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राजस्थानी 'बातों' में पात्र और चरित्रचित्रण So मनोहर शर्मा
कहानी में पात्रोंका कार्य - व्यापार उनके चरित्रका प्रकाशन करता है । अतः उनका सजीव होना आवश्यक है, वे निर्जीव नहीं होने चाहिए। उनमें स्वाभाविकताका गुण जरूरी है । इसीसे पाठकों को वास्तविक रसानुभूति होती है । पात्रोंकी अलौकिक अथवा असाधारण शक्ति से कुतूहल भले ही पैदा हो जाए परन्तु उनके साथ हृदयका संबंध नहीं जुड़ सकता । उनमें मानवीय हृदयके शाश्वत मनोभावोंका प्रकाशन होना चाहिए, जिससे कि पाठक उनको अपने जैसा हो मान कर उनके साथ सहानुभूति प्रकट कर सकें ।
कहानी में पात्रोंकी अधिकता भी वांछनीय नहीं। कई राजस्थानी बातोंमें यह गुण सुन्दर रूपमें देखा जाता है परन्तु अनेक बातोंमें पात्रोंकी संख्या काफी बढ़ी हुई मिलती है। पात्रोंकी इस अधिकताका कारण उनके इतिवृत्त के रूपमें उपस्थित किया जाता है । जिन बातों में किसी ऐतिहासिक पात्रका विवरण देना अभीष्ट होता है, उनमें अनेक प्रकारके और बहुत अधिक पात्र देखे जाते हैं, जैसे अमरसिंघ राठोड़ गजसिंघो - घरी बात, ' महाराज श्रीपदमसिंघरी बात' आदि ।
राजस्थानी बातों में ऐतिहासिक पात्रों की प्रधानता है । ऐसा प्रतीत होता है, मानों बातोंका संसार उन्हीं बसा हुआ है । इतना ही नहीं, वहाँ कल्पित पात्रों को भी ऐतिहासिक रूपमें प्रस्तुत करनेकी चेष्टा की गई है और अनेक लोककथाओंमें उनको चतुराईके साथ नायकके पदपर प्रतिष्ठित कर दिया गया है ।
मोटे तौरपर राजस्थानी बातोंमें पात्रोंको तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है
१. मानव । २. देव-दानव आदि । ३. पशु-पक्षी आदि ।
इनमें प्रथम वर्ग के पात्र प्रधान हैं तथा द्वितीय वर्ग के पात्र गौड़ हैं । वे बातोंमें कहीं-कहीं ही प्रकट होते हैं और उनका सम्बन्ध तत्कालीन लोकविश्वाससे है । तृतीय वर्ग के पात्र यत्रतत्र बालोपयोगी बातों में प्रकट होते हैं । कहीं-कहीं उनपर मानव जीवनका बड़ी ही कुशलतासे आरोपण भी किया गया है ।
राजस्थानी बातों में पात्रोंका चरित्र चित्रण दो रूपोंमें हुआ । एक रूपमें पात्रकी वर्गगत विशेषताएँ प्रकट होती हैं और दूसरेमें उनके व्यक्तिगत गुणों का प्रकाशन होता है । बातों में प्रधान, मोहता, पुरोहित, कोटवाल, दांणी आदि पदोंपर काम करने वाले पात्रोंके प्रायः व्यक्तिगत नाम नहीं मिलते और उनको पदके नामसे ही पुकारा जाता है । ये पात्र वर्गगत विशेषताओंको प्रकट करते हैं । यही स्थिति ड्रम, दास, दासी, बरी, गोहरी, एवाल आदिकी है । इनके भी बातोंमें प्रायः नाम नहीं मिलते ।
असल में इस प्रकारके पात्रोंका कोई विशेष महत्त्व नहीं होता और कहीं ही प्रकट होती है । यदि इस तरहका कोई पात्र महत्त्व ग्रहण करता है
१. राजस्थानी बात-संग्रह ( परम्परा ) २. वही,
बातमें इनकी उपस्थिति कहींतो उसका नाम भी प्रकट होता
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है और उसकी व्यक्तिगत विशेषताएं भी सामने आती हैं। इस सम्बन्धमें बीजड़ियों खवास (बात वीरमदे सोनगरा री)' और फोगसी एवाल (बात फोगसी एवाल री)२ आदिके नाम उदाहरणस्वरूप लिये जा सकते हैं।
राजस्थानी बातोंमें प्रायः शीर्षक किसी पात्रके नामके अनुसार मिलता है। इसका स्पष्ट कारण यही है कि वहाँ पात्रको प्रधानता दी गई है और उसका जीवन तथा चरित्र प्रकट करना बातका मूल उद्देश्य है।
पात्रोंकी चारित्रिक विशेषताओंका प्रकाशन भी राजस्थानी बातोंमें दो प्रकारसे हुआ है। प्रथम प्रकारमें लेखक द्वारा पात्र विशेषके गुण अथवा अवगुणोंका उद्घाटन कर दिया जाता है। प्रायः ऐसा बातके प्रारंभमें ही हो जाता है और आगे चलकर पात्र तदनुसार ही कार्य करता है । एक उदाहरण द्रष्टव्य है
"पातसाह री बेटी परणीयों, देपाल घंघ रजपूत अठै देपालपुर राज करें। अठै औ भोमीयोचारी करें। सो ई3 पास असवार २५ रहै । सो बड़ा सामंत, बड़ा तरवारीया । अर देपाल पिण बड़ी तरवारीयों। जैसोई दातार, बड़ौ रजपूत । सो औ भौमीचारी करें। परखंडां रा माल ले आवै। तठ गांम मांहे ले नै खावै-खरचै । गांम मांहे बड़ी गढ़ी, बलवंत । सु देपाल अठै ईमै भांत सुरहै।3।
