Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar Agam Guna Manjusha
Author(s): Gunsagarsuri
Publisher: Jina Goyam Guna Sarvoday Trust Mumbai
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री उत्तराध्ययन सूत्र ॥ श्री आगम-गुण-मञ्जूषा ॥ ।। श्री आगम-गुण-भंभूषा ।। II Sri Agama Guna Manjusa II (सचित्र) प्रेरक-संपादक अचलगच्छाधिपति प.पू. आ. भ. स्व. श्री गुणसागर सूरीश्वरजी म.सा. Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ११ अंगसूत्र ४५ आगमो का संक्षिप्त परिचय ४५ आगमो का संक्षिप्त परिचय १) श्री आचारांग सूत्र :- इस सूत्र मे साधु और श्रावक के उत्तम आचारो का सुंदर वर्णन है । इनके दो श्रुतस्कंध और कुल २५ अध्ययन है । द्रव्यानुयोग, गणितानुयोग, धर्मकथानुयोग और चरणकरणानुयोगोमे से मुख्य चौथा अनुयोग है। उपलब्ध श्लोको कि संख्या २५०० एवं दो चुलिका विद्यमान है। ६) २) श्री सूत्रकृतांग सूत्र :- श्री सुयगडांग नाम से भी प्रसिद्ध इस सूत्र मे दो श्रुतस्कंध और २३ अध्ययन के साथ कुलमिला के २००० श्लोक वर्तमान मे विद्यमान है । १८० क्रियावादी, ८४ अक्रियावादी, ६७ अज्ञानवादी अपरंच द्रव्यानुयोग इस आगम का मुख्य विषय रहा है। ३) श्री स्थानांग सूत्र :- इस सूत्र ने मुख्य गणितानुयोग से लेकर चारो अनुयोंगो कि बाते आती है। एक अंक से लेकर दस अंको तक मे कितनी वस्तुओं है इनका रोचक वर्णन है, ऐसे देखा जाय तो यह आगम की शैली विशिष्ट है और लगभग ७६०० श्लोक है। ४) श्री समवायांग सूत्र :- यह सूत्र भी ठाणांगसूत्र की भांति कराता है । यह भी संग्रहग्रंथ है। एक से सो तक कौन कौन सी चीजे है उनका उल्लेख है। सो के बाद देढसो, दोसो, तीनसो, चारसो, पांचसो और दोहजार से लेकर कोटाकोटी तक कौनसे कौनसे पदार्थ है उनका वर्णन है। यह आगमग्रंथ लगभग १६०० श्लोक प्रमाण मे उपलब्ध है। ५ ) श्री व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र ( भगवती सूत्र ) :- यह सबसे बड़ा सूत्र है, इसमे ४२ शतक है, इनमे भी उपविभाग है, १९२५ उद्देश है। इस आगमग्रंथ में प्रभु महावीर के प्रथम शिष्य श्री गौतमस्वामी गणधरादि ने पुछे हुए प्रश्नो का प्रभु वीर ने समाधान किया है । प्रश्नोत्तर संकलन से इस ग्रंथ की रचना हुई है। चारो अनुयोगो कि बाते अलग अलग शतको मे वर्णित है। अगर संक्षेप मे कहना हो तो श्री भगवतीसूत्र रत्नो का खजाना है। यह आगम १५००० से भी अधिक संकलित श्लोको मे उपलब्ध है। ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र :- यह सूत्र धर्मकथानुयोग से है। पहले इसमे साडेतीन करोड कथाओ थी अब ६००० श्लोको मे उन्नीस कथाओं उपलब्ध है। ७) श्री उपासकदशांग सूत्र :- इसमें बाराह व्रतो का वर्णन आता है और १० महाश्रावको जीवन चरित्र है, धर्मकथानुयोग के साथ चरणकरणानुयोग भी इस सूत्र मे सामील है । इसमे ८०० से ज्यादा श्लोक है। ८) श्री अन्तकृद्दशांग सूत्र :- यह मुख्यतः धर्मकथानुयोग मे रचित है। इस सूत्र में श्री शत्रुंजयतीर्थ के उपर अनशन की आराधना करके मोक्ष मे जानेवाले उत्तम जीवो के छोटे छोटे चरित्र दिए हुए है। फिलाल ८०० श्लोको मे ही ग्रंथ की समाप्ति हो जाती है । ९) श्री अनुत्तरोपपातिक दशांग सूत्र :- अंत समय मे चारित्र की आराधना करके अनुत्तर विमानवासी देव बनकर दूसरे भव मे फीर से चारित्र लेकर मुक्तिपद को प्राप्त करने वाले महान् श्रावको के जीवनचरित्र है इसलीए मुख्यतया धर्मकथानुयोगवाला यह ग्रंथ २०० श्लोक प्रमाणका है। १०) श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र :- इस सूत्र मे मुख्यविषय चरणकरणानुयोग है। इस आगम में देव-विद्याघर-साधु-साध्वी श्रावकादि ने पुछे हुए प्रश्नों का उत्तर प्रभु ने कैसे दिया इसका वर्णन है । जो नंदिसूत्र मे आश्रव-संवरद्वार है ठीक उसी तरह का वर्णन इस सूत्र मे भी है । कुल मिला के इसके २०० श्लोक है। ११) श्री विपाक सूत्र :- इस अंग मे २ श्रुतस्कंध है पहला दुःखविपाक और दूसरा सुखविपाक, पहेले में १० पापीओं के और दूसरे में १० धर्मीओ के द्रष्टांत है मुख्यतया धर्मकथानुयोग रहा है । १२०० श्लोक प्रमाण का यह अंगसूत्र है । १२ उपांग सूत्र १) श्री औपपातिक सूत्र :- यह आगम आचारांग सूत्र का उपांग है। इस मे चंपानगरी का वर्णन १२ प्रकार के तपों का विस्तार कोणिक का जुलुस अम्बडपरिव्राजक के ७०० शिष्यो की बाते है। १५०० श्लोक प्रमाण का यह ग्रंथ है। २) श्री राजप्रनीय सूत्र :- यह आगम सुयगडांगसूत्र का उपांग है। इसमें प्रदेशीराजा का अधिकार सूर्याभदेव के जरीए जिनप्रतिमाओं की पूजा का वर्णन है । २००० श्लोको से भी अधिक प्रमाण का ग्रंथ है। श्री आगमगुणमंजूषा GY Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ %。 %%%%%%85 २) त्रास %%%%%%%%%%% doOKHAR153835555555555555555555345555555555555555555555555ODXOS KAROKKAXXE E EEEE994%953589 ४५ आगमो का संक्षिप्त परिचय 985555359999999455889 श्री जीवाजीवाभिगम सूत्र :- यह ठाणांगसूत्र का उपांग है । जीव और अजीव के दश प्रकीर्णक सूत्र बारे मे अच्छा विश्लेषण किया है। इसके अलावा जम्बुद्विप की जगती एवं विजयदेव ने कि हुइ पूजा की विधि सविस्तर बताइ है। फिलाल जिज्ञासु ४ प्रकरण, क्षेत्रसमासादि श्री चतुशरण प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने में अरिहन्त, सिद्ध, साधु और गच्छधर्म जो पढ़ते है वह सभी ग्रंथे जीवाभिगम अपरग्च पनवणासूत्र के ही पदार्थ है । यह के आचार के स्वरूप का वर्णन एवं चारों शरण की स्वीकृति है। आगम सूत्र ४७०० श्लोक प्रमाण का है। श्री प्रज्ञापना सूत्र- यह आगम समवायांग सूत्र का उपांग है । इसमे ३६ पदो का वर्णन श्री आतुर प्रत्याख्यान प्रकीर्णक सूत्र :- इस आगम का विषय है अंतिम आराधना है। प्रायः ८००० श्लोक प्रमाण का यह सूत्र है। और मृत्युसुधार ५) श्री सुर्यप्रज्ञप्ति सूत्र : श्री चन्द्रप्रज्ञप्तिसूत्र :- इस दो आगमो मे गणितानुयोग मुख्य विषय रहा है। सूर्य, ३) श्री भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने में पंडित मृत्यु के तीन प्रकार (१) चन्द्र, ग्रहादि की गति, दिनमान ऋतु अयनादि का वर्णन है, दोनो आगमो मे २२००, भक्त परिज्ञा मरण (२) इंगिनी मरण (३) पादोपगमन मरण इत्यादि का वर्णन है। २२०० श्लोक है। श्री जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र :- यह आगम भी अगले दो आगमों की तरह गणितानुयोग ६) श्री संस्तारक प्रकीर्णक सूत्र :- नामानुसार इस पयन्ने में संथारा की महिमा का वर्णन मे है। यह ग्रंथ नाम के मुताबित जंबूद्विप का सविस्तर वर्णन है। ६ आरे के स्वरूप है। इन चारों पयन्ने पठन के अधिकारी श्रावक भी है। बताया है। ४५०० श्लोक प्रमाण का यह ग्रंथ है। श्री तंदुल वैचारिक प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने को पूर्वाचार्यगण वैराग्य रस के श्री निरयावली सूत्र :- इन आगम ग्रंथो में हाथी और हारादि के कारण नानाजी का समुद्र के नाम से चीन्हित करते है । १०० वर्षों में जीवात्मा कितना खानपान करे दोहित्र के साथ जो भयंकर युद्ध हुआ उस मे श्रेणिक राजा के १० पुत्र मरकर नरक मे इसकी विस्तृत जानकारी दी गई है। धर्म की आराधना ही मानव मन की सफलता है। गये उसका वर्णन है। ऐसी बातों से गुंफित यह वैराग्यमय कृति है। श्री कल्पावतंसक सूत्र :- इसमें पद्यकुमार और श्रेणिकपुत्र कालकुमार इत्यादि १० भाइओं के १० पुत्रों का जीवन चरित्र है। ८) श्री चन्दाविजय प्रकीर्णक सूत्र :- मृत्यु सुधार हेतु कैसी आराधना हो इसे इस पयन्ने । १०) श्री पुष्पिका उपांग सूत्र :- इसमें १० अध्ययन है । चन्द्र, सूर्य, शुक्र, बहुपुत्रिका में समजाया गया है। देवी, पूर्णभद्र, माणिभद्र, दत्त, शील, जल, अणाढ्य श्रावक के अधिकार है। ११) श्री पुष्पचुलीका सूत्र :- इसमें श्रीदेवी आदि १० देवीओ का पूर्वभव का वर्णन है। ९) श्री देवेन्द्र-स्तव