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दिनकर : मेरा सिगरेट लाइटर देखा है रूखी ? रूखी : नहीं तो !
दिनकर : अभी थोड़ी देर पहले यहीं पड़ा था ।
रूखी : मैंने नहीं देखा साहब ।
दिनकर : रूखी, घर में आये दिन चीजें गुम होती रहती हैं यह तो तुम जानती हो न ?
: हां साहब ।
मेरी समझ में नहीं आता कि चीजें कौन चुरा लेता है भला ? : मेरी समझ में भी यह बात नहीं आती साहब, पहले नौकरों
रूखी
दिनकर
रूखी
पर शक था पर तीन-तीन नौकर बदलने पर भी चोरी चालू है और बालू तो हाथ का साफ है।
दिनकर : तो फिर चीजें जाती कहां हैं? जमीन तो नहीं निगल जाती । बालू चोर नहीं तो क्या हम चोर हैं ?
रूखी दिनकर : क्या समझती हो ?
रूखी
: अगर इसी तरह चीजें चोरी होती रही तो मुझ पर ही शक होगा, मगर मैं इतने समय से आपके यहां काम करती हूं कभी एक पैसे की चीज भी...
दिनकर : आदमी की मति फिरते देर नहीं लगती रूखी । चीजें कौन चुराता है यह हम से छिपा हुआ नहीं है।
रूखी : क्या आपको मुझ पर शक है ? दिनकर : तो और किस पर शक करें ? करवी
शोभना
रूखी
: मैं समझती हूं साहब ।
चोरी करने वाले ही झूठी कसमें खाते हैं।
: मेरा न कोई आगे न पीछे, मैं किसके लिए चोरी करूंगी भला । पेट की खाई तो आपके द्वार पर ही भर जाती है। मैं चोर नहीं हूं। भगवान की कसम के सिवा और कोई उपाय नहीं है मेरे पास ।
दिनकर : तुम्हें सफाई देने की जरूरत नहीं हमने रास्ता सोच रखा
दिनकर रूखी
: बेन, साहब मैं भगवान की कसम खाकर कहती हूं मैने आज तक कभी चोरी नहीं की ।
रूखी : आप ने जो सोचा होगा ठीक ही होगा। जो सत्य होगा वह तो सामने आयेगा ही ।
रूखी
हमने तुम्हें नौकरी से हटाने का फैसला किया है।
: ठीक है साहब, आप मालिक हैं। पर इस तरह माथे पर काला टीका लगाकर न निकालें। मैं फिर कहती हूं मैं चोर नहीं ।
दिनकर : तुम्हारे जाने के बाद अगर चोरी बंद हो गयी तो हमें फिर किसी दूसरे विश्वास की जरूरत नहीं रहेगी।
: (रोती सी ) हे राम ! इस उमर में ऐसा कलंक लगाकर मुझे किस जन्म के पापों की सजा दे रहे हो प्रभु...(सिसकती सी जाती है) मैं कल ही चली जाऊंगी... कल ही....
हीरक जयन्ती स्मारिका
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रोहित
रूखी
: ( बड़बड़ाते हुए) मैं चोर नहीं... मैं चोर नहीं । हे भगवान, मेरे माथे ऐसा कलंक क्यों लगाते हो प्रभु... क्यों लगाते हो प्रभु...
शोभना : चार दिन हो गये पर बुखार जैसे बढ़ता ही जा रहा है। (अपने आप से) डाक्टर ने सन्निपात बताया है वह तो कहता था कि बचना मुश्किल है। ज्वर काबू में ही नहीं आ रहा
दृश्य : 3 (रोहित घबराया सा दौड़कर आता है)
: मां, मां, देखो न रूखी काकी को क्या हो गया, देखो न । (दोनों वहां जाते हैं)
दिनकर : शोभना...
शोभना
दिनकर
(बाहर से दिनकर की आवाज )
शोभना : क्या ! इधर यह बेचारी चार दिन से खाट से लगी है। दिनकर : क्या कहा डॉक्टर ने ?
शोभना
डॉक्टर को कोई उम्मीद नहीं है इसके बचने की कहता था अस्पताल में भर्ती कर दो, तुम क्या कहते हो ?
आती हूँ... (आकर ) क्या है... ? वह मेरा सिगरेट केस नहीं मिल रहा...
दिनकर : यह तो बड़ा जुल्म हो गया शोभना... शोभना
शोभना
रूखी
दिनकर
करणी
दिनकर : कितनी बड़ी भूल हो गयी हमसे... मैं अभी उसे अस्पताल में भर्ती करने का बन्दोबस्त करता हूं।
हां, कहीं ऐसी निर्दोष सेविका की हत्या का पाप हमारे सर न लगे।
दृश्य: 4
( अस्पताल में रूखी के पास शोभना और दिनकर) रुजी कैसी हो....?
: आप की दया है।
... हम से बहुत बड़ी भूल हो गयी रूखी हमें विश्वास हो गया है कि चोरी तुमने नहीं की, हमने तुम पर नाहक शक किया, सच हमें बहुत अफसोस है।
: (अपने आप से) मुझे जीवित रखने के लिए ही ऐसा कहते हैं । ( दिनकर से) साहब एक बार इज्जत गयी सो गयी, अब मेरे लिए जीना बेकार है।
शोभना : हम झूठ नहीं कहते रूखी, विश्वास करो तुम अस्पताल में पड़ी हो पर घर में अब भी चोरी हो रही है।
रूखी
(अपने आप से) शायद सच ही कहते हो (दोनों से) तो यह भी बतला दो साहब ताकि मेरी आत्मा की सद्गति हो।
दिनकर अभी हम उसे पकड़ नहीं पाये हैं पर उसका पता चलते ही हम उसे तुम्हारे सामने जरूर लायेंगे। फिर तुम ही उसे जो सजा देनी हो देना ।
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विद्वत् खण्ड / ५९
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