Book Title: Hansrajposal Dhulbandh
Author(s): Suyashchandravijay, Sujaschandravijay
Publisher: ZZ_Anusandhan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥श्री हंसराजपोसालधुलबन्ध । (गन्धारनी प्राचीनता) सं. मुनिसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयौ भरूचथी २६ कि.मी. दूर समुद्रना किनारे गन्धार गाम पासे गन्धार तीर्थ आवेलुं छे. एक काळे आ नगरनी बंदर तरीके सारी ख्याति हती. देशपरदेशनो माल अहींना बजारोमां ठलवातो तेथी अहीं वेपारीओनी भीड रहेती. नगरनी आवी समृद्धिना कारणे सहुकोइनी नजर अहीं रहेती. आ नगर केटलुं प्राचीन हशे ते तो शोधनो विषय छे. छतां "सं. ७६९-७० मां सिन्धनो गवर्नर हासम बिन अमरु तघलखी नौका वाटे गन्धार आव्यो, तेणे मूतिओनो नाश कर्यो, तेमज मन्दिरो तोडी मस्झिद बनावी" आ मुजबनी नोंध आ नगरी माटे मळे छे. प.पू. जगद्गुरु हीरविजयसूरिजीए पण आ नगरमा पोताना विशाल समुदाय साथे चातुर्मास कर्यानी नोंध मळे छे. वळी आ नगरीनी प्राचीनताना पुरावा रूपे आजे पण आसपासना विस्तारमाथी पुरातत्त्वावशेषो मळी रहे छे. मन्दिरो : __ अहिं प्राचीन बे-चार(?) जिनमन्दिरो हता. १. श्रीमहावीरस्वामी भगवाननुं अने २. अमीझरा पार्श्वनाथ भगवान-. तेमां महावीरस्वामी भगवान, मन्दिर पूर्वे लाकडानुं हतुं ते सं. १५०० मां बन्यानो उल्लेख मळे छे. ते मन्दिरनो जीर्णोद्धार सं. १८१०मां हठीसिंग केसरीसिंगना धर्मपत्नी हरकोइबाईए कराव्यो हतो. बीजुं पार्श्वनाथ प्रभुजी, जिनालय कोणे कर्यु तेनो विशेष उल्लेख मळतो नथी. ३. विजयदेवमाहात्म्य नामना काव्यमां सं. १६४३ना जेठ सुद १०ना इन्द्रजी नामना श्रावके श्रीवीरप्रभुना चैत्यनी प्रतिष्ठा पू. विजयदेवसूरिजीना हाथे कर्यानी नोंध छे. ४. तो बीजी बाजु खंभातना राजिया अने वाजिया श्रावके करेला वीरप्रभुना चैत्यनी आजे नोंध सरखी पण मळती नथी. गन्धार चैत्यपरिपाटी : सं. १९१९मां भरूच नगरथी गन्धार बंदरनो पू. हुकुममुनिजीए संघ काढ्यो हतो. ते वखते तेमणे गन्धारनगर-चैत्यपरिपाटी नामनी कृतिनी रचना Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान ५० (२) करी हती तेमां गामना मूळनायक तरीके श्रीवीरप्रभुना जिनालयनी नोंध करता मूलगभारामां आरसना ३६ जिनबिम्बने, तथा ७ धातुनी प्रतिमाने, तेमज रंगमण्डपमां ६ अने ७ एम कुल ५२ बिम्बने जुहार्यानुं लखे छे. त्यारबाद गामनी बहार रहेला अमीझरा पार्श्वनाथना जिनालयने भेट्यानुं लखे छे. आना उपरथी एटलुं कही शकाय के १९१९ सुधी गाममां वीरप्रभुनुं जिनालय