Book Title: Shrutdhar Paramparana Ujjwal Nakshatra Pujya Jambuvijayji Maharaj Author(s): Bhuvanchandravijay Publisher: ZZ_Anusandhan Catalog link: https://jainqq.org/explore/229727/1 JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLYPage #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रुतधरं परम्पराना उज्ज्वल नक्षत्र : पूज्य श्रीजम्बूविजयजी महाराज उपा. भुवनचन्द्र श्रीजिनशासन ओटले चतुर्विध संघ अथवा संघना आश्रये चालतो कार्यकलाप ओवो अर्थ सामान्य जनना मनमां स्थिर थयेलो होय छे. ते अक अपेक्षाओ संगत अने उचित छे ज. किन्तु जिनशासननो मूळ अर्थ श्रीजिन द्वारा अपायेलुं शासन अर्थात् शिक्षण के अनुरोध से छे. श्री जिनेश्वरोओ आपेलो बोध के अनुरोध तेमनी वाणीमां समाविष्ट छे अने से वाणी हवे तो प्राकृतभाषामां ग्रथित आगमो तथा तेना भाष्य - चूर्णि - टीकाओमां अने ते उपरांत तदनुसारे रचायेला बीजां शास्त्रोमां निहित छे. आ श्रुतसाहित्य विना जिनशासन शुं छे ते समजवुं अशक्यवत् गणाय. जेम देह जीवात्माने धारण करतुं माध्यम छे तेम श्रुत अ शासनने साकार करतुं माध्यम छे - शासननी काया छे. श्रुत अने शासननी महत्ता के एकात्मता जे पिछाणी शके ते श्रुत पुरुषोनी महत्ता अने अनिवार्यता पिछाणी शके. श्रुतधर महात्मा विना श्रुतनुं अस्तित्व क्यां ? श्रीजिनवाणीनो मर्म सूत्र - अर्थ - तदुभयना धारक गीतार्थ गुरुजनोना अंतरमां वसे छे. शास्त्रविद् गीतार्थ गुरुजनो जिनशासनना मेरुदण्ड समा छे. आपणी पासे ओवा श्रुतधर पूर्वजोनी उज्ज्वळ परम्परा छे. गणधरो, पूर्वधरो, भाष्यकारो, टीकाकारो, शास्त्रकारो आदिनी ओक नक्षत्रमाळा ज जाणे जिनशासनना आकाशमां चमकी रही छे. आजे पण ओवा समर्पित श्रुतोपासक श्रमण श्रेष्ठो छे जेओ जरा जुदी रीते श्रुतधरोनी परम्पराने आगळ धपावी रह्या छे. सहस्राब्दीओना अन्तरालमां केटलांय परिबळोओ पोतानी असरो आगमादि श्रुतसाहित्यकलाप उपर करी छे. आजना श्रुतधरो अक नवं ज कार्य करवानुं आव्युं छे. अने से छे - उच्चार, लिपिभेद, भ्रामक पाठ, खण्डित पाठ वगेरे अवरोधो पार करी मूळ पाठ सुधी पहोंचवुं ते. आ कार्य घणा प्रकारना सज्जता मागे छे. आ संशोधनकार्य आजे तो ओक सुग्रथित शास्त्र तरीके स्थापित थयुं छे पण अनां मूळ प्राचीन टीकाओ, वार्तिको तथा चार्चिकोमां जोई शकाय छे. आगमोनी वाचनाओ वखते तेना प्रमुख अने Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मार्च २०१० सदस्य वा श्रुतधर मुनिपुङ्गवोने पण आवी ज कामगीरी बजाववानी आवी हशे ओ स्वयंस्पष्ट छे. आजे आ विद्याने समीक्षित अने तुलनात्मक सम्पादन के अध्ययन (Critical and Comparative editing or study) कहे छे. आ कार्य मात्र पाण्डित्य द्वारा साध्य नथी. संशोधके इतिहास, लिपि, भाषाओ, इतर शास्त्रो वगेरेनुं पण पर्याप्त ज्ञान मेळववुं पडे; अने सौथी वधु तो ग्रन्थना विषय साथे तथा ग्रन्थकारनी शैली साथे तादात्म्य साधवुं पडे. २४१ वर्तमान श्रमणसंघमां आवा समर्थ संशोधक विद्वान मुनिवरोने याद करतां सर्वप्रथम पुण्यश्लोक आगमप्रभाकर पूज्य मुनिप्रवर श्रीपुण्यविजयजी महाराजनुं नाम याद आवे ने ते पछी तरत जेमनुं नाम होठे आवे ते छे श्रुतस्थविर पूज्य मुनिप्रवर श्रीजम्बूविजयजी महाराज. पूज्यश्री पोतानुं समग्र जीवन जिनागम आदि प्राचीन साहित्यना संशोधन-सम्पादन - अध्ययनने समर्पित करी दीधुं हतुं. ओ ओमनुं जीवनकार्य बनी गयेलुं. ओमनी आ श्रुतसेवा सुदीर्घ काळनी हती अने जीवनना अन्तिम