प्रकीर्णक सूत्र :- इन्द्र द्वारा परमात्मा की स्तुति एवं इन्द्र संबधित ई श्री वृष्णिदशा सूत्र :- यादववंश के राजा अंधकवृष्णि के समुद्रादि १०पुत्र, १० मे अन्य बातों का वर्णन है। पुत्र वासुदेव के पुत्र बलभद्रजी, निषधकुमार इत्यादि १२ कथाएं है। अंतके पांचो उपांगो को निरियावली पञ्चक भी कहते है। १०A) श्री मरणसमाथि प्रकीर्णक सूत्र :- मृत्यु संबधित आठ प्रकरणों के सार एवं अंतिम आराधना का विस्तृत वर्णन इस पयन्ने में है। %%%%% %%% %%%% %% %%%% %%%% %%%%% १०B) श्री महाप्रत्याख्यान प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने में साधु के अंतिम समय में किए जाने योग्य पयन्ना एवं विविध आत्महितकारी उपयोगी बातों का विस्तृत वर्णन है। (GainEducation-international 2010-03 VOON N54555554454549 श्री आगमगुणमजूषा E f54 www.dainelibrary.00) $$# KOR Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 乐乐乐乐玩玩乐乐听听听听听听圳坂圳乐乐听听听听的 १०८) श्री गणिविद्या प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने में ज्योतिष संबधित बड़े ग्रंथो का सार है। ३) उपरोक्त दसों पयन्नों का परिमाण लगभग २५०० श्लोकों में बध्य हे। इसके अलावा २२ अन्य पयन्ना भी उपलब्ध हैं। और दस पयन्नों में चंदाविजय पयन्नो के स्थान पर गच्छाचार पयन्ना को गिनते हैं। श्री नियुक्ति सूत्र :- चरण सत्तरी-करण सत्तरी इत्यादि का वर्णन इस आगम ग्रन्थ में ७ है। पिंडनियुक्ति भी कई लोग ओघ नियुक्ति के साथ मानते हैं अन्य कई लोग इसे अलग आगम की मान्यता देते हैं । पिंडनियुक्ति में आहार प्राप्ति की रीत बताइ हें। ४२ दोष कैसे दूर हों और आहार करने के छह कारण और आहार न करने के छह कारण इत्यादि बातें हैं। छह छेद सूत्र श्री आवश्यक सूत्र :- छह अध्ययन के इस सूत्र का उपयोग चतुर्विध संघ में छोट बडे सभी को है । प्रत्येक साधु साध्वी, श्रावक-श्राविका के द्वारा अवश्य प्रतिदिन प्रात: एवं सायं करने योग्य क्रिया (प्रतिक्रमण आवश्यक) इस प्रकार हैं : (१) सामायिक (२) चतुर्विंशति (३) वंदन (४) प्रतिक्रमण (५) कार्योत्सर्ग (६) पच्चक्खाण (१) निशिथ सूत्र (२) महानिशिथ सूत्र (३) व्यवहार सूत्र (४) जीतकल्प सूत्र (५) पंचकल्प सूत्र (६) दशा श्रुतस्कंध सूत्र इन छेद सूत्र ग्रन्थों में उत्सर्ग, अपवाद और आलोचना की गंभीर चर्चा है । अति गंभीर केवल आत्मार्थ, भवभीरू, संयम में परिणत, जयणावंत, सूक्ष्म दष्टि से द्रव्यक्षेत्रादिक विचार धर्मदष्टि असे करने वाले, प्रतिपल छहकाया के जीवों की रक्षा हेतु चिंतन करने वाले, गीतार्थ, परंपरागत क उत्तम साधु, समाचारी पालक, सर्वजीवो के सच्चे हित की चिंता करने वाले ऐसे उत्तम मुनिवर जिन्होंने गुरु महाराज की निश्रा में योगद्वहन इत्यादि करके विशेष योग्यता अर्जित की हो ऐसे * मुनिवरों को ही इन ग्रन्थों के अध्ययन पठन का अधिकार है। दो चूलिकाए १) श्री नंदी सूत्र :- ७०० श्लोक के इस आगम ग्रंन्थ में परमात्मा महावीर की स्तुति, संघ की अनेक उपमाए, २४ तीर्थकरों के नाम ग्यारह गणधरों के नाम, स्थविरावली और पांच ज्ञान का विस्तृत वर्णन है। चार मूल सूत्र श्री दशवकालिक सूत्र :- पंचम काल के साधु साध्वीओं के लिए यह आगमग्रन्थ अमृत सरोवर सरीखा है। इसमें दश अध्ययन हैं तथा अन्त में दो चूलिकाए रतिवाक्या व, विवित्त चरिया नाम से दी हैं । इन चूलिकाओं के बारे में कहा जाता है कि श्री स्थूलभद्रस्वामी की बहन यक्षासाध्वीजी महाविदेहक्षेत्र में से श्री सीमंधर स्वामी से चार चूलिकाए लाइ थी। उनमें से दो चूलिकाएं इस ग्रंथ में दी हैं। यह आगम ७०० श्लोक प्रमाण का है। श्री अनुयोगद्वार सूत्र :- २००० श्लोकों के इस ग्रन्थ में निश्चय एवं व्यवहार के आलंबन द्वारा आराधना के मार्ग पर चलने की शिक्षा दी गइ है । अनुयोग याने शास्त्र की व्याख्या जिसके चार द्वार है (१) उत्क्रम (२) निक्षेप (३) अनुगम (४) नय यह आगम सब आगमों की चावी है। आगम पढने वाले को प्रथम इस आगम से शुरुआत करनी पड़ती है। यह आगम मुखपाठ करने जैसा है। ॥ इति शम्॥ श्री उत्तराध्ययन सूत्र :- परम कृपालु श्री महावीरभगवान के अंतिम समय के उपदेश इस सूत्र में हैं । वैराग्य की बातें और मुनिवरों के उच्च आचारों का वर्णन इस आगम ग्रंथ में ३६ अध्ययनों में लगभग २००० श्लोकों द्वारा प्रस्तुत हैं। ) Gain Education International 2010_03 Mora :58498499934555555555; आगमगुणमजूषा-5555555555555555555555555 ) Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ YOKO ALLA RURU RAREO ai i ferox (9) (3) KC国乐国为乐明明明明明明明明乐明明明明明F%%%%明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明军5B Introduction 45 Agamas, a short sketch I Eleven Angas : Acäränga-sutra : It deals with the religious conduct of the monks and the Jain householders. It consists of 02 Parts of learning, 25 lessons and among the four teachings on entity, calculation, religious discourse and the ways of conduct, the teaching of the ways of conduct is the main topic here. The Agama is of the size of 2500 ślokas. Sayagadanga-sutra : It is also known as Sütra-Kytänga. It's two parts of learning consist of 23 lessons. It discusses at length views of 363 doctrine-holders. Among them are 180 ritualists, 84 nonritualists, 67 agnostics and 32 restraint-propounders, though it's main area of discussion is the teaching of entity. It is available in the size of 2000 ślokas. Thápānga-sūtra : It begins with the teaching of calculation mainly and discusses other three teachings subordinately. It introduces the topic of one dealing with the single objects and ends with the topic of eight objects. It is of the size of 7600 ślokas. Samavāyanga-sutra : This is an encompendium, introducing 01 to 100 objects, then 150, 200 to 500 and 2000 to crores and crores of objects. It contains the text of size of 1600 Slokas. Vyakhya-prajñapti-sutra : It is also known as Bhagavati-sutra. It is the largest of all the Angas. It contains 41 centuries with subsections. It consists of 1925 topics. It depicts the questions of Gautama Ganadhara and answers of Lord Mahavira. It discusses the four teachings in the centuries. This Agama is really a treasure of gems. It is of the size of more than 15000 ślokas. Jäätādharma-Kathanga-sutra : It is of the form of the teaching of the religious discourses. Previously it contained three and a half crores of discourses, but at present there are 19 religious discourses. It is of the size of 6000 ślokas. Upasaka-dasānga-sutra : It deals with 12 vows, life-sketches of 10 great Jain householders and of Lord Mahavira, too. This deals with the teaching of the religious discourses and the ways of conduct. It is of the size of around 800 Slokas. (8) Antagada-dasänga-sutra : It deals mainly with the teaching of the religious discourses. It contains brief life-sketches of the highly spiritual souls who are born to liberate and those who are liberating ones: they are Andhaka Vrsni, Gautama and other 9 sons of queen Dharini, 8 princes like Akşobhakumara, 6 sons of Devaki, Gajasukumāra, Yadava princes like Jali, Mayāli, Vasudeva Krsna, 8 queens like Rukmini. It is available of the size of 800 Slokas. Anuttarovavayi-daśãnga-sútra: It deals with the teaching of the religious discourses. It contains the life-sketches of