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श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन प्रन्थ : षष्ठम खण्ड
मराठी जैन साहित्य
* डा० विद्याधर जोहरापुरकर
(महाकोशल कला महाविद्यालय, जबलपुर)
महाराष्ट्र में जैनों की संख्या लगभग पांच लाख है। इस प्रदेश के ज्ञात इतिहास के प्रारम्भ से आज तक निरन्तर जैनों की सांस्कृतिक गतिविधियां यहां चलती रही हैं। धाराशिव (उस्मानाबाद जिला), एलोरा (औरंगाबाद जिला) आदि के गुहा मन्दिर, अंजनेरी (नासिक जिला), पातूर (अकोला जिला) आदि से प्राप्त शिलालेख तथा आचार्य वज्रसेन, कालक, पादलिप्त, भद्रबाहु, पुष्पदन्त, भूतबलि आदि की कथाओं से इस प्रदेश में जनों की परम्परा का ज्ञान होता है । इस प्रदेश की वर्तमान भाषा मराठी है । इसके पूर्वरूप अपभ्रंश में पुष्पदन्त आदि कवियों की विस्तृत रचनाएँ प्राप्त हैं। किन्तु उनके बाद लगभग चार सदियों में लिखित कोई मराठी जैन रचना अभी नहीं मिली है। इस विषय में शोधकार्य अभी नया है अतः आशा कर सकते हैं कि आगे चलकर यह अभाव दूर हो सकेगा। अब तक ज्ञात मराठी जैन साहित्यिकों की पहली दो पीढ़ियां गुजरात के ईडर दुर्ग में स्थित भट्टारकों के शिष्यवर्ग में ज्ञात हुई हैं। इनका गुरु-शिष्य सम्बन्ध निम्नांकित तालिका से स्पष्ट होगा (कोष्ठकों में मराठी रचनाओं के नाम हैं)।
भट्टारक सकलकीति
भट्टारक भुवनकीर्ति
ब्रह्म जिनदास (ज्ञात वर्ष संवत् १५०८ एवं १५२०)
उज्जंतकीर्ति
जिनदास (हरिवंशपुराण)
ब्रह्म शान्तिदास
गुणकीर्ति
गुणदास (श्रेणिकचरित्र)
(पद्मपुराण आदि)
कामराज
०
मेघराज
सूरिजन (जसोधर रास)
(सुदर्शनचरित्र)
(परमहंस कथा) इन लेखकों का रचनाकाल स्थूलत: सन् १४५० से १५०० तक कहा जा सकता है। ब्रह्म जिनदास के विस्तृत गुजराती साहित्य से प्रेरणा लेकर प्राचीन जैन कथाओं को मराठी में लाने का उद्योग इन्होंने किया। इनमें से केवल हरिवंशपुराण कर्ता जिनदास ने अपना स्थान देवगिरि (दौलताबाद, औरंगाबाद के पास) बताया है, शेष का स्थान अज्ञात है। इसी प्रकार केवल गुणकीर्ति ने अपनी जाति जैसवाल और गोत्र पुरिया बताया है, शेष का कोई व्यक्ति परिचय नहीं मिलता। ऊपर उल्लिखित बड़ी रचनाओं के अतिरिक्त गुणदास, गुणकीर्ति, मेघराज और कामराज के कुछ छोटे गीत भी मिलते हैं । गुणकीर्ति की एक गद्य रचना धर्मामृत है जिसमें श्रावकों के धर्माचरण का उपदेश है । उपयुक्त सब रचनाएँ पद्यबद्ध हैं जिनमें मराठी के लोकप्रिय ओवी छन्द का प्रयोग है। परमहंस कथा में कुछ गद्य अंश भी हैं । पद्मपुराण का एक अंश द्वादशानुप्रेक्षा स्वतन्त्र रूप में भी मिलता है। गुणकीति और मेघराज की कुछ गुजराती रचनाएँ भी मिलती हैं।
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मराठी जैन साहित्य
