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आचार्य ज्ञान मुनि
कोई कितना ही विचारों को छिपाने का प्रयास या कोशिश करे फिर भी उसकी इन्द्रियों पर वे भाव उभर ही जाते हैं। बशर्ते कि सामने वाला इन्सान यदि बुद्धिमान हो तो स्पष्ट अनुमान लगा लेता है कि इसमें भीतर में क्या विचार चल रहे हैं।
यदि इन्सान को भीतर में क्रोध आ रहा है तो उसे वह कितना भी दबाने का प्रयास करे तो भी वह चेहरे पर किसी न किसी रूप में आ ही जाता है।
इसके लिए कषायों की परिभाषाएं सविस्तार जानना अपेक्षित है। इसके साथ ही गुरु गम से ज्ञान समझना जरुरी है। दवाएं कितनी भी हो पर डाक्टरी परामर्श, निर्देश आवश्यक है। वही स्थिति गुरु की है। पुस्तकीय ज्ञान कितना ही क्यों न हो तथापि उसे सही ढंग से समझने के लिए योग्य गुरु की आवश्यकता रहती है।
बाहर से भीतर के विचारों को समझने के लिए कई नीतिकारों ने भी कहा है
आकारैइंगितगत्या, चेष्टया भाषणेन च। बाहर के आकार : बताते विचार
नैत्रवक्त्र विकारण, लक्ष्यतेन्तर्गतं मनः।।
इन्सान के बाहरी आकार, इंगित, संकेत, चेष्टा एवं बोलना हरेक मनुष्य के पास तीन प्रकार के योग होते हैं- मन,
तथा आँखों एवं चेहरे की क्रियाएँ संकेत से उसके भीतर के वचन और काया। इन योगों का कार्य मुख्यतः सोचना, बोलना
विचारों को समझा जा सकता है। और करना है। ये तीनों योग उसकी आत्मा को भीतर से बाहर तक जोड़ने का काम करते हैं। मन से जो भी चिन्तन किया जाता
उत्तराध्ययन सूत्र के माध्यम से भगवान महावीर ने गुरु के है, उसका असर वचन, काया में आए बिना नहीं रहता। इसलिए
प्रति शिष्य के विनय को स्पष्ट करते हुए कहा हैमनस्विदों ने मन को नियंत्रित करने एवं वश में करने की बात
आणानिद्दस करे, गुरुण मुनवाए कारए। कही है। मन के नियंत्रित होने पर वचन और काया तो स्वतः ही
इंगियागार संपन्ने, से विणिएत्ति वुच्चई।। नियंत्रित हो जाते हैं। जैन शास्त्रों में भी मन को नियंत्रित करने
आज्ञा और निर्देश के अनुसार चलने वाला, गुरु के पास की बात महत्वपूर्ण रूप से प्रतिपादित की गई है। मन भीतर में
रहने वाला, इंगित और आकार से सम्पन्न साधक विनीत है जो कि आत्मा से सीधा संस्पर्शित है। यह मन दो प्रकार का कहलाता है। बाहर के आँख, मुख और हाथ के ईशारे से समझने बतलाया है- द्रव्यमन और भावमन। द्रव्यमन तो पुद्गलात्मक
वाला विनीत शिष्य कहलाता है और कई बार बिना बाहरी हाथ, होता है, भावमन विचारात्मक होता है। विचार स्फुलिग एक तरह पैर, आँख आदि हिलाए गुरु के मन में उठने वाले विचारों को से आत्मा के ही पर्याय हैं। भीतर से उठने वाले ये स्फुलिंग, समझ जाता है. वह पर्ण समर्पित विनीत शिष्य होता है। यह तभी इन्सान को बाहर-भीतर प्रभावित करते हैं। जिस प्रकार घड़े के संभव है जब गुरु शिष्य के मन में परस्पर पूरी तरह तदाकारता भीतर यदि पानी ठंडा हो तो बाहर ठंडापन लगेगा और यदि पानी हो। जिस प्रकार माँ का बेटे के प्रति होता है। बेटा दस हजार के स्थान पर जलती हुई लकड़ी हो तो बाहर भी गर्माहट आए कि० मी० दर है, वहाँ भी अगर उसका ऐक्सीडेंट हो जाता है बिना नहीं रहेगी। इसलिए शास्त्रकारों ने कहा है- "जहां अंतोतहा तो माँ का मन यहाँ उचट जाता है। वह बच्चे पर आये संकट बाहिं'' इन्सान जैसा अन्दर में होता है वैसा ही बाहर भी आने को भांप जाती है। यह भीतर के टुंगित/एक्शन हैं। लगता है। इसलिए बाहर को ठीक करने के लिए भीतर को ठीक
वासिलिएव एवं कामिनिएव ने इस संदर्भ में कई प्रयोग करना आवश्यक है।
किये हैं। एक वैज्ञानिक कुछ चूहों को लेकर समुद्र की गहराइयों जो विचार व्यक्ति के भीतर में चल रहे हैं उसका शरीर में गया। जहाँ पर वाय तरंगे/ध्वनि तरंगें भी नहीं पहुँच सके। पर किसी न किसी रूप में असर आए बिना नहीं रहता। भले ऊपर एक वैज्ञानिक उन चहों की माँ के सिर पर इलेक्ट्रोड
