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अनुसंधान-२७
श्री मेघकुमार गीत
(संपा.) रसीला कडीआ
गति ला.द. प्राजक द्वारा मनेट हु तेमनी *. एक पत्नी
भारतीय संस्कान मळी छे अऋणी छु. प्रस्तुत
प्रस्तुत कृति ला.द. भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर, अमदावादना ग्रन्थभंडारमाथी श्रीलक्ष्मणभाई भोजक द्वारा मने मळी छे अने ते माटे तथा आ कृतिना सम्पादनमा तेमणे करेली सहाय माटे हुं तेमनी ऋणी छु. प्रस्तुत कृति विविध कृतिओना गुटकाना पाना नं. ६१ परथी लीधी छे. एक पत्नी आ प्रतना गुटकानो सूचि नं- ला.द.ले.सू. ८४६० छे. २१ कडीनी आ कृतिमां प्रशस्ति अने पुष्पिका द्वारा आपणने कर्तार्नु मात्र नाम ज 'पूनपाल' प्राप्त थाय छे. रचना संवत के लेखन संवत प्राप्त थतो नथी. लेखन मु.श्री कर्मतिलके कर्यु छे अने ते मु. श्रीकर्मसुन्दरनी वाचना माटे लखेल होवार्नु जणावेल छे.
श्रेणिक राजाना पुत्र मेघकुमार आ गीतना वर्ण्य विषय छे. श्री महावीर प्रभुनी देशना सांभळीने विरक्त बनेला श्री मेघकुमारने दीक्षा लेवार्नु मन थतां तेओ पोतानी मातानी अनुमति अर्थे माता पासे आवे छे. कई माता यौवनमा संयमनो कठिन पथ पोतानो पुत्र पसंद करे ए इच्छे ? अहीं पण माता धारिणी अने वत्स मेघकुमारनो अतिसुन्दर संवाद सुचारु शैलीमा निरूपायो छे. केवा लालनपालनमां दीकरो उछेर्यो छे ते मा सुपेरे जाणे छे. वळी क्षणिक आवेशमां विरक्तिनो रंग लाग्यो हशे जाणी माता काचलीना पात्रमा अरसविरस-स्वाद विनानं-बेस्वाद पण होय तेवं भोजन जमवानुं हशे, भोंय सूवानुं अने हाथी-घोडा-पालखीने बदले पगे चालीने भमवानुं हशे तेवी वास्तविकता सामे धरीने पुत्रने तेनो सुकोमळ देह अने उछेर जोतां अनुमति आपती नथी. आर्द्रकुमार ने मुनि नंदिषेणने पण संयममा विषय केवो दुर्जय रह्यो हतो तेनां उदाहरणो पण आपे छे अने ऋतुओनो सीधो सामनो करवानो आवशे त्यारे ज संयम अपार विषम लांगशे, ए ठसावे छे.
आम छतां, दीकराने तो वीरचरणनो रंग लागी चूक्यो छे. ते ऊखडे तेम नथी, तेथी मातानी आ तमाम दलीलोनो अकाट्य प्रतिवाद करे छे. ते कहे छे के निगोदमां हतो त्यारथी अनंत दुःखोनो साथ रह्यो छे अने आ
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भवे केटला श्वासोच्छवास लईने आव्यो छे तेने हुं जाणतो नथी. वळी जरानो भोग बनीश, गात्रो शिथिल बनशे त्यारे हुं दुर्लभ धर्मनी आराधना केवी रीते करी शकीश ? शालिभद्र, अने जंबुकुमारनां उदाहरणो छ ज ने ? केटकेटला वैभवोने छोड्या शालिभद्रे ? केटली नानी वय हती जंबुकुमारनी ?
माता लागणीओथी जीतवानो प्रयत्न करे छे तो ते कहे छे - आ जगतमां सौ स्वार्थ- सगुं छे. मने सुखरूप छे ते संयमनी अनुमति आपो तो सारुं छे. आम अनुमति लई आठ पत्नीओने पण मनावी ले छे. पति विना शृंगार शा काजे एम मानती पत्नीओने पण माताले अनुमति आपी दीधी छे एम जणावे छे. अने आ रीते श्रेणिकराजा तेओने वाजते गाजते महोत्सवपूर्वक दीक्षा आपे छे. संयमपालनथी तेओ अनुत्तर विजय विमान नामना देवलोकमां जशे. त्यांथी महाविदेह क्षेत्रमा जशे. त्यां केवळज्ञान पामी मोक्षे जशे एम अन्ते कवि संयमधर्मना फळने जणावे छे.
प्रस्तुत कृतिनी मनोहारिता माता-पुत्रना संवादमां छे. जेमां जगतनी तमाम मातानी मनोकामना, पुत्रनी चिन्ता अने वत्सलता केवी होय छे तेनां दर्शन थाय छे.
