Book Title: Siddhachal Tirth Chaitya Paripati
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीसिद्धाचलतीर्थ-चैत्यपरिपाटी सं. विजयशीलचन्द्रसूरि श्रीसिद्धाचल-सिद्धक्षेत्र तीर्थ युगयुगान्तरोथी जैनोनुं श्रेष्ठ अने पवित्र श्रद्धाकेन्द्र तथा यात्राधाम रह्यं छे. आ तीर्थ प्रत्ये गमन करवू, अहीं आवq, पर्वत चडवो, आ भूमिनी स्पर्शना तथा पूजा करवी, अहीं नानकडी पण प्रतिमा बेसाडवी, अहीं रहेल प्रतिमाओनां दर्शन-पूजन करवां, आ बधुं ज अत्यंत लाभदायक अने आत्महितकर मनायुं छे. ए ज कारणे आ तीर्थ विशे अनेक ग्रन्थो, प्रकरणो, स्तोत्रो, रास-प्रबंधो,स्तवनो तथा चैत्यपरिपाटीओ रचायेल मळे छे. आ रचनाओ भक्तिप्रधान तो होय ज छे, उपरांत तेमा घणीवार ऐतिहासिक तथ्यो पण वणाई गयेलां जोवा मळे छे. अहीं आवी ज एक गद्यात्मक कृति रजू थाय छे. कर्ताएं आ रचनाने कोई विशेष नाम नथी आप्युं, तेमणे तो आने 'फरमो' तरीके ज वर्णवी छे (पेरो. १४५), परंतु, आ समग्र रचनामां पालीताणा तथा शत्रुजय तीर्थमांनां देरासर-देरीओ तथा जिनबिंबोनु सविगत वर्णन जे प्रकारे थयुं छे ते जोतां तेने 'चैत्यपरिपाटी' गणवानुं सहेजे मन थई जाय तेम छे. तेथी ज अत्रेशीर्षकमां 'चैत्यपरिपाटी' एवं नाम आप्युं छे. अलबत्त, मांगरोलना. भंडारनी टीपमां आ प्रतने "सिद्धाचलजी, वर्णन" ए नामे नोंधेली छे. ___ आना कर्ता तेमज लेखक 'शा. मालजी नागजी कच्छी' कच्छप्रदेशना वतनी हशे, परंतु कया गामना हशे तेनो निर्देश तेमणे आप्यो नथी. पण तेओ अत्यंत श्रद्धासंपन्न, इतिहासनी शोधखोळ तथा नोंध करवानी दृष्टि तेम ज आवडतवाळा हशे, ते नक्की. ते विना, आटली बधी धीरजथी, एकेएक देरी तथा बिंब विशे तथा तेना निर्माता वगेरे विशे, आटली बधी माहिती एकत्र करवी, दिशाओनी अत्यंत चोकसाई राखवी वगेरे शक्य ज न बने. वळी, शिलालेखोनी लिपि उकेलवाना पण तेओ माहेर हशे. आ फरमो तेमणे १९०८ वि.सं. मां लख्यो होवानु तेमणे ज (पेरो० १४५) नोंध्युं छे. परंतु एम लागे छे के तेओ शत्रुजयना सांनिध्यमां लांबो Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 118 वखत रह्या हशे, अथवा वारंवार आव्या हशे; अनेक वार डुंगर पर तेओ चड्या हशे, अने काची नोंधो करता रहीने पछीथी आ फरमो (खरडो) तैयार कर्यो हशे. आ फरमानी कर्ताए जाते लखेली एकमात्र प्रति, जूनागढ़ जिल्लाना मांगरोल गाममां ज्ञानभंडारमा उपलब्ध हती. केटलाक वखत पूर्वे ते प्रदेशना विहार दरमियान, आ. प्रति जोवामां आवी. १०० पृष्ठोनी आ प्रति एकदम जर्जरित थई गएली, अने नष्ट थवानी तैयारीमा हती. तेथी तेनी ते दिवसोमां ज नकल करावी लीधी. तेना आधारे वाचना संपादित