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शिवराज भूषणमें 'गुसलखाना'का प्रसंग
श्री वेदप्रकाश गर्ग
अनेक बार भारी हानि उठाकर और हार खाकर, अन्तमें औरंगजेबने बहुत सोच-विचारके बाद शिवाजीका दमन करने के लिए दिलेर खाँ आदि अनेक सेनापतियों तथा चौदह हजार फौज सहित आम्बेराधिपति मिर्जा राजा जयसिंह कछवाहाको नियुक्त किया।
मिर्जा राजा जयसिंहने तेजी और फुर्तीसे दक्षिण पहुँचकर अत्यन्त बुद्धिमानी और चालाकीसे शिवाजीको संधि और अधीनताके लिए विवश किया । संधिके पश्चात् बादशाहने भेंट करनेके लिए शिवाजी को दरबार बला भेजा। जयसिंहके आश्वासन पर शिवाजीने भी औरंगजेबसे भेंट करना स्वीकार कर लिया।
___अपने राज्यका सब प्रबन्धकर ५ मार्च, सन् १६६६ ई० को अपने पुत्र सम्भाजी तथा कुछ सैनिकोंके साथ शिवाजी, बादशाहसे भेंट करनेके लिए उत्तर भारतको रवाना हुए। आगरा पहुँचकर वे दरबारमें हाजिर हए । शिवाजीने अपने प्रति जैसे राजकीय व्यवहारकी आशा की थी, वैसा व्यवहार या सत्कार उन्हें दरबारमें नहीं मिला। उन्हें दरबारमें पाँच हजारी मनसबदारोंकी पंक्तिमें लाकर खड़ा कर दिया गया। वे उस अपमानको सहन न कर सके । क्रोधसे उनका चेहरा तमतमा उठा और वे मूच्छित-से हो गये। इस घटनाका महाकवि भूषणने अपने 'शिवराज भूषण' नामक ग्रंथके कई छन्दोंमें वर्णन किया है और इस प्रसंगमें 'गुसलखाना' शब्दका प्रयोग किया है । 'गुसलखाना'से भूषणका क्या अभिप्राय था, इस पर अब तक किसी विद्वान्ने सप्रमाण स्पष्ट प्रकाश नहीं डाला है । इतिहासकारोंने इस घटनाका स्थल दरबारको ही बताया है, पर 'गुसलखाना'का नाम भूषणने बार-बार लिया है और उनका कथन प्राणहीन या निराधार नहीं है । यद्यपि सामान्य रूपमें 'गुसलखाना'का अर्थ स्नानागार है, किन्तु इस शब्दार्थकी कोई संगति इस प्रसंगमें नहीं है।
इस लेख द्वारा प्रामाणिक उल्लेख्य सामग्रीके आधार पर इस प्रसंगका स्पष्टीकरण जिज्ञासु पाठकोंके सम्मुख प्रस्तुत किया जा रहा है।
आगरेमें 'शिवाजी-औरंगजेब-भेंट'का सर्वाधिक प्रामाणिक वृत्तान्त, जयपुर राज्यके पुराने दफ्तरसे प्राप्त ऐतिहासिक सामग्रीके आधार पर डा० यदुनाथ सरकारने अपने 'शिवाजी' नामक ग्रंथमें किया है। उक्त ग्रंथसे ज्ञात होता है कि औरंगजेबकी सालगिरहके' दिन (१२ मई, १६६६ ई०) शिवाजीका दरबारमें उपस्थित होना निश्चित हुआ था, किन्तु शिवाजीको आगरा पहुँचने में एक दिनकी देरी हो गई थी। ११ मई को शिवाजी आगरेसे एक मंजिलकी दूरी पर सराय-मलूकचन्द तक ही आ पाये थे और वहीं उन्होंने मुकाम किया था। इस कारण १२ मईको शिवाजी दरबारमें उपस्थित नहीं हो सके। शिवाजी आगरेमें १३ मई
१. चाँद तिथिके अनुसार बादशाहका ४९वां जन्म-दिन, जो १२ मई सन् १६६६ ई० को पड़ा था। २. शिवाजी, डा० सर यदुनाथ सरकार, द्वितीय हिन्दी संस्करण, पृ०७३ ।