those who practise the path of religious conduct, reach the Anuttara Vimana, from there they drop in this world and attain Liberation in the next birth. Such souls are Abhayakumāra and other 9 princes of king Srenika, Dirghasena and other 11 sons, Dhanna Anagara, etc. It is of the size of 200 ślokas. (10) Prasna-vyakarana-sūtra : It deals mainly with the teaching of the ways of conduct. As per the remark of the Nandi-satra, it contained previously Lord Mahāvira's answers to the questions put by gods, Vidyadharas, monks, nuns and the Jain householders. At present it contains the description of the ways leading to transgression and the self-control. It is of the size of 200 ślokas. (11) Vipaka-sütrānga-sūtra : It consists of 2 parts of learning. The first part is called the Fruition of miseries and depicts the life of 10 sinful souls, while the second part called the Fruition of happiness narrates illustrations of 10 meritorious souls. It is available of the size of 1200 ślokas. 图纸娱乐明明明明明明明明明明垢玩垢圳明明听听听听听听听听听听听垢乐明明明明明明明明明听听听听听听听听 (5) (6) (1) II Twelve Upangas Uvaväyi-sütra : It is a subservient text to the Acāranga-sutra. It deals with the description of Campā city, 12 types of austerity, procession-arrival of Koñika's marriage, 700 disciples of the monk Ambada. It is of the size of 1000 ślokas. Rayapaseni-sutra : It is a subservient text to Süyagađanga-sutra. It depicts king Pradesi's jurisdiction, god Suryabha worshipping the Jina idols, etc. It is of the size of 2000 ślokas. (7) (2) www.Lainelibrary XXXX XXXXL PITJUGET TOYOX Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ DEFFFFFFFFFFFFFFFFFFFhible Gamin nh* HIFThe ha EEEEEEEEEEEE开F听听听听听听听听明明Ow (3) Jivābhigama-sutra : It is a subservient text to Thāṇānga-sūtra. It one Vasudeva, his son Balabhadra and his son Nişadha. deals with the wisdom regarding the self and the non-self, the Jambo continent and its areas, etc. and the detailed description of the III Ten Payanna-sutras : veneration offered by god Vijaya. The four chapters on areas, society, (1) Aurapaccakhāņa-sūtra : It deals with the final religious practice etc. published recently are composed on the line of the topics of this and the way of improving (the life so that the) death (may be Sutra and of the Pannavaņa-sutra. It is of the size of 4700 Slokas. improved). Pannavaņā-sutra : It is a subservient text to the Samavāyānga- (2) Bhattaparinna-sutra : It describes (1) three types of Pandita death, sätra. It describes 36 steps or topics and it is of the size of 8000 (2) knowledge, (3) Ingini devotee ślokas. (4) Pādapopagamana, etc. (5) Sürya-prajfapti-sutra and (4) Santhäraga-payannā-sutra : It extols the Samstäraka. Candra-prajñapti-sätra : These two falls under the teaching of the calculation. They depict the solar and the lunar transit, the ** These four payannás can also be learnt and recited by the Jain movement of planets, the variations in the length of a day, seasons, householders. ** northward and the southward solstices, etc. Each one of these Āgamas are of the size of 2200 Slokas. (5) Tandula-viyaliya-payanna-sūtra : The ancient preceptors call this Jambadvipa-prajñapti-sutra : It mainly deals with the teaching Payanna-sutra as an ocean of the sentiment of detachment. It of the calculations. As it's name indicates, it describes at length the describes what amount of food an individual soul will eat in his life objects of the Jambu continent, the form and nature of 06 corners of 100 years, the human life can be justified by way of practising a (ära). It is available in the size of 4500 Slokas. religious life. Nirayávali-pacaka : (6) Candāvijaya-payannā-sūtra : It mainly deals with the religious (8) Nirayávali-sütra : It depicts the war between the grandfather and practice that improves one's death. the daughter's son, caused of a necklace and the elephant, the death (7) Devendrathui-payanna-sutra : It presents the hymns to the Lord of king Greñika's 10 sons who attained hell after death. This war is sung by Indras and also furnishes important details on those Indras. designated as the most dreadful war of the Downward (avasarpini) (8) Maranasamadhi-payanna-sutra : It describes at length the final age. religious practice and gives the summary of the 08 chapters dealing (9) Kalpāvatamsaka-sutra : It deals with the life-sketches of with death. Kalakumara and other 09 princes of king Sreņika, the life-sketch of (9) Mahäpaccakhāņa-payanna-sutra : It deals specially with what a Padamakumpra and others. monk should practise at the time of death and gives various beneficial (10) Pupphiya-upanga-sutra : It consists of 10 lessons that covers the informations. topics of the Moon-god, Sun-god, Venus, queen Bahuputrikā, (10) Gaņivijaya-payanna-sūtra : It gives the summary of some treatise Purnabhadra, Manibhadra, Datta, sila, Bala and Aņāddhiya. on astrology (11) Pupphacultya-upanga-sutra : It depicts previous births of the 10 These 10 Payannās are of the size of 2500 ślokas. queens like Sridevi and others. Besides about 22 Payannās are known and even for these above (12) Vahnidaśa-upanga sätra : It contains 10 stories of Yadu king 10 also there is a difference of opinion about their names. The Gacchācāra Andhakavrşni, his 10 princes named Samudra and others, the tenth is taken, by some, in place of the Candāvijaya of the 10 Payannās. 明明明明明明乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐国乐乐乐乐手乐乐乐乐乐明與乐乐乐乐乐乐乐乐FFFF乐乐乐明 XOXOFF $ farmark ** F YOX Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ YOKOK YU BALLU BURU VERLO PLA Xoxo (1) (2) IV Six Cheda-sūtras (1) Vyavahāra-sūtra, (2) Nisītha-Sutra, (3) Mahānisitha-sūtra, (4) Pancakalpa-satra, (5) Daśāśruta-skandha-Sotra and (6) Bhatkalpa-sutra. These Chedasätras deal with the rules, exceptions and vows. The study of these is restricted only to those best monks who are (1) serene, (2) introvert, (3) fearing from the worldly existence, (4) exalted in restraint, (5) self-controlled, (6) rightfully descerning the subtlety of entity, territories, etc. (7) pondering over continuously the protection of the six-limbed souls, (8) praiseworthy, (9) exalted in keeping the tradition, (10) observing good religious conduct, (11) beneficial to all the beings and (12) Who have paved the path of Yoga under the guidance of their master. VI Two Colikas Nandi-sutra : It contains hymn to Lord Mahavira, numerous similies for the religious constituency, name-list of 24 Tirtharkaras and 11 Ganadharas, list of Sthaviras