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(Electrode) मशीन फिट करके बैठ गया। जिस-जिस समय पर इन्द्रों के वन्दनीय हैं इनकी समृद्धि का क्या कहना, तब उत्पल नीचे वाले वैज्ञानिकों ने चूहों को मारा, ठीक उसी समय पर को समझ में आया। इन्द्र ने उसे सन्तुष्ट किया। इसी प्रकार चुहिया माँ का दिल हिला ओर मशीन से उसके संकेत रूप ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती के पद्मरेख का भी वर्णन आता है। जिसे ग्राफ्स बनते चले गए। जो कि चुहिया के भीतरी संकेतों को देखकर एक ब्राह्मण ने अनुमान लगा लिया था कि यह व्यक्ति स्पष्ट कर रहे थे।
भविष्य में निश्चय ही चक्रवर्ती बनेगा। इसलिए उसने अपनी स्वर विज्ञान से भी बाहरी स्थिति को समझा जा सकता है।
कन्या की उसके साथ शादी कर दी। इस प्रकार रेखाएं भी चन्द्रस्वर में नाक से श्वांस बाएं चलेगा। ऐसा कहा जाता है कि भीतरी जीवन को कुछ अंशों में स्पष्ट करती है। लेकिन रेखा चन्द्रस्वर चल रहा हो तो सभी कामों, बाहर जाने आदि में विज्ञान भी सही हो तब ना। लोग तो मस्तिष्क की रेखाओं को सफलता का संकेत देता है। सूर्यस्वर के चलते विद्या-विवाद,
देखकर ही बहुत कुछ समझ जाते हैं। हर रेखा मस्तिष्क की विघ्न, अशान्ति आदि कार्यों के जीतने में सहयोग मिल सकता
उसके २० वर्ष के उम्र की प्रतीक बतलाते हैं। जितनी रेखाएं है। रात्रि में चन्द्रस्वर और दिन में सर्यस्वर सही माना जाता है। मस्तिष्क पर उभरेगी उतने २०-२० वर्ष जुड़ जाते हैं। मस्तिष्क चन्द्रस्वर में पूर्व उत्तर दिशा में जाना वर्जित है। सूर्यस्वर में
रेखाओं के बारे में कहते हैं कि जिसके एकदम सीधी रेखाएं हो दक्षिण पश्चिम में जाना वर्जित है। यदि कृष्ण पक्ष चल रहा हो उसे तत्पर बुद्धिवाला और ईमानदार समझा जाता है। अधूरी रेखा तो सोम, बुध बृहस्पति को दिन में चन्द्रस्वर और मंगल, शनि
वाले को अस्थिर, चापलूस समझा जाता है। छोटी-छोटी रेखाएं को रात में भी सूर्य स्वर सही माना जाता है। ये दोनों स्वर साथ।
व्यापार आदि में असफलता की प्रतीक हैं। रेखा में आने वाला चलते हो तो कोई भी अच्छा काम करना मना किया है। ऐसा ।
क्रास दुखदायी मृत्यु का सूचक है। प्लस निशान मिलनसार का भी बतलाया जाता है कि यदि स्वर के अनसार दिन नहीं है और सूचक है। एक में से एक रेखा का निकलना साहसहीन. ढलकाम करना जरूरी है तो जिस तरफ का सुर चल रहा है, उस मुलनाति का पारचायक ह आर रखा ऊचा-नाचा चलता हा वह तरफ से पैर से साढ़े तीन कदम चलो। चन्द्र स्वर में बाएं से उस व्यक्ति की समृद्धिशालिता की परिचायक है। इसी प्रकार सूर्यस्वर में दाएं से साढ़े तीन कदम पैर वैसे ही चलने पर भी
हाथ में भी जीवन रेखा, भाग्य रेखा, मस्तिष्क रेखा, हृदय रेखा सही हो सकता है। यद्यपि अच्छा या बुरा निश्चय में तो आदमी
आदि होती है। रेखा विज्ञान बहुत विस्तृत एवं गंभीर है। जिसको के शुभाशुभ कर्म के उदय पर निर्भर है फिर भी इन संकेतों का
स्पष्ट एवं प्रामाणिक रूप में जानना आज के युग में बहुत अपनी जगह महत्वपूर्ण स्थान है। स्वर विज्ञान की तरह बाहरी मुश्किल है। आकार के रूप में रेखाएं भी है जो उसकी भीतरी स्थिति को मृत्यु निकट है या दूर इस बात की जानकारी भी व्यक्ति के स्पष्ट करती है। जैन शास्त्रों में बताया गया है कि तीर्थंकरों के बाहरी चिह्नों से की जा सकती है। स्थानांग सूत्र के पांचवें ठाणे शरीर पर १०८ उत्तम लक्षण होते हैं। शंख, कमल, गदा, में कौन आत्मा, शरीर के किस अंग से निकलकर कहाँ जाती स्वस्तिक कलश आदि जो उनके तीर्थंकरत्व को स्पष्ट करते हैं। है। यह बतलाया है। नाक, कान, आँख मस्तिष्क आदि ग्रीगिर्दन पैर में पद्म रेख होती है।
के ऊपर से जिसका प्राण निकलता है उसके लिए देवलोक गमन एक बार भगवान महावीर कहीं जा रहे थे। उनके नंगे पैर बतलाया है। गर्दन के नीचे छाती, पीठ, नाक से श्वांस निकलने मिट्टी में पड़ने से मिट्टी में पद्म रेख अंकित हो गई थी। उत्पल
___ पर मनुष्य गति में जाना बतलाया है। नाभि के नीचे घुटने तक में नाम के नेमितिक ने अनुमान लगाया कि यहाँ से जाने वाला
से किसी भी अंग से श्वांस निकलने पर तिर्यंच गति में जाना निश्चित ही कोई महासमृद्धिशाली चक्रवर्ती होगा। मैं जाऊँ और
बतलाया है। घुटने में पैर आदि से प्राण निकल जाय तो नरकगति उनसे कुछ न कुछ दक्षिणा प्राप्त करूँ। किन्तु जब वह आगे बढ़ा