चरित्र-चित्रणका दूसर प्रकार वह है, जिसमें लेखक स्वयं अपनी तरफसे पात्रकी विशेषताएँ प्रकट न करके उसके कार्यों एवं शब्दों द्वारा ही ऐसा करवाता है। यही तरीका श्रेष्ठ है । अधिकतर राजस्थानी बातोंमें यही तरीका अपनाया गया है।
पात्रोंके चरित्र-चित्रणमें आदर्श और यथार्थका विभेद महत्त्वपूर्ण विषय है। इस विषयमें दोनों ही पक्ष अपनी-अपनी विशेषताएं रखते हैं। इनके द्वारा कलात्मक-सामग्रीके मूल उद्देश्यका प्रकाशन होता है। मानव-चरित्रमें जहाँ आदर्शका महत्त्व है, वहाँ यथार्थका भी है। असलमें आदर्श और यथार्थके समन्वित रूपका नाम ही मानव-जीवन है। ऐसी स्थितिमें मानवजीवनके इन दोनों पक्षोंपर ध्यान देनेसे ही कलात्मकसामग्रीका उद्देश्य सफल होता है । कहीं एक पक्ष कुछ अधिक बलवान् हो सकता है तो कहीं दूसरा।।
राजस्थानी बातोंमें पात्रोंके चरित्रपर ध्यान देनेसे प्रकट होता है कि वहाँ आदर्श और यथार्थ दोनों रूपोंमें चित्रण हुआ है । बातोंमें जहाँ बहुत अधिक आदर्श पात्र हैं तो यथार्थ पात्र भी कम नहीं हैं। राजस्थानी बातोंकी यह एक विशेषता है । आदर्श
भारतीय साहित्यकी मूल प्रवृत्ति सदासे आदर्श चरित्रोंको प्रकट करनेकी रही है। प्रधान रूपमें यहाँ कथापात्र अनेक गुणोंसे विभूषित देखे जाते हैं। लेखकोंने पाठकोंके सामने दिव्य-चरित्र प्रस्तुत करने में अपनी कलाको सार्थक माना है। यही प्रेरणा राजस्थानी बातोंमें भी है। वहाँ इस प्रकारके बहुसंख्यक पात्र हैं, जो आश्चर्य-जनक रूपसे गुणान्वित है। समाजको बल देनेके लिए इस प्रकारके चरित्रोंको बातोंमें प्रकाशमान किया गया है । इस सम्बंधमें कुछ उदाहरण द्रष्टव्य हैं
(१) जगदेव पँवारको बातमें-जगदेव अपनी बिमाताकी डाहके कारण राज्य छोड़कर चला जाता है और सिद्धराजकी सेवा स्वीकार करता है। वहाँ वह अपने स्वामीकी आयुवृद्धिके लिए अपने पूरे
१. राजस्थानी वातां (श्री सूर्यकरण पारीक) २. वरदा, भाग ५, अंक ४। ३. बातां रो झूमखो, दूजो। २४६ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रन्थ
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परिवारके सिर तक देनेको तैयार होता है। इसपर उसे प्रचुर सम्पत्ति और सम्मान मिलता है। दानी वह ऐसा है कि अपना सिर तक काटकर कंकाली भाटणी को सहर्ष भेंट कर देता है । इस दानके आगे सिद्धराज भी हार मान जाता है । कंकाली शक्तिस्वरूपा है । वह जगदेवको पुनर्जीवित कर देती है । इस प्रकार जगदेव पँवार स्वामिभक्ति और दानशीलताका उज्ज्वल आदर्श प्रकट करता है।'
(२) पाबूजी राठौड़की बातमें-पाबूजी देवलदे नामक चारणीसे उसकी कालमी नामक घोड़ी इस शर्तपर लेते हैं कि जब कभी उसके धन (गाय आदि) पर संकट उपस्थित होगा तो वे अपना सिर देकर भी उसकी रक्षा करेंगे। कालान्तरमें पाबूजीका विवाह निश्चित होता है और जब वे वर-रूपमें फेरे (भाँवर) लेते हैं, तब उन्हें देवलदेपर आए हुए संकटकी सूचना मिलती है। वे वैवाहिक कार्य बीच में ही छोड़ देते हैं और अपना वचन निभानेके लिए शत्रुओंसे युद्ध करते हुए काम आते हैं। इस प्रकार पाबूजी प्रणवीरताके आदर्श हैं।
(३) राव रणमल्लको बातमें-अखा संख ला सींघल राजपूतोंके साथ धाड़े (लूट) के लिए जाता है और वे इंदा राजपूतोंके बाहलवे गाँवसी साडे (ऊंटनियां) लेकर वापिस लौटने लगते हैं। इसी समय पीछेसे इन्दा-सरदार आते हैं। सींघल भाग छुटते हैं परन्तु अखा सांखला वहीं डट जाता है। वह युद्ध में इन्दोंके हाथ मारा जाता है परन्तु मरते समय कहता है कि मेरा स्वामी रणमल्ल इसका बदला लेगा। जब यह खबर रणमल्लके पास पहुँचती है तो वह तत्काल सब काम छोड़कर अपने थोड़ेसे योद्धाओं सहित इन्दोंके गाँव आता है और उनकी घोड़ियाँ लेकर चलता बनता है। इसपर इन्दा-सरदार सेना सहित पीछा करते हैं। युद्ध होता है, जिसमें इन्दोंको पराजय होती है। इस प्रकार रणमल्ल बदला लेने तथा सेवकसहानुभूतिका आदर्श उपस्थित करता है ।
(४) पताई रावलकी बातमें-गुजरातका बादशाह महमूद बंगड़ा उसके किले पावागढ़का घेरा डालता है और पताई बड़ी दृढ़तापूर्वक उसकी रक्षा करता है। अन्तमें उसे धोखा होता है और गढ़का पतन हो जाता है। पताई और उसके सब साथी युद्ध करते हुए प्राण त्याग देते है। किले में रानियाँ जौहर व्रतका अनुष्ठान करके भस्म हो जाती है। इतना होनेपर बादशाह किले में प्रवेश कर पाता है। इस प्रकार पताई रावल जन्मभूमि-प्रेम और सर्वस्व-बलिदानका आदर्श उपस्थित करता है।
