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प्रति ग्राम-नगर में सामायिक मण्डल आवश्यक
साध्वी मणिप्रभा श्री...
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आज के युग में मनोरंजन के हजारों साधन नजर आ रहे वचनदोष-किसी को अपशब्द, पापकर्म का आदेश, गृहस्थ हैं। ये साधन मनोरंजन एवं समय व्यतीत तो कराते हैं लेकिन की आगता-स्वागता या क्षेमकुशलपृच्छा, गाली, विकथा (स्त्री, आत्मा में अनेक कुसंस्कार डाले बिना नहीं रहते। इसलिए खान, पान, देश एवं राजा संबंधी बातें) एवं मजाक तथा बकधार्मिक आयोजन अति आवश्यक हैं। प्रत्येक गाँव में जहाँ भी बक इनमें से किसी भी असभ्य वाणी का प्रयोग नहीं करना। सोसायटी आदि में अपने २०-२५ या इससे अधिक घरों की
| कायदोष-घड़ी-घड़ी जगह बदलना, यहाँ-वहाँ देखना, पापकारी
कायदोष-घडीसंख्या है वहाँ पर एक सामायिक मंडल तो होना ही चाहिए।
काम, आलस मरोड़ना असभ्य रूप से बैठना, भीत का टेका लेना, आज गुजरात एवं देशावरों में अधिकांश स्थानों पर शरीर का मैल उतारना, खजली-खनन, पैर पर पैर चढाकर बैठना, सामायिक मंडल दिखाई देते हैं। मारवाड़ मालवा में यह पद्धति काम-चेष्टा एवं निद्रा ये सभी काया संबंधी कुव्यापार नहीं करें। इतनी विकसित नहीं हुई है। लेकिन इन पुराने मंडलों में कितने
द्वितीय प्रतिज्ञा गणप्राप्ति रूप है - वह इस प्रकार हैही आशय दीप प्रविष्ट होने से परिणाम सही नहीं मिल रहा है। एवं जहाँ पर मंडल ही नहीं हैं वे गाँव तो बिल्कुल परिणामशून्य हैं।
सामायिक में ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र की आराधना करनी दोनों ही स्थानों में सामायिक मंडल के सही स्वरूप एवं उद्देश्य चाहिए। ज्ञानाराधना - स्वाध्याय करना, ज्ञान की पुस्तक कैसे होने चाहिए एवं सामायिक का क्या महत्त्व है यह समझें। पढ़ना, गाथा करना, गाथा सुनना, दूसरों को पढ़ाना। दर्शनाराधना 'सामायम्मि उकए, समणो इव सावओ हवइ जम्हा ।
- माला गिनना, चौबीशी बाँचना, शुभ सम्यक्त्वादि का चिंतन
करना। चारित्राराधना - कामोत्सर्ग करना, खमासमण देना, एएण कारणेणं बहुसो सामइयं कुज्जा।।।
मुहपत्ति एवं चरवले का बराबर उपयोग करना, साधु-साध्वीजी हर व्यक्ति साधु नहीं बन सकता। लेकिन सामायिक तो
की अनुमोदना करना, अपने पूर्वकृत् दुष्कृत्यों की गर्दा करना कर ही सकता है। सामायिक में श्रावक भी साधु जैसा होता है।
इत्यादि। सामायिक में साधु पणे का आस्वाद लिया जा सकता है। वह इस प्रकार है - सामायिक के मुख्य सूत्र 'करेमि भंते' में दो अपने सामायिक मंडल में ऐसी सामायिक होनी खूब प्रतिज्ञाएँ है। (१) 'सावज्जं जोगं पच्चक्खामि'यह प्रतिज्ञा आवश्यक है। प्रभु वीर ने श्रेणिक महाराजा को नरक में गिरने से सामायिक में पाप-व्यापार आदि से निवृत्ति रूप है। इस प्रतिज्ञा बचने के उपाय के रूप में पुणिया श्रावक की एक सामायिक से ३२ दोषों का त्याग किया जाना है। (२) 'जाव नियमं खरीद लेने को कहा। श्रेणिक सामायिक लेने पुणिया श्रावक के पज्जवासामि' इस प्रतिज्ञा से सामायिक में रत्नत्रयी (ज्ञान, दर्शन, यहाँ पहाँचे भी: लेकिन सामायिक बेचना पणिया श्रावक नहीं चारित्र) की आराधना करने का प्रण किया जाता है। इन दो। जानता था। दोनों सामायिक की कीमत पूछने प्रभु वीर के प्रतिज्ञाओं को बराबर समझे बिना शुद्ध सामायिक नहीं हो सकती।