and the fivefold knowledge. It is available in the size of around 700 Slokas. Anuyogadvāra-sutra : Though it comes last in the serial order of the 45 Ágamas, the learner needs it first. It is designated as the key to all the Agamas. The term Anuyoga means explanatory device which is of four types: (1) Statement of proposition to be proved, (2) logical argument, (3) statement of accordance and (4) conclusion. * It teaches to pave the righteous path with the support of firm resolve and wordly involvements. It is of the size of 2000 ślokas. ** ********* V Four Molas atras (1) Dajavaikalika-sutra : It is compared with a lake of nectar for the monks and nuns established in the fifth stage. It consists of 10 lessons and ends with 02 Colikas called Rativakya and Vivittacariya. It is said that monk Sthūlabhadra's sister nun Yakşă approached Simandhara Svāmi in the Mahavideha region and received four Calikas. Here are incorporated two of them. (2) Uttaradhyayana-sutra : It incorporates the last sermons of Lord Mahavira. In 36 lessons it describes detachment, the conduct of monks and so on. It is available in the size of 2000 Slokas. . (3) Anuyogadvara-sutra: It discusses 17 topics on conduct, behaviour, etc. Some combine Piryaniryukti with it, while others take it as a separate Agama. Pindaniryukti deals with the method of receiving food (bhiksă or gocari), avoidance of 42 faults and to receive food, 06 reasons of taking food, 06 reasons for avoiding food, etc. Avašyaka-sútra: It is the most useful Agama for all the four groups of the Jain religious constituency. It consists of 06 lessons. It describes 06 obligatory duties of monks, nuns, house-holders and housewives. They are: (1) Samayika, (2) Caturvimšatistava, (3) Vandana, (4) Pratikramana, (5) Kāyotsarga and (6) Paccakhana. 明明明明明明明明明與乐乐乐为历历明明明明明明明明兵兵兵兵兵兵兵兵乐乐乐乐玩玩乐乐明步兵兵玩乐乐乐恩 * O YOK LOXOV L FT STATUTEUT- O 20:10 03 www.ainelibrary.org Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ TO સરળ ગુજરાતી ભાવાર્થ XCK蛋蛋蛋 અધ્યયન ઉપલબ્ધ મૂલપાઠ પદ્યસૂત્ર ગદ્યસૂત્ર ૩૬ અધ્યયનોનાં નામ ૧. વિનયશ્રુત ૨. પરિષદ્ધ આગમ - ૪૨ સર્વાનુયોગમય ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર - ૪૨ ૩. ચાતુરંગીય ૪. અસંસ્કૃત/પ્રમાદાપ્રમાદ ૫. કામ મરણ ૬. ક્ષુલ્લક નિગ્રંથીય/ પુરુષવિદ્યા * ૭. ઔરભીય ૮. કાપિલીય ૯. નમિ-પ્રવ્રજ્યા ૧૦. દ્રુમ-પત્રક ૧૧. બહુશ્રુત પૂજ્ય ૧૨. હરિકેશીય ૧૩. ચિત્તસંભૂતીય ૧૪. ઈયુકારીય ૧૫. સભિક્ષુ ૧૬. બ્રહ્મચર્ય સમાધિ ૧૭. પાપશ્રમણીય ૧૮. સંયતીય श्री आगमगुणमंजूषा ५४ ---39 - ૨૧૦૦ - - ૧૬૫૬ શ્લોક પ્રમાણ ૧૯. મૃગાપુત્રીય ૨૦. મહાનિર્રીથીય ૨૧. સમુદ્રપાલીય ૨૨. રહનેમીય ૨૩. કેશી-ગૌતમીય ૨૪. સમિતિ ૨૫. યજ્ઞીય ૨૬. સમાચારી ૨૭. ખલુંકીય ૨૮. મોક્ષમાર્ગ ગતિ ૨૯. સમ્યક્ત્વ-પરાક્રમ ૩૦. તપમાર્ગ ૩૧. ચરણ-વિધિ ૩૨. પ્રમાદસ્યાન ૩૩. કર્મ-પ્રકૃતિ ૩૪. લેયા વર્ણન ૩૫. અણગાર ૩૬. જીવાજીવવિભક્તિ *૨-૬-૧૬-૨૯ અધ્યયનોમાં અનુક્રમે ૪-૧-૧૦-૧૪ ગદ્યસૂત્રો પણ છે. બાકીનામાં પદ્યસૂત્રો જ છે. 520萬 Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明Han leved Hilala 玩玩乐乐乐乐玩玩乐乐乐玩玩乐乐明明明明明明明明愛 GCK乐乐乐乐乐乐听听听听乐乐乐乐乐乐玩玩乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐听听听听听听听乐听听听听听听听听乐乐乐C恩 (૧) અધ્યયન: વિનય (૮) અધ્યયન કપિલીય આમાં વિનીત- અવિનીતના લક્ષણ, વિનીતને અશ્વની અને અવિનીતને અડિયલ આમાં ભિક્ષુના લક્ષણ, દુર્ગતિ રોકવાના ઉપાયની જિજ્ઞાસા, તેમજ માખી, હુની ઉપમા તેમજ આત્મ-દમન-નિગ્રહનો ઉપદેશ, ભાષા તથા ગવેષણા, ગ્રહëષણા સાંયાત્રિક અને પાણીના પ્રવાહના ઉદાહરણો, કપિલનું આખ્યાન અને અંતે અને ગ્રાસષણા સંબંધી વિવેક અને અંતે વિનયની સર્વત્ર પ્રશંસા થાય છે એ કથનથી ઉપસંહાર ધર્મઆરાધકોની ઉભય લોક-આરાધનાનું વર્ણન છે. કરવામાં આવ્યો છે. (૯) અધ્યયન: નમિ-પ્રવજ્યા (૨) અધ્યયન: પરિષાહ આમાં નમિ-રાજાનું જાતિસ્મરણ, એનો ગૃહત્યાગ, બ્રાહ્મણરૂપે કેન્દ્ર દ્વારા છે આમાં ભગવાન મહાવીર દ્વારા સુધા (ભૂખ), પિપાસા (તરસ), શીત, ઉષ્ણ નગરજનો, રાણીઓ વગેરે પર ધ્યાન દેવાની પ્રાર્થના, નમિ-રાજાના સચોટ ઉત્તરો, ઈન્દ્રનું વગેરે ૨૨ પરિષહોના વર્ણન કરીને તે સહન કરવા પ્રેરણા કરી છે. પ્રાકટ્ય, નમિ-રાજાની પ્રવ્રજ્યા વર્ણવીને અંતે પ્રબુદ્ધ પુરુષોએ નમિ-રાજાની માફક (૩) અધ્યયન: ચાતુરંગીય ભોગોમાંથી નિવૃત્તિ લેવી એવો ઉપદેશ છે. આમાં (૧) મનુષ્યભવ, (૨) શ્રુતિ(ધર્મ-શ્રવણ), (૩) શ્રદ્ધા અને (૪) (૧૦) અધ્યયન કુમ-પત્રક વીર્ય(આચરણ) એ ચાર અંગોની દુર્લભતા અને તે ચાર અંગોની પ્રાપ્તિથી આ લોક અને આમાં મનુષ્ય જીવનને ઝાડના પાનની અને કુરા-ઘાસની ટોચે ચોટેલા પાણીના પરલોકના ફળ અને સિદ્ધગતિ થાય છે તેનું વર્ણન છે. ટીપાની ઉપમા આપીને મનુષ્ય જીવનની દુર્લભતા બતાવી છે. પૂર્વકર્મોની રજ દૂર કરવાનો (૪) અધ્યયનઃ અસંસ્કૃત/પ્રમાદા પ્રમાઠ ઉપદેશ તેમજ શરઋતુનાકમળ, માર્ગ, ભારવાહક અને સમુદ્રતટના ઉદાહરણો આપીને આમાં પ્રમાદના ઉપદેશમાં ચોર અને દીપકનું ઉદાહરણ તેમજ અપ્રમાદના અંતે રાગ-દ્વેષનો ક્ષય કરવાનો ઉપદેશ છે. ઉદાહરણમાં ભારંડ પક્ષીનું ઉદાહરણ આપીને રાગ-દ્વેષકષાયની નિવૃત્તિ અને સમભાવ- (૧૧) અધ્યયન: બહુશ્રુત-પૂજ્ય સાધનાનો ઉપદેશ છે. આમાં અણગારના આચાર-કથનની પ્રતિજ્ઞા કરીને અવિનીત તેમજ જિજ્ઞાસુના (૫) અધ્યયન: અકામ-મરણ, લક્ષણ, જિજ્ઞાસુના પાંચ દોષ અને આઠ ગુણ બતાવને યોગ્ય જિજ્ઞાસુનું લક્ષણ આપવામાં આમાં મરણ-વિષયક પ્રશ્નો, મરણના બાલ-મરણ તેમજ પંડિત-મરણ એમ એ આવ્યું છે. તે યોગ્ય જિજ્ઞાસુ – બહુશ્રુતને શંખનું જળ, અશ્વ, અશ્વારોહી વીર વગેરે જુદા પ્રકારો બતાવીને અળશિયાનું, ગાડાવાળા (શાકટિક)નું તેમજ જુગારી (ધૂતકાર) નું એમ જુદા ૧૭ ઉપમાન - વસ્તુઓ સાથે સરખાવી અંતે શ્રુતના અધ્યયનથી શિવપદ મળે છે ત્રણ ઉદાહરણો આપીને બાલ-વ્યક્તિઓના અકામ-મરણ તેમજ સંયમીઓનું પંડિત- એવો ઉપદેશ છે. મરણ બતાવ્યાં છે. ગૃહસ્થ અને ભિક્ષુની પ્રકારાનુસાર મરણ-ગતિ બતાવીને અંતે પંડિતોના (૧૨) અધ્યયનઃ હરિકેશીય ત્રણ સકામ-મરણની વાત કરી છે. આમાં ચંડાળકુળમાં જન્મેલો હરિકેશી શ્રમણ ભિક્ષા લેવા બ્રહ્મયજ્ઞમાં જાય છે કે (૧) અધ્યયન: શુલ્લક નિય? પુરુષવિદ્યા અને ત્યાં બ્રાહ્મણો દ્વારા અનાદર પામે છે, હિંદુક યક્ષનો કોપ અને બ્રહ્મકુમારોની દુર્દશા, આમાં અજ્ઞાનીઓનું દુઃખમય જીવન, મત્રી-ભાવના, અશરણ ભાવના, હિંસા અને યજ્ઞ-પ્રમુખ દ્વારા ક્ષમાયાચના અને હરિકેશીને ભિક્ષાદાન અને અંતે હરિકેશી દ્વારા અદત્તાદાન (ચોરી)નો નિષેધ તેમજ પક્ષીનું ઉદાહરણ આપીને ગવેષણાનો ઉપદેશ છે. અધ્યાત્મનાન અને અધ્યાત્મ યજ્ઞનું પ્રતિપાદન છે. (૭) અધ્યયન: ઓરણીય (૧૩) અધ્યયન: ચિત્ત-સંભૂતિ આમાં મહેમાનોના નિમિત્તે પાળવામાં આવતા ઘેટાંનું ઉદાહરણ તેમજ કાકિણી, આમાં પુરિમતાલમાં જન્મેલા ચિત્ત અને સંભૂતિની હસ્તિનાપુરથી ચ્યવન પછી આમ (બી), ત્રણ વાણિયા અને સમુદ્રના ઉદાહરણ, દેવો અને મનુષ્યોનાકામ-ભોગોની કાંપિલ્યપુરની રાણી ચુલિની દેવીમાં જન્મેલા બ્રહ્મદત્તનું મિલન, ચિત્તદ્વારા અશરણ. તુલના તેમજ ધર્મ અધર્મની તુલના આપવામાં આવી છે. ભાવનાનો ઉપદેશ અને આર્ય કર્મોની પ્રેરણા, કાદવમાં ફસાયેલા હાથીની જેમ બ્રહ્મદત્તની ભોગોમાં આસક્તિ અને તેને લીધે મૃત્યુ પછી નરકમાં ઉત્પત્તિ અને ચિત્તને મુક્તિ વગેરે છે વર્ણન છે. S MM MMMMMM MMFFF 5 F શ્રી રામગુણમંજૂલા - 5 F #FF T M F F K M MM E F Fર્કી MONOF明明明明明明明明听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听CTOR Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RCx玩玩乐乐听听听听听听听乐乐乐乐乐玩玩乐乐玩玩乐乐乐乐乐乐乐乐乐玩玩乐乐乐乐明乐乐乐明明玩乐乐GO