(५) सयणी चारणीकी बातमें वीजाणंद चारण सयणीके प्रति आकर्षित होकर उसके साथ विवाहका प्रस्ताव रखता है परन्तु इस विवाह हेतु एक शर्त आती है, जिसकी ६ मासमें पूत्ति होनी आवश्यक है । वीजाणंद शर्तकी पूर्ति हेतु पर्यटन करता है। जब वह काम पूरा करके लौटता है तो ६ मास पूरे हो चकते हैं और सयणी हिमालयपर गलनेके लिए घरसे निकल जाती है। बीजाणंद उसके पीछे जाता है परन्तु सयणी हिमालयपर पहुँचकर गल चुकती है। ऐसी स्थितिमें बीजाणंद भी वहीं गल जाता है। इस प्रकार बीजाणंद प्रेमका आदर्श उपस्थित करता है।"
१. राजस्थानी वातां (श्री सूर्यकरण पारीक) २. वही। ३. वरदा (७३) ४. राजस्थानी वातां, भाग १ (श्रीनरोत्तमदास स्वामी) ५. वही।
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... (६) अरजन हमीर भीमोतकी बातमें-मुर्गोंकी लड़ाई करवाते समय हमीर दृढ़तापूर्वक प्रकट करता है कि गर्दन कटनेपर भी शूरवीर अपने शत्रुको समाप्त कर सकता है। उसका ऐसा कहना आश्चर्यजनक प्रतीत होता है परन्तु जब सोमैया महादेवपर शाही-सेना आती है तो हमीर युद्ध में अपना सिर कटनेके बाद भी मारने वाले शत्रुको समाप्त कर देता है । इस प्रकार हमीर 'जूझार'का कार्य करता है । वह एक साथ ही धर्मवीर और युद्धवीर दोनोंका आदर्श है ।'
(७) कवलसी सांखल और भरमलकी--बातमें कवलसीका यह नियम है कि वह किसी कन्याकी सगाईके लिए उसके पास आया हुआ नारियल वापिस नहीं लौटाता। सांखला-वंश और खरल-वंशका बैर है। खरल किसी प्रकार बदला लेने की चिन्तामें है। वे अपनी अंधी लड़की भरमलकी सगाईका नारियल कवलसीके पास भेजते हैं और विवाहके समय उसे मार डालनेका षड़यंत्र रचते हैं। कवलसीका पिता यह नारियल अस्वीकार कर देता है परन्तु जब जङ्गलमें शिकारके लिए कवलसीको यह नारियल दिया जाता है तो वह इसे ग्रहण कर लेता है। फिर विवाहके लिए बारात जाती है। फेरोंमें ग्रंथिबंधन होते ही पतिके सत्याचरणके प्रभावसे भरमलके नेत्रोंमें ज्योति आ जाती है और वह उसे षड्यंत्रका संकेत कर देती है, जिससे कवलसी बचकर निकल जाता है। फिर वह अपनी ससुरालके प्रदेशमें भरमलके पास अकेला ही हिम्मत करके आता है। वहीं उसे छिपाकर ६ मास तक महलमें रख लिया जाता है। अंतमें वह चतुराईसे भरमलको साथ लेकर विदा हो जाता है। इस प्रकार कवलसी सत्यपरायणता और साहसका आदर्श उपस्थित करता है।
ऊपर सात आदर्श पात्रोंके चरित्रकी चर्चा की गई है। ये सभी पुरुष-पात्र हैं। इसी प्रकार राजस्थानो बातोंमें आदर्श नारीपात्रोंका चरित्र भी द्रष्टव्य है।
(१) जसमा ओडणीकी बातमें-जसमा ओड जातिकी स्त्री है, जो मिट्टी खोदनेका धंधा करती है। उसके रूप-सौन्दर्यपर मुग्ध होकर राजा उसे अनेक प्रकारसे प्रलोभन देता है परन्तु वह सर्वथा अस्वीकार कर देती है। अंतमें ओड लोग डर कर एक रात भाग छुटते हैं। राजा सेना भेजकर उनको मरवा देता है । जसमा सती हो जाती है । इस प्रकार जसमा ओडणी दृढ़ता एवं सतीत्वका आदर्श प्रकट करती है।'
(२) वीरमदे सलखावतकी बात-में शाही सेना वीरमदेका पीछा करती है और वह भाग कर जांगलूकी धरती में पहुँचता है । वहाँके राजा ऊदा मूंजावतसे वह सारी स्थिति बतला कर शरण देनेकी प्रार्थना करता है। ऊदा अपनी माताके सामने समस्या प्रस्तुत करता है। उसकी माता उसे कहती है कि वीरमदेको शरण अवश्य दी जावे। तदनुसार वीरमदेको जांगलूके कोटमें रख लिया जाता है । पीछे लगी हई शाही सेना भी वहां आ पहुँचती है। ऊदा उसके प्रधानको समझाकर बाहर ही एक रात भर डेरोंमें रोक देता है और इसी बीच वीरमदेको जोईयोंकी धरतीमें भेज दिया जाता है। दूसरे दिन कोटमें वीरमदेके न मिलनेपर शाहीसेनापति ऊदाको पकड़ता है और पैरोंकी ओरसे उसकी खाल बैंचनेकी तैयारी होती है। उसकी माता कोटकी दीवारसे यह दृश्य देखकर जोरसे आवाज देती है कि वीरमदे ऊदाके पैरों में नहीं है, वह उसकी खोपरीमें हैं, अतः खोपरीकी खाल उतारी जावें । वृद्धाके इस वचनसे प्रसन्न होकर सेनापति ऊदाको छोड़ देता है और वहाँसे
१. साधना, अंक ७। २. बात कवलसी सांखलैरी (हस्तप्रति, अभय जैन पुस्तकालय, बीकानेर) ३. राजस्थानी वातां, भाग १ (श्री नरोत्तमदास स्वामी) २४८ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रन्थ
