवनार्ति-हराय नाथ; तुभ्यं नमः क्षितितला-मल-भूषणाय. तुभ्यं नमस्त्रि-जगतः परमेश्वराय, तुभ्यं नमो जिन! भवोदधि-शोषणाय. प्रशम-रस-निमग्नं, दृष्टि-युग्मं प्रसन्नम्। वदन-कमल-मंकः, कामिनी-संग-शून्यः. कर-युगमपि यत्ते, शस्त्र-संबंध-वंध्यम्; तदसि जगति देवो, वीतराग-स्त्वमेव. अद्य मे सफलं जन्म, अद्य मे सफला क्रिया; अद्य मे सफलं गात्रं, जिनेंद्र! तव दर्शनात्. दर्शनाद् दुरित-ध्वंसी, वंदनाद् वांछित-प्रदः; पूजनात् पूरकः श्रीणां, जिनः साक्षात् सुरद्रुमः. अर्हन्तो भगवंत इन्द्रमहिता, सिद्धाश्च सिद्धिस्थिता, आचार्या जिनशासनोन्नतिकरा, पूज्या उपाध्यायका; श्री सिद्धांत सुपाठका मुनिवरा, रत्नत्रयाराधका, पंचै ते परमेष्ठिनं प्रतिदिनं, कुर्वन्तु वो मंगलं. पाताले यानि बिंबानि, यानि बिंबानि भूतले, स्वर्गेपि यानि बिंबानिं, तानि वंदे निरंतरम्. 35 36 जिसकी हम उपेक्षा करते है, बिगाड़ते है वह वस्तु हमें पुनः नहीं मिलती. ही धर्म भी/X