Book Title: Prashnottar Vakya Ratna Sangraha Author(s): Charushilashreeji Publisher: ZZ_Anusandhan Catalog link: https://jainqq.org/explore/229562/1 JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLYPage #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० अज्ञातकर्तृक प्रश्नोत्तरवाक्यरत्नसंग्रहः सं. साध्वी चारुशीलाश्री परम पूज्य आचार्य विजयशीलचन्द्रसूरिजी पासेथी मळेली त्रण पत्रनी आ प्रश्नोत्तरवाक्यरत्नसङ्ग्रहनी हस्तप्रतिनी झेरोक्ष श्री मुनि भक्तिविजयजीना सङ्ग्रहनी (भावनगर, आत्मानन्द सभा) छे. प्रान्ते 'सं १९५९' लेखन संवतनी नोंध मले छे. दूंका छतां मार्मिक अने सरल आ प्रश्नोत्तर बोधदायक छे. अथ प्रश्नोत्तरवाक्यरत्नसंग्रहः ॥ ॥ प्रश्न० ॥ जगतमां ग्राह्य शुं छे ॥ ? ॥ उत्तर । गुरुवाक्य ॥ प्र० ॥ त्याज्य शुं ॥ ? उ० ॥ संसार कार्य० ॥ प्र० ॥ गुरु कोण ॥ ? उ० ॥ विज्ञाततत्त्व ॥ तथा ॥ जीवदयातत्पर होय ते ॥ प्र० ॥ उत्तम जनने शीघ्र कर्तव्य शुं छे ॥ ? उ० ॥ संसारवृद्धिना कार्यनुं छेदन ॥ प्र० ॥ मोक्षतरुबीज कयुं ॥ ? उ० ॥ सक्रिय सम्यग्ज्ञान ॥ अनुसन्धान- ५९ प्र० ॥ जीवने परलोक जतां पाथेय शुं ॥ ? उ० ॥ करेलुं धर्माराधन ॥ प्र० ॥ पवित्र जन कोण ॥ ? उ० ॥ शुद्ध मनवालो | प्र० ॥ निद्रावान् कोण ॥ ? उ० ॥ [अ]विवेकीजन ॥ Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जून - २०१२ ३१ प्र० ॥ विष कयुं ॥ ? उ० ॥ गुरुमां अविश्वास ते ॥ प्र० ॥ संसारमा सार शुं छे ॥ ? उ० ॥ पोतानुं वा परनुं सारं करवु ते ॥ अथवा उद्योग करवो ते ॥ प्र० ॥ मदिरापान कयुं ॥ ? उ० ॥ मोहनुं उत्पन्न थर्बु ते ॥ प्र० ॥ स्नेह कोने कहेवो ॥ ? उ० ॥ सुधर्ममां स्नेह ते ॥ प्र० ॥ चोर कोण ॥ ? उ० ॥ पंचेंद्रियना जे विषयो ते । प्र० ॥ संसारवल्ली कई ॥ ? उ० ॥ तृष्णा ॥ प्र० ॥ वैरी कोण ॥ ? उ० ॥ अनुद्योग ॥ प्र० ॥ जगतमां भय कोनो छे ॥ ? उ० ॥ रणनो ॥ प्र० ॥ घणोज अन्ध कोण ॥ ? उ० ॥ संसाररागी ॥ प्र० ॥ शूरवीर कोण ॥ ? उ० ॥ कामिनीना कटाक्षथी नहि पीडा पामे ते ॥ प्र० ॥ श्रवणीय शुं ॥ ? उ० ॥ सदुपदेश ॥ प्र० ॥ महत्तानुं मूल कयुं ॥ ? उ० ॥ अयाचना ॥ प्र० ॥ पार न पमाय एवं शुं ॥ ? उ० ॥ स्त्रीचरित्र ॥ प्र० ॥ चतुर कोण ॥ ? उ० ॥ स्त्रीचरित्रथी अखण्डित रहे ते ॥ प्र० ॥ दारिद्र कयुं ॥? Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ अनुसन्धान-५९ उ० ॥ असन्तोष ॥ प्र० ॥ लघु शुं ॥ ? उ० ॥ याचना करवी ते ॥ प्र० ॥ जीवित शुं ॥ ? उ० ॥ परहित करतां जीवq ते ॥ प्र० ॥ जाड्य ते शुं ॥ ? उ० ॥ बुद्धिमत्ता छतां विद्याभ्यासरहितत्व होय ते ॥ प्र० ॥ जाग्रत कोण ॥ ? उ० ॥ विवेकीजन ॥ प्र० ॥ निद्रा कइ ॥ ? उ० ॥ मूढपणुं ॥ प्र० ॥ यौवनधन आयु ते केवां छे ॥ ? उ० ॥ कमल उपर पडेला पाणीना टीपा जेवां छे । प्र० ॥ चंद्र तुल सीतल शुं ॥ ? उ० ॥ सुजन जननो समागम ॥ प्र० ॥ नरक कयुं ॥ ? उ० ॥ परवशता ॥ प्र० ॥ सुख शुं ॥? उ० ॥ आत्मविरति ॥ प्र० ॥ सत्य शुं ॥ ? उ० ॥ सर्व प्राणीनुं हित करवू ते ॥ प्र० ॥ जीवने वल्लभ शुं ॥ ? उ० ॥ प्राण ॥ प्र० ॥ दान कयुं ॥ ? उ० ॥ जीवोने अभयदान आपq ते ॥ प्र० ॥ मित्र कोण ॥ ? उ० ॥ जे पापथी निवृतावे ते ॥ प्र० ॥ अलंकार शुं ॥ ? उ० ॥ शील ॥ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जून - २०१२ ३३ प्र० ॥ भूषण कयुं ॥ ? उ० ॥ सत्य वाक्य ॥ प्र० ॥ अनर्थ फलदायक शुं ॥ ? उ० ॥ चंचल मन ॥ प्र० ॥ सुखवह मैत्री कई ॥ ? उ० ॥ सत्साधुनो समागम होय ते ॥ प्र० ॥ डाह्यो कोण ॥ ? उ० ॥ सर्व दुःसंगत्यागी ॥ प्र० ॥ अंध बहेरो अने मूक कोण ॥ ? उ० ॥ अकृत कार्य करनार ॥ हितवाक्य न सांभलनार अने समयानुकूल न बोलनार ॥ प्र० ॥ मरण शुं ॥ ? उ० ॥ अतिमूर्खपणुं ॥ प्र० ॥ अमुल्य शुं ॥ ? उ० ॥ जे समयमा काम आवे ते ॥ प्र० ॥ मरणान्त शल्य कयुं ॥ ? उ० ॥ प्रच्छन्न रीते अकृत कर्यु होय तो ॥ प्र० ॥ यत्न क्यां करवो ॥ ? उ० ॥ विद्याभ्यास, सदौषध अने दान तेमां ॥ प्र० ॥ अप्रीति क्यां राखवी ॥ ? उ० ॥ खलमां, परस्त्रीमां अने परधनमां ॥ प्र० ॥ अहोनिश चितवन कोनुं करवू ॥ ? उ० ॥ संसारनी असारताचें ॥ प्र० ॥ मरण पर्यंत पण कोने वैराग्य न आवे ॥ ? उ० ॥ मूर्खने, पाराधिने, गर्विष्टने अने कृतघ्नीने ॥ प्र० ॥ पूज्य कोण ॥ ? उ० ॥ सदाचरणी ॥ प्र० ॥ अधम कोण ॥ ? उ० ॥ ग्रहीत व्रतत्यागी ॥ Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्र० // जगत् कोणे जित्युं छे // ? उ० // सत्य तितिक्षावान् पुरुषे // प्र० // सुर वंदनीय कोण छे // ? उ० // परिपूर्ण दयाधर्म पालनार // प्र० // बुद्धिमान कोनाथी भय पामे // ? उ० // संसारारण्यथी // प्र० // प्राणीयो कोने वश करे छे // ? उ० // सत्य अने प्रिय वाक्य कहेनारने // तथा विनयवान ते (ने) // प्र० // सुजनने क्यां ऊभुं रहेवू // ? उ० // लाभालाभनो विचार छोडी न्यायमार्गमां ऊभं (भुं) रहेवू // प्र० // विजली समान शुं छे // ? उ० // दुर्जनसंगति अने युवति जननी प्रीति // प्र० // कया युगमां सुमनुष्यनी पण मति दुःशील आचरण करवामां तत्पर थाय छे // ? उ० // कलियुगमां // प्र० // शोचनीय शुं छे // ? उ० // कार्पण्य // प्र० // धनी, शुं प्रशंसनीय छे // ? उ० // औदार्य // प्र० // पराभव पामेला अने निर्धन- शुं प्रशंसनीय छे // ? उ० // सहनशीलपणुं // इति प्रश्नोत्तर वाक्यरत्नसङ्ग्रहः समाप्तः // // शुभं भवतु // कल्याणमस्तु // श्रीरस्तु // छ सं. 1959 छ