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कारंजा (अकोला जिला) में सन् १५०० के लगभग सेनगण और बलात्कारगण के भट्टारकों के पीठ स्थापित हुए जिनकी परम्परा बीसवीं सदी तक चलती रही। दोनों के शिष्यवर्ग में कई मराठी लेखक हुए जिनकी तालिकाएं आगे दी जाती हैं (मराठी रचनाओं के नाम कोष्ठकों में हैं)।
सेनगण के भट्टारक माणिकसेन (सन् १५४०)
कुछ पीढियों के बाद
समन्तभद्र
नागो आया (यशोधरचरित्र) (स्थान-अकोट, अकोला जिला)
छत्रसेन (आदीश्वर भवान्तर)
(सन् १७०३) (स्थान-कागल,) (कोल्हापुर जिला)
सोयरा (कर्माष्टमी कथा)
(सन् १७४६) (स्थान-देउलगाव,) (बुलढाणा जिला)
नरेन्द्रसेन
शान्तिसेन
सिद्धसेन
तानू पंडित (कुछ आरतियां)
यमासा (रविवारव्रत कथा)
(सन् १७५१) (स्थान-वासिम, अकोला जिला)
लक्ष्मीसेन रत्नकोति (उपदेशरत्नमाला) राघव
रतन (सन् १८१३ स्थान-अमरावती) (स्फुट रचनाएँ) (गुरु आरती)
उपर्युक्त रचनाओं में नागो आया और सोयरा की कृतियां ओवी छन्द में तथा शेष विविध वृत्तों में हैं। सोयरा ने अपनी आधारभूत रचना कन्नड़ भाषा में होने की सूचना दी है। छत्रसेन की कुछ संस्कृत और हिन्दी रचनाएँ भी मिलती हैं। रत्नकीर्ति की उपदेशरत्नमाला सकलभूषण की संस्कृत रचना पर आधारित है। इन्होंने नेमिदत्त की संस्कृत रचना पर आधारित आराधनाकथाकोष का लेखन शुरू किया था। इसे उनके शिष्य चन्द्रकीर्ति ने पूर्ण किया। कारंजा के बलात्कारगण की परम्परा के लेखकों की तालिका इस प्रकार है
भट्टारक धर्मभूषण (सन् १५४१)
देवेन्द्रकीति
गुणनन्दि (यशोधरचरित्र) (स्थान-मोरंबपुर, वर्तमान में इसकी पहचान नहीं हुई है)
कुमुदचन्द्र
अजितकीर्ति
विशालकीति (धर्म परीक्षा)
धर्मचन्द्र
अभयकीर्ति (अनन्तव्रत कथा) (सन् १६१६)
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श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ : षष्ठम खण्ड
धर्मभूषण
पासकीति (सुदर्शनचरित्र, सन् १६२७)
विशालकीर्ति
अजितकीति (अगली तालिका देखें)
भानुकीर्ति (कुछ पद)
धर्मचन्द्र
दयासागर (सम्यक्त्वकौमुदी,)
(धर्मामृतपुराण,) (भविष्यदत्तबन्धुदत्त पुराण)
देवेन्द्रकीर्ति
गंगादास (पार्श्वनाथ भवान्तर आदि)
(सन् १६६०)
धर्मचन्द्र
जिनसागर (जीवन्धरपुराण आदि)
(सन् १७३४)
देवेन्द्रकीर्ति
पपनन्दि
महतिसागर (स्वर्गवास सन् १८३२)
(संबोधसहस्रपदी आदि)
देवेन्द्रकीति
दिलसुख
(स्वात्मविचार) उपयुक्त लेखकों में पासलीति का मूल नाम वीरदास था। इनके कुछ गीत भी मिले हैं। ये और इनके शिष्य औरंगाबाद में गुरु द्वारा नियुक्त हुए थे। गंगादास की कुछ संस्कृत और हिन्दी रचनाएं भी मिलती हैं । जिनसागर की नौ कथाएँ, सात स्तोत्र तथा सात आरतियां भी मिली हैं। इन्होंने भी संस्कृत और हिन्दी में कुछ रचनाएँ लिखी हैं। महतिसागर की चार कथाएं मिली हैं। गंगादास, जिनसागर और महतिसागर ने विविध छन्दों में खिखा है । शेष लेखकों ने ओवी छन्द का प्रयोग किया है।
उपर्युक्त तालिका में उल्लिखित धर्मभूषण-शिष्य अजितकीति की परम्परा लातूर (उस्मानाबाद जिला) क्षेत्र में काफी विस्तृत हुई। इसकी तालिका इस प्रकार है
अजितकीति
विशालकीति (रुक्मिणीव्रत कथा)