SSSSSSSSSSત સારવાસનીબા ઝાકઝાકઝsses (૧૪) અધ્યયન: ઈષકારીય (૨૦) અધ્યયનઃ મહાનિર્ગથીય આમાં રાજા ઈષકુમાર અને રાણી કમલાવતી તેમજ પુરોહિત ભૃગુ અને તેની પત્ની આમાં આરંભે સિદ્ધો અને સંયતોને નમસ્કાર કરીને સત્યધર્મકથાની પ્રેરણા કરવામાં જ જસા, તેમના બે પુત્રો મળી કુલ્લે છ જણાનો પુરોહિતના પુત્રો તરીકેનો બીજો ભવ, તેમાં આવી છે. મગધના રાજા શ્રેણિક અને અનાથી મુનિનો સુંદર વાર્તાલાપ છે. અનાથતાના ક્ર પૂર્વભવ-સ્મરણ અને પિતાને પ્રવ્રજ્યા માટે અનુમતિ- યાચના, પિતા-પુત્રોનો ગૃહસ્થ વિવિધ પ્રકારો જણાવી મહાનિગ્રંથના જીવનનું વિસ્તૃત વર્ણન છે. આમાં મુનિ જીવનની # જીવન, આત્મા વગેરે વિષય પર ચર્ચાને અંતે છ જણા દ્વારા દીક્ષા ગ્રહણ વગેરે વર્ણન છે. તુલના પક્ષિ-જીવન સાથે કરવામાં આવી છે, (૧૫) અધ્યયનઃ સ ભિક્ષુ (૨૧) અધ્યયન સમુદ્રપાલીયા આમાં ભિક્ષુના લક્ષણ તેમજ નિયાણું, પ્રશંસા, કામ-ભોગોની ચાહના, એષણા આમાં ભગવાન મહાવીરના ચંપા નગરીવાસી શિષ્ય પાલિત શ્રાવક અને તેની વગેરેના નિષેધ, વિરક્તિ, અનાસક્તિ અને અત્યલ્પ સાધનો રાખવાના વિધિ વગેરે જેવા પત્નીના પિહુડનગરથી પરત આવતી વખતે સમુદ્રમાં પુત્ર જન્મ, પુત્રનું નામ સમુદ્રપાલ, વિધિનિષેધો આપવામાં આવ્યા છે. કાળક્રમે કોઈ ચોરને વધ્યભૂમિ પર લઈ જવાતો જોઈને વૈરાગ્ય, પછી પ્રવ્રજ્યા, સંયમ (૧૧) અધ્યયન: બ્રહ્મચર્ય-સમાધિ સાધના અને કેવળજ્ઞાન વગેરે વર્ણનના અંતે સમુદ્રપાલ સંસાર-સમુદ્રને પાર કરી ગયાનો આમાં ભગવાન મહાવીર દ્વારા બ્રહ્મચર્ય-સમાધિના સ્ત્રી-વિષયક પાંચ, ભોગ- ઉપસંહાર છે. વિષયક યાર અને મનોજ્ઞ-શબ્દ-શ્રવણ મળીને કુલ્લે દસસ્થાનોનું નિરૂપણ, તે બધાથી દૂર (૨૨) અધ્યયન: રહનેમીય (રથનેમીય) રહેવા ઉપદેશ અને બ્રહ્મચર્યના મહિમા તથા તેનાથી શિવપદ પ્રાપ્તિ વગેરે વર્ણન છે. આમાં શૌરીપુરના રાજા વસુદેવની પત્ની શિવાના પુત્ર અરિષ્ટનેમિ દ્વારા (૧૭) અધ્યયનઃ પાપભ્રમણીય વિવાહમંડપમાં વધમાટે રાખેલા પક્ષીઓને ઉડાડી મૂકવા, દીક્ષા અને રૈવતક- પર્વત પર આમાં નિગ્રંથ-ધર્મને જાણતો હોવા છતાં સ્વચ્છંદ-ચારી, પ્રમાદી, અધ્યયન- તપ, રાજીમતી કુમારીની પ્રવ્રજ્યા અને અરિષ્ટનેમિના દર્શનાર્થે રૈવતક-પર્વત પર જતા વિમુખ, અધિક - આહારી, અધિક-નિદ્રા લેનાર, અવિવેકી, માયાવી, બહુભાષી, માર્ગમાં વરસાદમાં ભીંજાઈ જવું, ભીના વસ્ત્રો સૂક્વવા ગુફામાં જવું, ત્યાં તપ કરતા રથનેમિનું અભિમાની, લોભી, વિષય-લોલુપ, દ્વેષી, ચંચળ, અનિયમિત ભોજન કરવાવાળો, સંયમથી વિચલિત થવું, રામતીનો ઉપદેશ, રથનેમિની સંયમમાં સ્થિરતા અને બંનેને કે દુરાચારી, વિઘોપજીવી વગેરે દુર્ગુણોનું અને અંતે પંચાવનું સેવન કરનાર શ્રમણ ભ્રષ્ટ થાય કેવળજ્ઞાન અને નિર્વાણ વગેરે વર્ણન છે. છે વગેરે વર્ણન છે. (૨૩) અધ્યયન કેરી-ગોતમીય (૧૮) અધ્યયન: સંયતીય આમાં ભગવાન પાર્શ્વનાથના શ્રાવસ્તીના કેશીશ્રમણ અને ભગવાન મહાવીરના કાંપિલ્યપુરના રાજા સયતનું શિકાર માટે ગમન, મૃગને બાણથી વીંધવું, ખાણ- શિષ્ય ભગવાન ગૌતમ ગણધરનું મિલન, ભગવાન ગૌતમ ગણધર દ્વારા કેશીના હત મૃગનું અણગાર ગદ્ભાલી પાસે જવું, રાજાનું આગમન અને પશ્ચાત્તાપ, રાજા અને ચતુર્યામધર્મ, અનુયાયી - શ્રમણ, વિજય-પ્રતિક્રમ વગેરે ૧૨ પ્રશ્નોના ઉત્તર અને મુનિનો ધર્મ-સંવાદ, રાજા દ્વારા દીક્ષા ગ્રહણ અને ભરત, સગર, મધવ વગેરે ૧૯ રાજાઓએ સમાધાન અને કેશી શ્રમણ વડે પંચ મહાવ્રત ધારણ વગેરે વર્ણન છે. લીધેલી પ્રવ્રજ્યા વગેરે વર્ણન પછી અંતે જે સર્વથા પરિગ્રહથી મુક્ત છે તેને મુક્તિ મળે છે (૨૪) અધ્યયનઃ સમિતિ તેવો ઉપદેશ છે. આમાં આઠ પ્રવચન- માતામાં પાંચ સમિતિઓ ઈર્ષા, ભાષા, એષણા, આદાન (૧૯) અધ્યયનઃ મૃગાપુત્રીય અને પરિઝાપનિકા તેમજ ત્રણ ગુપ્તિ-મન, વચન અને કર્મ, તે બધાનાં ભેદોનું વર્ણન આમાં સુગ્રીવ નગરના રાજા બળભદ્ર અને રાણી મૃગાના પુત્ર મૃગાની કથા છે. કરીને આ આઠ પ્રવચન-માતાની સમ્યફ આરાધનાથી મુક્તિની વાત છે. મૃગાપુત્રને મુનિનું દર્શન થવાથી પૂર્વ-જન્મ-સ્મૃતિ, માતાપિતા સાથે પ્રવજ્યાની અનુમતિ (૨૫) અધ્યયન યજ્ઞીય છેપ્રાર્થના, ભોગો અને શ્રમણ - જીવનની કઠણતા વિષયક ચર્ચા, અંતે પ્રવજ્યા, એક માસની આમાં વારાણસી બહાર ઉદ્યાનમાં ઉતારો કરી રહેલા જયઘોષ મુનિનું યજ્ઞ કરી સંલેખના અને શિવપદ પ્રાપ્તિ વગેરે વર્ણન છે. રહેલા વિજય ઘોષના યજ્ઞમાં ભિક્ષાર્થે જવું, ભિક્ષા ન આપવી, વિજયઘોષના પ્રશ્નોના ૪ જયઘોષ દ્વારા ઉત્તર, સાચા બ્રાહ્મણ અને વેદ- વિહિત યજ્ઞનું વર્ણન તેમજ શ્રમણ, બ્રાહ્મણ, ક્ષ B OF F E W SEM 5 શ્રી ભાગમગુળમંજૂષા - ઉદ્ HM EFFFFFFFF ME F F FM EE ) 乐乐乐乐乐编织乐%%%乐听听听听听听听听听听听听听乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听FQ Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ મચ્છકકકકકકકકકક સરળ ગુજરાતી ભાવાર્થ | Anan mn 2 msg 8 ORD%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%2 0 મુનિ અને તાપસની વ્યાખ્યાઓને અંતે વિજયઘોષની ભિક્ષા ગ્રહણ માટે પ્રાર્થના, જયઘોષ ઈન્દ્રિય-વિષયોથી વિરક્ત થવાનો ઉપદેશ, તેમજ વિરક્ત, વીતરાગ, જીવન્મુક્ત, મુક્તાત્મા મુનિ દ્વારા વિરતિનો ઉપદેશ, વિજયઘોષની પ્રવ્રજ્યા વગેરે વર્ણન છે. વગેરેનું વર્ણન છે. (૨૬) અધ્યયન: સમાચારી (૩૩) અધ્યયન કર્મ-પ્રકૃતિ આમાં સમાચારી ના ૧૦ ભેદ અને ૧૦ કર્તવ્ય, દિવસ-સમાચારી અને તેને માટે આમાં (૧) જ્ઞાનાવરણીય, (૨) દર્શનાવરણીય, (૩) વેદનીય, (૪) મોહનીય, દિવસના ચાર ભાગ અનુસાર શ્રમણ-કૃત્ય તેમજ રાત્રિ-સમાચારી અને તેને માટે રાત્રિના (૫) આયુ, (૬) નામ, (૭) ગોત્ર અને (૮) અંતરાય- એમકર્મની આઠ પ્રકૃતિઓ, ચાર ભાગ અનુસાર શ્રમણ-કૃત્ય, સિદ્ધસ્તુતિ અને અંતે સમાચારીની આરાધનાથી શિવપદ જધન્ય-ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિઓ અને તે કર્મોના અનુભાગ એવા રસ વગેરેનું વર્ણન છે. પ્રાપ્તિની વાત જણાવી છે. (૩૪) અધ્યયનઃ લેયા-વર્ણન (૨૭) અધ્યયન: ખાંકીય આમાં લેશ્યા સંબંધી ૧૧ અધિકાર, દરેક વેશ્યાના નામ, વર્ણ, રસ, ગંધ, સ્પર્શ, ( આમાં ગર્ગાચાર્યના આધ્યાત્મિક પરિચય પછી તેમનું ચિંતન, દુષ્ટ શિષ્યોની દુષ્ટ પરિણામ, લક્ષણ, સ્થાન, સ્થિતિ અને ગતિ વગેરેનું વર્ણન છે. આખલા સાથે તુલના અને તેને વહન કરનાર સારથિની પોતાની સાથે તુલના, દુષ્ટ શિષ્ય (૩૫) અધ્યયનઃ અણગાર ત્યાગ અને એકાકી વિહારનું કથાનક છે. આમાં સાધુ-નિવાસના અયોગ્ય સ્થાન, ભોજન રાંધવાનો નિષેધ, ભિક્ષાવૃત્તિ(૨૮) અધ્યયન મોક્ષમાર્ગ-ગતિ વિધાન, સાધના-વિધિ વગેરે વર્ણન છે, આમાં મોક્ષમાર્ગના જ્ઞાન, દર્શન, ચારિત્ર અને તપ એમ ચાર કારણ જણાવી દરેકના (૩૬) અધ્યયનઃ જીવાજીવ વિભક્તિ ભેદો અને તેની પરિભાષા તથા કર્તવ્યો વગેરે ચર્ચા કરીને તપ-સંયમ દ્વારા કર્મક્ષય થાય છે આમાં જીવ- અજીવ વિભક્તિના જ્ઞાન દ્વારા સંયમ સાધનાની વાત જણાવીને લોકકે તેમ ઉપસંહાર કર્યો છે. અલોકનું સ્વરૂપ, જીવ- અજીવના દ્રવ્ય, ક્ષેત્ર, કાળ અને ભાવનું નિરૂપણ કરીને અજીવના (૨૯) અધ્યયન સભ્યત્વ- પરાક્રમ રૂપી-અરૂપી ભેદ-પ્રભેદો, લક્ષણ સ્થિતિ, પરિણામ વગેરે આપ્યાં છે. આમાં સંવેગ, નિર્વેદ, શ્રદ્ધા, શુષ (સેવા) વગેરે ૭૪ બાબતોના ફળની ચર્ચાને જીવવિભાગમાં જીવના બે પ્રકાર- સિદ્ધ અને સંસારી, સંસારીના ભેદ-પ્રભેદો અંતે આ નિરૂપણ ભગવાન મહાવીર દ્વારા કરવામાં આવ્યું છે તેમ ઉપસંહાર કર્યો છે. તેમજ તેમના લક્ષણ, સ્થિતિ, પરિણામ વગેરે વર્ણનને અંતે ઉપસંહારમાં જણાવ્યું છે કે (૩૦) અધ્યયન: ત૫-માર્ગ આ છત્રીસ અધ્યયનોનું સ્થાન કર્યા પછી ભગવાન મહાવીરને નિર્વાણ પ્રાપ્ત થયું હતું. આમાં તપશ્ચર્યાથી કર્મક્ષય થાય છે તેમ આરંભે જણાવીને છ પ્રકારના બાહ્ય તપ અને છ પ્રકારના આત્યંતર તપ તેમના ભેદો અને લક્ષણો આપીને અંતે તપશ્ચર્યાથી નિર્વાણ મળે છે તેમ ઉપસંહાર ર્યો છે. (૩૧) અધ્યયન: ચરણ-વિધિ ( આમાં ચારિત્રથી ભવ-મુક્તિની વાત જણાવી, પ્રવૃત્તિ અને નિવૃત્તિની વ્યાખ્યા, રાગદ્વેષ વગેરેમાંથી નિવૃત્તિ અને વ્રત-સમિતિઓ વગેરેમાં પ્રવૃત્તિ વગેરે વર્ણન પછી પિંડઅવગ્રહ પ્રતિમા, બ્રહ્મચર્ય-ગુપ્તિ, ઉપાસક, ભિક્ષુ- પ્રતિમા વગેરેમાં પ્રવૃત્તિનું વિસ્તૃત વર્ણન કરી વિવિધ પ્રવૃત્તિ-નિવૃત્તિ જણાવી છે. ચરણ-વિધિની આરાધનાનું ફળ ભવકે મુક્તિ છે એવો ઉપસંહાર છે. (૩૨) અધ્યયન: પ્રમાદ સ્થાન આમાં સમાધિ-મરણનાં સાધનો, દુઃખના કારણ અને તેમનો સમૂળો નાશ, પાંચ 明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明恩 Of W 9 By F AT GIRામંજૂT - 39 FF 9 k 9 F FFF SSC 3 Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ROR955555555555555 (४२) दसवेयालियं (तइयं मूलसुत्त) १,२,३,४ अज्झयणं [१] 5555555555555seNOR OPIC$听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐5C सिरि उसहदेव सामिस्स णमो। सिरिगोडी - जिराउला - सव्वोदयपासणाहाणं णमो। नमोऽत्थुणं समणस्स भगवओ महइ महावीर वद्धमाण सामिस्स। सिरि गोयम-सोहम्माइ सव्व गणहराणं णमो। सिरि सुगुरु-देवाणं णमो। दसवेयालियसुत्तं १ पढमं दुमपुष्फियऽज्झयणं *** १.