Book Title: Jin Mandir me Pravesh aur Puja ka Kram Author(s): Ajaysagar Publisher: Z_Aradhana_Ganga_009725.pdf Catalog link: https://jainqq.org/explore/229247/1 JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLYPage #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २ जिनमंदिर में प्रवेश और पूजा का क्रम 'पहेलुं ज्ञान ने पछी किरिया, नहि कोई ज्ञान समान रे...' १. दूर से जिनालय का ध्वज देखते ही दोनों हाथ जोड़कर मस्तक नमा कर 'नमो जिणाणं' कहे. २. ३. ४. ५. ६. ७. १४ ८. प्रथम निसीहि बोलकर जिनालय के मुख्य द्वार से प्रवेश करें. (इस निसीहि से संसार संबंधी सभी कार्यों का और विचारों का त्याग होता है.) परमात्मा का मुख देखते ही दो हाथ जोड़कर मस्तक पर लगाकर सिर झुकाकर 'नमो जिणाणं' कहें. जीव हिंसा न हो उस प्रकार से तीन प्रदक्षिणा दें. पुरुष वर्ग परमात्मा की दाई ओर तथा स्त्री वर्ग बाई ओर खड़े रहकर कमर से आधा अंग झुकाकर 'अर्धावनत प्रणाम' करके मधुर कंठ से स्तुति बोले. आठ मोड ( तह) वाला मुखकोश बाँधकर बरास केसर अपने हाथ से घिसने का आग्रह रखें. 'परमात्मा की आज्ञा मस्तक पर चढाता हूँ ऐसी भावना के साथ पुरुष वर्ग दीपक की शिखा या बादाम के आकारका और स्त्रीवर्ग समर्पण भावना के प्रतीक जैसा सौभाग्यसूचक गोल तिलक करें.. आठ मोड ( तह) वाला मुखकोश बाँधकर केसर, पुष्प धूप से धूप कर दूसरी निसीहि बोलकर गर्भगृह में प्रवेश करें. ९. प्रतिमाजी पर से निर्माल्य निकालकर मोरपींछी करें. १०. पानी के कलश से मुलायम भीने वस्त्र से प्रभुजी के अंग पर रहा हुआ केसर दूर करे. वालाकुंची का उपयोग हितावह नहीं है. फिर भी आवश्यक हो तो ही करें. ११. पंचामृत से प्रभुजी का अभिषेक करे. (अभिषेक करते हुए घंटनाद, शंखनाद करे, दोहे बोले, चामर दुलाये. फिर जल से अभिषेक करे.) १२. जल से प्रभुजी को स्वच्छ कर हलके हाथ से प्रभुजी को तीन अंगलूछने करे. (जरूरत हो तो वालाकुंची का उपयोग करें.) १३. बरास चंदन का विलेपन करें. धर्म से खिलवाड़ मत करो. उससे पाप ही नहीं अत्यंत पापानुबंध भी होता है. Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 14. फिर क्रमशः चंदन पूजा, पुष्प पूजा करें. 15. प्रभुजी को मुकुट, हार आदि आभूषण चढ़ाने रूप आभूषण पूजा करें. 16. गर्भगृह के बाहर खड़े रहकर धूप पूजा और दीपक पूजा करें. 17. चामर नृत्य करें.. पंखा ढोले, दर्पण में प्रभुजी का दर्शन करें. 18. क्रमशः अक्षत पूजा, नैवेद्य पूजा और फल पूजा करें. 19. नाद पूजा के रूप में घंटनाद करें. 20. योग्य स्थान पर अवस्थात्रिक भायें. 21. तीन बार दुपट्टे से भूमि की 'प्रमार्जना' कर... तिसरी निसीहि बोलकर चैत्यवंदन करें. 22. दिशात्याग, आलंबन मुद्रा और प्रणिधान त्रिक का पालन करें. 23. चैत्यवंदन पूरा करने के बाद 'पच्चक्खाण' लें. 24. विदा होते समय स्तुति बोले. 25. अक्षत, नैवेद्य, फल, बाजोट, पूजा के उपकरण योग्य स्थान पर रखें. 26. अंत में प्रभुदर्शन तथा पूजन से संप्राप्त हर्ष को व्यक्त करने के लिये धीरे से 'घंट' बजायें. 27. प्रभुजी को पीठ न हो वैसे जिनालय से बाहर निकले. 28. न्हवण (स्नात्र) जल लें. 29. चौतरे पर बैठकर आँखें बंद कर तीन नवकार का स्मरण कर हृदय में भक्तिभावों को स्थिर करें. 30. आज जो सुकृत हुआ है उसके आनंद के साथ और प्रभु विरह के दुःख के साथ गृह के प्रति गमन करें. - - - - - - - - - - - / गाय का शुद्ध घी नित्य मंदिर में समर्पित करना.. / घी के दीये से- (1) अज्ञान दूर होता है (2) प्रभु को जो अंजन किया होता है वह तेज घटता नहीं है (3) शुद्ध प्राण-ऊर्जा से साधक पुष्ट | होता है. लाईट सुविधा जनक होगी, फायदे जनक हरगीज नहीं. / ---------------------1 अनुबंध की तुलना में बंध यह बड़ी सामान्य चीज है.