कवि श्री पूनपालकृत
श्री मेघकुमार गीत वीर जिणंद समोसर्याजी, वंदइ मेघकुमार सूणी देसण वइरागीउजी, एह संसार असार ॥१॥ हे माऊडी अनुमति दिउ हम आज, संयमसिरि हम काज, हे माउ० आंकणी वच्छ कुणइ तुं भोलविउ रे, श्रेणिक राय निरेस काइ कुणइ कुणइ दूहविउ रे, हुं नवि दिउं आदेस रे ॥२॥ जाया संयम विषम अपारि, किम निरवाहिसि भार सकोमल संयम विषम अपारि । द्वितीय आंचली आदि न(नि)गोदइंहि जिहां रुलिउ हे, सहीआं दुक्ख अनंत सासउसासहि भव पूरिआं हे, ते नवि जानुं अंत ॥३॥ हे माऊडी०
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हविडां तुं बालक अछ रे, जोवन भरीअ कुमार आठ रमणि परणावीउ रे, भोगवि सुख अपारि रे ||४|| जाया०
जनम मरण नरयां तणां हे, दुख न सहणउ जाइ
वीर जिणंद विखाणीआ हे, ते मंइ सुणीआ आज || ५ || हे माऊडी०
अनुसंधान- २७
वच्छ काचलीय जीमणउ रे, अरिस विरस आहार
भुंइ पाला नई हीडिणउं रे, जाणिसि तब हि कुमार रे ||६|| जाया०
भमतां जीव संसार माहि हे, धर्म दुहेलुउ माइ
जर व्यापई इंद्रि खिस्य हे, तब किम करणउ जाइ ॥७॥ हे माऊ०
जोवनभरी दीख्या लेई रे, आर्द्रकुमार सुजांणी
नंदषेण आगइ नडिउ रे विषय दुजय सुत जाणि रे ||८|| जाया० संय०
शिवकुमारि किम परहरी हे, भोग पंचसइ नारी
सालिभद्र जंबू तजी है, खूता नवि संसार ||९|| हे माउ०
सीआइ सी वाजूस्यइ हे, उन्हालइ लूअ साल
बरसालइ मइलां कापडां हे, जांणिसिं तबहिं कुमार रे || १० || जाया० संय०
सुबाहु प्रमुख दस जे हुआ है, पंचपंचसइ नारि
राज रिद्धि रमणी तजी हे, जांण्यउ सुख न संसारि ||११|| हे माडी०
मृगनयणी आठइ रुडइं हे, नयणे नीर प्रवाह
भरि जोवन छोरू नहीं रे, मूकि म पूत अणाह रे ||१२|| जाय० संय०
स्वरथ जागि सवि वल्लहुउ हे, सगु न किसही कोई
विषम विषउ एह सही हे, किम भोगविइ सोइ || १३|| हे माऊडी०
हंसचूलिका सेजडी रे, रूपि रमणी रस भोग
एणि सूंआला देहडी रे, किम लेइसि गिरि जोग रे || १४ || नीया० संय०
खमि खमि माइ पसाउ करीनइ, मइ दीधउ तुम्ह दोस
दिउ अनुमति जिम हुं सुखा हो, वीर चलणि लीउं दीख ||१५|| हे माउ०
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तनु फाटइं लोअण झुरइ रे, दुख न सहणउ जाइ होइ सुखी जिम तिम करउ रे, अनुमति दीधी माइ रे ॥१६।। जाया० मणि माणिक मोती तजी रे, तोडइ नवसर हार सुकुलीणी आठइ भणइ रे, हवि हम किस्यउ सिंगारू कुंअरजी ॥१७॥ कुंअर भण सुकुलीणी हे, हम संसार न काज तेह तम्हारउ जाणिस्या हे, जउ लेस्यउ संयम आज ॥१८॥ सुकुलीणी० अनु० रथ सबिका सवि सज कीआ है, कुमर धारिणी माइ श्रेणिकराव उच्छव करइ रे, चारित्र दिउ जिणवर रांउ हे स्वामी ॥१९॥संयम० तपि तनु पोषी तिहां गउ हे, अनुत्तर विजय विमाण महाविदेहई सीजसी हे, पामी केवलि नांण ॥२०॥ हे मा० इम वइराई सदा धरीजी, रमस्यइ जे नरनारी कर जोडी पूनपाल भणइजी, ते पामइ भव पार ॥२१॥ हे सांमी० संयम० इति श्री मेघकुमार गीत समाप्त: मु० कर्मतिलक लिख्यत
मु० कर्मसुंदरेण वाचितारर्थं ॥ सुभं भुआत् ।.
अघरा शब्दोनी यादी
कडी नं.
नरेश
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निरेस निगोद अनन्त जीवोनुं एक साधारण शरीर सासउसासहि श्वासोच्छवास
नरयां
नरक
काचलीय जीमणुउं
काचली-लाकडा- पात्र जमवा माटे
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________________ अनुसंधान-२७ भुंइ पाला हीडिणउ दुहेलउ जर इंद्रि खिस्यउं खूता भूमि पर सूq परिभ्रमण/ चालवा माटे प्रवृत्त थर्बु दुर्लभ जरा-घडपण इन्द्रियो खसी जाय/इन्द्रियो-गात्र शिथिल थवा खूप्यो / गरकाव थर्बु ठंडी वाशे अनाथ स्वार्थ शिबिका-पालखी सिद्ध थशे. वाजूस्यइ अणाह स्वरथ सबिका सीझसी