करी, नवेसरथी लखी, ते अत्रे प्रस्तुत छे. वाचकोने संदर्भो शोधवानी सुगमता रहे ते आशयथी पेरा० नंबर आपी दीधा छे. आ चैत्यपरिपाटीना कर्तानो मुख्य आशय तो देरी-देरांनी तथा प्रतिमाओनी संख्या, तेना निर्माता/स्थापकनी नोंध, वर्ष अने तिथिनी यादी आ बधुं वर्णववानो जणाय छे. परंतु तेम करवा जतां अनेक ऐतिहासिक अने वळी मूल्यवान तथा अत्युपयोगी नीवडे तेवी विगतो पण तेमणे नोंधी आपी छे, जे खूब महत्त्व- छे. आवां केटलांक स्थान जोईए : (१) शेठ मोतीशाहे ढूंक बंधावी अने तेमना पुत्रे भव्य प्रतिष्ठा करी, ते तो सर्वविदित छे. ते महान धर्मप्रसंगनी स्मृतिमां तेमणे एक चोतरो बनावी ते पर मोटी ध्वजा (वावटो) फरकावी हती (पेरा. ६), तेमज जे भूमि पर अंजनविधाननो मंडप रचेलो, त्यां एक पीठिका बंधावी हती (पेरा. ११). (प्रायः आ वातनो उल्लेख 'शेठ मोतीशाह' ए ग्रंथमां (२) नगरशेठ हेमाभाईए करावेल सरस वीसामा विशे (पेरा.१३) तथा ते वीसामा पर बिराजीने मुनिश्रीकल्याणविमलजी द्वारा थता भव्योपकारनुं वर्णन पण (पेरा.१४) मजानु - प्रत्यक्ष हेवालरूप कर्यु छे. कोई नूतन दीक्षार्थीने दीक्षा लेवानी होय तो ते माटेनी खास जग्या पण. आमां दर्शावेल छे (पेरा. ८) (४) आजे सरस्वती देवीनी गुफा ते असलमां कल्याणविमलजीनी गुफा (३) Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) (८) 119 तरीके ओळखाती होवानो उल्लेख बहु महत्त्वपूर्ण लागे छे (पेरा. १६) सालाकुंड (छालाकुंड)नजीकनी गुफानो अने मुनि कल्याणविमलजी नानी वयमां रात्रिवासो त्यां करीने ध्यान धरता होवानो उल्लेख पण खूब रसप्रद छे. शत्रुजय उपर प्रभुजीना नमणना पाणीना अखूट टांकानो उल्लेख (पेरा. ३४) पण थयो छे. श्वेताम्बरोनी सहिष्णुता अने उदारतानी प्रतीति करावतो, हुंभड (दिगम्बर) मंदिरनो तथा तेने प्रणाम करवानो उल्लेख आनंद उपजावे तेवो छ (पेरा. ४१) पेरा.४५मां शा. गोडीदास तथा तेना भाई शा. जीवनदासनो निर्देश थयो छे, ते शंखेश्वर महातीर्थनी वहीवटी संस्था 'जीवणदास गोडीदासनी पेढी' साथे जोडायेल नामो ज हशे ? (९) पेरा. ४८मां सं. १७९१ना पूर्व-अरसामा थयेला श्रावक भंडारी गरधरदासजीना नाम साथे जोडेलां बिरुदो "महामंत्रीपदधारक गुर्जरदेसाधिपति श्रीगुर्जरदेसमाहा अमारी घोषणाकारक" खास ध्यान खेंचे छे. ऐतिहासिक साधनो द्वारा आ बिरुदो थकी फलित थती विगतनी तथ्यातथ्यता चकासवी जरूरी गणाय. (१०) मूलनायकनी मोटी ढूंकनी त्रण प्रदक्षिणानुं अत्यन्त विस्तृत तेमज विशद बयान आ श्रावके अद्भुत रीते-गुंचवाया वगर कर्यु छे. (११) वस्तुपालना देरासर (पेरा. ७३) उपरांत तेजपालना देरासरनो पण निर्देश प्राप्त थाय छे (पेरा. ६६) (१२) संवत अने तिथि-वारनी नोंधमां लेखके बहु ज चीवट राखी छे. शक्य एटली वधु माहिती तेमणे नोंधी लीधी छे. आमां सौथी वधु पुराणी संवतनो उल्लेख पेरा.