में जाता है। जो आत्म-प्रदेश शरीर के सारे अंगों से निकलते हैं तो वहाँ एकदम अकिंचन भगवान महावीर को ध्यान करते ह तब उसका मोक्ष होना बतलाया गया है। इसकी जानकारी पाया। उसे देखकर विचार आया कि यह क्या बात हुई। ऐसी अनुभवी व्यक्ति बाहरी श्वांस को देखकर लगा सकता है। पद्म रेखा और फिर यह भिखारी हो नहीं सकता। लगता है कुछ लोग शरीर के बाहरी चिह्नों को देखकर उसकी मृत्यु शास्त्र झूठे हैं। नैमितिक खिन्न होकर अपने शास्त्र नदी में बहाने का अन्दाज भी लगाते हैं। स्वयं को स्वयं की भौंहे, नाक का की तैयारी करने लगा। इतने में प्रभु की वन्दना करने के लिए अग्रभाग जिह्वा का अग्रभाग दिखलाई न दे तो दो दिन में मृत्यु इन्द्र आया। उसने उत्पल को समझाया कि तुम्हारे शास्त्र गलत होने का संकेत मिलता है। स्नान करने के बाद सारा शरीर भीगा नहीं है। यह तो चक्रवर्तियों के भी स्वामी हैं और स्वर्ग के ६४ और यदि मुंह पहले सूख जाय तो १५ दिन में उसकी मृत्यु
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बतलाई गई है। कानों की कूपर पतली हो जाय, नाक की डंडी छींक पीठ की कुशल उच्चारे, बायी छींक कारज सब सादे। टेढी हो जाय, आँख सफेद हो जाय, नासिका लाल, कपाल सम्मुख छींक लड़ाई भाखे, छींक दाहिनि द्रव्य विनाशे।" काला हो जाय, मुख के बाल खिरने लगे, होठ सफेद हो जाय ऊपरी छींक सदा जय कारी, नीची छींक महाभयकारी। तो ३ दिन में मृत्यु की संभावना बतलाई है। भोजन पानी स्वाद अपनी छींक महादु:ख दाई, ऐसे छींक विचारों भाई। न लगे। नाक के श्लेष्म की गंध दूध जैसी हो, छाती की दाहिनी __यह छींकों का स्पष्टीकरण अपने ढंग का दिया गया है।
ओर धड़कन बढ़ जाय। हाथ पैर के तलवे लाल हो जाय। नाखून वैसे यह कोई जरूरी नहीं कि ऐसा ही हो। काले पड़ जायें। शरीर की गध शव जैसी ही जाय, नाड़ा सुस्त एक बार हमें बंबई से विहार का संकेत मिला। आचार्य प्रवर हो जाय, क्रोध बढ़ जाय, विनम्रता या मूर्छा बढ़ जाये। छाती ने चातर्मास की घोषणा हमारे लिए रतलाम की कर दी। इतने में पीली. जंघा श्वेत, गला नीला या लाल दिखाई दे। नाक पर सल एक भाई ने छींक कर दी। हमने कहा- अब देखो क्या होता है। पड़ जाए। हाथ-पैर ठंडे हो जाय और मस्तक गर्म रहे तो मृत्यु कोदोई काम चलता बालवा कोपर होना एकदम निकट बतलाया है।
तक रतलाम के लिए विहार हो गया। लेकिन पता नहीं क्या हुआ शरीर के अंगों का स्वाभाविक वर्ण बदल जाय। मांस, वसा । कि आचार्य प्रवर ने अचानक वापस बुलाया। हम लोग घाटकोपर आदि नर्म अंग कड़े हो जाय। अचल अंग चल और चल अंग । से सीधे २२ कि०मी० करीब चलकर पुन: बालकश्वर पहुंचे। अचल हो जाय। आंखें घूम जाय, मस्तिष्क लटक जाय, जोड़ आचार्य प्रवर से बुलाने का कारण पूछा वे बोले- तुम्हें अभी ढीले पड़ जाय, आँखें या जीभ भीतर घूम जाय तो भी मृत्यु को भेजने की लिए मेरी अन्तर आत्मा नहीं मानती। यहाँ भी तुम्हारी निकट जानो। आधा शरीर गर्म और आधा शरीर ठंडा पड़ जाय आवश्यकता है। मैंने कहा- ठीक है आपने ही खोला है चातुर्मास तो सात दिन में मृत्यु की संभावना कही गई है। इस प्रकार और आप बदल लीजिये और वह चातुर्मास बदल दिया गया। अनुभवियों ने अपने-अपने ढंग से मृत्यु की निकटता का बोध चातुर्मास, गुरुदेव के साथ घाटकोपर ही हुआ। कभी-कभी बाहरी अंगों से किया है। वैसे सिद्धान्तवादियों ने देवताओं के काकतालीय दृष्टि से समझें या सच। छींक का परिणाम ऐसा भी लिए भी बतलाया है कि च्यवन मरने से ६ महिने पहले देवताओं देखने को मिलता है। की फूलमाला मुझ जाती है जो उनकी मृत्यु को बतलाती है। कई बार आदमी ज्योतिष रेखाशास्त्र आदि में उलझ जाता कालिया कसाई के लिए भी बतलाया गया कि वह सातवीं नरक है और अपने विलपावर (Will power) को कमजोर कर देता में जाने वाला था। जाने से पहले उसे घोर वेदना हो रही थी। है। जबकि इन सबसे ऊपर आत्मा का विलपावर स्ट्रोंग (Strong) उसके बेटे सुलभ ने उसके दाह ज्वर को शान्त करने के लिए होना ही सफलता का परिचायक है। बावना चन्दन का लेप करवाया। फिर भी कुछ नहीं हुआ। तब
कई लोग शकुन के चक्कर में भी रहते हैं कि घर से अभय कुमार के कहने पर उस पर अशुचि का लेप किया। गर्म
निकले तब शकुन देखकर निकला जाय। कहीं बिल्ली रास्ता तो गर्म शीशा पिलवाया। कर्ण भेद आवाजें सुनवाई जो उसे प्यारी