ई धम्मो मंगलमुक्किट्ठ अहिंसा संजमो तवो । देवा वितं नमसंति जस्स धम्मे सया मणो। १२. जहा दुमस्स पुप्फेसु भमरो आवियई रसं । न य पुप्पं किलामेइ सोय पीणेइ अप्पयं ।।२।। ३. एमेए समणा मुत्ता जे लोए संति साहुणो । विहंगमा व पप्फेसु दाण-भत्तेसणे रया ।।३।। ४. वयं च वित्तिं लब्भामो न य कोइ उवहम्मई । अहागडेसुरीयंते पुप्फेसु भमरा जहा ॥४॥५. महुकारसमा बुद्धा जे भवंति अणिस्सिया । नाणापिडिरया दंता तेण वुच्चंति साहुणो ॥५|| त्ति बेमि || ||१|| २ बिइयं सामण्णपुव्वगऽज्झयणं *** ६. कहं नु कुज्जा सामण्णं जो कामे न निवारए । पए पए विसीयंतो संकप्पस्स वसं गओ? ||१|| ७. वत्थगंधमलंकारं इत्थीओ सयणाणि य। अच्छंदाजे न भुंजंति न से चाइ त्ति वुच्चइ ।।२।। ८. जे य कंते पिए भोए लद्धे विप्पिट्टि कुव्वई। साहीणे चयई भोए से हु चाइ त्ति वुच्चई ।।३।। ९. समाए पेहाए परिव्वयंतो, सिया मणो निस्सरई बहिद्धा । न सा महं नो वि अहं पि तीसे, इच्वेव ताओ विणएज्ज रागं ॥४॥ १०. आयावयाही चय सोगुमल्लं, कामे कमाही कमियं खुदचक्खं । छिंदाहि दोसं विणएज्ज रागं, एवं सुही होहिसि संपराए।।५।। ११. पक्खंदे जलियं जोइं धूमकेउं दुरासयं । नेच्छंति वंतयं भोत्तुं कुले जाया अगंधणे ॥६|| १२. धिरत्थु ते जसोकामी जो तं जीवियकारणा । वंतं इच्छसि आवेउं सेयं ते मरणं भवे ॥७।। १३. अहं च भोगरायस्स तं च सि अंधगवण्हिणो। मा कुले गंधणी होमो संजमं निहुओ चर ॥८॥१४. जइ तं काहिसि भावं जा जा दच्छिसि नारिओ। वायाइद्धो व्व हडो अट्ठियप्पा भविस्ससि ।।९।। १५. तीसे सो वयणं सोच्चा संजयाए सुभासियं । अंकुसेण जहा नागो धम्मे संपडिवाइओ।।१०।। १६. एवं करेंति संबुद्धा पंडिया पवियक्खणा। विणियद॒ति भोगेसु जहा से पुरिसोत्तमो॥११॥त्ति बेमि॥२॥★★★३ तइयं खुड्डियायारकहऽज्झयणं★★★१७. संजमे सुट्ठियप्पाणं विप्पमुक्काण ताइणं । तेसिमेयमणाइण्णं निग्गंथाणं महेसिणं ॥१॥ १८. उद्देसियं १ कीयगडं २ नियागं ३ अभिहडाणि ४ य । राइभत्ते ५ सिणाणे ६ य गंध ७ मल्ले ८ य वीयणे ९ ॥२॥ १९. सन्निही १० गिहिमत्ते ११. य रायपिंडे किमिच्छए १२। संबाहण १३ दंतपहोयणा १४ य, संपुच्छण १५ देहपलोयणा १६ य ॥३॥२०. अट्ठावए १७ य नाली य १८ छत्तस्स य धारणट्ठाए १९ । तेगिच्छं २० पाहणा पाए २१ समारंभं च जोइणो २२ ॥४॥२१. सेज्जायरपिंडं २३ च आसंदी २४ पलियंकए २५ । गिहंतरनिसेज्जा २६ य गायस्सुव्वट्टणाणि २७ य॥५॥ २२. गिहिणो वेयावडियं २८ जा य आजीववत्तिया २९ । तत्तानिव्वुडभोइत्तं ३० आउरस्सरणाणि ३१ य ॥६॥ २३. मूलए ३२ सिंगबेरे ३३ य उच्छुखंडे अणिव्वुहे ३४ । कंदे ३५ मूले ३६ सच्चिते फले ३७ बीए य आमए ३८ ॥७॥ २४. सोवच्चले ३९ सिंधवे लोणे ४० रुमालोणे य आमए.४१ । सामुद्दे ४२ पंसुखारे ४३ य कालालोणे य आमए ४४ ||८|| २५ धूवणे ४५ त्ति वमणे ४६ य वत्थीकम्म ४७ विरेयणे ४८। अंजणे ४९ दंतवणे ५० य गायाभंग ५१ विभूसणे ५२ ॥९॥ २६. सव्वमेयमणाइण्णं निग्गंथाण महेसिणं । संजमम्मि य जुत्ताणं लहुभूयविहारिणं ॥१०॥ २७. पंचासवपरिन्नाया तिगुत्ता छसु संजया । पंजनिग्गहणा धीरं निग्गंथा उज्जुदंसिणो॥११॥२८. आयावयंति गिम्हेसु हेमंतेसुअवाउडा । वासासुपडिसंलिणा संजया सुसमाहिया ॥१२॥ २९. परीसहरिऊदंता धुयमोहा जिइंदिया । सव्वदुक्खप्पहीणट्ठा पक्कमति महेसिणो॥१३॥ ३०. दुक्कराई करेत्ता णं दुस्सहाई सहेत्तु य । केइत्थ देवलोगेसु केइ सिज्झंति नीरया ॥१४।। ३१. खवेत्ता पुव्वकम्माइं संजमेण तवेण य। सिद्धिमग्गमणुप्पत्ता ताइणो परिनिव्वुड।१५।। त्ति बेमि ।। ★★★चउत्थं छज्जीवणियऽज्झयणं ३२. सुयं मे आउसं ! तेणं भगवया एवमक्खायं इह खलु छज्जीवणिया नामऽज्झयणं समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवइया सुयक्खाया सुपण्णत्ता सेयं मे अहिजिउं अज्झयणं धम्मपन्नत्ती॥१॥ ३३. कयरा खलु सा छज्जीवणिया नामऽज्झयणं समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया सुयक्खाया सुपन्नत्ता सेयं मे C明明明明明明明明明明明明明明明明明明听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听TC सौन्य :- ५. सा. श्री महाप्रभाश्री म.सा. शिष्या पू. सा. श्री नहीवर्धना श्री म.सा. नीराथी .सौ. रतनन त्या नागलपुर (5२७) घाटोपर Mor 5 555555555555श्री आगमगुणमंजूषा - १६२३5555555555555555555500 Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ OZS55步步步步步步步步步步$$ (४२) दसवेयालिय (तइयं मूलसुत्त) ४ अज्झयणं [२] 历历历万事历历万岁万岁万岁万ERROR DSC$乐明明明明明明明乐乐听听听听听听听听听听听听乐乐乐听听听听听听听听听听听听听乐听听听听听听听听听 2 अहिज्जिउं अज्झयणं धम्मपन्नत्ती ? ||२|| ३४. इमा खलु सा छज्जीवणिया णामऽज्झयणं समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया सुयक्खाया सुपन्नत्ता सेयं मे अहिजिउं अज्झयणं धम्मपन्नती । तं जहा पुढविकाइया १ आउकाइया २ तेउकाइया ३ वाउकाइया ४ वणस्सइकाइया ५ तसकाइया ६ ॥३॥ ३५. पुढविक चित्तमंतमक्खाया अणेगजीवा पुढो सत्ता अन्नत्थ सत्थपरिणएणं ।।४।। ३६. आउ चित्तमंतमक्खाया अणेगजीवा पुढो सत्ता अन्नत्थ सत्थपरिणएणं ।।५।। ३७. तेउ चित्तमंतमक्खाया अणेगजीवा पुढो सत्ता अन्नत्थ सत्थपरिणएणं ॥६|| ३८. वाउ चित्तमंतमक्खाया अणेगजीवा पुढो सत्ता अन्नत्थ सत्थपरिणएणं ॥७॥ ३९. वणस्सइ चित्तमंतमक्खाया अणेगजीवा पुढो सत्ता अन्नत्थ सत्थपरिणएणं, तं जहा अग्गबीया मूलबीयां पोरबीया खंधबीया बीयरुहा सम्मुच्छिमा तणलया वणस्सइकाइया सबीया, चित्तमंतमक्खाया अणेगजीवा पुढो सत्ता अन्नत्थ सत्थपरिणएणं ।।८।। ४०. से जे पुण इमे अणेगे बहवे तसा पाणा तं जहा अंडया पोयया जराउया रसया संसेइमा सम्मुच्छिमा उब्भिया उववाझ्या जेसिं केसिचि पाणाणं अभिक्कंतं पडिक्वंतं संकुचियं पसारियं रुयं भंतं तसियं पलाइयं, आगइगइविन्नाया, जे य कीड-पयंगा, जा य कुंथु-पिवीलिया, सव्वे बेइंदिया सव्वे तेइंदिया सव्वे चउरिदिया सव्वे पंचेदिया सव्वे तिरिक्खजोणिया सव्वे नेरझ्या सव्वे मणुया सव्वे देवा पाणा परमाहम्मिया, एसो खलु छट्ठो जीवनिकाओ तसकाओ त्ति पवुच्चइ ॥९॥ ४१. इच्चेसिं छण्हं जीवनिकायाणं नेव सयं दंडं समारंभेज्जा, नेवऽन्नेहिं दंडं समारंभावेज्जा, दंडं समारंभंते वि अन्ने न समणुजाणेज्जा। जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं, मणेणं वायाए काएणं, न करेमि न कारवेमि करेंत पि अन्नं न समणुजाणामि, तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरहामि अप्पाणं वोसिरामि ॥१०|| पुढविक्कातिए जीवे ण सद्दहति जो जिणेहि पण्णत्ते । अणभिगतपुण्ण-पावो ण सो उठ्ठावणाजोग्गो ॥१॥ आउक्कातिए जीवे ण सद्दहति जो जिणेहि पण्णत्ते । अणभिगतपुण्ण-पावो ण सो उट्ठावणाजोग्गो ॥२।। तेउक्कातिए जीवे ण सद्दहति जो जिणेहि पण्णत्ते । अणभिगतपुण्ण-पावो सो उट्ठावणाजोग्गो ||३|| वाउक्कातिए जीवे ण सद्दहति जो जिणेहि पण्णत्ते । अणभिगतपुण्ण-पावो ण सो उट्ठावणाजोग्गो ||४|| वणस्सतिकातिए जीवे ण सद्दहति जो जिणेहि पण्णत्ते । अणभिगतपुण्ण-पावो ण सो उट्ठावणाजोग्गो ॥५॥ तसकातिए जीवे ण सद्दहति जो जिणेहि पण्णत्ते । अणभिगतपुण्ण-पावो ण सो उवठ्ठावणाजोग्गो॥