समीप पधारे। श्रेणिक को तो किसी भी हालत में नरक में जाने प्रथम प्रतिज्ञा दोषत्याग रूप है - मन वचन तथा काया से बचना था, वह पूरा मगध राज्य बेचकर भी अपनी दुर्गति का के दोष का त्याग इस प्रकार है। मनदोष - शत्रु को देखकर निवारण करना चाहता था। परंतु जब भगवान् ने एक सामायिक गुस्सा, गाम गपाटे, मन में कंटाला, यश की वांछा, भय का की महिमा १ लाख सवर्ण की हाँडी के दान से भी कई गना विचार, व्यापार या रसोई संबंधी विचार, धर्म के फल में शंका अधिक बताई। आश्चर्य । कि सारे मगध का सम्राट होते हए भी एवं धर्म के फल की इच्छा इत्यादि कुविकल्प नहीं करना। श्रेणिक इतना धन सारे राज्य को बेचने पर भी नहीं दे सका। brandaran Srebren GranadaGram Gram GreenGambada porannsansansannonsenGineGiambini
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________________ - यतीन्द्रसूरिस्मारकग्रन्थ - जैन आगम एवं साहित्य - साथ ही भगवान ने बताया एक सामायिक भाव से की सभी अपनी टिकिट से यात्रा करें यात्रा में मंडल के लिए पैसा जाय तो देवलोक के आयुष्य का बंध पड़ता है। एकत्र करने का लालच बिल्कुल न करें। किसी को सामायिक ऐसी अदभत सामायिक की आराधना समढ़ में करना कराने का भाव हो तो शक्ति के अनुसार खर्च कर सकते हैं। मंडल रूप में करना, अनेक नये जीवों के लिए धर्मप्रेरक योग . परतु अपना तरफ से परंतु अपनी तरफ से कोइ माँग नहीं होनी चाहिए। दण्ड - अगर कारणवशात् सामायिक के दिन हाजिर नहीं अपनी सामायिक पुणिया श्रावक के समान बनती जाएगी। अभ्यास हो सकें तो व्यवस्था टूट न जाये तथा दूसरे भी आलस में आकर करते-करते एक दिन ऐसा भी आना चाहिए कि हमारी सामायिक सामायिक का त्याग न करें इस हेतु दण्ड रखा जाता है। दण्ड समभाव की सिद्धि-साधिका बन जाये। रुपयों का ही रखना जरूरी नहीं है। मंडल में सामायिक न हुई हो बुजुर्ग एवं मंडल के अग्रजनों का फर्ज बन जाता है कि वे तो कारण टल जाने पर उपाश्रय में आकर सामायिक करें एवं स्वयं ऐसी सुंदर सामायिक करें, जिससे बाल एवं नये धर्म में साथ में 4 पक्की माला या एकासणा या साधुपद के 27 खमा जड़ने वाले जीवों पर उसका प्रभाव पडे। याद रखें कि मंडल में खड़े-खड़ दे, या 2 रु. फाइन भरे। हाजिरी, प्रभावना, यात्रा एवं दण्ड आदि विषयों को लेकर कभी इस प्रकार शांत चित्त से की गई आराधना अनेक भव्य विवाद नहीं होना चाहिए। जीवों के लिए अनुमोदना एवं सम्यक्त्व का निमित्त बनती है। हाजिरी - इसका प्रयोजन व्यवस्था है, अनव्यस्था नहीं। प्रत्येक छोटे - बड़े जैनसंघों में इस प्रकार के सामायिक मंडल जो रत्नत्रयी के प्रचारक एवं प्रभावक बन सकें, परम आवश्यक प्रभावना - इसका प्रयोजन आराधकों की अनुमोदना है, हैं। अपने संघ के अनरूप महीने में प्रति येषमी चतर्दशी जबर्दस्ती नहीं। विशेष निर्जरा के इच्छुक प्रभावना कर सभी शुक्ल पंचमी आदि सामायिक रख सकते हैं। आराधकों के सामायिक का लाभ उठा सकते हैं। सभी संघों में इस प्रकार के विवेक पूर्ण सामायिक मंडलों यात्रा - सामायिक मंडल में कभी यात्रा का आयोजन / की खूब स्थापना हो एवं आराधना / दर्शन-शुद्धि के लिए किया जाय तो उसमें विशेष ध्यान रखें कि