नहीं काट रही है। ऐसी कई धारणाएं लोगों के दिमागों में घूमती लगने लगी। इसका कारण स्पष्ट करते हुए अभय कुमार ने कहा
रहती हैं। कहते हैं शकुनी चिड़ियाँ छ: माह पहले भूकम्प वाले कि यह ७वीं नरक में जाने वाला जीव है। अत: वहाँ जो चीजें
स्थान को छोड़कर चली जाती है। जिस बात को वैज्ञानिक कभीअच्छी लगने वाली है वे अभी से अच्छी लगने लगी है।
कभी तो एक दिन पहले भी नहीं जान पाते। हमने भी दिल्ली में शास्त्रकार भी कहते हैं कि जिस गति में जो जानेवाला है, उस
कुछ सेकेण्ड का चला भयंकर भूकम्प से हिलते मकानों का सम्बन्धी आनुपूर्वी का उदय यहीं पर होने लग जाता है। जाने से
अनुभव किया था। शकुन विचार सही है या नहीं, यह स्वतन्त्र पहले गति के अनुरूप ही उसकी विचार-धारा भी बन जाती है।
रूप से समीक्षा का विषय है। भड्डरी द्वारा प्रचलित शकुन पर जो उसकी होने वाली गति का संकेत देती है।
लोगों का भारी विश्वास देखा जाता है। जैसा कि कहा गया हैकई बार पुराने व्यक्ति छींकने, खांसने, उबासी लेने से भी
गौन समे जो अपशकुन, ते आवत सुखदाय। सम्बन्धित फलाफल का विचार करने लगते हैं। उनका मानना है
गौन समे जो शुभ शकुन, फर पैठत दुःखदाय।। कि जो छींक, सर्दी, जुखाम या किसी बीमारी के कारण न आकर
शकुन शुभाशुभ जानि निकट, हो हितो निकट कल। अगर सहज में आई है इसके पीछे भी कोई कारण है क्योंकि बिना
दूर सो दूर बखान, कहे भड्डरी सहदेवल।। कारण कोई काम नहीं होता। इसलिए छींक भी बहुत कुछ स्पष्ट
अर्थात् अंगार, शंख, लकड़ियाँ, रस्सी, कर्दमा, खल, करती बतलाती है। अनुभवी लोग यों कहते पाए जाते हैं।
__ कपास, तुष, हड्डी, केश, यवधान्य, कूड़ा-करकट, तृण, छाछ,
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अर्गला, बिन ऋतु की वर्षा, प्रतिकूल वायु आदि के रहते यात्रा चन्द्र और विद्याधर भूख से परेशान ऐसा ही करने जा रहे थे के लिए प्रस्थान शुभ नहीं माना जाता है।
वज्रसेन मुनि ने देखकर रोका और दूसरे दिन से ही सुकाल की ऐसा भी बतलाया जाता है कि यात्रा करते समय जल से स्थिति बन गई। भरा घड़ा लिये कोई सौभाग्यवती स्त्री मिल जाय। गाय बछड़े को अंग फड़कना भी बाहरी आकार है। इसमें भी भविष्य के दूध पिलाती मिल जाय तो अच्छे शकुन समझे जाते हैं। यदि संकेत मिलते हैं। स्त्री का बायाँ और पुरुष का दायाँ अंग यात्रा चल रही हो और रास्ते में बार-बार लो. ड़ी दिखाई दे। फड़कना सही माना गया है। कहते हैं मस्तिष्क के फड़कने से बांयी ओर से दायी ओर हिरण आता दिखे तो ये सभी लक्षण जमीन की प्राप्ति होती है। ललाट प्रदेश के स्फुरण से स्थान और कार्य में सिद्धि देने वाले होते हैं। सोम और शनि को पूर्व दिशा सफलता की प्राप्ति होती है। आँख की भौहे और नासिक के में मंगल बुध को उत्तर दिशा में बृहस्पति को दक्षिण दिशा में यात्रा मध्य भाग में फड़कने से आत्मीय व्यक्ति के मिलने की संभावना करने का मना किया जाता है। यात्रा करते समय कुत्ता कान बतलाई गई है। नाक और आँखों के मध्य में स्फुरण होने पर फड़फड़ा दे या धरती पर लौटता दिखे तो भी अशुभ कारक मुसीबत में सहायता, धन आदि के प्राप्ति का संकेत होता है। माना गया है। यदि राह में नेवला मिल जाय, बांयी तरफ पक्षी आँखों के अन्तिम भाग में या कंठ के नीचे फड़कन हो रही है चुगा लेते दिख जाय तो कार्य सिद्धि के परिचायक माने गए हैं। तो भी धन लाभ संकेत है। दाहिनी आँख के नीचे फड़क रहा है दस व्यक्तियों का यात्रा में साथ होना भी विघ्न का संकेत देता तो शत्रु बाधा से पीड़ित रह सकते हैं। कान का फड़कना अच्छी है। बिल्लियों का युद्ध यात्रा में प्रतिबंधक है। गधा बांया और सर्प बात सुनने का संकेत है। होंठ, कंधा गले में स्फुरण होने पर दायी दिशा में यात्रा में मिले तो उचित ठहराया जाता है। इस मुख, प्रसन्नता, संतोष सुविधाएँ आने की स्थिति में भुजा के प्रकार विभिन्न प्रकार से शकुन-अपशकुन का विचार भडरी ___ स्फुरण होने पर प्रियवस्तु मिलने वाली है। हाथ के स्पंदन से शास्त्र के माध्यम से मिलता है।
सम्पति, पराक्रम की प्राप्ति होती है। रीढ़ का फड़कना पराजय ___ अवन्ति देश में तुम्बवन नामक नगर के धनगिरि नामक