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लौट जाता है। इस प्रकार ऊदाकी माता एक अनुपम आदर्श उपस्थित करती है। वह शरणागतकी रक्षाको अपना धर्म समझने वाली वीर माता है।'
(३) कुंगरे बलोचकी बातमें महाबली कूगरेकी बेटी हांसू अपने मृत पिताकी इच्छापूर्तिके लिए पुरुषवेषमें जैसलमेरके घोड़े लूटनेके लिए चल पड़ती है। मार्गमें उसकी ओढे सरदारसे भेंट होती है और वे साझेमें 'धाड़ा' (डाका) करने के लिए आगे बढ़ते हैं। वे जैसलमेरके घोड़े घेरकर ले आते है । पीछेसे सेना आती है । ओढा घोड़े लेकर आगे बढ़ता है और हांसू अकेली सारी सेनाको रोककर छका देती है। सेना हार कर लौट जाती है। आगे आनेपर लटमें प्राप्त घोडोंका हिस्सा होता है और ओढा हांसको पहचान लेता है कि वह लड़की है। फिर उनका आपस में विवाह होता है और हांसूके गर्भसे वीर जखड़ा जन्म लेता है। इस प्रकार हांसू एक वीर पुत्रीका आदर्श उपस्थित करती है।
___ (४) महींद्रो सोढो सम्बंधी बातमें मोमलका प्रेमी महेन्दरा सोढा उसके पास प्रति रात्रि बड़ी दूरसे चलकर पहुँचता है एक रात उसके बड़ी देरसे आनेके कारण सब सो जाते हैं और दरवाजा नहीं खुल पाता। इससे वह नाराज हो जाता है। प्रेमीकी नाराजीका पता लगाने के लिए मोमल स्वयं उसके यहाँ पहुँचती है । महेन्दरा बागमें जाकर बैठ जाता है। और मोमलको झूठा संदेश भिजवा देता है कि सांप द्वारा काटे जानेके कारण उसकी मृत्यु हो चुकी है। इस समाचारको सुनते ही मोमल अपना शरीर छोड़ देती है। इस प्रकार वह एक आदर्श प्रेमिकाके रूपमें प्रकट होती है इस बातका रूपान्तर भी मिलता है, जिसमें महेन्दराकी नाराजीका कारण दूसरा ही दिखलाया गया है।
(५) राजा नरसिंघकी बातमें अजमेरके राजा वैरसी गौड़के मरनेपर उसका पुत्र नरसिंघ बालक अवस्थामें होता है और रानी दैहड़ (दहीया वंशकी पुत्री)के ऊपर सारा भार आ पड़ता है। इसी समय अजमेर पर पठानोंका हमला होता है। रानी स्वयं वीरता पूर्वक युद्ध करती है परन्तु कोटकी रक्षा होना कठिन प्रतीत होता है, अतः अपने लोगोंको साथ लेकर वह दूर चली जाती है। आगे नरसिंघका बचपनमें ही विवाह करके उसे अपनी ससुरालमें छोड़ दिया जाता है । फिर रानी देहड़ हाड़ोंकी धरतीमें जाकर शक्ति-संग्रह करती है। नरसिंघ सयाना हो जाता है तो उसका एक विवाह और कर लिया जाता है। फिर अवसर देखकर रानी अजमेरपर आक्रमण करती है और विजयके बाद नरसिंघ राजा बनता है। इसके बाद रानी दैहड़ सती हो जाती है। इस प्रकार रानी एक साथ ही शौर्य, सहनशीलता, बुद्धिमत्ता एवं पतिभक्तिका आदर्श उपस्थित करती है।४
यहाँ राजस्थानी बातोंके कुछ चुने हुए आदर्श पात्रोंकी साधारण चर्चा मात्र की गई है, वैसे बातोंमें आदर्श पात्रोंकी संख्या बहुत बड़ी है और वे अनेक प्रकारके आदर्श उपस्थित करते हैं। इसी प्रसंगमें पात्रोंकी शारीरिक शक्तिका नमूना भी देखने योग्य है
) कूगरो बलोच अरोड़ सखर रहै तिलोकसीह जसहीत जैसलमेर राज करें। कूगरी छै ताकड़ी रौ अहार कर । एक बैर (पत्नी) कूगर । री हाडौ परबत छ, ओथ रहै । मा सू अरोड़ रहै । सू पहाड़ इसड़ी
१. वीरवाण, परिशिष्ट भाग (रानी लक्ष्मीकुमारी चूंडावत)। २. राजस्थानी वातां, भाग, १ (श्री नरोत्तमदास स्वामी)। ३. राजस्थानी प्रेमकथाएँ (श्री मोहनलाल पुरोहित)। ४. वातां रो झूमखो, दूजो ।
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परबत, सू पहाड़ कोरि नै माहे घर कियौ । सू घर रे मुंहड़े दीयै। सू उवा चिटां कूगरौ खेसवै, बीज कंही खुलै नहीं। पहाड़ नै अरोड़ साठ कोस रौ आंतरौ । एक दिन पहाड़ रहै, एक दिन अरोड़ रहै । हम थको रहै।'
(२) ताहरां सूरिजमल सादड़ी छाडी। सूरिजमल देवलीय गयो। आगे देवलीय मैंणों मरि गयो। मैंणी राज करै। उठे जाइ नै सूरिजमल पग टेकिया। सु मैंणी इसड़ी बलाइ, वागो पहिर घोड़े चढ़े । सु छ ताकड़ी री बुडी, इसड़ी बरछी पकड़ीय। देश माहे चौथल्यै । अठ सरिजमल प्रिथीराज रो धक मैंणी कन्हें जाइ रह्यो ।
इन दोनों उद्धरणों में क्रमशः, गरा बलोच और एक यीणी राणीकी शारीरिक शक्ति प्रकट की गई है, जो सामान्य जनसे कहीं अधिक है। राजस्थानमें जिस प्रकार अगणित व्यक्ति शौर्य सम्पन्न हुए हैं, उसी प्रकार यहाँ शारीरिक शक्ति भी कम नहीं रही है। ऐसे व्यक्तियोंकी आज भी लोग चर्चा करते हैं। बातोंके रूपमें उनकी स्मृतिको लेकर बनाए रखा गया है। यथार्थ
