Book Title: Nirdosh
Author(s): Sarang Barot, Madan Sudan
Publisher: Z_Jain_Vidyalay_Hirak_Jayanti_Granth_012029.pdf
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ : मूल गुजराती कहानी सारंग बारोट नाट्य रूपान्तर : मदन सूदन निर्दोष ( एक मध्यवर्ती घर में पति पत्नी की बातचीत चल रही है।) (धीरे धीरे) : शोभना अजी सुनते हो तीन दिनों से रोहित का जापानी बन्दर नहीं मिल रहा है। दिनकर : बन्दर, वही जो जापान से जनक ने भेजा था ? शोभना : हां... दिनकर : पूरे डेढ़ सौ का खिलौना इस तरह गायब हो जाये और हम धीमें स्वर में बातें करने के सिवा कुछ न कर सकें, अब और नहीं सहा जाता। कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा । इस महीने कोई हफ्ता ऐसा नहीं गया जब घर में से कुछ न कुछ गायब न हुआ हो । शोभना : और इस हफ्ते तो दूसरी बार ऐसा हुआ है। अभी चार दिन पहले चांदी के दो चम्मच गुम हुए और अब यह बन्दर..... दिनकर : मुझे लगता है कि अब रूखी के साथ साफ-साफ बात कर लेनी चाहिए। शोभना इन चार वर्षों में हमने रूखी को कोई तकलीफ नहीं दी। तीज त्योहार पर और हर वक्त उसे अच्छे कपड़े और दूसरी चीजें देते रहे। बल्कि उसे कभी नौकर ही नहीं समझा। हमेशा उसे घर की एक सदस्य माना है। रोहित भी उससे कितना हिलमिल गया है और वह उससे । हीरक जयन्ती स्मारिका दिनकर पता नहीं क्यों अब उसकी मति मारी गयी है। इसीसे कहता हूं कि उससे साफ-साफ बात कर लेनी चाहिए । शोभना : इस तरह बातें करने से समस्या नहीं सुलझेगी, वह तो कह देगी आई मैं तो कुछ जानती नहीं हूं। दिनकर : तो फिर क्या किया जाये ? शोभना : मुझे तो कोई उपाय नहीं दीखता है। रूखी पर विश्वास कर तीन-तीन नौकर बदल डाले पर चोरी फिर भी बन्द नहीं हुई। अब तो यह बात साफ है कि चोरी के पीछे उसी का हाथ है। दिनकर : किसी न किसी तरह उसे चोरी करते हुए पकड़ना चाहिए । मगर अब भी उसके चोर होने में विश्वास नहीं होता । मैंने तो उसके कमरे की तलाशी भी ली थी। शोभना दिनकर : कब ? शोभना : रूखी रोहित को बाहर घुमाने ले गयी थी। नौकर को बाजार भेज कर मैने तलाशी ली पर कुछ हाथ नहीं लगा । दिनकर तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था और फिर चोरी की वस्तुएं कोई अपने पास नहीं रखता बल्कि ऐसी जगह रखता है। जहां कोई पहुंच न सके। शोभना : मुझे तो लगता है कि अब तक हमारा विश्वास बनाये रखने के लिए रूखी अच्छा व्यवहार करती रही और अब अपने असली रंग में आ गई है। दिनकर : मुझे तो लगता है हम एक आध छोटा-मोटा जेवर कम करने का सोचकर रूखी को रंगे हाथों पकड़ें, तब उसकी खबर लें। शोभना : हां वही ठीक रहेगा। दृश्य: 2 ( बाहर से रूखी की आवाज ) आई! आई!! रूखी शोभना : क्या है रूखी ? रूखी (पास आकर लीजिए बेन आपकी यह घड़ी रसोई घर में पड़ी थी... शोभना : अच्छा-अच्छा ठीक है, रख दे यहां और जा... ( रूखी चली जाती है) दिनकर : ( प्रवेशकर के ) शोभना ! शोभना : अभी-अभी रूखी मेरी सोने के चेन वाली घड़ी दे गयी है। मैंने जानबूझ कर रसोई में रख दी थी, लेकिन यह तो.... दिनकर : वह तो ठीक है, लेकिन मेरा सिगरेट लाइटर नहीं मिल रहा, जरा बुलाओ तो रूखी को । शोभना : रूखी... ओ रूखी... (रूखी का प्रवेश ) रूखी : जी बेन... विद्वत् खण्ड / ५८ Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिनकर : मेरा सिगरेट लाइटर देखा है