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को सुबहको पहुँचे थे । इस दिन भी दरबारमें उपस्थित होने में उन्हें काफी देर हो गयी थी। बादशाह दीवान आमका दरबार समाप्त कर किले में भीतरी दीवान खासमें चले गये थे। कुमार रामसिंह शिवाजीको लेकर, भेंटके लिए वहीं उपस्थित हुए।
सफेद पत्थरका बना हुआ यह दीवान खास भी जन्म-दिनके उपलक्षमें अच्छी प्रकारसे सजाया गया था । यहाँ भी ऊँचे दर्जेके अमीर-उमरा और राजा लोग सजधजकर अपने-अपने दर्जेके अनुसार खड़े थे । इसी दरबारमें शिवाजीकी भेंट औरंगजेबसे हुई थी और यहीं अपमानकी घटनासे लेकर, उसके बादकी घटनाएं घटी थीं।
महाकवि भूषणने इसी दीवान खासके लिए, अपने ग्रंथ 'शिवराजभूषण' में बार-बार 'गुसलखाना' शब्दका प्रयोग किया है । प्रसिद्ध इतिहास-ग्रंथ 'मआसिरुल् उमरा, जिसमें मुगल दरबार तथा उससे सम्बद्ध अमीरों, सरदारों और राजाओंकी जीवनियाँ लेख बद्ध हैं, में 'सादुल्ला खाँ अल्लार्मा की जीवनीके अन्तर्गत इस 'गुसलखाने का स्पष्टीकरण इस प्रकार दिया हुआ है
"यह जानना चाहिए कि दौलतखाना खास एक मकान है, जो बादशाही अन्तःपुर तथा दीवान खास व आमके बीच में बना है और दरबारसे उठने पर उसी मकानमें कुछ वादोंका निर्णय करनेके लिए बादशाह बैठते हैं, जिसकी सूचना सिवा खास लोगोंके किसीको नहीं मिलती। यह स्थान हम्मामके पास था इसलिए यह अकबरके राज्यकालसे गुसलखाने के नामसे प्रसिद्ध है । शाहजहाँने इसे दौलतखाना खास नाम दिया था।"
जहाँगीरने भी अपने आत्मचरित्रमें इस 'गुसलखाने'का उल्लेख किया है। वह एक स्थानपर लिखता है कि-"१९वीं आबाँकी रात्रिमें प्रतिदिनके अनुसार हम गुसलखानेमें थे। कुछ अमीरगण तथा सेवक और संयोगसे फारसके शाहका राजदूत मुहम्मद रजाबेग उपस्थित थे।"४ एक दूसरे स्थानपर वह फिर लिखता है-"हलका भोजनकर नित्य प्रति हम नियमानुसार दीवानखानों में जाते और झरोखा तथा गुसलखानेमें बैठते थे।"३
इन उल्लेखोंसे स्पष्ट है कि 'गुसलखाना' एक भवन विशेष था, जहाँ बादशाहका खास दरबार लगा करता था। यद्यपि शाहजहाँने इसका नाम 'दौलतखाना खास' कर दिया था, फिर भी यह अपने पूर्व प्रचलित 'गुसलखाने' के नामसे ही पुकारा जाता था । वास्तव में यह मुगल सम्राट्का मंत्रणा-गृह था। शासन की बारीक समस्याएं यहीं हल होती थीं और विभिन्न सूबोंके बारेमें यहींसे आज्ञाएँ प्रचारित की जाती थीं। भूषणने भी इस भवनके लिए इसके पूर्व प्रचलित नाम 'गुसलखाना'का ही उल्लेख किया है।
यहाँ यह बात विशेष रूपसे ध्यान रखनेकी है कि इतिहासकारोंका उक्त घटनाविषयक स्थान शब्द 'दरबार' सामान्य अर्थका बोधक है । बादशाहका दरबार जहाँ भी लगता था, चाहे वह दीवान आम व
१. शिवाजी, डॉ० यदुनाथ सरकार, द्वितीय हिन्दी संस्करण, पृ० ७३ ।। २. मआसिरुल उमरा अर्थात् मुगल दरबार (हिन्दी-संस्करण), पृ० ३३२, ५वा भाग, ना० प्र० सभा,