पात्रोंके यथार्थ चरित्र चित्रणको दृष्टिसे भी राजस्थानी बातें अपना विशेष महत्त्व रखती हैं। उनमें मानव-मनकी विविध स्थितियोंका सच्चा चित्र प्रस्तुत किया गया है। ऐसे चित्र बहुत अधिक हैं। कुछ उदाहरण देखिए
(१) केसे उपाधीयैकी बातमें जांगल के स्वामी अजैसी दहियाका कुलपुरोहित केसा है। राज्यमें उसका बड़ा सम्मान है। परन्तु वह राजाकी अनुमति प्राप्त किए बिना ही कोटके सामने तालाब बनवाना आरम्भ कर देता है । कोटके लिए यह तालाब हानिकारक हो सकता है, अतः राज अजैसी उसे रोक देता है। इसपर केसा मन ही मन बड़ा नाराज होता है और वह रायसी सांखलासे गुप्त रूपसे मिलकर षडयन्त्र रचता है। तय होता है कि केसा रायसीको जांगल का राज्य दिलवा देगा और बदलेमें उसे कोटके सामने तालाब बनवा लेने दिया जायगा। फिर कपटपूर्वक दहिया-दलके लोगोंको वर रूपमें विवाहके लिए बुलवा लिया जाता है और क्रूरताके साथ उनको आगमें जला दिया जाता है। केसा पुरोहित चालाकीसे जांगल कोटका दरवाजा भी खुलवा लेता है और उसपर सांखला रायसीका अधिकार हो जाता है। कोटके सामने तालाब बनता है। इस प्रकार केसाकी प्रतिहिंसा पूरी होती है। वह तुच्छ स्वार्थके लिए परम्परागत सम्बन्धोंको भुला देता है ।
(२) कछवाहैकी बातमें नरवरगढ़के पतनके समय बालक सोढको लेकर उसकी माता दासीके रूपमें जान बचा कर भाग जाती है और वह खोहमें मीणोंके राज्यमें पहुँचती है। ऐसी दुरवस्थामें वहाँ एक किसान-मीणा उन मां-बेटोंको दयावश अपने घरमें शरण देता है। सोढकी चर्चा खोहके राजाके पास पहुँचती है और वह उसे अपनी सेवामें बुलवा लेता है। कुछ समय बाद खोहपर शाही सेनाकी चढ़ाई होती है और मीणोंका राजा ६ लाख रुपए नकद तथा ३ लाखके बदले सोढको अपने पुत्र-रूपमें बादशाहके पास भेजकर सन्धि कर लेता है। राजा सोढको कहता है कि वह धीरज धारण किए रहे, उसे जल्दी ही छुड़वा लिया
१. राजस्थानो वातां, भाग १, पृ० ४२ । २. वात सूरिजमल री (हस्तप्रति, अनूप संस्कृत पुस्तकालय, बीकानेर)। ३. केसै उपाधीय री बात (हस्तप्रति, अ० ज० ग्रन्थालय, बीकानेर)। २५० : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रन्थ
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जाएगा। परन्तु बादशाह के सामने भेद खुल जाता है कि सोढ मीणोंके राजाका पुत्र न होकर कछवाहा राजपूत है । वहाँ बादशाह सोढको सैनिक सहायता देता है और फिर वह मीणोंको मारकर खोहपर अपना अधिकार स्थापित कर लेता है । इस प्रकार सोढ अपने शरणदाताका ही घातक बनता है । "
(३) मारू सुघारीक बातमें फूलकी मृत्युके बाद लाखा राजा बनता है और ठाकुर तथा भोमिये उससे मिलने के लिए आते हैं । वीरण राठौड़ भी वहाँ पहुँचता है । लाखा प्रसन्न होकर उसको अपनी बहिन विवाह में देने के लिए कह देता है । परन्तु यह बहिन उसकी संगी न होकर विमाता बलोचणी रानीकी बेटी है। इस सम्बन्धसे रामी नाराज होती है परन्तु उसका कोई वश नहीं चलता। वीरण विवाहके लिए आता है, उस समय उसकी बहली (गाड़ी) के तेज दौड़नेवाले रोझ (पशु) देखकर लाखा उनको मांग लेता है। ये रोझ वीरणके नहीं थे, धारा सूंघारके थे, जो वहीं साथ में था । अतः तय हुआ कि धारापर कोई दोष लगा कर उसके रोम छीन लिए जावें । उसका डेरा बलोचणी रानीकी कोटड़ी ( निवासस्थान ) में किया गया । फिर दोनों को पकड़ने का षड्यन्त्र था । बलोचणीको इसकी सूचना मिल जाती है ओर वह धाराको खबर देती है कि यदि वह उसे लेकर भाग छुटे तो प्राण बच सकते हैं । धारा मंजूर कर लेता है और वे दोनों चुपचाप बहली में बैठकर भाग जाते हैं। इसपर लाखा बड़ा क्रोधित होता है क्योंकि बलोचणी रानी आखिर उसकी विमाता तो थी ही । वह वीरणके साथ अपनी बहिन ( बलोचणों की पुत्री ) का विवाह करके उसे ससुरालके लिए विदा करते समय समझा देता है कि किसी प्रकार वह ससुरालके गांवमें जाकर अपनी माता ( बलोचणी रानी) को जरूर समाप्त कर डाले। वह इसके लिए तैयार हो जाती है और अपनी ससुराल में माताको बुलवा कर कपटपूर्वक भोजन में विष दे देती है। इस प्रकार बेवारी बलोचणी रानीकी जीवन लीला समाप्त होती है । २