पुण्यसागर (रविव्रत कथा)
चिमना पंडित
(अनन्तव्रत कथा आदि) (स्थान-पठन, औरंगाबाद जिला)
पद्मकीर्ति
महीचन्द्र (आदिनाथपुराण) (सम्यक्त्वकौमुदी आदि)
(सन् १६९६)
साबाजी (सुगन्धदशमी कथा) (सन् १६६५)
विद्याभूषण
हेमकीति
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देवेन्द्र कीर्ति (कालिकापुराण)
शान्तिकीति
I कल्याणकीर्ति
1 गुणकीति
चन्द्रकीर्ति
माणिकनन्दि
I
जनार्दन
(श्रेणिकचरित्र, सन् १७७५)
महीभूषण
महाकीति
I
( शीलपताका) अजित कीर्ति
1 अनीति
मराठी जैन साहित्य
सटवा
( शिवाने मिसंवाद)
I
६८१
( दशलक्षणव्रत कथा )
I भीमचन्द्र
(गुरु बारती)
उपर्युक्त तालिका में उल्लिखित विमना पंडित के कई छोटे गीत भी हैं इनकी मुनिसुव्रत विनती हिन्दी में है। महीचन्द्र की ऊपर उल्लिखित बड़ी रचनाओं के अतिरिक्त कुछ कथाएँ, स्तोत्र, गीत और आरतियाँ भी हैं। इनका काली- गोरी संवाद हिन्दी में है। यहाँ उल्लिखित गीत विविध छन्दों में हैं, पुराण और कथाएं ओवी छन्द में हैं ।
मकरन्द
(रामटेक)
( वर्णन )
सेनगण की एक परम्परा कोल्हापुर में भी थी। इसके भट्टारक जिनसेन की तीन रचनाएँ जम्बूस्वामीपुराण, उपदेशरत्नमाला तथा पुण्यास्त्रवपुराण (सन् १८२१ से १८२६) प्राप्त हैं । इनके शिष्य गिरिसुत ठकापा का पाण्डव पुराण (सन् १८५० ) प्राप्त है । ये सब ग्रन्थ ओवी छन्द में हैं ।
इन प्रमुख परम्पराओं से सम्बद्ध लेखकों के अतिरिक्त भी कुछ लेखक हैं। इनमें दामा पंडित का जम्बूस्वामीचरित्र (सन् १६७५ के करीब ) तथा लक्ष्मीचन्द्र की मेघमालाव्रत एवं जिनरात्रिव्रत की कथाएँ (सन् १७२८ ) तथा कवीन्द्र सेवक के अभंग प्रमुख हैं ।
लगभग चारंसी वर्षों के समय में (सन् १४५० से १८५०) रचित इन रचनाओं के विषय उनके नामों से स्पष्ट हैं। अधिकतर संस्कृत, गुजराती और कन्नड़ की कथाओं को मराठी में लाने का प्रयास हुआ। प्रसंगवंश कुछ तत्त्वचर्चा, आचरण सम्बन्धी उपदेश आदि भी इनमें प्राप्त होते हैं। वर्णन विस्तार में रोचकता की दृष्टि से श्र ेणिक, यशोधर, सुदर्शन, जीवंधर की कथाएँ अच्छी हैं। इनमें से कई ग्रन्थ इस शताब्दी के प्रारम्भ में छपे थे किन्तु सुसंपादित न होने के कारण मराठी साहित्य के इतिहास लेखकों का ध्यान उनकी ओर नहीं गया। उस समय जैन और जैनेतर पंडितों में सम्पर्क न होने से भी ऐसा हुआ । विगत दो दशकों में सोलापुर की जीवराज ग्रन्थमाला ने इस साहित्य के सम्पादन और प्रकाशन में अच्छा योग दिया है। श्री सुभाषचन्द्र अक्कोले का इस विषय पर शोध-प्रबन्ध 'प्राचीन मराठी जैन साहित्य' सुविचार प्रकाशन मंडल, पूना-नागपुर ने प्रकाशित किया है। अधिक विवरण जानने के लिए विद्वानों को उसे देखना चाहिए।
