Book Title: Sanskrut Apbhramsa Bhashamayam Stotrashatakam Author(s): Ratnakirtivijay Publisher: ZZ_Anusandhan Catalog link: https://jainqq.org/explore/229361/1 JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLYPage #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अज्ञातकर्तृक-संस्कृत-अपभ्रंश भाषामयं स्तोत्रषट्कम् ॥ सं. मुनि रत्लकीर्तिविजय चाणस्मा जैन ज्ञानभंडारनी हस्तलिखित प्रतमा २४ तीर्थंकरनी स्तुति व.नो संग्रह छे. तदन्तर्गत नंदीश्वरादि स्तुतिओ तथा वर्तमानचोवीशीना आदिनाथ - शान्तिनाथ - नेमिनाथ - पार्श्वनाथ अने महावीरस्वामी, आ पांच जिनेश्वरोनां स्तोत्रो प्राप्त थयां छे. तेमां, नंदीश्वरादिस्तुतिओमां अनुक्रमे नंदीश्वरद्वीप, सम्मेतशिखरतीर्थ पर सिद्ध थयेला २० तीर्थंकरो, अष्टापद पर्वत पर बिराजमान २४ तीर्थंकरो, श्रीसीमंधरस्वामी भगवान, समकाले थयेला १७० तीर्थंकरो, पण लोकनां जिनचैत्यो, १२ अंगस्वरूप ज्ञान अने महावीर स्वामी भगवानना शासनरक्षक सिद्धायिका देवीनी स्तुतिओ छे. त्यार बाद पांच-पांच गाथा प्रमाण पांचे तीर्थंकर भगवंतनां स्तोत्रोमां तेते तीर्थंकर भगवंतना वर्ण, लांछन, पूर्वभवो, पांचे कल्याणकोना मास तथा तिथि, तथा शरीर प्रमाण व.नुं वर्णन छे. आशरे १६मा सैकामां लखाएली पोथी लागे छे. प्रतिनुं लखाण १०मा पत्रना बीजा भागमां समाप्त थया पछी, एक भूसाएली पंक्तिमां "संवत १५९० वर्षे" एवं वांची तो शकाय छे. कर्तानुं नाम मळतुं नथी. आमां प्रथम रचनाने बाद करतां शेष बधी स्तोत्रो अपभ्रंश भाषामां छे, ते उल्लेखनीय छे. श्रीनन्दीश्वरादिस्तुतयः ॥ नन्दीश्वरद्वीपमितैर्जिनानां प्रासादशृङ्गैर्भुवि भासमानम् । विद्याधराणामसुरामराणां नाथैः स्तुतं मङ्गलदायि भूयात् ॥१॥ सम्मेतशैलामिधभूमहेला - शिरोवतंसास्त्रिजगत्प्रशंसाः । लब्धप्रतिष्ठाः शिवसौख्यलक्ष्मी कुर्वन्ति ते विंशतितीर्थनाथाः ॥२॥ अष्टापदस्था निजमानवर्णा - 'श्चितैर्युताः श्रीभरतेन भक्त्या । संस्थापिता तरमानतेन्द्राः(?) श्रीआदिनाथप्रमुखा जिनेन्द्राः ॥३॥ Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान - १५ • 28 ॥४॥ ॥५॥ सीमन्धरं निर्जरकोटिसेव्यं तीर्थङ्करं क्षेमकरं जनानाम् । सद्देशनाप्रीणितभव्यसङ्घ - मनन्तलक्ष्मीप्रदमानमामि कैवल्यलक्ष्म्या तिथिमेयकर्म-भूमी: पवित्राः सममेव चक्रुः । उत्कृष्टकाले शतसप्ततिस्ते तीर्थङ्करा मे शिवदा भवन्तु स्वर्गे च पातालतले विशाले भूलोकमध्ये बहुतीर्थमाले । भूतानि भावीनि च सन्ति यानि जैनानि चैत्यानि नमामि तानि ॥६॥ संदर्शितानेकभवस्वरूपं शश्वत्पतङ्गप्रमिताङ्गरूपम् । मिथ्यात्ववल्लीलवने लवित्रं ज्ञानं जगद्दीपमहं स्मरामि सिद्धायिका वीरजिनस्य तीर्थ सेवापराणां भविकव्रजानाम् । विघ्नापहा शासनदेवतेयं माङ्गल्यमालामतुलां तनोतु ॥७॥ ॥८॥ इति नन्दीश्वरादिस्तुतयः समाप्ताः ॥ ( २ ) जय जय पईव कुंतलकलाव विलसंत बहुलकज्जलसहाव कलहूयकंति मरुदेवि - नाभि- निव-तणय रिसह वसहंक सामि ||१|| धण मिहुण तियस नरनाह देव निव वयरजंघ मिहुणे स चेव । सोहम्म विज्ज- अच्वय चक्कि सव्वट्टसिद्धि अवयरीअ इत्थि ||२|| आसाढबहुल चवीउ चउत्थि कसिणट्ठमि जायउ मासि चित्ति । इक्खागुभूमि नयरी विणीय धणु पँचसय तिहि तणुपणीय ॥३॥ चित्तट्ठमि गिन्हइ सामि दिक्ख चउ सहस समन्निय कसिणपक्खि । इग्यारसि बहुली फग्गुणस्स संपज्जइ केवलनाण तस्स ||४|| माह वदि तेरसि उज्जल निय जसि पुव्वलक्ख चुलसीय जूय । जय पढम जिणेसर सूअ भरहेसर करि पसाउ निम्मलचरीय ॥५॥ ॥ इति श्री आदिनाथस्तोत्रम् ॥ ( ३ ) वीससेण अइरादेवि नंदण तणुहरण जय अपुव्व हरिणंक अखंडिय तणु किरण | सिरिसिरिसेण कुरु - नर सोहम्म खयर निव Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१५ • 29 पाणय सो अपराजीय अच्चुय इंदभव ॥१॥ विज्जाहिव गेविज्ज नरवइ मेहरह सव्वट्ठ अवयनउ गयउर संतियह । भाद्रवए वदि सातमि सामि चवण तुह जिट्ठ कसिण तेरसि निसि जीयउ जम्ममहो(ह) ॥२॥ जिट्ठ चउद्दसि बहुलीय संजम सिरि वरीय पोस सुदि नउमि दिणि केवल वरि वरीय । जिट्ठ कसिण तेरसि निसि कंचणकंति तणु मुक्खसुक्ख पहु पामीय छंडीय कम्मवण ||३|| चउसट्ठि सहस अंतेउर चुलसीय लक्खय हय-गय-रहवर छन्त्रवइ कोडि पायक तह य । नवनिहि चऊद रयण छ खंड सभूमिवर धम्मचक्कि सोलसमु पंचम चक्कहर ॥४॥ चालीस-धणुह-देहो लक्ख-वरिसाण जीवियं जस्स । सो संतिनाहदेवो करेइ संघस्स सिवसंती ॥५॥ ॥ इति श्री शान्तिनाथस्तोत्रम् ॥ (४) पंचजन्नि आउरिय संख जिणि दिणह अज्जवि जसु पय सेवइ लंछणमिसि जिणह । रायमई मणवल्लह सोहग सुंदरह नेमिचरीय निज्जइ फलिणी सामलह ॥१॥ आसि धणो तसु दइया धणवइ सुहमसुर चित्तगइ विद्याहर रयणमइ महिंदसुर । अपराजीय प्रीय प्रीयमइ पायारणह संखनिवो तसु जसुमइ प्रीय अपराजीयह ॥२॥ नवमभवे सोरियपुरि समुदविजय घरणि सिवादेविराणी नंदण जायुकुल तसुण कन्ती किसिण दुवालसि अपराजीय चवणु Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान- १५ • 30 श्रावण सिय पहु पंचमि मंदरगिरिन्हवण ॥३॥ सीय छट्टि सावण सहस समन्निय वय गहण रेवगिरिवर सामी रायमइ परिहरण । दिण चउपन्न अणंतर आसो मावसह . केवलनाणी विहरइ तणु जसु दस धणुह ॥४॥ जीविय वरिस सहस्सं आसाढे अट्ठमीय सिय पक्खे | संपत्तं सिद्धिसुहं उज्जिते नमह नेमिजिणं ॥ ५ ॥ ॥ इति नेमिनाथ स्तोत्रम् ॥ (५) सामि सामलय तणु कंति किरणावली जयउ विलसंत कल्लाण- घणमंडली | जयउ धरणिंद- फणि रयण रयविज्जला भविय घण मोर नच्वंति हरिसुज्जला ||१|| नाह मरभूइ भवि भमीय वणि गयवरो देव सहसार विज्जाहर ब्भूअ सुरो । विज्जनाहो य गेविज्ज कणयापहो चकवट्टी य पाणय विमाणच्चुअ ||२|| चित्त चडत्थीइ कसिणाइ वाणारसी नयरि निव आससेणस्स वामासई । पोस दसमीइ कसिणाइ जम्मुत्सवो तास इग्यारसी गिण्हए संजमो ॥३॥ कसिण चउत्थीइ चित्तस्स तुह केवलं सुद्ध अट्ठमिहि श्रावणह पत्तो सिवं । ना तणुमाण नवहत्थ फणि लंबणो वरिस सउ आउ जिण नयण आणंदणो ||४|| जिण विघन विणासण पाव पणासण पास पसन्नउ होउ महो । पउमावइ देवी जसु पय सेवी मनवंछित सुह देउ महो ॥ ५ ॥ ॥ इति श्री पार्श्वनाथस्तोत्रम् ॥ Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१५ * 31 जयउ सो सामी वीर जिणंदो पिक्खिय लंछणि जासु मइंदो / संगम कामिणि मणिमणि वासो काम करी किम करइ उल्लासो // 1 // नयसार सोहमि मिरीय सुबंभे कोसीय सुर वसुमित्त सुहम्मे / अग्गिजोई ईसाणग्गिभूई सिरिभारदह महिंद चउगई // 2 // थावर सुर वसुभूइ य सक्के हरि नारय सीह नारय चक्के / सक्कीय नंदण पाणय चवीउ देवाणंदा ऊअरि अवयरिउ // 3 // सीय छठ्ठि साढह वसीउ बियासी दिणि आणेई हरिणेगमेसी / कुंडगामि सिद्धत्थह नरवइ वालंभ त्रिसला तसु कुखि आवइ // 4 // चैत्रसीय तेरसि जायु जम्म मेरु कंपावीय सुणीइ रम्म / छप्पियइ नंदण दईय जसोआ नंदिवर्द्धन पहो जाणे भाया // 5 // बहुल दसमि पहु मगसिर मासह दिक्ख लेउ सहीया उवसग सहस / सिय वइसाह दसमिइं केवल कित्तीयमावस सुद्ध सीय निम्मल // 6 // इय जिण वीरह कणय सरीरह सत्त हत्थु उच्चत्त तणु / जय गणहर गोयम जगि जस उत्तम फलीप सयल कल्लाणवण // 7 // // इति श्री महावीरस्तोत्रम् //