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मार्च २०१०
सदस्य वा श्रुतधर मुनिपुङ्गवोने पण आवी ज कामगीरी बजाववानी आवी हशे ओ स्वयंस्पष्ट छे. आजे आ विद्याने समीक्षित अने तुलनात्मक सम्पादन के अध्ययन (Critical and Comparative editing or study) कहे छे. आ कार्य मात्र पाण्डित्य द्वारा साध्य नथी. संशोधके इतिहास, लिपि, भाषाओ, इतर शास्त्रो वगेरेनुं पण पर्याप्त ज्ञान मेळववुं पडे; अने सौथी वधु तो ग्रन्थना विषय साथे तथा ग्रन्थकारनी शैली साथे तादात्म्य साधवुं पडे.
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वर्तमान श्रमणसंघमां आवा समर्थ संशोधक विद्वान मुनिवरोने याद करतां सर्वप्रथम पुण्यश्लोक आगमप्रभाकर पूज्य मुनिप्रवर श्रीपुण्यविजयजी महाराजनुं नाम याद आवे ने ते पछी तरत जेमनुं नाम होठे आवे ते छे श्रुतस्थविर पूज्य मुनिप्रवर श्रीजम्बूविजयजी महाराज. पूज्यश्री पोतानुं समग्र जीवन जिनागम आदि प्राचीन साहित्यना संशोधन-सम्पादन - अध्ययनने समर्पित करी दीधुं हतुं. ओ ओमनुं जीवनकार्य बनी गयेलुं. ओमनी आ श्रुतसेवा सुदीर्घ काळनी हती अने जीवनना अन्तिम दिन सुधी अनवरत चालती रही हती.
पूज्य जम्बूविजयजी महाराज जूनी परिपाटीथी अभ्यस्त होवा छतां आधुनिक समीक्षात्मक अध्ययन-पद्धतिने जे रीते अपनावी शक्या हता ते खरेखर आश्चर्यजनक हतुं. ओक श्रमणने छाजे ओवा तप-त्याग - सादगी - श्रद्धाभक्ति साथे अन्वेषक-समीक्षक दृष्टि पण केळवी शकाय छे से तथ्य तेमनामां मूर्तिमंत स्वरूपे जोई शकायुं हतुं. अन्वेषण पद्धतिना अतिरेकमां क्यारेक श्रद्धा अथवा वैचारिक समतुला जोखमाती होय छे. पूज्यश्रीना सम्बन्धमां अवं न हतुं. विशाळ वांचन, अन्य परम्पराओनुं अध्ययन, प्राचीन साहित्यमां विविध कारणोसर प्रवेशेली क्षतिओनुं निकटताथी दर्शन आ बधां पछी पण परमात्मतत्त्व के वीतराग जिनेश्वर प्रत्येनी तेमनी भक्ति अक्षुण्ण हती, बल्के जोनारो घडीक विचारमां पडी जाय ओवी / अटली मोहक हती. नूतन प्रकाशननी पहेली नकल अथवा सम्पादन पूर्ण थयेल ग्रन्थनी प्रेसकोपी प्रभुचरणे भक्तिभावे समर्पित करता पूज्य महाराज साहेबने घणाओ जोया हशे. अ ज रीते, पोताना पिता - गुरु प्रत्येनो मनो विनयभाव पण नेत्रदीपक हतो.
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बीजी तरफ, तुलनात्मक अध्ययनने परिणामे महाराज साहेब परम्परा के रूढिना प्रभावथी मुक्त रहीने विचारी शकता हता. अमुक परम्परागत