मध्यमां हशे. पछी गामनो विस्तार अमीझरा पार्श्वनाथना जिनालयनी आगळ वधतो गयो हशे. एम करता आलुं गाम अमीझरा पार्श्वनाथना जिनालय तरफ थइ जता वीरप्रभुनुं देरासर निर्जन विस्तारमा थता ते देरासरनी प्रतिमा अहीं लवाइ हशे. बाकी आ विगतो पर पुरतो प्रकाश पाडवो घटे. उपाश्रय : गन्धारगामथी लगभग थोडे दूर रहेला खाली जिनालयनी बाजुमां एक भीत छे. जे हीरसूरि म.सा.ना उपाश्रयनी भीतना नामथी ओळखाय छे. हीरसूरि म.सा. ए अहीं चोमासुं कर्यानी नोंध मळे छे. एटले एटलुं चोक्कस के आ गाममां प्राचीन उपाश्रय हशे. परंतु काळना प्रभावे तेनो नाश थता आटलो भाग शेष रह्यो होय एवं बने. कृतिनो परिचय : प्रस्तुत कृतिमां कविए गन्धार श्रीसंघना उपाश्रय अंगेनी एक ऐतिहासिक माहिती पूरी पाडी छे. उपाश्रय कोणे कराव्यो ? प्रथम चातुर्मास कोणे कर्यु ? इत्यादि बाबतो पर कविए आपणुं ध्यान दोर्यु छे. कृतिनो सारांश : वीर प्रभुना चरणकमलमां नमस्कार करीने गन्धार नगरना श्रावकोनुं कविए शरूआतनी ३ गाथामां वर्णन कर्यु छे. त्यार पछीनी गाथाथी पौषधशाळा कराववा माटे संघना मनोरथनुं तेमज हंसराज संघपतिना गुणोनुं वर्णन कर्यु छे. पौषधशाला कराववा माटेनी तैयारीनुं तथा कादी (काजी)न समजता पौषधशाला माटे प्राणनी परवा कर्या विना खान क्षितिपतिने भेटी हंसराजे कार्यने पूरुं कराव्यु ए वातनी नोंध करी ११मी गाथाथी पौषधशालानी नकशी, कोरणीनुं वर्णन कवि करे छे. अन्त्यनी गाथाओमां उपाश्रय तैयार थया पछी प्रथम Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मार्च २०१० चातुर्मासने माटे वृद्धतपागच्छीय श्रीरत्नसिंहसूरिना शिष्य उदयधर्मने तेडावी चातुर्मास कराव्यानी अने अन्त्य गाथामां फरी वीरप्रभुने प्रणमी पोताना गुरुभगवन्तोने याद करी बोधिबीज पामवानी कवि वात करे छे. कर्तानो परिचय : ___ कर्ता मुकुन्द वृद्धतपागच्छनी शाखामां थयेल रत्नसिंहसूरिजीना (हस्त दीक्षित) शिष्य उदयधर्म गणिना शिष्य छे. उदयधर्मजी पोते समर्थ विद्वान हता. तेमणे सं. १५०७मां वाक्यप्रकाश औक्तिकनी, तथा उपदेशमाळानी ५१मी गाथानुं शतार्थी विवरण बनाव्युं हतुं. बीजा पण महावीरस्वामी स्तोत्र, उपदेशमालाकथानकछप्पइ आदि ग्रन्थोनी रचना करी हती. तेमना शिष्य कवि मुकुन्द विषे अन्य कोइ परिचय प्राप्त थतो नथी, परंतु तेमनी अन्य एक रचना "सा. भावलक्ष्मी धुल" नामनी प्राप्त थाय छे. जे आगळ प्रकाशीत करी छे. काव्यमा प्रयुक्त बे शब्दो : काव्यरचनामां कर्ताए धुल - धवल नामना काव्य प्रकारनो आशरो लीधो छे. साथे राग तरीके