Book Title: Heervijaysurini Sazzaya Author(s): Mahabodhivijay Publisher: ZZ_Anusandhan Catalog link: https://jainqq.org/explore/229643/1 JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLYPage #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीहीरविजयसूरिनी सज्झाय - सं. मुनि महाबोधिविजय भूमिका : ७ कडीनी आ रचनामां जगद्गुरश्री हीरविजयसूरिमहाराजना गुणानुवाद थया छे. कृतिनी रचना श्रीहर्षविमलना शिष्ये करी छे. कळशमां आवती पंक्ति 'जयविमलकारक' थी एवं अनुमान करी शकाय के आ कृति श्रीजयविमलमुनिए रची होवी जोईए । कृतिमां रचना संवतनो उल्लेख नथी । प्रायः राधनपुरना को'क ज्ञानभंडारमां सचवायेला छूटा हस्तलिखितपत्रोमांथी आ रचना प्राप्त थई छे. लंबचोरस पत्रमा ऊभी लखायेली आ कृतिनी प्रत्येक पंक्तिमां लगभग १५ थी १६ अक्षर छे. अक्षरना मरोड परथी एवं अनुमान थाय छे- कृति प्राय: १८मा सैकामां लखायेली छे, अने ते श्रीजयविजयगणीए लखी छे. कृति पूर्ण थया पछी तरत ज जैनेतर दर्शनना देवी देवतानी स्तुति लखाइ छे, जे श्रीजयविजयगणीना हाथे ज लखायेल छे. श्रीहीरविजयसूरिनी सज्झाय वीरविजणेसर त्रिभुवनि चंद प्रणमी निजगुरु धरी आणंद, \णसंउ तपगच्छगुणनिधान श्रीहीरविजयसूरि युगहप्रधान ॥ १ ॥ तप-संयम नित अंगी धरी पाली जिनवर आण्या खरी, जिन चोवीसइ धरि मनि ध्यान ॥ श्रीहीर० २ ॥ टालिइ पंच प्रमादह जेह उपशम संवर आणि देह, सुविहित साधु दीइ बहुमान ।। श्रीहीर० ॥ ३ ॥ Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [8] कुमतद्वंदवारणकेसरी मिथ्यातिमिर हरि यमहरी वादीजनना मोड्या मान / श्रीहीर० 4 / / ओशविंश उदयो जगीभाग सूत्रअरथ परंपारीनो जाण, आपी भवीयण समकितदान / श्रीहीर० // धन नाथी जिणि उअरी धर्यो धन कुंरा कुलि तुं अवतर्यो, जिनशासनि जिणई लाधुं मान / श्रीहीर० / / श्री आणंदविमल सूरि महिमावंत श्रीविजयदान भगवंत, श्री हरखविमलसीस करइ गुणगान / श्री हरी. // कलस // प्रधान पंडित महीअ मंडित कुमतिखंडन सुरगुरो गुरुभाव निरमल करी मंगल नारीअपच्छर जयकरो जयविमलकारक भव्यतारक मूरतिमोहन सुरतसे तपगच्छदिनकर संघसुखकर जयो श्रीहीरविजय सूरीश्वरो / / 8 / / इति श्री हीरविजयसूरिनी सज्झाय समाप्त // गणिजयविजयलिखितं || श्री : //