का प्रतीक है। अत: उस समय महत्वपूर्ण काम नहीं किया जाय। सद्गृहस्थ ने अपनी सगर्भा पत्नी को छोड़कर आर्य सिंहगिरी के
___ कमर का स्फुरण भारी कामों में सफलता का सूचक है। पास दीक्षा ले ली थी। यह घटना वीर निर्वाण के ४९६ वर्ष बाद इस प्रकार अंगों के स्फुरण से भी अच्छे बुरे संकेत का की बतलाते हैं। वे जब विचरण करते हुए पुन: तुम्बवन पधारे अन्दाज लोगों द्वारा लगाया जाता है। वर्तमान में वैज्ञानिक में और भिक्षा के लिए जाने लगे तो कहते हैं कि उनके आचार्य श्री बाहरी वस्तुओं पर ही विशेष रूप से आधारित रहने वाला इन्सान ने बाहरी शकुन लक्षणों का विचार करके अपने शिष्यों को यहाँ इन सबका अनुभूतिपरक प्रामाणिक ज्ञान नहीं कर पा सकने के तक कहा था कि आज भिक्षा में जो भी सचित अचित मिल जाय कारण भी वह इन सब अवस्थाओं के ज्ञान से वंचित रह गया उसे ले आना और वे गए। इधर उनकी संसारपक्षीय पत्नी ने है। अन्यथा भड्डरी के ज्ञान से तो अनेक महत्वपूर्ण अवस्थाओं बच्चे को जन्म दिया था, वह रोता ही रहता था। छ: महिने तक का ज्ञान किया जाता रहा है। खूब रोया। इधर महाराज को अपने घर आया देखकर उस भडरी कौन हुई और यह ज्ञान कैसे क्या प्रचारित हुआ महिला ने वह बच्चा महाराज के पात्र में बहरा दिया। उसका रोना इसके पीछे भी एक रोचक तथ्य है। बन्द हो गया। महाराज धनगिरी बच्चे को आचार्य महाराज के
घाघ नामक ज्योतिषी राजस्थान में जन्मे थे। परन्तु विद्वता पास लाए। उसके पालन-पोषण की व्यवस्था संघ ने की। भविष्य
के अनुरूप यहाँ पूरा सम्मान नहीं मिल पाया। तब वे वहाँ से में वही बच्चा व्रजस्वामी के नाम से महान प्रभावक आचार्य हुए।
निकलकर मध्यप्रदेश में धारानगरी चले गए। राजा भोज ने उन्हें इस घटना से स्पष्ट होता है कि शकुन तो माने जाते हैं पर शकुन
उपयुक्त समझकर राज ज्योतिषी बना दिया। इस पर स्थानीय की सच्चाई को नापना जरूरी है।
लोगों को ईर्ष्या भी हुई पर इससे क्या हो। राजा माने जो राणी वीर निर्वाण के ६०० वर्ष बाद भयंकर दुष्काल पड़ा था, और भरे पाणी। ज्योतिषी घाघ बड़े ठाठ-बाट के साथ रह रहे थे। लोग मर रहे थे। उस समय व्रजस्वामी ने अपने शिष्य व्रजसेन से उस वक्त एक घटना घटती है। जो उनके जीवन में एक विशिष्ट कहा था कि जिस दिन एक सेठ एक लाख स्वर्ण मुद्रा में एक मुट्ठी परिवर्तन लाने वाली बनी। राज्य में एक वर्ष अकाल के लक्षण चावल खरीदकर विष खाकर मरने की तैयारी करता पाया जाय, दिखलाई देने लगे। दर-दर तक पानी होने की संभावना ही नजर वही दुष्काल का अन्तिम दिन होगा। हुआ भी यों ही। जिनदत्त नहीं आ रही थी। यह देख राजा भोज विचार में पड़ गए, तुरन्त सेठ, उनकी पत्नी ईश्वरी ओर उनके चार बच्चे नागेन्द्र, निवृत्ति, सारे ज्योतिषियों को एकत्रित किया और पछा कि इस वर्ष पानी
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का योग है भी या नहीं। घाघ को छोड़कर सारे ज्योतिषियों ने का वचन ही प्रमाण है। आगे आने वाले २४ घंटे का इन्तजार ज्योतिष के पन्ने देखकर बतलाया कि तीन वर्ष तक इस प्रान्त किया जाय। सभा विसर्जित हो गई। सभी अगले पल का में पानी का योग नहीं है। राजा भोज बहुत निराश हुए, उन्होंने इन्तजार करने लगे। घाघ भी अपने शयन कक्ष में बादलों की घाघ से भी पूछा। अब तक घाघ चुपचाप बैठे थे। उन्हें अपनी ओर दृष्टि गड़ाए सो गए। रात्रि की प्रथम पहर बीत जाने तक ज्योतिष की गणना के अनुसार वर्षा का योग दिखलाई दे रहा आकाश एकदम साफ था। लेकिन रात्रि की १० बजे बाद बादल था। पर जब सारे ज्योतिषी मना कर रहे थे तब वे भी विचार की एक टुकड़ी दिखलाई दी और कुछ ही देर में रिमझिम में पड़ गए और एक बार फिर अपना ज्योतिष मिलाने लगे। रिमझिम वर्षा होने लगी। कुछ और समय बीत जाने के बाद तो उन्होंने कहा ज्योतिष के अनुसार तो योग है। पर जब सब मना घनघोर बादल छा गए, बिजलियाँ चमकने लगी। बादल गर्जने कर रहे थे तो अपनी बात को पुष्ट करने के लिए वर्षा से लगे और मूसलाधार वर्षा हुई। मानो जल-थल एकाकार हो गया। सम्बन्धित पशु-पक्षियों की चाल भी देख लेना चाहिये। यही सब सभी लोग घाघ के वाक्य से आश्चर्य चकित थे। सबेरा होतेसोचकर घाघ ज्योतिषी ने राजा को कहा- राजन, इस प्रश्न का होते तो घाघ के मकान के सामने भारी भीड़ एकत्रित हो गई। जबाब कल दूंगा। राजा मान गए- उन्होंने एक दिन का समय दे सभी घाघ की जय-जयकार कर रहे थे। सभी को घाघ की वाणी दिया।