दिन सुधी अनवरत चालती रही हती. पूज्य जम्बूविजयजी महाराज जूनी परिपाटीथी अभ्यस्त होवा छतां आधुनिक समीक्षात्मक अध्ययन-पद्धतिने जे रीते अपनावी शक्या हता ते खरेखर आश्चर्यजनक हतुं. ओक श्रमणने छाजे ओवा तप-त्याग - सादगी - श्रद्धाभक्ति साथे अन्वेषक-समीक्षक दृष्टि पण केळवी शकाय छे से तथ्य तेमनामां मूर्तिमंत स्वरूपे जोई शकायुं हतुं. अन्वेषण पद्धतिना अतिरेकमां क्यारेक श्रद्धा अथवा वैचारिक समतुला जोखमाती होय छे. पूज्यश्रीना सम्बन्धमां अवं न हतुं. विशाळ वांचन, अन्य परम्पराओनुं अध्ययन, प्राचीन साहित्यमां विविध कारणोसर प्रवेशेली क्षतिओनुं निकटताथी दर्शन आ बधां पछी पण परमात्मतत्त्व के वीतराग जिनेश्वर प्रत्येनी तेमनी भक्ति अक्षुण्ण हती, बल्के जोनारो घडीक विचारमां पडी जाय ओवी / अटली मोहक हती. नूतन प्रकाशननी पहेली नकल अथवा सम्पादन पूर्ण थयेल ग्रन्थनी प्रेसकोपी प्रभुचरणे भक्तिभावे समर्पित करता पूज्य महाराज साहेबने घणाओ जोया हशे. अ ज रीते, पोताना पिता - गुरु प्रत्येनो मनो विनयभाव पण नेत्रदीपक हतो. - बीजी तरफ, तुलनात्मक अध्ययनने परिणामे महाराज साहेब परम्परा के रूढिना प्रभावथी मुक्त रहीने विचारी शकता हता. अमुक परम्परागत Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 242 अनुसन्धान 50 (2) मान्यताओ अंगे तेमनो अभिप्राय भिन्न पडतो हतो. तेओश्री साथेना अक वार्तालापमां में भूगोळ-खगोळना विषयमां शास्त्रीय अने वैज्ञानिक मान्यताना सन्दर्भे पूछेलुं त्यारे तेमणे सहज रीते उत्तर आपेलो के आ बाबत फेरविचारणा मागे छे. आगमोना वृत्तिकारोने केटलाक आगमगत शब्दोना अर्थघटनमां मुश्केली पडी छे ते अंगे पूछतां तेमणे कहेलु के वच्चेना समयगाळामां आम्नाय क्यांक छूटी गयो छे तेथी आम थयुं छे. ओवा शब्दोमांथी अमुक शब्दो त्रिपिटकोमां पण छे अने तेनी अट्ठकथा(टीका)ओमां तेना प्राचीन अर्थ सचवाया छे. आथी आगमोना अभ्यासीओओ पालि भाषानो पण लाभ लेवो जोईओ. पूज्यश्रीजम्बूविजयजी महाराज श्रुतधर परम्पराना ओक उज्ज्वल नक्षत्र हता. 87 वर्षनी परिपक्ववये पण तेओश्री कलाको सुधी हस्तप्रतो, वांचन करता. महिने महिने अट्ठमनो तप करता. जैन विद्याना अभ्यासी देशी-विदेशी विद्यार्थीओने मार्गदर्शन आपता. विहार, जीवदयानी प्रवृत्ति, शिष्यो- अध्यापन, कलाको सुधी जाप, विविध भाषाओनो निरन्तर नूतन अभ्यास, ज्ञान-भण्डारोनो उद्धार, कम्प्यूटरीकरण - आवी विविध कामगीरी अप्रभत्तभावे अन्तिम क्षण सुधी करनारा पूज्य श्रुतस्थविर मुनिप्रवर ओक अनाडी माणसनी भूलनो भोग बनी अदृश्य थया. अक कर्मठ, तपस्वी, श्रुतस्थविर प्रतिभा संघ पासेथी क्षणवारमां छीनवाई गई. विधिनी वक्रतानुं जाणे प्रत्यक्ष निदर्शन ! पूज्यश्रीना मुखे सांभळ्युं हतुं : हवे तो बोनसनां वर्षों छे. थाय अटलुं करी लेवू छे. अने अक्षरशः अ ज रीते छेल्लां थोडां वर्षो तेओश्रीओ गाळ्यां. पूज्य महाराज साहेब पुरुषार्थसभर, ज्ञानसाधनासभर, परोपकारसभर जीवन जीवी स्वनामधन्य बनी गया छे. दुर्घटना असह्य छ, किन्तु तेओश्रीने आथी कोई हानि नथी थई, संघने थइ छे. अमनां अधूरां रहेलां अने वाट जोई रहेलां अनेक कार्यो हवे कोण करशे ओ प्रश्न छे. पूज्य श्रुतस्थविर श्रमणश्रेष्ठना जीवन अने कार्यमांथी प्रेरणा लई श्रमणसंघनो ओक टको श्रमणवर्ग पण संशोधननिष्ठा केळवे अने आ दीर्घ परिश्रमसाध्य क्षेत्रने पोताना समय-शक्ति अर्पण करवानुं पसंद करे तो ज श्रुतधरोनी परम्परा प्रवर्तमान रही शके. इच्छीओ के आवं कंईक बने. ***