Book Title: Kriyavadi Adi 363 Pakhandi Swarup Stotra
Author(s): Kalyankirtivijay
Publisher: ZZ_Anusandhan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रियावादी-आदि ३६३ पाखण्डी-स्वरूप स्तोत्र सं. मुनि कल्याणकीर्तिविजय नव गाथाना प्राकृतभाषामय आ नानकडा स्तोत्रमा भगवंतने विज्ञप्ति करवाना मिषे, महावीर प्रभुना समवसरणमां आवता ३६३ पाखंडिओk स्वरूप तथा गणना दर्शावी छे । ३६३ पाखंडिओमा क्रियावादी-१८० अक्रियावादी-८४ अज्ञानवादी६७ अने विनयवादी-३२ छ । क्रियावादीना १८० भेदोनी गणना आ प्रमाणे दर्शावी छे जीव स्वतः परत: एम बे प्रकारथी छे (२), ते पण नित्य तथा अनित्य छे (२x२=४), ते पण काल-नियति-स्वभाव-ईश्वर तथा आत्मा एम पांच कारणथी छे (४४५=२०) । आ रीते नव तत्त्वने गणवाथी (९४२०=१८०) १८० भेद क्रियावादीना थाय छे । अक्रियावादीना ८४ भेद आ प्रमाणे छे - जीव स्वत: परत: एम वे प्रकारथी नथी (२), ते पण कालयदृच्छा-नियति-स्वभाव-ईश्वर- आत्मारूप छ कारणथी नथी (२x६=१२) । आ रीते पुण्य-पाप सिवायना सात तत्त्वने गणवाथी (७४१२=८४) ८४ भेद अक्रियावादीना थाय छे । अज्ञानवादीना ६७ भेद आ प्रमाणे छे - सत्-असत्-सदसत्-अवक्तव्य-सदवक्तव्य-असदवक्तव्य-सदसदवक्तव्यरूप सात भांगामां नव तत्त्वने गणवाथी (९४७-६३) भेद थाय । तेमां सदुत्पत्ति-असदुत्पत्ति- सदसदुत्पत्ति-अवक्तव्यउत्पत्ति ए ४ भेद उमेरवाथी (६३+४=६७) ६७ भेद अज्ञानवादीना थाय छे । विनयवादीना ३२ भेद आ प्रमाणे छे - देव-नृप-यति - ज्ञाति--स्थविर-बालक-पिता-माता आ आठनो मनवचन-काया तथा दान रूप चार भेदे विनय करवाथी (८x४=३२) ३२ भेद विनयवादीना थाय छे । आ रीते गणना दर्शावी कर्ता स्तोत्रना अंते विनंति करे छे के-“हे स्वामिन् ! आप एवं करो के जेथी हवे पछी मने आ पाखंडिओ बाधा न Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-२१ पहोंचाडे / " . स्तोत्रनी शरुआतमां सिरिवज्जसेणपणयं ए पद छ / ते उपरथी एवं अनुमान थई शके छे के आ स्तोत्रनी रचना कोई वज्रसेनमुनिना शिष्य मुनिए करी हशे / अलबत्त, जैन परंपरामां वज्रस्वामिना शिष्य वज्रसेनमुनि प्रसिद्ध छे ते नोंधवा लायक छ ! आ स्तोत्रनो रचना संवत् जणायो नथी / क्रियावादि-आदि 363 पाखण्डस्वरूप स्तोत्र सिरिवज्जसेणपणयं तणयं सिद्धत्थ-तिसलदेवीणं / पाखंडतिमिरनासण-सूरं वीरं नमसामि // 1 // सामी ! तुह मयरहिओ भोलविओ हं कुमग्गरूवेहिं / पाखंडविसेसेहिं तिसयतिसट्टेहि ते य इमे // 2 / / असीयसयं किरियाणं अकिरियवाई होइ चुलसीइ / अन्नाणीण सत्त(त)ट्ठी वेणइयाणं च बत्तीसा / / 3 / / अस्थि जिओ सो परओ निच्च-अणिच्चो य कालओ निअओ / संसहावेसर-आया नव-पयगण असीयसओ किरिया // 4 // नत्थि जी(जि)ओ सौ परंओ काल-जइच्छा-नीअं सहाँवओ / ईसरे-आंया सगतत्तसंगुणा किरिय चुलसीई // 5 // सर्य-असंयो-भय-वर्तव्य-सयवत्तव्यो य असर्यवत्तव्यो / तदुभयवत्तव्वजी(जि)ओ नवपयगुणिया य तेवट्ठी // 6 // सर्यभाव-अर्सयभावा तर्दुभय-अवत्तव्वभाव-उप्पत्ती / इय चउजुअ सत्तठी भेया अन्नाणवाईणं // 7 // मण-वयण-कायदाणे सुर-निव-जइ-नाइ-थैर-अंवमेसु / पिय-माइसु अट्ठ चउगुण बत्तीस विणयवाईणं / / 8 / / इय तिसय-तेवडा पाखंडा च(य) जं कुग्गहगहीया / तं कुण जह मं सामी पुणो वि बाहंति नो एए // 9 // // इति श्रीस्तवनसम्पूर्णम् / /