Book Title: Sakalkushalvalli Chaityavandan Tika
Author(s): Lalityashashreeji
Publisher: ZZ_Anusandhan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८ अनुसन्धान-५४ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-२ वछ (रछ) गणिनी ओक अप्रगट कृति "सकलकुशलवल्ली चैत्यवन्दन टीका" सं. साध्वी ललितयशाश्री पूर्वाचार्योओ बाळजीवोने उपयोगी घणा साहित्यनी रचना करी छे. प्रस्तुत कृति पण पू. ऋषि वछराज गणि) संस्कृतभाषाने शिखता बाळजीवोने उद्देशीने ज करी हशे. कृति नानी पण सुन्दर छे. दरेक चरणनी टीका साथे अन्तमां तेनो सामान्य भावानुवाद पण कविओ को छे. कवि ऋषि वछराज गणि कया गच्छना छे ? तेमनी गुरुपरम्परा शुं छे ? इत्यादि कशी बाबतोनो कृतिमा उल्लेख नथी. प्रतना अन्त्यभागमा प्रत सं. १८१५मां विक्रमपुरमा लखायानी नोंध छे. ते परथी कर्ता ते पूर्वे थयार्नु जाणी शकाय. आ नामना अन्य कर्ता लोकागच्छमां १७मी सदीना पूर्वार्धमां थया छे. जेमणे १७४९मां 'सुबाहु जिन चोढाळियु' नामनी कृतिनी रचना करी छे. कदाच तेओओ ज आ कृति रची हशे. छतां अन्य प्रमाण न मळे त्यां सुधी कर्ताना निर्धारणमां शङ्का रहे. प्रस्तुत कृति नेमि-विज्ञान-कस्तूरसूरि भण्डारना हस्तलिखित झेरोक्ष विभागनी छे. प्रत आपवा बदल पू. गुरु म.सा.नो तेमज भण्डारना व्यवस्थापकश्रीनो आभार. "सकलकशलवल्ली चैत्यवन्दन टीका" ॥ ए६०॥ सकलकुशलवल्लीपुष्करावर्तमेघो, दुरिततिमिरभानुः कल्पवृक्षोपमानः । भवजलनिधिपोतः सर्वसम्पत्तिहेतुः, स भवतु भवतां भो(भोः!) श्रेयसे पार्श्वनाथः ॥१॥ अस्य व्याख्या ॥ भो भव्यजनाः ! स श्री पार्श्वनाथो भवतां-युष्माकं श्रेयसे-कल्याणाय भवतु-अस्तु । किंविशिष्टः पार्श्वनाथः ? सकलकुशलवल्लीपुष्करावर्तमेघः-सकलानि च तानि कुशलानि च सकलकुशलानि। Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फेब्रुआरी 2011 149 पुष्करावर्तनामा मेघ इव मेघः पुष्करावर्तमेघः / सघला कुशल-मांगलिक, तेह रूपिणी वेलडी वधारिवानइं काजिइं पुष्करावर्तमेघसमान छइ / पुनः किंविशिष्टः श्रीपार्श्वनाथ ? दुरिततिमिरभानुः दुरितानि-पापानि, तानि एव तिमिराणि-अन्धकाराणि, तेषां निराकरणे भानुरिव भानुः दुरिततिमिरभानुः / दुरित कहियइ पाप, तथा विघ्न, तेह टालिवानइं काजिइं भानु कहतां सूर्य ते समान छइ / पुनः किंविशिष्टः श्रीपार्श्वनाथः ? कल्पवृक्षोपमान:-कल्पवृक्ष(क्षेण) उपमीयते असौ कल्पवृक्षोपमानः / वांछित पूरिवानइं काजिइं कल्पवृक्ष समान छइ / पुनः किंविशिष्टः श्रीपार्श्वनाथ ? भवजलनिधिपोतः-भव एव जलनिधिः, तस्य तारणे पोत इव पोतः भवजलनिधिपोतः / संसारसमुद्र तरिवा भणी प्रवहण समान छइ / पुनः किंविशिष्टः श्रीपार्श्वनाथः ? सर्वसंपत्तिहेतुः / सर्वाश्च ताः संपत्तयश्च सर्वसंपत्तयः, तासां हेतु:-कारणम् / सघली संपदाना हेतु-कारण छइ / इति काव्यार्थः ऋषिश्रीवछराजगणिकृतः / लिखित श्रीविक्रमपुरे सं. 1815 वर्षे / __C/o. अरिहंत आराधना उपाश्रय गोपीपुरा, मोतीपोळ, सूरत-१