(४) ठकुरे साहकी बात में एक सेठ ठकुरेके घरसे निकले हुए पुत्रसे अपना काम निकालकर उसे धोखे से समुद्रमें डाल देता है । किसी तरह लड़का बच जाता है और एक नगरमें राजाके यहाँ 'जगाली'के रूपमें नौकरी करने लगता है। समय पाकर उसे समुद्रमें डालनेवाला सेठ वहाँ आता है और जगात (चुंगी चुकाने से पूर्व यह पता लगवा लेता है कि वहाँ जगाती कौन है। सेठको सूचना मिलती है कि वहाँ वही व्यक्ति जगाती है, जो समुद्र में फेंका गया था। अब सेठ राजाके 'ओल्नू' (गानेवाले, डूम) लोगोंको दस मोहर देकर कहता है कि वहाँका जगाती उसका 'गोला' (वास) है, यह खबर राजाके पास किसी तरह पहुँचाई जावे । ड्रम लोग तैयार हो जाते हैं और गाते समय चतुराईसे राजाके सामने जगातीके बारेमें कह देते हैं कि वह तो उनका 'मांडणी' (भांड जातिकी स्त्री) के पेटसे पैदा हुआ भाई है। राजा इस सूचना बड़ा क्रोधित होता है कि जगातीने अपनी जाति छिपाई। जब जगाती को बुलवा कर पूछताछ की जाती है तो सारा भेद खुल जाता है । इस समय डूम ( गवैये ) तत्काल सेठसे प्राप्त दस मोहर निकाल कर राजा साम रख देते हैं कि सारा काम उन मोहरोंने करवाया है, जो उन्हें सेठसे मिली हैं । 3
ऊपर केवल चार बातों में से उदाहरण प्रस्तुत किए गए हैं। इस प्रकारका यथार्थरूप राजस्थानी बातों में अनेकशः देखा जाता है ।
१. कछवा है री बात (हस्तप्रति, अ० जै० ग्रन्थालय, बीकानेर ) ।
२. वरदा (७१) ।
३. ठकुर साह री बात (वातां रो झूमखो, दूजों) ।
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आदर्श और यथार्थ का मिश्रणं
राजस्थानी बातोंमें अनेक पात्रोंके चरित्र में आदर्श और यथार्थका मिश्रण प्रकट हुआ है। ऐसे पात्रों में कुछ विशेष गुण हैं तो कुछ मानवीय दुर्बलताएँ भी हैं। उदाहरण देखिए
(१) राज बीजकी बातमें लाखाका भानजा राखायच अपने मामाके पास रहता है और वहाँ उसका पूरा सम्मान है। परन्तु राखायच गुप्त रूपसे घोड़ेपर चढ़कर मूलराजके पास जाता है और उसे लाखापर आक्रमण करनेका अवसर बतला देता है। वह अपने मामा लाखासे अपने पिताको मृत्युका बदला लेना चाहता है। परन्तु जब मूलराजकी सेना आक्रमण करती है तो राखायच लाखाके पक्षमें लड़ता हुआ प्राण त्याग देता है। इस प्रकार वह लाखाके अन्तका स्वयं कारण बनकर उसके साथ ही अपना जीवन दे देता है । राखायच जानबूझ कर धोखा देनेपर भी अन्तमें स्वामिभक्ति प्रकट करता है।'
(२) राजा नरसिंहको बातमें एक घोड़ेके सम्बन्धमें विवाद हो जानेके कारण हरा अजमेर छोड़कर पठानोंकी सेवामें चला जाता है। जब पठान अजमेरपर आक्रमण करनेकी सोचते हैं तो हरा सारी सूचना गुप्त रूपसे अजमेर भेज देता है। इसी प्रकार वह चढ़ाईके समय भी अजमेरके गौड़ोंके लिए उचित परामर्श छिपकर पहुँचाता रहता है। इतना होनेपर भी जब अन्तमें युद्ध होता है तो हरा पठानोंके पक्षमें लड़ते हुए प्राण त्याग करता है। गौड़ विजयी होकर हराका संस्कार करते हैं। इस प्रकार हरा अपने स्वामीको धोखा देते हुए भी उसके लिए प्राण त्याग देता है, जो ध्यान देने योग्य है।
) देपाल घंघकी बाटमें मुलतानका बादशाह देपालसे पराजित होकर उसको अपनी बेटी विवाहमें दे देता है। फिर बादशाह अपनी बेटीको गुप्त रूपसे अपने पक्षमें करके उसके द्वारा यह मालूम करवा लेता है कि देपाल किस प्रकार मारा जा सकता है। देपालकी पत्नी अपने पतिको बातोंमें बहला कर उससे यह भेद पूछ लेती है। अन्तमें जब देपाल युद्ध में मारा जाता है तो बादशाह की बेटी उसके साथ सती होती है । इस प्रकार वह पहिले पतिद्रोह और फिर पतिभक्ति प्रकट करती है। चरित्र-विकास
राजस्थानी बातोंमें पात्रों की चारित्रिक विशेषताएं प्रायः स्थिर हैं और उनका विकास कम ही दृष्टिगोचर होता है। फिर भी कई पात्रों की मनोदशामें परिस्थितिवश विशेष परिवर्तन देखा जाता है। यही उनका चारित्रिक विकास है । उदाहरण देखिए
(१) उमादे भटियाणी की बातमें-रानी उमादे अपने पतिको एक दासीकी ओर आकृष्ट देखकर रूठ जाती है और फिर उसे मनानेके लिए अनेक प्रयत्न किए जानेपर भी वह नहीं मानती। सर्वसाधारणमें उसका नाम ही 'रूठी राणी के रूपमें प्रसिद्ध है । अन्तमें जब उसके पति राव मालदेवका देहान्त हो जाता है तो वह सती होती है और अपने जीवनका अनुभव संदेश-रूपमें प्रकट करती है कि उसकी तरह कोई स्त्री संसारमें 'मान' (रूसणो) न करे। इस प्रकार अत्यन्त आग्रहके साथ जन्म भर 'मान' पर डटी रहनेवाली उमादे अन्तमें उसकी निस्सारताके प्रति ग्लानि प्रकट करके पतिके साथ ही अपनी जीवन-लीला भी समाप्त कर लेती है।