७०मां छे, सं. १३३०. (१३) रायपपगलानी देरी एक नहि, बे हती, तेवी नोंध पण आमां मळे छे (पेरा. ७१) Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 120 (१४) तीर्थना रखोपानी बाबते ते काळनो संघ आजना जेटलो बेदरकार नहोतो, ते वातनी प्रतीति, मुख्य ढूंकमां चोक्कस स्थानो पर राखेली तोपोना उल्लेखथी समजाय छे (पेरा. ७५). (१५) रायणपगलानी डाबी तरफ, त्रीजी प्रदक्षिणामां आवे छे ते नमि-विनमि तथा भरत-बाहुबलिनी प्रतिमाओनी प्रतिष्ठा सं. १४३०मां थई होवानो उल्लेख, एक ऐतिहासिक माहिती पूरी पाडे छे (पेरा. ८५) पेरा. १०७मां अद्धनाथजी (अद्भुतनाथ, अदबदजी)नी विगतमां "अदबुधनाथजीना बोन (बहेन) बाई माकलबाई बेठा"नो निर्देश बहु रोचक छे. माकलबाईनुं पाछळ्थी माणेकबाई पण थयानुं जाणवा मळे (१७) एक रसप्रद माहिती आमां ए मळी आवे छे के शत्रुजय पर (मोदीनी टुंकमां) एक देरी एक गुसांई बावा भीमगरे बंधावी छे अने तेमां प्रभु-प्रतिष्ठा पण करी छे (पेरा. १११) (१८) साकरवसई-टुंकमां मूलनायक पार्श्वनाथ होई, ते मुख्य मंदिरनी सामे बनावेल देरामां पुंडरीकस्वामीने स्थाने पार्श्वनाथजी ज पधरायेल होवानो निर्देश करीने लेखके ऊंडी समजशक्ति दाखवी छे (पेरा. १२४). वळी, ए ज पेरामां मुनि रूपविजयजी अमदावादवालानी पगलांदेरीनी पण नोंध थई छे. डहेलावाळा उपाश्रयना पं. रूपविजयजीनी ज आ देरी होवी जोईए. (१९) सुलतान जहांगीर तथा शाहजादा खुशरुनो उल्लेख पेरा. १२८मां थयो छे. पेरा. १३६मां पण जहांगीरनुं नाम छे... (२०) गौमुखयक्षना चरण (पादुका)नी देरीनो उल्लेख पण छे (पेरा. १२९). सामान्यत: देव-देवीनां चरण क्यांय जोवा नथी मळतां. (२१) चौमुखजी-टुंकनी बाजुमां उगमणे मरुदेवी मातानी टुंकनो तथा तेमां मुख्य तरीके हाथी पर बेठेल माताजी होवानो तथा त्यांनुं अन्य एक देरासर संप्रति राजानु होवानो निर्देश ध्यानार्ह छ (पेरा. १३६). Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 121 (22) वि.सं. १९०८मां पालीताणामां नानी-मोटी कुल मळीने 21 धर्मशालाओ होवानी माहिती उल्लेखनीय छ (पेरा. 141). (23) पेरा. १४४मां, शत्रुजय पर तथा पालीताणा शहेरमां थईने कुल देरा देरी 900, कुल जिनप्रतिमा 10500, तथा पगलांनी जोड 8000, छे, तेवी स्पष्ट माहिती मळे छे. बीजी पण अनेक रसप्रदने ऐतिहासिक गणाय तेवी विगतो आ 'फरमा'मां छे ज. केटलाक सरस शब्दो पण आमां छे. आशा छे के विद्वान संशोधकोने माटे आ रचना उपयोगी पुरवार थशे.