६|| पुढविक्कातिए जीवे सद्दहती जो जिणेहि पण्णत्ते। अभिगतपुण्ण-पावो सो हु उवट्ठावणे जोग्गो॥७|| आउक्कातिए जीवे सद्दहती जो जिणेहि पण्णत्ते । अभिगतपुण्ण-पावो सो हु उवट्ठावणे जोग्गो ॥८॥ तेउक्कातिए जीवे सद्दहती जो जिणेहि पण्णत्ते । अभिगतपुण्ण-पावो सो हु उवठ्ठावणे जोग्गो ॥९|| वाउक्कातिए जीवे सद्दहती जो जिणेहि पण्णत्ते । अभिगतपुण्ण-पावो सो हु उवट्ठावणे जोग्गो ॥१०॥ वणस्सतिक्कातिए जीवे सद्दहती जो जिणेहि पण्णत्ते । अभिगतपुण्ण-पावो सो हु उवट्ठावणे जोग्गो॥११|| तसकातिए जीवे सद्दहती जो जिणेहि पण्णत्ते । अभिगतपुण्ण-पावो सो हु उवट्ठावणे जोग्गो ॥१२॥ ४२. पढमे भंते ! महव्वए पाणाइवायाओ वेरमणं । सव्वं भंते ! पाणाइवायं पच्चक्खामि, से सुहुमं वा बायरं वा तसं वा थावरं वा, नेव सयं पाणे अइवाएज्जा, नेवऽन्नेहिं पाणे अइवायावेज्जा, पाणे अइवायंते वि अन्ने न समणुजाणेज्जा | जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं, मणेणं वायाए काएणं, न करेमि न कारवेमि करेंतं पि अन्नं न समणुजाणामि, तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरहामि अप्पाणं वोसिरामि । पढमे भंते ! महव्वए उवढिओ मि सव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमणं ॥११|| ४३. अहावरे दोच्चे भंते ! महव्वए मुसावायाओ वेरमणं । सव्वं भंते ! मुसावायं पच्चक्खामि, से कोहा वा लोहा वा भया वा हासा वा । नेव सयं मुसं वएज्जा, नेवऽन्नेहिं मुसं वायावेज्ना, मुसं वयंते वि अन्ने न समणुजाणेज्जा। जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं, मणेणं वायाए काएणं, न करेमि न कारवेमि करेंत पि अन्नं न समणुजाणामि । तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरहामि अप्पाणं वोसिरामि । दोच्चे भंते ! महव्वए उवडिओ मि सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं ॥१२॥ ४४. अहावरे तच्चे भंते ! महव्वए अदिन्नादाणाओ वेरमणं । सव्वं भंते ! अदिन्नादाणं पच्चक्खामि । से गामे वानगरे वा रन्ने वा अप्पं वा बहुं वा अणु वा थूलं वा चितमंतं वा अचितमंतं वा । नेव सयं अदिन्नं गेण्हेज्जा, नेवऽन्नेहिं अदिन्नं गेण्हावेज्जा, अदिन्नं गेण्हते वि अन्ने न समणुजाणेजा। जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं, मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेमि करेंतं पि अन्नं न समणुजाणामि, तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरहामि अप्पाणं वोसिरामि । तच्चे भंते ! महव्वए उवट्ठिओ मि सव्वाओ अदिन्नादाणाओ वेरमणं KOKO 5555555555555 श्री आगमगुणमजूषा - १६२४॥5555555555555555FOR ONOFF乐乐乐明明明明明明明明明明明明明明明明明明明乐乐乐国乐乐明明明明明明挥乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐5223 YOR Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ CC乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐乐听听听听听听听乐乐乐听听听听听听听听听听听听听听GO MORO5555555555555 (श दसवेयालिय (तइयं मूलसुत्ता ४ अज्झयणं [३] 555555555555555yeFOR ||१३|| ४५. अहावरे चउत्थे मंते ! महव्वए मेहुणाओ वेरमणं | सव्वं भंते! मेहुणं पच्चक्खामि, से दिव्वं वा माणुस्सं वा तिरिक्खजोणियं वा । नेव सयं मेहुणं सेवेज्ना, नेवऽन्नेहिं मेहुणं सेवावेज्जा, मेहुणं सेवंते वि अन्ने न समणुजाणेज्जा । जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं, मणेणं वायाए काएणं, न करेमि न कारवेमि करेंतं पि अन्नं न समणुजाणामि, तस्स भंते ! पडिकमामि निंदामि गरहामि अप्पाणं वोसिरामि । चउत्थे भंते ! महव्वए उवढिओ मि सव्वाओ मेहुणाओ वेरमणं ॥१४॥ ४६. अहावरे पंचमे भंते ! महव्वए परिग्गहाओ वेरमणं । सव्वं भंते ! परिग्गहं पच्चक्खामि, से अप्पं वा बहुं वा अणुं वा थूल वा चितमंतं वा अचित्तमंतं वा । नेव सयं परिग्गह परिगेण्हेज्जा, नेवऽन्नेहिं परिग्गहं परिगेण्हावेज्जा, परिग्गहं परिगेण्हते वि अन्ने न समणुजाणेज्जा । जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं, मणेणं वायाए काएणं, न करेमि न कारवेमि करेंतं पि अन्नं न समणुजाणामि, तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरहामि अप्पाणं वोसिरामि । पंचमे भंते ! महव्वए उवढिओ मि सव्वाओ परिग्गहाओ वेरमणं ॥१५|| ४७. अहावरे छटे भंते ! वए राईभोयणाओ वेरमणं । सव्वे भंते ! राईभोयणं पच्चक्खामि, से असणं वा पाणं खाइमं वा साइमं वा । नेव सयं राई भुंजेज्जा, नेवऽन्नेहिं राइं भुंजवेज्जा, राई मुंजते वि अन्ने न समणुजाणेज्जा । जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं, मणेणं वायाए काएणं, न करेमि न कारवेमि करेंतं पि अन्नं न समणुजाणामि, तस्स भंते ! पडिकमामि निंदामि गरहामि अप्पाणं वोसिरामि । छठे भंते ! वए उवट्ठिओ मि सव्वाओ राईभोयणाओ वेरमणं ।।१६।। ४८. इच्चेइयाई पंच महव्वयाइं राईभोयणवेरमणछट्ठाइं अत्तहियट्ठयाए उवसंपज्जित्ता णं विहरामि ।।१७।। ४९. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा संजय-विरय-पडिहय-पच्चक्खायपावकम्मे दिया वा राओ वा एगओ वा परिसागओ वा सुत्ते वा जागरमणे वा, से पुढविं वा भित्तिं वा सिलं वा लेलुं वा ससरक्खं वा कायं ससरक्खं वा वत्थं हत्थेण वा पाएण वा कद्वेण वा कलिचेण वा अंगुलियाए वा सलगाए वा सलागहत्येण वा नाऽऽलिहेजा न विलिहेज्जा न घडेजा न भिदज्जा, अन्नं नाऽऽलिहावेज्जा न विलिहावेज्जा न घट्टावेज्जा न भिंदावेज्जा अन्नं आलिहंतं वा विलिहंतं वा घटुंतं वा भिदंतं वा न समणुजाणेज्जा । जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं, मणेणं वायाए काएणं, न करेमि न कारवेमि करेते पि अन्नं न समणुजाणामि, तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरहामि अप्पाणं वोसिरामि ॥१८|| ५०. से भिक्खू वा भिक्खुणि वा संजय-विरयपडिहय-पच्चक्खायपाव-कम्मे दिया वा राओ वा एगओ वा परिसागओ वा सुत्ते वा जागरमणे वा, से उदगं वा ओसं वा हिमं वा महियं वा करंग वा हरतणुगं वा सुद्धोदगं वा उदओल्लं वा कायं उदओल्लं वा वत्थं ससिणिद्धं वा कार्य ससिणिद्धं वा वत्थं नाऽऽमुसेज्जा न संफुसेज्जा न आवीलेज्जा न पवीलेज्जा न अक्खोडेज्जा न पक्खोडेजा न आयावेज्जा न पयावेज्जा, अन्नं नाऽऽमुसावेज्जा न संफुसावेज्जा न आवीलावेज्जा न पवीलावेज्जा न अक्खोडावेज्जा न पक्खोडावेज्जा न आयावेज्जा न पयावेज्जा, अन्नं आमुसंतं वा संफुसंतं वा आवीलंतं वा पवीलंतं वा अक्खोडेंतं वा पक्खोडेंत वा आयात वा पयावेतं वा न समणुजाणेज्ज । जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं, मणेणं वायाए काएणं, न करेमि न कारवेमि करेंतं पि अन्नं न समणुजाणामि, तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरहामि अप्पाणं वोसिरामि ॥१९॥ ५१. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा संजय-विरय-पडिहय-पच्चक्खायपाव-कम्मे दिया वा राओ वा एगओ वा परिसागओ वा सुत्ते वा जागरमाणे वा से अगणिं वा इंगालं वा मुम्मुरं वा अच्चिं वा जालं वा अलायं वा सुद्धागणिं वा उक्कं वा, न उजेज्नान घट्टेज्जा न उज्जालेज्जा न निव्वावेज्जा, अन्नं न उंजावेज्जा न घट्टावेज्जा न उज्जालावेज्जा न निव्वावेज्जा, अन्नं उंजंतं वा घट्टतं वा उज्जालंतं वा निव्वावंतं वा न समणुजाणेज्जा । जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं, मणेणं वायाए काएणं, न करेमि न कारवेमि करेंतं पि अन्नं न समणुजाणामि, तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरहामि अप्पाणं वोसिरामि ।।२०।। ५२. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा संजय-विरय-पडिहयपच्चक्खायपावकम्मे दिया वा राओ वा एगओ वा परिसागओ वा सुत्ते वा जागरमणे वा, से सिएण वा विहुयणेण वा तालियंटण वा पत्तेण वा पत्तभंगेण वा साहाए वा साहाभंगेण वा पिहुणेण वा पिहुणहत्येण वा चेलेण वा चेलकण्णेण वा हत्थेण वा मुहेण वा अप्पणो वा कायं बाहिरं वा वि पोग्गलं न फूमेज्जा न वीएज्जा, अन्नं न फूमावेज्जा न वीयावेज्जा, अन्नं फूमंतं वा वीयंत वा न समणुजाणेज्जा । जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं, मणेणं वायाए काएणं, न करेमि न कारवेमि करेंतं पि अन्नं न ] समणुजाणामि, तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरहामि अप्पाणं वोसिरामि ॥