१. राज बीज री बात (हस्तप्रति, अ० ज० ग्रं० बीकानेर)। २. बातां रो झूमखो, दूजो। ३. वातां रो झूमखो, दूजो। ४. राजस्थानी वातां, भाग १ (श्री नरोत्तमदास स्वामी) २५२ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रन्थ
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। की बातमें जब लाखा दूर देश जाता है तो अपनी प्रियतमा सोढी रानीके पास गायनके द्वारा मन बहलाने हेतु मनभोलिया नामक डूमको छोड़ जाता है । पीछेसे सोढी रानी कामातुर होकर मनभोलिया डूमको अपने महलमें रखने लगती है। यह खबर किसी तरह लाखाके पास पहुँच जाती है और एक रात वह चुपचाप आकर सोढी रानीका चरित्र देख लेता है। इस पर लाखा उसे मारनेके लिए तलवार निकालता है परन्तु अपने पूर्व वचनका स्मरण करके उसको नहीं मारता। अगले दिन सोढी रानी उसी डूमको सौंप दी जाती है। वह मनभोलियाके साथ चली जाती है। कुछ समय बाद वे दोनों पाटणमें लाखाको देखते हैं । इस समय सोढी प्रतिज्ञा करती है कि लाखाके हाथका 'सूला' खाए बिना वह अन्न-पानी ग्रहण नहीं करेगी। यह प्रतिज्ञा सुनकर लाखा अपने हाथका बनाया हुआ 'सूला' सोढीके लिए भेजता है। उसे देखते ही सोढी प्राण त्याग देती है। इस प्रकार सोढी रानी पतिको दगा देनेपर भी अन्तमें उसके व्यवहारको देखकर आत्मग्लानिके कारण अपनी जीवन-लीला समेट लेती है।'
(३) काम्बलो जोईयो और तीडी खरल की बातमें-कांवला एकदम भोले स्वभावका व्यक्ति है । यहाँ तक कि उसकी सास अपनी बेटोको उसके घर भेजनेके लिए भी तैयार नहीं होती। अन्तमें किसी तरह समझाने पर वह उसे कांबलाके साथ विदा कर देती है। जब उसका गाँव निकट आता है तो उसकी पत्ती कपड़े आदि ठीक करनेके लिए ऊँटसे नीचे उतरती है और उसे कुछ दूर खड़ा होने के लिए कहती है । कांबला समझता है कि वह अकेली आ जाएगी और स्वयं घर चला जाता है। रात पड़ जाती है और तीड़ी ससुरालका घर जानती नहीं, अतः वह रोने लगती है। इसी समय एक 'धाड़ी' उधर आ निकलता है और सारी स्थिति समझकर तीड़ीको कहता है कि ऐसे व्यक्तिके साथ उसका निर्वाह नहीं होगा। यदि वह चाहे तो उसके घर चल सकती है, जहां उसे पूरा सम्मान मिलेगा। इस पर तीडी उसके साथ चली जाती है। इधर कांबला तीडीके लिए भगवां धारण करके उसकी खोजमें निकलता है और घूमते-घूमते अन्तमें उसी गांवमें चला जाता है, जहाँ तीडी रहती है । धाड़ी की अनुपस्थितिमें उनका मिलाप होता है। जब तीड़ी देखती है कि उसके लिए कांबल ने घर छोड़ दिया है तो वह उसके साथ जानेके लिए तैयार हो जाती है और इस कार्यके लिए स्वयं तरकीब भी बतला देती है। फिर कांबला अपने बहनोईके साथ वहाँ आता है और धाड़ी को अनुपस्थितिमें वे तीडीको ले भागते हैं। इस प्रकार तीडीका मन अपने पति की मूर्खताके कारण उससे फिर जाता है परन्तु अन्तमें उसके त्यागको देखकर उसका प्रेम उमड़ पड़ता है और वह भयंकर खतरा उठाकर भी उसके साथ वापिस लौट आती है।२ , मानसिक संघर्ष
बातोंमें मानसिक-संघर्ष की अनेक परिस्थितियां प्रकट होती हैं परन्तु वहाँ इस प्रकारका मनोवैज्ञानिक चित्रण दृष्टिगोचर नहीं होता। वहाँ सीधे-सादे रूपमें घटना की ओर संकेत कर दिया जाता है और मनोभावों की सूक्ष्मताके चित्रण की ओर ध्यान नहीं दिया जाता। इस सम्बन्धमें कहीं-कहीं साधारण चर्चा भले ही मिल सकती है । उदाहरण देखिए
(१) इतरैमें नागोर ओर बीकानेर आपसमें कजियो हवो, गाँव जखाणियाँ बाबत । सो नागेर री फोज भागी, बीकानेर री फतह हुई ।......... 'सो आ खबर अमर सिंहजी नूं गई। सो सुणत सुवां कालो
१. लाखा फूलाणी री वात (हस्तप्रति, अ० ज० ग्रं०, बीकानेर) २. बातां रो झूमखो, पहलो।
भाषा और साहित्य : २५३
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मैरट हुय गयौ । हाथ पटकै, दांतां सूं हथेली नूं बटका भरै। कटारी सूं तकियौ फाड़ नांखियो । 'जे म्हारी भणा दिनां री संची जाजम बीकानेर रा खाली कर दीवी। मैं तो इहां नूं जोधपुर रे पगां संचिया था, सो हमें जोधपुर री आस तो चको दोस छ।' मुत्सद्दी अमराव हजर री धीरज बंधावै, परचावै । पण अमरसिंह तो बावल री सी बात करें।