रूखी ? रूखी : नहीं तो ! दिनकर : अभी थोड़ी देर पहले यहीं पड़ा था । रूखी : मैंने नहीं देखा साहब । दिनकर : रूखी, घर में आये दिन चीजें गुम होती रहती हैं यह तो तुम जानती हो न ? : हां साहब । मेरी समझ में नहीं आता कि चीजें कौन चुरा लेता है भला ? : मेरी समझ में भी यह बात नहीं आती साहब, पहले नौकरों रूखी दिनकर रूखी पर शक था पर तीन-तीन नौकर बदलने पर भी चोरी चालू है और बालू तो हाथ का साफ है। दिनकर : तो फिर चीजें जाती कहां हैं? जमीन तो नहीं निगल जाती । बालू चोर नहीं तो क्या हम चोर हैं ? रूखी दिनकर : क्या समझती हो ? रूखी : अगर इसी तरह चीजें चोरी होती रही तो मुझ पर ही शक होगा, मगर मैं इतने समय से आपके यहां काम करती हूं कभी एक पैसे की चीज भी... दिनकर : आदमी की मति फिरते देर नहीं लगती रूखी । चीजें कौन चुराता है यह हम से छिपा हुआ नहीं है। रूखी : क्या आपको मुझ पर शक है ? दिनकर : तो और किस पर शक करें ? करवी शोभना रूखी : मैं समझती हूं साहब । चोरी करने वाले ही झूठी कसमें खाते हैं। : मेरा न कोई आगे न पीछे, मैं किसके लिए चोरी करूंगी भला । पेट की खाई तो आपके द्वार पर ही भर जाती है। मैं चोर नहीं हूं। भगवान की कसम के सिवा और कोई उपाय नहीं है मेरे पास । दिनकर : तुम्हें सफाई देने की जरूरत नहीं हमने रास्ता सोच रखा दिनकर रूखी : बेन, साहब मैं भगवान की कसम खाकर कहती हूं मैने आज तक कभी चोरी नहीं की । रूखी : आप ने जो सोचा होगा ठीक ही होगा। जो सत्य होगा वह तो सामने आयेगा ही । रूखी हमने तुम्हें नौकरी से हटाने का फैसला किया है। : ठीक है साहब, आप मालिक हैं। पर इस तरह माथे पर काला टीका लगाकर न निकालें। मैं फिर कहती हूं मैं चोर नहीं । दिनकर : तुम्हारे जाने के बाद अगर चोरी बंद हो गयी तो हमें फिर किसी दूसरे विश्वास की जरूरत नहीं रहेगी। : (रोती सी ) हे राम ! इस उमर में ऐसा कलंक लगाकर मुझे किस जन्म के पापों की सजा दे रहे हो प्रभु...(सिसकती सी जाती है) मैं कल ही चली जाऊंगी... कल ही.... हीरक जयन्ती स्मारिका रोहित रूखी : ( बड़बड़ाते हुए) मैं चोर नहीं... मैं चोर नहीं । हे भगवान, मेरे माथे ऐसा कलंक क्यों लगाते हो प्रभु... क्यों लगाते हो प्रभु... शोभना : चार दिन हो गये पर बुखार जैसे बढ़ता ही जा रहा है। (अपने आप से) डाक्टर ने सन्निपात बताया है वह तो कहता था कि बचना मुश्किल है। ज्वर काबू में ही नहीं आ रहा दृश्य : 3 (रोहित घबराया सा दौड़कर आता है) : मां, मां, देखो न रूखी काकी को क्या हो गया, देखो न । (दोनों वहां जाते हैं) दिनकर : शोभना... शोभना दिनकर (बाहर से दिनकर की आवाज ) शोभना : क्या ! इधर यह बेचारी चार दिन से खाट से लगी है। दिनकर : क्या कहा डॉक्टर ने ? शोभना डॉक्टर को कोई उम्मीद नहीं है इसके बचने की कहता था अस्पताल में भर्ती कर दो, तुम क्या कहते हो ? आती हूँ... (आकर ) क्या है... ? वह मेरा सिगरेट केस नहीं मिल रहा... दिनकर : यह तो बड़ा जुल्म हो गया शोभना... शोभना शोभना रूखी दिनकर करणी दिनकर : कितनी बड़ी भूल हो गयी हमसे... मैं अभी उसे अस्पताल में भर्ती करने का बन्दोबस्त करता हूं। हां, कहीं ऐसी निर्दोष सेविका की हत्या का पाप हमारे सर न लगे। दृश्य: 4 ( अस्पताल में रूखी के पास शोभना और दिनकर) रुजी कैसी हो....? : आप की दया है। ... हम से बहुत बड़ी भूल हो गयी रूखी हमें विश्वास हो गया है कि