Book Title: Sahitya evam Kala ki Punyabhoomi Malva
Author(s): Rameshmuni
Publisher: Z_Munidway_Abhinandan_Granth_012006.pdf
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहित्य एवं कला की पुण्यभूमि - मालवा मुनि रमेश 'साहित्यरत्न' (मेवाड़ भूषण जी महाराज के प्रमुख शिष्य ) मालव डग-डग सदियों से इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों पर उपर्युक्त लोकोक्ति आज भी शंखनाद करती हुई सुनाई दे रही है । मेरी समझ में इसमें तनिक भी अतिशयोक्ति अथवा आदर्शवादिता का कुछ भी पुट नहीं है, अपितु एक वास्तविक सत्य का समावेश है । मालवा की पुण्यभूमि का गौरव सम्पन्न इतिहास किसी से भी छुपा हुआ नहीं है । इस भौतिक युग में भी आर्य संस्कृति-सभ्यता का श्लाघनीय नेतृत्व प्रस्तुत करता हुआ वह आन-बान-शान से जी रहा है जिसकी मजबूत बुनियाद सुसंस्कारों पर आधारित रही है । प्रकृति के नयनाभिराम दृश्यों, धार्मिक स्थानों, ऐतिहासिक स्थलों, शिल्पकलाओं के मन लुभावने कलापों, खनिज भंडारों से पूर्ण तथा औद्योगिक प्रतिष्ठानों में अगुवा भारत माँ का प्यारा देश मालवा (म० प्र०) आज भारत का साझीदार बनकर आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक क्षेत्रों में प्रगतिशील एवं विख्यात हो चुका है । धरती रोटी पग-पग नीर ॥ गहन गंभीर । आपने कई बार देखा व सुना है - जब समय-समय पर पड़ोसी प्रान्त प्रकृति के प्रकोप व दुष्काल की क्रूर दृष्टि के शिकार बनते रहे हैं, बार-बार लोमहर्षक प्रहार उन्हें सहने पड़े और अपार धन-जन को भी खोना पड़ा है। कारण कि प्रकृति की प्रतिकूलता उनके लिए सिरदर्द रही है । परन्तु शस्य - श्यामला इस धरा के लिए इतिहास ऐसा नहीं बताता है । यहाँ प्रकृति सदैव प्रसन्न रही है | दुष्काल की सदैव पराजय और सुकाल के सुखद नगाड़े बजते रहे हैं । यही कारण है कि प्रतिवर्ष यहाँ समवर्षा होती है । हरीतिमा से परिव्याप्त इस विशाल धरा पर विंध्याचल, सतपुड़ा जैसी विशालकाय पर्वतमाला, चम्बल, नर्मदा, महीसागर, क्षिप्रा जैसी बड़ी नदियाँ, सुदूर तक फैले हुए घने जंगल सैकड़ों मील के लम्बे-चौड़े उपजाऊ मैदान अन्य सैकड़ों सहायक छोटी नदियों की कलकल धारा, सरोवरों की सुन्दरता एवं नवनिर्मित चम्बल बांध जो सचमुच ही समुद्र की स्पर्धा कर रहा है । जिनके गर्भ में खनिज सम्पत्ति का अक्षुण्ण कोष भरा पड़ा है । जब पड़ोसी देश के मित्रगण दुष्काल के चपेट से परेशान होते हैं, तब वे अपने परिवार एवं पशु धन के साथ इसी भूमि पर आते हैं । इसीलिए Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहित्य एवं कला की पुण्यभूमि-मालवा २५६ मालवा देश को मां की गोद कहा गया है । जहाँ अमीर-गरीब और भूखे-प्यासे सभी को आश्रय एवं संरक्षण मिलता है। रेलमार्गों की भरमार से मालवा के बहुत से भागों का आसानी से भ्रमण सम्भव हो गया है। मध्य प्रदेश-राज्य-परिवहन सेवा ने इस प्रदेश की यात्राओं को अधिक सुगम बना दिया है। व्यापारिक क्षेत्र में भी यह प्रदेश उत्तरोत्तर विकास कर रहा है। कृषि, पशुपालन, व्यापार, कल-कारखाने व्यावहारिक जीवन के मुख्य साधन हैं। संस्कृति का साक्षात् सदन प्राचीनकाल से यहाँ धर्म, दर्शन, संस्कृति, सभ्यता, साहित्य एवं शिल्पकलाओं के अनूठे नमूने देखने को मिलते हैं। मंदिर-मस्जिद-मीनारों की शिल्प कलाकृति एवं किलों की अनोखी बनावट सचमुच ही विस्मय में डालने वाली है । प्राचीन जैन साहित्य के भण्डार भरे पड़े हैं जो हमारी अनुपम निधि है। सदियों से श्रमण संस्कृति एवं वैदिक संस्कृति की अमिट धारा प्रवाहित रही है । सह-अस्तित्व की पवित्र भावना को लेकर दोनों धाराएँ उत्तरोत्तर प्रगतिशील, विचारशील एवं जन-जन के लिए प्रेरक रही है। इस प्रदेश में वैष्णव, शैव, जैन, मुस्लिम धर्म की संस्कृतियां न केवल