काशी। ३. दरबार आम खासका स्थान-ले० । ४. जहाँगीरनामा (हिन्दी, प्र० संस्करण), पृ० ४०१, ना० प्र० सभा, काशी। ५. वही, पृ० ३३५ ।
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खास (दरबार आम खास, पब्लिक एसम्बली हॉल) हो अथवा दीवान खास ( दरबार खास, कौन्सिल चैम्बर) हो, दरवार ही कहलाता था । दूसरी बात ध्यान देने की यह है कि भेंट वाले दिनका दौलतखाना खास ( दीवान खास ) का दरबार, प्रतिदिनका विशेष मंत्रणा दरबार नहीं था, अपितु बादशाहके जन्म-दिनके उत्सव में एक प्रकारसे सामान्य दरबार खास था । यद्यपि सभी आम व्यक्तियोंको वहाँ पहुँचने की आज्ञा नहीं थी ।
इस घटना-प्रसंगके विषय में इतिहासकारोंने लिखा है कि "जब शिवाजीका अपमान दरबारमें हुआ तो वे क्रोधाभिभूत दशा में निकट स्थित एक अन्य कमरे या स्थानपर चले गये थे । यह कमरा या स्थान दरबारसे सटा हुआ था, पर दरबारसे भिन्न था। यहाँ उन्हें बादशाह नहीं देख सकता था । दरबारमें अपमानित होने की घटना के तुरन्त बादकी घटनाएँ यहीं घटित हुई थीं ।""
इतिहासकारों के उक्त उल्लेख के आधारपर हिन्दी के कुछ विद्वानोंने अनुमान किया है कि उक्त दूसरे कमरे या स्थान ही को भूषणने बार-बार 'गुसलखाना' कहा है, किन्तु उपर्युक्त उल्लेखोंके आधारपर प्रामाणिकता की दृष्टिसे यह अनुमान सही नहीं है । साथ ही भूषणके कथन भी इस अनुमानसे मेल नहीं खाते ।
यह ध्यान रहे कि भूषण ने उस पूरे भवनको ही गुसलखाना कहा है, जहाँ बादशाहका खास दरबार लगा करता था, किसी केवल कमरे - विशेषको नहीं । औरंगजेब द्वारा उपयुक्त आदर-सत्कारको प्राप्ति न होने पर, शिवाजीका अपनेको अपमानित अनुभव करना, ग्लानि और क्रोधसे उनके तमतमा उठने पर दरबार में आतंक छा जाना, औरंगजेब के संकेत से रामसिंह द्वारा पूछे जानेपर, निडरतापूर्वक कटु वचनोंको कहना - आदि घटनाएँ इस दरबारमें घटित हुई थीं और भूषणने शिवाजीकी इसी क्रोध पूर्ण स्थितिका जिससे दरबार में आतंक छा गया था, वर्णन शिवराज भूषण में किया है, उनके दरबारसे चले जानेके बादकी घटनाओंका नहीं
महाकवि भूषण ने शिवराज भूषण में गुसलखानेकी घटनाका वर्णन छन्द सं० ३३, ७४, १६९, १८६, १९१, २४२ और २५१ में किया है । वे कहते हैं कि औरंगजेबने शिवाजीको पाँच हजारियोंके बीच खड़ा किया, जिसपर शिवाजी अपनेको अपमानित अनुभव कर बिगड़ उठे । उनकी कमर में कटारी न देकर इस्लाम ने गुसलखानेको बचा लिया । अच्छा हुआ कि शिवाजीके हाथमें हथियार नहीं था, नहीं तो वे उस समय अनर्थ कर बैठते -
"पंच हजारिन बीच खरा किया मैं उसका कुछ भेद न पाया । भूषन यौं कहि औरंगजेब उजीरन सों बेहिसाब रिसाया || कम्मर की न कटारी दई इसलाम ने गोसलखाना बचाया । जोर सिवा करता अनरत्थ भली भई हथ्थ हथ्यार न आया ।” (१९१) गुसलखानेमें आते ही उन्होंने कुछ ऐसा त्यौर ठाना कि जान पड़ा वे औरंगके प्राण ही
चाहते हों-