देसाख, कुकुभी [धुल], रक्तहंसा [धुल], धनासी (धन्यासी) ने पसंद कर्या छे. अहीं खास तो कुकुभी [धुल], रक्तहंसा [धुल] आ बन्ने रागना बन्धारण शुं हशे ? ते केम गवाता हशे ? ते शोधवा लायक वस्तु छे. पांच पंक्तिनुं काव्य : कविए काव्य ११मां पांच चरण रच्या छे. तो शुं ते पांच चरण- ज गेय काव्य छे ? के एक पंक्ति रही गइ हशे ? जो के कर्ताए अन्य एक रचनामां आज रीते ५ पंक्तिओ रची काव्य रच्यु छे. तेथी ५ चरण- काव्य मानवू योग्य जणाय छे. प्रत परिचय : प्रस्तुत प्रत अमोने पालीताणा स्थित श्रीसाहित्यमन्दिर उपाश्रयना हस्तलिखित संग्रहमांथी प्राप्त थई छे. प्रत आपवा बदल मुनिराजश्री जयभद्रविजयजी म.सा. तथा साहित्यमन्दिरना व्यवस्थापकोनो खूब-खूब आभार. Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ अर्हं नमः । श्री ॥ हंसराजपोसाल धुलबन्ध ॥ अनुसन्धान ५० (२) देसाख ॥ दूहा बन्ध ॥ ॥ए ६०॥ राग वीर जिणेसर पय नमी, गुरूउ' गुणभण्डार, नयर निरुपम दीपतुं, जगि जाणीइ' गन्धार १ वासि वसई विवहारीया, पुरूषरयण परधान, धन सम्पत्ति धनद किरि५, लीलां इन्द्र समान २ तिहां जिनशासन गहगहइ, उत्सव करई अपार, सुगुरूवयण नितु संभलई, भरइं सुकृतभण्डार. ३ गुरू उपदेस हीइ धरई, करइ विमासण चिंति', पौषधशाल करावीइं, मनि अति आणई खंति ४ ॥ राग - देसाख ॥ धुल' बन्ध | खंति करी संधि मांडीयां काज, पौषधशाल बहु नीपजई १० ए, समरथ संघपति हंसराज चितवइ, ठाकुरसिंघ कुलमण्डणु ए ५ जाण सिरोमणि मानि दुरयोधन, दानि करण किरि अवतरिउ ए, हठि चडिउ जाणि कि रावण राउ, सन्त सरिसु ससि अभिनवु ए ६ ॥ त्रूटक ॥ अभिनवु ससि अमिरत्तधारी ", अंगि सारी बुधि वसई, पौषद्धशाल कराविवा, गुणवन्त अणुदिण१२ उल्लसइ, पण काज जे मनि चितवइ ते अवर कोइ न जाणए श्रीसंघ कहइ संघपति जे पण अंगि आलस आणए आणए य आलस अंगि जइ एउ काज कवण समुद्धरइ, श्रीसंघ मनि आनन्द करवा हंस संघपति खंति करइ ७ एँ नमः । - ॥ हवं राग कभी धु॥ नाम प्रमाणि चडाविवा काजि, पोसालपायुओ१४ परठीउ १५ ए, तेड्या कबाडीय१६ अनइ सिलाट १५, निश्चल काम मंडावीउं ए ८ धसमस१८ पणईं बइसारीइं ई ( इं ) ट, पीढनई १९ काठ कपावीइं ए, सिहर कादी २० यदि वारए आण, प्राण २१ करइ य पोसालसिउं ए ९ Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मार्च २०१० ४३ ॥ त्रूटक ॥ पोसालसिउं करइ प्राण, संघपत्तिनई हूउं जाण, कादी न मानइ जाम, हठि चडिउ संघपति ताम, हठि चडिउ संघपति जईय भेटिउ, खान क्षितिपति ताम, पोसाल चउपटपणि२२ करावी, जगि रहाव्यूं२३ नाम १० ॥ हवं - धनासी राग धुल ॥ मंडीउ खप तिहां अतिघणु ए, मुंकीउ ए निज बन्धव कामि, नामि मीनागर संघवई ए, पीढ बइसारीय विचित्र विसाल, सार२४ पटसाल करावीइं ए ११ खडकीय२५ जोयंता लागए खंति२६, चिंति चउसाल२७ ए ओरडा ए, थंभकुंभीसिरां२८ कोरणी चंग, अंग ऊलट करइं आलीया२९ ए १२ ॥ त्रूटक ॥ आलीया ए ऊलट करइं, धवलित३० भजई भीति२९ अपार, ओरडा पटसाल३२ सोहइ, चउक सीहदूयार३३, खडकी कमाडसु३४ कोरणी, छाजासु३५ छाजइं बारि, चित्राम२६ चिहुपखि२७ जोयतां, आनंद रिदय मझारि, आनंद रिदय मझारि मनि, व्यापार बीजु छंडीउ, बन्धव बेटासिउं रही, पोसाल खप बहु मंडीउ १३ ॥ हवं राग - रक्तहंसा धुल । धन धन तपागच्छ वडीय पोसाल, श्रीरत्नसिंघसूरि गणधरू ए, उत्तम श्रावक अनइ सुजाण, सुहगुरूवास हीइ वसइ ए १४ श्रीउदयधर्म उज्झाय तेडावीय, चतुर्मासि रहावीय रंग करइ ए, भगतिहिं वेचए वित्त अपार, सुजस रहावए३८ आपणु२९ ए १५ जस रहावइ आपणु, वेचइय वित्त अपार, श्री श्रीयमालशृंगार, ........... दरिसणहं दातार, संघपति हंसिहिं निघुट करणी४० कराव्युं बहु रंगि, जोयतां भवीयण तणइ मनि ऊलट्ट माइ न अंगि १६ ऊलट्ट माइ न अंगि जिन श्रीवर्धमान प्रणामीइ, गुरु [उदयधर्म शिष मुकुन्द बोलइ, बोधिबीज सुपामीइ १७ ॥ इति सं. हंसराज पोसाल धुल बन्ध ॥ Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान 50 (2) शब्दकोश 1. गुरूउ = मोटुं 21. प्राण करइ = नियम करे 2. जाणीइ = जाणे के 22. चउपटपणि = चारे बाजुथी, सम्पूर्ण 3. विवहारीया = वेपारी पणे 4. धनद = कुबेर 23. रहाव्यूं = राख्यु 5. किरि = जाणे के 24. सार = श्रेष्ठ, सुन्दर 6. गहगहइ = वृद्धि-विस्तार पामे छे 25. खडकीय = डेली 7. हीइ = हृदयमां 26. खंति = चीवट, काळजी (?) 8. चिंति = चित्तमां 27. चउसाल = विस्तृत, मोटुं 9. धुल = धवल 28. सिरां = (थंभी-कुंभी)ना मस्तके, 10. नीपजइ = बने, फरते 11. अमिरत्तधारी = अमृतने धारण 29. आलीया = गोख करनार 30. धवलित = श्वेतपणुं 12. अणुदिण = दररोज 31. भीति = दीवाल 13. खंति = होंश, उमंग 14. पायुओ = पायो परसाळ 15. परठीउ = मुक्युं, नाख्यु 33. सीहदूयार = सिंहद्वार 16. कबाडीय = कठियारो। 34. कमाड = बार| 17. सिलाट = सलाट, कडियो 35. छाजासु = छापराथी 18. धसमसपणइ = झडपथी, 36. चित्राम = चितरामण, चित्रो उतावळथी 37. चिहुपखि = चारे बाजु 19. पीढ = जेना उपर मेडाना पाटिया 38. रहावए = राखे जडवामां आवे ते लांबु लाकडं 39. आपणु = पोतानुं 20. कादी = काजी 40. निघुटकरणी = निघुट (?) उदार करणी - कार्य C/o. अश्विन संघवी गोपीपुरा, कायस्थ महोल्लो सूरत-१