चोरी तुमने नहीं की, हमने तुम पर नाहक शक किया, सच हमें बहुत अफसोस है। : (अपने आप से) मुझे जीवित रखने के लिए ही ऐसा कहते हैं । ( दिनकर से) साहब एक बार इज्जत गयी सो गयी, अब मेरे लिए जीना बेकार है। शोभना : हम झूठ नहीं कहते रूखी, विश्वास करो तुम अस्पताल में पड़ी हो पर घर में अब भी चोरी हो रही है। रूखी (अपने आप से) शायद सच ही कहते हो (दोनों से) तो यह भी बतला दो साहब ताकि मेरी आत्मा की सद्गति हो। दिनकर अभी हम उसे पकड़ नहीं पाये हैं पर उसका पता चलते ही हम उसे तुम्हारे सामने जरूर लायेंगे। फिर तुम ही उसे जो सजा देनी हो देना । विद्वत् खण्ड / ५९ Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रूखी : सजा तो मैं इस समय भोग ही रही हूं। दिनकर : अब ज्यादा नहीं भोगनी होगी। जरूर ही कोई बाहरी आदमी चोरी छिपे आता है या शायद शरीफ लगता बालू ही इस तरह आकर चीजें उठा ले जाता होगा। सिगरेट केस के बाद नये जूते गायब हो गये। बालू की गैरहाजिरी में ही जूते गये थे लेकिन चोरी छिपे आकर वही नहीं ले गया इसका क्या भरोसा? तुम चिन्ता न करो रूखी, अब चोर जरूर पकड़ा जायेगा चाहे बालू हो या कोई और... रूखी : उसे जब पकड़ कर आप मेरे पास लायेंगे तभी मुझे विश्वास होगा बेन। शोभना : ऐसा ही होगा रूखी, तुम जल्दी ठीक हो जाओ। रोहित तुम्हारे बिना नहीं रहता है। अगर तुम जल्दी ठीक होकर घर नहीं आई तो कहीं वही बीमार न पड़ जाये। रूखी : ना, ना, ईश्वर उसे सौ वर्ष का रखे, भगवान जरूर मेरी लाज रखेंगे। असली चोर पकड़ा जाये तो मुझे भी आपके घर की छाया नसीब हो, वहां के सिवा इस दुनिया में और कहां ठिकाना है? दिनकर : वह तुम्हारा अपना घर है रूखी... शोभना : सच रूखी, अब तुम जल्दी से ठीक हो जाओ... दिनकर : अच्छा रूखी चलते हैं... फिर आयेंगे। (दोनों का प्रस्थान) दृश्य : 5 (अस्पताल का दृश्य दिनकर और शोभना चोरी गई वस्तुओं को एक थैले में भरकर अस्पताल रूखी से मिलने आये हैं साथ में रोहित भी है।) दिनकर : देखो रूखी कौन आया है? रोहित : काकी! काकी !! रूखी : मेरे बच्चे आ- आ, मेरे पास... दिनकर : चोर पकड़ा गया रूखी। रूखी : सच? शोभना : सच रूखी, यह देखो, खोई हुई चीजें भी सब मिल गयी हैं... यह देखो। (थैला पलटती है) रूखी : (खुशी स्वर में) तो अंत में मेरे भगवान ने मेरी लाज रख ली, मेरी प्रार्थना उसने सुन ही ली। दिनकर : अरे, यह तो पूछो कि आखिर चोर कौन था ? रूखी : मुझे यह जानकर क्या करना है? जाने दो साहब अपना किया वह आप भोगेगा। शोभना : पर उसका किया तो तुम्हें भोगना पड़ रहा है रूखी, पता है चोरी कौन करता था? रूखी : कौन करता था ? दिनकर : यह बदमाश (रोहित को आगे करता है)। यह तुम्हारा रोहित! रूखी : यह! ...मेरा रोहित ! शोभना : हां रूखी, यह रोहित, जो भी चीज हाथ में आती उसी को उठाकर घर के पिछवाड़े जो पानी का होद है न उसी में छोड़ जाता था। दिनकर : आज पूजा घर से भगवान की मूर्ति उठाकर होद में डालते हुए पकड़ा गया। बालू को होद में उतारा तो खोई हुई सारी चीजें मिल गईं। रूखी : तो भगवान पानी में जाकर सारी चीजें ढूंढ़ लाये। (ठण्डी सांस भरती है।) शोभना : बोलो रूखी, अब इस चोर को क्या सजा दें? बोलो न... रोहित : नहीं काकी, मैं चोरी नहीं करता था... मैं तो होद के पानी में भस्म करता था। (सभी हंसते हैं... संगीत उभरता है।) हीरक जयन्ती स्मारिका विद्वत् खण्ड/६०