पर अचूक विश्वास हो गया था। राजा भोज ने घाघ की ज्योतिषी घाघ जंगल में गए। वहाँ पर उन्होंने एक गधे को देखा। की सर्वोच्च उपाधि से विभूषित किया। अब तो ईर्ष्यालु भी घाघ जिसके कान लटके हुए थे। वे कुछ और आगे बढे तो देखा का लोहा मान गए। चिंटियों के दल के दल मुंह में अन्न के दाने लिए बिलों के भीतर ज्योतिषी घाघ को लगा कि महत्तर की लड़की भडरी यद्यपि भाग रहे हैं। चिड़िया धूल-मिट्टी में स्नान कर रही है। वह सब निम्न कुलोत्पन्न है फिर भी बाहर के संकेतों से होने वाली उन्हें आसन्न निकट में ही वर्षा होने का संकेत दे रहे थे और आगे घटनाओं का उसे अद्भुत ज्ञान है। जानकारी करने पर पता चला बढ़ने पर देखा कि आकाश में चीलों का एक समूह वृताकार- उसे शकुन-अपशकुन आदि अनेक बातों का भी जबर्दस्त ज्ञान गोलाकार ऊपर उठता हुआ जा रहा था। यह सब वर्षा के योग है। घाघ ने सोचा- कीचड़ में भी कमल खिला है और पत्थरों की सूचना दे रहे थे। घाघ और आगे बढ़े। उन्हें एक नाला दिखाई में हीरा मिल रहा है उसे उठा लेना चाहिये। क्यों न भड्डरी से दिया। जिसके इस पार एक महत्तर-हरिजन की लड़की अपने शादी ही कर ली जाए। शकुन आदि देखने में उसका भारी पशु चरा रही थी और दूसरी पार उसके पिता सुअरों को चरा सहयोग मिलेगा। घाघ ने भड्डरी की मांग उसके पिता से की। रहे थे। लड़की ने पुकारा बापा बापा! जल्दी लौट आ, आज रात पहले तो उन्होंने मना कर दिया। परन्तु बार-बार मांग करने पर को बड़े जोर से पानी आने वाला है। उसके बाद नाले में पानी उन्होंने अपनी पंचायत बुलाकर यह बात रखी। तब पंचायत में भर जाने पर सुअर नाला पार नहीं कर पाएंगे। तब उसके बापा लोगों ने घाघ से कहा कि भड्डरी से शादी करने पर तुम्हें ब्राह्मण ने पूछा, यह तुम्हें कैसे मालूम हुआ?
समाज से निकाल दे, यही नहीं राजा, राज ज्योतिष का पद लड़की बोली बापा! नाले में टिटहरी ने अंडे दे रखे हैं। वह
वापस ले ले तो भी तो आप भड्डरी को नहीं त्याग सकोगे। घाघ घबराई हुई है और जोरों से आवाज करती हुई अंडों को उठाकर
ने यह बात मंजूर की तब भड्डरी का विवाह उसके साथ कर दिया दूसरी जगह सुरक्षित स्थान पर रख रही है। इससे स्पष्ट हो रहा
गया। उन दोनों से मिलकर जो सन्तान पैदा हुई, वह डाकोत है कि वर्षा जल्दी ही आज रात तक आ जाने वाली है। लड़की
__ कहलाई। कहा जाता है कि आज डाकोत जाति के लोग घाघ का नाम था भडुरी! उसके इस विश्लेषण को सुनकर घाघ ज्योतिषी अवाक् रह गए। उन्हें वर्षा आने का पक्का विश्वास इसके साथ ही शरीर के बाहरी आकार भी भीतरी संकेतों हो गया और वे तुरन्त घारा नगरी लौटे। राजसभा में राजा एवं को स्पष्ट करने वाले बनते चले जाते हैं। जिस प्रकार वाणी उपस्थित सारे ज्योतिषियों के सामने घोषणा की कि वर्षा निश्चित दुनियाँ को समझाने में काम आती है उसी प्रकार शरीर के रूप से होगी। आने वाले आठ पहर याने चौबीस घंटे में एक्शन भी लोगों को उसकी मानसिकता समझाने वाले बनते हैं। मूसलाधार वर्षा होने की संभावना है। सूर्य को प्रचण्डता के साथ जिसे आज भी भाषा में बॉडी लेग्वेंज के रूप में माना जाता है। तपते हुए देखकर किसी को इस बात पर विश्वास नहीं हो रहा इन्सान की बॉडी-शरीर भी एक भाषा का काम करती है। था। तब तक बादल की एक टुकड़ी भी नजर नहीं आ रही थी।
सन् १८७२ में एलबर्ट ने बतलाया कि व्यक्ति के बोलने लोगों ने पूछा इसका क्या प्रमाण है। ज्योतिषी घाघ ने कहा घाघा काप
घाघ ने कहा घाघा का प्रभाव ७ प्रतिशत पड़ता है। २८ प्रतिशत लहजे का और
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५५ प्रतिशत भाव उसके संकेतों का होता है। चार्ली चेपलीन ने रहे हों तो बोलने वाले के पैर पर अंगूठा जिधर है वह उस व्यक्ति भी इस बात को विस्तृत समझाया। सन् १९६० में ज्यूलियस से बात करने की इच्छा वाला बन जाता है। ने इसे और आगे बढ़ाकर संकेतों के अर्थ को व्यवस्थित रूप से