माधुनिक मराठी में जंग लेखकों की रचनाएँ विविध रूपों में प्रकाशित हुई है। सोनापुर के सेठ हीराचन्द नेमीचन्द दोशी ने सन् १८८४ में जैन बोधक मासिक पत्र के प्रकाशन से इस कार्य का शुभारम्भ किया । यह पत्र अब साप्ताहिक रूप में चल रहा है। दूसरा दीर्घजीवी पत्र प्रगति जिनविजय दक्षिण महाराष्ट्र जैन सभा का मुखपत्र है जो सन् १९०१ में शुरू हुआ था बाहुबली (जिला कोल्हापुर) से श्री माणिकचन्द मौसीकर के सम्पादन में मासिक सम्मति ने गत वर्ष अपनी रजत जयन्ती मनाई। कुछ पत्रिकाएँ कुछ वर्ष ही चल पाई किन्तु अपने समय में उनका काफी महत्त्व रहा। इनमें जैन विद्यादानोपदेश प्रकाश, वर्षा (१८९२), जैन भास्कर, वर्धा (१८६८), वन्दे जिनवरम्, बार्शी (१९०८ ) सुमति, वर्षा (११२), जैन भाग्योदय, प्रभावना ( इनका निश्चित वर्ष ज्ञात नहीं हुआ) उल्लेखनीय है। अतिशीघ्र कवि
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________________ * 682 श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ : षष्ठम खण्ड मारुतिराव डांगे की 'श्री पुष्करमुनि जी जीवन आणि विचार गंगा' एक सर्वश्रेष्ठ रचना है। इसमें विविध छन्दों में उपाध्याय श्री पुष्करमुनि जी के जीवन और विचार पर गहराई से चिन्तन किया गया है / कवि की प्रताप पूर्ण प्रतिमा के सर्वत्र संदर्शन होते हैं। आचार्यप्रवर आनन्द ऋषिजी महाराज पं० प्रवर सिरेमल जी महाराज, पं० प्रवर विनयचन्द जी महाराज, देवेन्द्र मुनि जी शास्त्री के लेख व पुस्तकें मराठी साहित्य में प्रकाशित हुई हैं / राजेन्द्र मुनि शास्त्री की 'भगवान 'महावीर जीवन आणि दर्शन' लघु कृति होने पर भी महावीर के जीवन-दर्शन को समझने में अत्यन्त उपयोगी है। सेठ हीराचन्द नेमीचन्द ने पुरातन संस्कृत ग्रन्थों के अनुवाद कार्य का भी शुभारंभ 'रत्नकरण्ड' से किया / मध्ययुगीन लेखकों ने जहाँ भावानुवाद की पद्धति अपनाई थी वहाँ आधुनिक अनुवादकों ने शब्दशः अनुवाद को महत्त्व दिया। महापुराण, आप्तमीमांसा आदि अनेक ग्रन्थों का अनुवाद कल्लाप्पा शास्त्री निटवे, कोल्हापुर ने प्रकाशित किया। अनुवाद ग्रन्थों की सूची काफी लम्बी है, जो विस्तारभय से नहीं दी जा रही है। कुछ अनुवादकों ने विस्तृत व्याख्या की शैली अपनाई। पं० जिनदास शास्त्री फडकुले की दशभक्ति और स्वयम्भूस्तोत्र की व्याख्याएं उल्लेखनीय हैं / आपने अन्य अनेक ग्रन्यों के अनुवाद किये हैं। आधुनिक समीक्षात्मक व्याख्या का सुन्दर उदाहरण श्री बाबगौंडा पाटील का रत्नकरण्ड का संस्करण है / पं० फडकुले की पद्यानुवाद में विशेष रुचि है / पद्यपुराण, आदिपुराण आदि का उन्होंने पद्य में अनुवाद किया है / दूसरे उल्लेखनीय पद्यानुवादक श्री मोतीचन्द गांधी 'अज्ञात' हैं / कुन्दकुन्द, पूज्यपाद, योगीन्दु आदि आचार्यों के ग्रन्थों का आपने पद्य में अनुवाद किया है। हरिषेण कथाकोश, कुरल काव्य आदि का गद्य अनुवाद भी आपने किया है / हाल के कुछ वर्षों में पं. धन्यकुमार भोरे के समयसार और प्रवचनसार के अनुवाद उल्लेखनीय हैं। जैनेतरों और जनधर्म के प्रारम्भिक जिज्ञासुओं के लिए सरल परिचय के रूप में कुछ ग्रन्थों की रचना हुई जिनमें श्री रावजी नेमचन्द शहा का जैन धर्मादर्श उल्लेखनीय है / 50 कैलाशचन्द्र का 'जैनधर्म' और डा. हीरालालजी का 'भारतीय संस्कृति में जैनधर्म' का योगदान भी मराठी में अनुवादित हुए हैं / बालकों के लिए क्रमबद्ध अध्ययन की दृष्टि से सेठ रावजी सखाराम दोशी के बालबोध जैनधर्म के चार भाग कई दशकों तक उपयुक्त सिद्ध हुए हैं / पाठ्य पुस्तकों के रूप में छहढाला, द्रव्यसंग्रह, रत्नकरण्ड, तत्त्वार्थसूत्र के कई मराठी संस्करण निकले हैं। बाल पाठकों के लिए जैन इतिहास की अनेक कथाएँ श्री मगदूम की वीर ग्रन्थमाला, सांगली से प्रकाशित हुई। हाल के वर्षों में श्री सुमेर जैन, सोलापूर ने करकण्डु आदि अनेक कथाओं का ललित मराठी रूप प्रस्तुत किया है / जीवराज ग्रन्थमाला ने भी श्री अक्कोले की महामानव सुदर्शन, पराक्रमी वरांग आदि कथाएँ प्रकाशित की हैं / हमने कुवलयमाला कथा का मराठी साररूपान्तर किया जो सन्मति प्रकाशन, बाहुबली से प्रकाशित हुआ है / पुरातन कथाओं को काव्य के रूप में भी प्रस्तुत किया गया है। इस दिशा में श्री दत्तात्रय रणदिवे ने वर्तमान शताब्दी के प्रथम चरण में काफी ख्याति प्राप्त की / आपकी गजकुमारचरित, कुलभूषण देशभूषणचरित आदि कविताएँ प्रकाशित हुई। आपने स्वतन्त्र कथाओं पर अनेक उपन्यास भी लिखे / विगत दो दशकों में श्री जयकुमार क्षीरसागर ने जीवन्धरचरित आदि काव्य ग्रन्थ लिखे हैं। कविता के माध्यम से धर्मतत्त्वों की चर्चा का एक उल्लेखनीय प्रयास सोलापूर की पंडिता सुमतिबाई शहा की 'आदिगीता' में मिलता है / नाटकों के रूप में भी कुछ कथाएं प्रस्तुत हुई है। इनमें श्री नेमचन्द चवडे रचित सुशील मनोरमा, श्री गणपत चवडे रचित गर्वपरिहार आदि इस शताब्दी के प्रथम चरण में छपे थे। विगत दो दशकों में भी रत्नाची पारख (श्री सुमेर जैन), शील सम्राज्ञी (श्री हेमचन्द्र जैन) आदि नाटक प्रकाशित हुए हैं / गायन के लिए उपयोगी पदों की कई छोटी-छोटी पुस्तकें भी लिखी गई / इनमें 'रत्नत्रय मार्ग प्रदीप','जिन पद्यावली' (अनन्तराज पांगल), जैन भजनामृत पद्यावली (तात्यासाहब चोपडे), जिनपद्यकुसुममाला (माणिकसावजी खंडारे), पद्यकुसुमावली (शांतिनाथ कटके) आदि उल्लेखनीय हैं। आधुनिक मराठी जैन साहित्य का पूरा लेखा-जोखा तो श्रमसाध्य कार्य है, फिर भी हमने जहां तक संभव हो सका प्रमुख प्रवृत्तियों का परिचय देने का प्रयत्न किया है। पर यहाँ एक बात स्मरण रखनी चाहिए कि मराठी साहित्य की श्री वृद्धि में जितना दिगम्बर परम्परा के विद्वानों का योगदान रहा है उसी तरह श्वेताम्बर परम्परा के मनीषियों का भी योग रहा है, पर मुझे श्वेताम्बर साहित्य के सम्बन्ध में विशेष परिज्ञान न होने से उनका मैं यहां पर परिचय नहीं दे सका हूँ अतः क्षमाप्रार्थी हूँ। इसी प्रकार पुरानी मराठी के लेखकों की भी पूरी गणना यहाँ नहीं की गई है छोटी-छोटी रचनाओं के लेखकों का उल्लेख छोड़ दिया गया है / आशा है कि इस सामान्य परिचय से जैन साहित्य के विशाल मराठी के योगदान की कुछ प्रतीति हो सकेगी।