पनपीं, अपितु आज भी इस प्रदेश में इनके धार्मिक स्थान उनकी गौरव-गरिमा का गुणगान कर रही है । वस्तुतः यहां के निवासियों के मन-मस्तिष्क पर धर्म-दर्शन का पर्याप्त प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। साथ ही साथ यहां के भव्य स्थानों में सामूहिकरूप में आबाल वृद्ध धर्माराधना करते हुए मिलते हैं । जहाँ-तहाँ आपको इस रमणीय धरा पर अनेकों प्राचीन कलात्मक स्थल मिलेंगे-उज्जैन, धारा नगरी, तीर्थ स्थली मक्षी दशपुर (मन्दसौर), मांडुजी का किला, ॐकारेश्वर, अर्वाचीनता के प्रतीक जैसे- इन्दौर-भोपाल, रतलाम जहाँ नवीनता एवं प्राचीनता का सुन्दर-संगम परिलक्षित होता है। निःसन्देह प्राकृतिक विपुल वैभव-से भरे-पूरे इस मालवा देश के अनुपम सौन्दर्य का दर्शन कर प्रत्येक बुद्धिजीवी का मन बाग-बाग होना स्वाभाविक है। इसी प्रकार इस पुण्यभूमि की प्रशंसा करने में देवगण भी पीछे नहीं रहते हैं, जैसा कि गायंति देवा किल गीतकानि । धन्यास्तु ते मालव-भूमि भागे ॥ कर्मवीर और धर्मवीरों की पुण्यभूमि समय-समय पर इस तपोपूत भूमि ने कई बार सत्ता की खींच-तान में उतारचढ़ाव के कटुक-मधुर झटके सहे हैं। फिर भी इस तपोभूमि की गौरवशाली गोद में कर्म प्रिय जैसी कुछ महान् विभूतियों का अवश्य योगदान रहा है । जैसे-परदुःख Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 260 मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ भंजक, न्यायप्रिय विक्रमादित्य, सरस्वतीपुत्र सम्राट भोज, धर्मानुरागी सम्राट् दशार्णभद्र, कवि-कुल-भूषण कालिदास, कवि माघ वल्लभाचार्य, तो श्रमण संस्कृति के ज्योतिधर महामनस्वी आचार्य मानतुंग, आ० श्री शिवलाल जी महाराज, कविकुलभूषण स्व० आ० श्री त्रिलोक ऋषि जी महाराज (रतलाम), अखण्ड यशोदधि शास्त्रविशारद् स्व० आ० श्री मन्नालालजी महाराज (रतलाम), आदर्शत्यागी सपरिवार संयमी स्व० श्री तपस्वी रतनचन्द्रजी महाराज इन्हीं के पुत्र रत्न स्व० गुरुजी श्री जवाहरलाल जी महाराज, स्व० कविकोविद श्री हीरालाल जी महाराज, वाद-कोविद स्व० गुरुदेव श्री नन्दलालजी महाराज, स्व. श्री उत्तमचन्द जी महाराज (कंजाड़ा), आगमोद्धारक स्व. आ० श्री अमोलक ऋषिजी महाराज (भोपाल), अनेक ग्रन्थों के महान् लेखक प्रसिद्ध वक्ता जगत्वल्लभ जैन दिवाकर गुरुदेव श्री चौथमलजी महाराज (नीमच), प्रज्ञाधनी सलाहकार स्व० श्री केशरीमलजी महाराज (जावरा), दीर्घ द्रष्टा साहित्य प्रेमी स्व० उपाध्याय श्री प्यारचन्द जी महाराज (रतलाम), प्र. पं० श्री भगवानलाल जी महाराज (मन्दसौर), स्थविर पद-विभूषित शासन सम्राट् मालवरत्न पूज्य गुरुदेव ज्योतिर्धर श्री कस्तूरचन्दजी महाराज (जावरा), मालवकेशरी श्री सौभाग्यमलजी महाराज (खाचरोद), आगम विशारद् पं० श्री हीरालालजी महाराज (मन्दसौर)। इसी प्रकार महाभाग्यवंता महासती श्री रंगुजी महाराज, महातपस्वी श्री केशरकुंवरजी महाराज, ओजस्वी वक्ता श्री बड़े हगामकुंवरजी महाराज (संजीत), प्रसिद्ध वक्ता श्री मेहताबकुवरजी महाराज, स्व० श्री मेनकुवरजी महाराज, तपस्वी श्री रूपकुवरजी महाराज एवं चिरायु श्री केशरकुवर जी महाराज (जावरा वाले) आदि अगणित साधकों की पादधूलि से यहाँ का चप्पा-चप्पा पवित्र हो चुका है। विशेषत: मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचन्द्रजी की विहार-स्थली, द्वारिकाधीश श्रीकृष्ण वासुदेव की शिक्षास्थली रही है। चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर के उपदेश का इस भूमि को सौभाग्य प्राप्त हो चुका है। जिन्होंने केवल अपने कार्य क्षेत्र का विस्तार ही नहीं किया, अपितु मानव-समाज की अमिट सेवाएं की हैं / साहित्यकला एवं संस्कृति में जिनके सत्कर्तव्य आज इतिहास के धवलपृष्ठों पर अमर बन चुके हैं / जिनकी साहित्यिक एवं धार्मिक देन सदियों तक मार्ग-दर्शन करती रहेगी।