सदियों से भारतीय संस्कृति में हाथ उठाकर हथेली सामने प्रतिष्ठापित किया।
करते हुए आशीर्वाद देने की प्रक्रिया अपनाई जाती है। यह जैनागमों में बॉडी लेग्वेंज को अपने ढंग से अच्छे तरीके भीतरी निर्मलता, सादगी, सरलता का प्रतीक है। यही स्थिति से समझाया है। यही नहीं जैन शास्त्रों में मन के एक्शन को भी व्यावहारिक जीवन में भी देखी जा सकती है। जब कोई व्यक्ति समझाया है। जैसे किसी व्यक्ति को धीरे से कहा जाय कि यह किसी का सम्मान करता है तो वह दोनों हाथ खोलकर हथेलियां काम तुम्हें करना है और यही बात तेज शब्दों में कहा जाय कि उसके सामने घुमाता हुआ पधारो-सा बोलता है। यह सम्मान का यह काम तुम्हें ही करना है तो सामने वाले के समझने में भारी परिचायक है। यदि भीतर में सामने वाले के प्रति सम्मान नहीं फर्क आ जाता है। रेडियो से टी०वी० देखने में व्यक्ति को हो तो वह ऐसा एक्शन न करके अंगुली से इशारा करता हुआ ज्यादा अच्छा समझ में आता है क्योंकि उसमें आवाज और बोलेगा। इधर आ, उधर आ। जिससे लग जायेगा कि सामने लहजे के साथ ही एक्शन भी साफ नजर आते हैं। णमोत्थुणं में वाले के प्रति सम्मान की भावना नहीं है। कोई उग्रवादी समर्पित बायां घुटना खड़ा करवाया जाता है जो विनम्रता का प्रतीक है होता है तो वह भी दोनों हाथ ऊपर रखकर हथेलियां सामने कर और गौतम स्वामी आदि जब प्रश्न पूछते थे, तब ऐसे ही बैठते देता है कि अब मै खाली हूँ। कोई खोट नहीं है। भीतर में यदि थे। परन्तु जब श्रमण प्रतिक्रमण का पाठ किया जाता है दांया कोई व्यक्ति झूठ बोल रहा है या सच। तब सामनेवाले के हाथ घुटना खड़ा करवाया जाता है। यह वीरता का परिचायक है। का एक्शन देखिये। यदि वह दोनों हाथ थोड़ा ऊपर उठाकर ऐसा अर्थात् लिये हुए व्रतों को दृढ़ता के साथ पालन करने का सूचक करता है कि सच मानिये। मैं जो भी कर रहा हूँ वह सच कर है। यही स्थिति व्यावहारिक जीवन में भी बतलाते हैं कि जब रहा हूँ। यदि सामने वाला ऐसा न करके दाढ़ी पर हाथ फिराएगा बन्दूक चलाई जाती है तो राइट का घुटना आगे खड़ा किया जाता या कान या फिर सिर पर खुजली करने लगता है या नाक के है। जिससे सीना तन जाता है। तभी वह सधे हुए हाथों से गोली नीचे एक अंगुली घुमाता है आदि करे तो साफ है कि वह झूठ चलाता है। अति विशिष्ट व्यक्ति के कक्ष में जब कोई व्यक्ति , बोल रहा है, क्योंकि यह सब सोचने के आकार हैं। सच बोलने जाता है। जिसके मन में सामने वाले व्यक्ति के प्रति पूरा सम्मान वाले को सोचना नहीं पड़ता। वह साफ है। विकल्प झूठ में ही हो तो कक्ष में वह प्रवेश करेगा तो उसका स्वत: ही बांया पैर उठते हैं। पहल प्रवश करेगा। यदि सम्मान का भावना कम हो तो फिर सदियों से यह परम्परा है कि आदेश देने वाले ऋषि महर्षि दायां पैर पहले जा सकता है। यदि कोई व्यक्ति कुर्सी पर बैठा श्रोताओं से कछ ऊपर बैठते हैं। ऊपर से विचार-तरंगे नीचे की है। वह बैठा-बैठा ही पैर पर पैर को चढ़ा देता है तो ऊपर वाले
तरफ प्रवाहित होती है जो श्रोता को प्रभावित करती है। इसी पैर का अंगूठा जिस तरफ गया है समझना चाहिये उस व्यक्ति
प्रकार बॉडी लेग्वेज में भी यह बतलाया जाता है कि सेल्समैन को बोलने का कार्य उधर की तरफ बैठे व्यक्तियों की तरफ है।
की कुर्सी ऊपर और खरीददार की नीचे हो तो सेल्समेन जो चीज जब वह पैर बदलता है तो जिधर पैर को चढ़ाया है अब वह उधर जितने में बेचना चाहेगा ज्यादा संभावना होगी कि उसमें कोई ही बात करना चाहता है। यह शरीर का संकेत है। चपरासी जब मोल भाव नहीं होगा और वह उतने में ले ही लेगा। यदि बेचने [ अफसर के पास जाता है, तो ज्यादातर वह उसके बायो वाले का आसन कुर्सी नीचे होगा और वह उतने में ले ही लेगा। रफ ही आकर खड़ा होता है। किसी अफसर से काम करवाना यदि बेचने वाले का आसन कुर्सी नीचे है और खरीदने वाले की हो तो उसके सामने नहीं बैठें। उसकी दायें तरफ न बैठें। ऐसा ऊपर है तो ज्यादातर संभावना यह है कि मोलभाव होगा और बैठने पर हो सकता है काम न हो। क्योंकि सामने बैठने पर उसमें खरीदने वाले की इच्छा ज्यादा महत्वपूर्ण बनती चली अफसर के मस्तिष्क में अदृश्य रूप में ऐसा लगता है कि यह जाएगी। क्योंकि ऊर्जा तरंगों का दबाव, ऊपर से नीचे की ओर उसका प्रतिस्पर्धी है। दांयी और बैठने पर भी यही स्थिति हैं। आता है। इसलिए ज्यादातर दकानों पर सेठ की गदी थोडी ऊपर बांयी और बैठना विनय का सूचक है। बांयी तरफ बैठे व्यक्ति होती है। लेने वाले को भले उनल्प के गद्दे पर बिठा देंगे पर पर सामने वाले का साफ्ट कार्नर बन सकता है। क्योंकि वह