“आवत गोसलं खाने ऐसे कछू त्यौर ठाने, जानौ अवरंगहूँ के प्राननको लेवा है ।” (७४)
१. शिवाजी दि ग्रेट, डॉ० बालकृष्ण, पृ० २५६ ।
२. दे० भूषण, सं० पं० विश्वनाथ प्रसाद मिश्र, प्र० सं०, वाणी वितान, वाराणसी ।
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________________ एक अन्य छंदमें शिवाजीकी वीरताका वर्णन करते हुए उनका दिल्लीपतिको जवाब देने, समस्त दरबारियोंको आतंकित करने और बिना हाथमें हथियार या साथमें फौज लिये माथ न नवानेका उल्लेख इस प्रकार किया है-- "दीनी कुज्वाब दिलीस को यौं जु डर्यो सब गोसलखानो डरारी। नायौ न माहिं दच्छिन नाथ न साथ में सैन न हाथ हथ्यारौ।" (169) एक और छंदमें भूषण लिखते हैं कि औरंगजेबसे मिलते ही शिवाजी क्रुद्ध हो उठे, जिसपर उमराव आदि उन्हें मनाकर गुसलखानेके बीचसे ले चले "मिलत ही कुरुख चिकत्ता कौं निरखि कीनौ, सरजा साहस जो उचित बृजराज कौं। भूषन कै मिस गैर मिसल खरे किये कौं किये, म्लेच्छ .मुरछित करिकै गराज कौं / अरतें गुसुलखान बीच ऐसें उमराव, लै चले मनाय सिवराज महाराज कौं। लखि दावेदार को रिसानौ देखि दुलराय, जैसे गड़दार अड़दार गजराज कौं / (33) छंद सं० 186 में पुनः गुसलखाने में ही दुःख देनेका प्रसंग है-- "ह्याँ तें चल्यौ चकतै सुख देन, कौं गोसलखाने गए दुख दीनौ / जाय दिली-दरगाह सलाह कौं, साह कों बैर बिसाहि कै लीनौ / ''(186) २४२वें छंदमें भी गुसलखानेमें साहसके हथियारसे, औरंगकी साहिबी (प्रभुत्व) को हिला देनेका उल्लेख है-- "भूषन भ्वैसिला तें गुसुलखाने पातसाही, अवरंग साही बिनु हथ्थर हलाई है। ता कोऊ अचंभो महाराज सिवराज सदा, बीरन के हिम्मतै हथ्यार होत आई है / "(242) शिवाजीकी प्रशस्तिमें लिखे हुए एक प्रकीर्णक छंदमें तो भूषणने स्पष्ट उल्लेख कर दिया है कि आतंकित औरंगजेबने बड़ी तैयारी और सावधानीके साथ गुसलखाने में शिवाजीसे भेंट की थी "कैयक हजार किए गुर्ज-बरदार ठाढ़े, करिकै हस्यार नीति सिखई समाज की। राजा जसवन्त को बुलायकै निकट राखे, जिनकों सदाई रही लाज स्वामि-काजकी। भूषन तबहुँ ठिठकत ही गुसुलखाने, सिंह-सी झपट मनमानी महाराज की। हठ तें हथ्यार फेंट बाँधि उमराव राखे, लीन्ही तब नौरंग भेंट सिवराजकी।" (442) उपर्युक्त उद्धरणोंसे यह पूर्णतः स्पष्ट है कि भूषणने इस भेंटका जो वर्णन किया है, वह इतिहाससम्मत है और स्थानका निर्देश सही है। यह बात दूसरी है कि कविके वर्णनमें कुछ अतिशयोक्ति और चमत्कार आया हआ प्रतीत होता है। ऐसा हो जाना स्वाभाविक है, क्योंकि कविने शिवाजीकी वीरताके वर्णनोंको अलंकारोंके उदाहरणके रूप में उपस्थित किया है। शिवराजभूषणके कुछ सम्पादकोंने प्रसंगके आधारपर यद्यपि 'गुसलखाना' शब्दका अर्थ दरबार खास किया भी है, किन्तु यह अर्थ अभी तक अनुमानपर ही आधारित था। इस स्पष्टीकरणसे यह अनुमान अब वास्तविकतामें परिणत हो गया है। विविध : 311