राव अमरसिंह की ऐसी मनोदशा उस समय प्रकट की गई है, जब उसे अपनी जागीर (नागौर)से पराजयका संवाद मिलता है और शाही दरबारसे घर जाने के लिए उसे छुट्टी प्राप्त नहीं हो रही है।
(२) एकै दिन राजड़िया रो बेटो वीजड़ियो वीरमदेजी री खवासी करै छ। तिण आँख भरी, चौसरा छूटा । वीरमदेजी पूछियौ-"वीजड़िया क्यू, किण तोनें इसो दुख दीधो ?" तह वीजड़ियो कह्यो"राज, माथै धणी, मोनै दुख दै कुण ? पिण नींबो म्हारा बाप रौ मारण हारी, गढां-कोटां मांहि बड़ा-बड़ा सगां मांहे धणीयां रो हांसा रो करावणहारौ बल गढ़ माहे खंखारा करै छै नै पो छ। तीण रौ दुख आयो ।"२
इस प्रसंगमें वीजडियाका हृदय उसके पिताको मारनेवाले नींबाको राजमहलमें आरामसे रहते देखकर जल रहा है । परन्तु वह सेवक है, अतः उसकी मानसिक पीड़ा नेत्रों को राह बह चली है।
(३) अचलदासजी नूं आंख्यां हो न देखै छ, तरै ऊमांजी झीमी नूं कहियो-"हिमैं क्यों कीजसी ? एकेक रात बरस बराबर हुई छै । आखी खाधी, तिका आधो ही न पावू, इसड़ी हुई।" तर ऊमांजी झीमा नूं कहै छ-कासू कीजसू? कोइक विचारणा करणो, ओ जमारो क्यों नीसर ? जो तूं वीण वजावै, तरै रन रा मग आवै नै आगै ऊभा रहता, सो तूं अचलजी ने मोह नै ल्यावै तो तूं खरी सुघड़राय।" तर झीमी कहियो-"जो अचलदासजी नां एक बार आंख्यां देखू तो मगन करां। आंख्यां ही न देखू तो किसो जोर लागै?"3
इस प्रसंगमें सौतसे वशीभूत पतिके द्वारा परित्यक्ता पत्नी की मनोवेदना प्रकट हुई और किंकर्तव्यविमढ़ता की स्थितिने इस वेदनामें विशेष रूपसे वृद्धि कर दी है।
(४) रात रै समीमै सींधल आपरै ठिकाण पधारिया। त्यों सुपियारदे पिण कपड़ा पेहर अर महलमें सींधल कन्हैं गई। त्यों कपड़ा री सुगंध आई । त्यों सींधल कह्यौ-"आ सुवासनी काहिण री आवै छै ?" त्यों सूपियारदे बोली-"राज, मोन खबर नहीं।" इतरै सोंधल बोलियो-"ज म्हे को हवै म्ही जांणायौ ज जांणीजै बैनोई भेंट कीवी छै ।" तद सींधल चादर तांण – पौठि रह्यो अर सुपियारदे ने किम कह्यो नहीं । राति पोहर ४ उठे ही ज ठोड सुपियारदे खड़ी रही । तद सुपियारदे दूहो कह्यो
प्री सूतौ धण ओजगै, राति विहाणी जाइ।
सीधल बोल्या बोलड़ा, कहूँ नरबद नै जाइ ॥४ इस प्रसंगमें सूपियारदेको उसका पति जली-कटी बात सुनाकर उसके चरित्र पर लांछन लगाता है। और फिर वह चादर तानकर सो जाता है। सुपियारदे रात भर खड़ी हुई चिन्ता करती है। इस समय उसके
१. राजस्थानी वात-संग्रह (परम्परा), पृष्ठ १५६ । २. राजस्थानी वातां, पृष्ठ ७६-७७ । ३. पवार वंश दर्पण, परिशिष्ट । ४. सुपियारदें री वात (हस्तप्रति, श्री अ० सं० पुस्तकालय, बीकानेर) २५४ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रन्थ
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________________ हृदयमें उथल-पुथल मची हुई है। उसे अपने पतिके शब्दों पर भारी रोष है, जिसे बातमें एक दोहेके द्वारा प्रकट किया गया है। (5) जाट साहरण भाडंग माहे रहै अर गोदारो पांडो लाधड़ीयै रहै, वडो दातार / सु साहरण रे नायर (पत्नी) बाहणोवाल मलकी। सु मलकी मांही (पति) नूं क ह्यो-"जु गोदारो घणो कहावै छै / " घड़ बंधी बरसे गोदारो, बत भांडको भीजै। पांडो कहै सुणो रे लोगो, रहै सु डूमां दीजै // मांटी नुं कह्यो--"चौधरी, रसो दे, जिसो गोदारो। ता ऊपर नांव हवै। जोट तो दारू रो छाकीयो हंतो, सु चोधरण र चाबखै री दीवी। तो जाहरां कह्यो-“पांडो केरो, जो रोधी छै / " जाहणी कह्यो"धरवूडा, मैं तो बात कही थी।" जाटणो कह्यौ-"थारै माचे आवू तो भाई र आवू।" जाट सू अबोलणो घातीयौ। मास 1 पांडू गोदार नू' कहाय मेलीयो-"जु ते बदलै मोनुं ताजणो वाह्यौ।" पांडू कहायो--"जो आवै तो हैं आय लेवा।" ओर ही त मास दे हवा / ' इस प्रसंगमें बिना अपराध ताड़ित नारी की रोषपूर्ण आत्मा पुकार कर रही है। ऐसी स्थितिमें वह आत्म सम्मानके लिए सब कुछ छोड़नेके लिए तैयार हो जाती है। इस प्रकार हम देखते हैं कि राजस्थानी बातोंमें पात्रोंका एक अलग ही संसार बसा हुआ है। इस संसारमें भले-बुरे सभी तरहके व्यक्ति हैं। वहाँ छोटे-बड़े, ऊँच-नीच, बली-निर्बल आदि सभी प्रकारके लोग अपने-अपने कार्यमें व्यस्त दिखलाई देते हैं। बातों की इस दुनियामें विचरण करके यहाँके निवासियों की प्रकृति तथा चरित्रका अध्ययन करना बड़ा ही रोचक तथा रसदायक है। 1. वात राव वीकै री (हस्तप्रति, अ०० ग्रं०बीकानेर) भाषा और साहित्य : 255