उसका स्थान थोड़ा नीचे ही रहेगा ताकि देने वाले की ऊर्जा उस' विनय का परिचायक है। भीतरी ऊर्जा का बांयी और झुकाव होने
पर असर करे। से उधर प्रवाहित हो जाती है। जब दो तीन व्यक्ति खड़े बात कर
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________________ कोई आदमी नीची गर्दन करके बोलता है तो समझ लीजिये जैन शास्त्रों में बाहरी संकेतों का गहरा विश्लेषण मिलता यह अपराधी है या लज्जावान है। हाथ मिलाते वक्त भी कोई है। यदि हम आज के स्वर विज्ञान, रेखा विज्ञान, शकुन विज्ञान, मजबूती से पकड़ता है और कोई ढीला। जो ज्यादा मिलने वाला नाड़ी विज्ञान तथा शास्त्रीय धरातल की स्थिति को सामने रखते है, उसका हाथ कड़ा पकड़ लेते हैं जो कम मिलने वाला है, हुए क्षीर नीर विवेकिनी बुद्धि के अनुसार कार्य करते हैं तो उसका ढ़ीला पकड़ लेते हैं। याने कि जिस व्यक्ति में आपका लक्ष्यानुरूप सफलता प्राप्त कर सकते हैं। काया, वचन और मन इन्ट्रेस्ट ज्यादा है उसका हाथ कसकर पकड़ लेते हैं। जिससे के संकेतों को संयम के अनुरूप बनाने का प्रयास किया जाय इन्ट्रेस्ट कम है उसे ढीला पकड़ेंगे। तो अन्तरंग शक्ति का जागरण हो सकता है। बाहर से भी संयमी सैनिक हमेशा हाथ मजबूती से पकड़ता है। उसका कारण आचरण को मजबूती के साथ अपनाया जाता है तो धीरे-धीरे वह अलग है। क्योंकि वह बतलाता है कि मैं इज्जत से, शरीर से / अन्तरंग को छूता चला जाता है। जब इंजन चाबी से नहीं चलता चरित्र से, मजबूत हूँ। कई बार सामने वाले के प्रति ज्यादा है तो बाहर से हैण्डल (Handle) घुमाकर चलाया जाता है। जब उत्सुक व्यक्ति अपने दोनों हाथ आगे करता है और सामने वाले अन्दर का इंजन चालू हो जाय ता हेण्डल निकाल लिया जाता की उत्सुकता उसमें नहीं है तो वह औपचारिकता निभाने के लिए है। उसी प्रकार अन्तरंग स्थिति को उज्ज्वल बनाने के लिए बाहर अपना एक हाथ ढीले तरीके से आगे बढ़ा देता है। जिसे वह से भी पूरी तरह से संयम बरतने वाला व्यक्ति पवित्रता को पा व्यक्ति दोनों हाथों से दबाता है तो स्पष्ट है कि हाथों से दबाने जाता है। वाला सामने वाले को कुछ कहना चाहता है, उससे कुछ काम करवाना चाहता है चापलूसी करके। कई बार आदमी किसी को अंगूठा दिखाकर हिलाता है तो उसे टकराने का संकेत देता है और यदि तना हुआ अंगूठा खड़ा रखता है तो वह उसके आत्मविश्वास का परिचायक है। कोई प्रवचन दे रहा है और आप कड़क से बैठे हैं तो लगेगा आप सुनने को इच्छुक हैं और यदि ढीले-ढाले बैठे हैं तो लगेगा कि आप सुनना नहीं चाहते हैं। यदि कोई किसी से निकटता से बात कर रहा है तो लगेगा कि वह आपका कोई अनन्य मित्र है, सम्बन्धी है। इस प्रकार शरीर, हाथ पैर, आँख कान के ईशारे ऐसे होते हैं, जिससे व्यक्ति के मनोगत भाव समझे जा सकते हैं। कई बार केवल आँखें ही विभिन्न रूपों में व्यक्ति की मानसिकता का संकेत दे देती है कि वह आपके प्रति क्या रूख रखता है, घृणा, क्रोध, प्रेम आदि अनेक बातें केवल आंखें ही बता देती हैं। वैद्य नाड़ी के बदलते रूप को देखकर बीमारी का अनुमान लगा लेता है, यह भी एक स्वतन्त्र विषय है। इसलिए साधु को विनय के लक्षण में "इंगियागा संपन्ने" इंगित और आकार में संपन्न होना बतलाया है। जब वह गुरु के इंगितों को समझने में दक्ष हो जाएगा तो वह अन्य व्यक्तियों के इंगितों को समझने में भी दक्ष हो जाएगा। ऐसा व्यक्ति संयम के साथ हित में प्रवृत्ति और अहित से निवृत्ति ले सकता है। शास्त्रों में हत्थ संजए, पाय संजए आदि विशेषण भी आए हैं। वे हाथ संयम, पैर संयम, इन्द्रिय संयम, वाक्-वचन संयम आदि का संकेत करते हैं। इसलिए कि तुम्हारे अंग-प्रत्यंग भी आस्रव कर्मबन्धन की ओर नहीं जाने चाहिये। 0 अष्टदशी / 1920