२१॥ ५३. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा संजय-विरय-पडिहय-पच्चक्खायपावकम्मे reO5555555555555555555 श्री आगमगुणमजूषा - १६२५555555555555555555555555555OOR 555555555555555555555555555555555555555555555555OOK Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फ्र (४२) दसवेयालियं (तइयं मूलसुतं) अ. ४,५ / उ. १ [४] दिया वा राओ वा एगओ वा परिसागओ वा सुत्ते वा जागरमाणे वा, से बीएस वा बीयपइट्ठेसु वा रूढेसु वा रूढपइट्ठेसु वा जाएसु वा जायपइट्ठेसु वा हरिएसु वा हरियपट्ठेसु वा छिन्नेसु वा छिन्नपइट्ठेसु वा सच्चित्तेसु वा सच्चित्तकोलयडिनिस्सिएस वा, न गच्छेज्जा न चिट्ठेज्जा न निसीएज्जा न तुयट्टेज्जा, अन्नं न गच्छावेज्जा न चिट्ठावेज्जा न निसीयावेज्जा न तुयट्टावेज्जा, अन्नं गच्छंतं वा चिद्वंतं वा निसीयंतं वा तुयट्टंतं वा न समणुजाणेज्जा । जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं, मणेणं वायाए काएणं, न करेमि न कारवेमि करेंतं पि अन्नं न समणुजाणामि, तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरहामि अप्पाणं वोसिरामि ||२२|| ५४. से भिक्खू वा भिक्खुणी वा संजयविरय-पडिहय-पच्चक्खायपाव-कम्मे दिया वा राओ वा एगओ वा परिसागओ वा सुत्ते वा जागरमाणे वा, से कीडं वा पयंगं वा कुंथुं वा पिविलियं वा त्यंसि पायंसि वा बाहुंसि वा ऊरुंसि वा उदरंसि वा सीसंसि वा वत्थंसि वा पडिग्गहंसि वा कंबलंसि वा पायपुंछणंसि वा रयहरणंसि वा गोच्छगंसि वा उंडगंसि वा दंडगंसि वा पीढगंसि वा फलगंसि वा सेज्जंसि वा संथारगंसि वा अन्नयरंसि वा तहप्पगारे उवगरणजाए तओ संजयामेव पडिलेहिय पडिलेहिय पमज्जिय पमज्जिय एगंतमवणेज्जा, नो णं संघायमावज्जेज्जा ||२३|| ५५. अजयं चरमाणो उ पाण-भूयाइं हिंसई । बंधई पावयं कम्मं तं से होइ कडुयं फलं ||२४|| ५६. अजयं चिट्ठमाणो उ पाण-भूयाई हिंसई । बंधई पावयं कम्मं तं से होइ कडुयं फलं ||२५|| ५७. अजयं आसमाणो उ पाण-भूयाइं हिंसई । बंधई पावयं कम्मं सं से होड़ कडुयं फलं ।। २६ ।। ५८. अजयं सयमाणो उ पाण-भूयाइं हिंसई । बंधई पावयं कम्मं तं से होइ कडुयं फलं ||२७|| ५९. अजयं भुंजमाणो उ पाण- भूयाइं हिंसई । बंधई पावयं कम्मं तं से होइ कडुयं फलं ||२७|| ६०. अजयं भासमाणो उ पाण-भूयाई हिंसई । बंधई पावयं कम्मं तं से होइ कडुयं फलं ||२७|| ६१. कहं चरे ? कहं चिट्ठे ? कहमासे ? कहं सए ? | कहं भुंजंतो भासंतो पावं कम्मं न बंधई ? ||३०|| ६२. जयं चरे जयं चिट्ठे जयमासे जयं सए । जयं भुंजंतो भासतो पावं कम्मं न बंधई ||३१|| ६३. सव्वभूयऽप्पभूयस्स सम्मं भूयाई पासाओ । पिहियासवस्स दंतस्स पावं कम्मं न बंधई ||३२|| ६४. पढमं नाणं तओ दया एवं चिट्ठइ सव्वसंजए। अन्नाणी किं काही ? किं वा नाहिइ छेय पावगं ? ।।३३।। ६५. सोच्चा जाणइ कल्लाणं सोच्चा जाणइ पावगं । उभयं पि जाणई सोच्चा जं छेयं तं समायरे ॥ ३४ ॥ ६६. जो जीवे वि न याणति अजीवे विन याणति । जीवाऽजीवे अयाणंतो कह सो नाहिइ संजमं ? ||३५|| ६७. जो जीवे वि वियाणति अजीवे वि वियाणति । जीवाऽजीवे वियाणंतो सो हु नाहिइ संजमं || ३६ || ६८. जया जीवमजीवे य दो वि एए वियाणई । तया गई बहुविहं सव्वजीवाण जाणई ||३७|| ६९. जया गई बहुविहं सव्वजीवाण जाणाई । तया पुण्णं च पावं च बंधं मोक्खं च जाणई ॥३८॥ ७०. जया पुण्णं च पावं च बंधं मोक्खं च जाणाई । तया निव्विंदए भोए जे दिव्वे जे य माणुसे ॥ ३९॥ ७१. जया निव्विंदए भोए जे दिव्वे जे य माणुस्से । तया चयइ संजोगं सब्भिंतरबाहिरं ॥ ४० ॥ ७२. जया चयइ संजोगं सब्मिंतर - बाहिरं । तया मुंडे भवित्ताणं पव्वइए अणगारियं ॥ ४१ ॥ ७३. जया मुंडे भवित्ताणं पव्वइए अणगारियं । तया संवरमुक्कडं धम्मं फासे अणुत्तरं ॥ ४२॥ ७४. जया संवरमुक्कट्ठे धम्मं फासे अणुत्तरं । तया धुणइ कम्मरयं अबोहिकलुसं कडं ||४३|| ७५. जया धुणइ कम्मरयं अबोहिकलुषं कडं । तया सव्वत्तगं नाणं दंसणं चाभिगच्छई ॥४४॥ ७६. जया सव्वत्तगं नाणं दंसणं चाभिगच्छई । तया लोगमलोगं च जिणो जाणइ केवली ||४५|| ७७. जया लोगमलोगं च जिणो जाणइ केवली । तया जोगे निरंभित्ता सेलेसि पडिवज्जई || ४६ ॥ ७८. जया जोगे निरंभित्ता सेलेसि पडिवज्जई । तया कम्मं खवित्ताणं सिद्धिं गच्छइ नीरओ || ४७|| ७९. जया कम्मं खवित्ताणं सिद्धिं गच्छइ नीरओ । तया लोगमत्थयत्थो सिद्धो भवइ सासओ ॥४८॥ ८०. सुहसायगस्स समरस्स सायाउलगस्स निगामसाइस्स । उच्छोलणापहोइस्स दुलहा सोग्गइ तारिसगस्स ॥ ४९ ॥ ८१. तवोगुणपहाणस्स उज्झुमइ खंति - संजमरयस्स । परीसहे जिणंतस्स सुलहा सोग्गइ तारिसगस्स ॥ ५०॥ पच्छा वि ते पयाया खिप्पं गच्छंति अमरभवणाइं । जेसिं पिओ तवो संजमो य खंती य बंभचेरं च ॥ ८२. इच्चेयं छज्जीवणियं सम्मद्दिट्ठी सया जए । दुलहं लभित्तु सामण्णं कम्मुण्णा ण विराहेज्जासि || ११ ||त्ति बेमि ॥ ★★★ ॥ चउत्थं छज्जीवणियऽज्झयणं || ४ || ५ पंचमं पिंडेसणऽज्झयणं ★★★ पढमो उद्देसओ ★★★ ८३. संपत्ते भिक्खकालम्मि असंभंतो अमुच्छिओ । इमेण COOK श्री आगमगुणमंजूषा - १६२६ Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Fox9595 (४२) दसवेयालियं (तइयं मूलसुत्त) अ. ५/उ.१ [] 5555555555555555OOR $$$$$$$$$ $ $$$$ LOOKSH$$$$FFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFS5555555 कमजोगेण भत्त-पाणं गवेसए।।१।। ८४. से गामे वा नगरे वा गोयरग्गगओ मुणी । चरे मंदमणुव्विग्गो अव्वक्खित्तेण चेयसा ॥२।८५. पुरओ जुगमायाए पेहमाणो म महिं चरे । वज्जेतो बीय-हरियाइं पाणे य दग-मट्टियं ॥३।। ८६. ओवायं विसमं खाणुं विज्जलं परिवज्जए । संकमेण न गच्छेज्जा विज्जमाणे परक्कमे ॥४।। ८७. पवडते म. व से तत्थ पक्खुलते व संजए। हिंसेज पाण-भूयाइं तसे अदुव थावरे॥५॥ ८८. तम्हा तेण गच्छेज्जा संजए सुसमाहिए। सइ अन्नेण मग्गेण जयमेव परक्कमे ॥६।। ॥ ८९. इंगालं छारियं रासिं तुसरासिं च गोमयं । ससरक्खेहिं पाएहिं संजओ तं न अक्कमे ॥७॥ ९०. न चरेज वासे वासंते महियाए व पडंतिए । महावाए व वायंते म तिरिच्छसंपाइमेसु वा ।।८।। ९१. न चरेज्ज वेससामंते बंभचेरवसाणुए । बंभयारिस्स दंतस्स होज्जा तत्थ विसोत्तिया ।।९।। ९२. अणायणे चरंतस्स संसग्गीए अभिक्खणं । होज्ज वयाणं पीला सामण्णम्मि य संसओ॥१०॥९३. तम्हा एयं वियाणित्ता दोसं दोग्गइवड्डणं । वज्जए वेससामंतं मुणी एगंतमस्सिए॥११|| ९४. साणं ॐ सूयं गावि दित्तं गोणं हयं गयं । संडिब्भं कलह जुद्धं दूरओ परिवज्जए ।।१२।।९५. अणुन्नए नावणए अप्पहिढे अणाउले । इंदियाइं जहाभागं दमइत्ता मुणी चरे॥१३|| ९६. दवदवस्स न गच्छेज्जा भासमाणो य गोयरे। हंसतो नाभिगच्छेज्ना कुलं उच्चावयं सया।।१४।। ९७. आलोयं थिग्गलं दारं संधिं दगभवणाणि य । चरंतो न विणिज्झाए संकट्ठाणं विवज्जए॥१५॥ ९८. रण्णो गहवईणं च रहस्साऽऽरक्खियाणि य । संकिलेसकरं ठाणं दूरओ परिवज्जए॥१६।। ९९. पडिकुट्ठकुलं न पविसे मामगं परिवज्जए। अचियत्तकुलं न पविसे चियत्तं पविसे कुलं ॥१७|| १००. साणी-पावारपिहियं अप्पणा नावपंगुरे। कवाडं नो पणोल्लेज्जा ओग्गहं सि अजाइया ॥१८॥१०१. गोयरग्गपविट्ठो उ वच्च-मुत्तं न धारए। ओगासं फासुयं नच्चा अणुन्नविय वोसिरे ॥१९।। १०२. नीयदुवारं तमसं कोहगं परिवज्जए। अचक्खुविसओ जत्थ पाणा दुप्पडिलेहगा ॥२०॥ १०३. जत्थ पुप्फई बीयाई विप्पइण्णाई कोट्ठए। अहुणोवलित्तं ओल्लं दवणं परिवज्जए॥२१॥ १०४. एलगं दारगं साणं वच्छगं वा वि कोट्ठए। उल्लंघिया न पविसे विऊहित्ताण व संजए॥२२॥ १०५. असंसत्तं पलोएज्जा नाइदूरावलोयए । उप्फुल्लं न विणिज्झाए नियट्टेज्ज अयंपिरो ॥२३॥ १०६. अइभूमिं न गच्छेज्जा गोयरग्गगओ मुणी। कुलस्स भूमिं जाणित्ता मियं भूमि परक्कमे ॥२४॥ १०७. तत्थेव पडिलेहेज्जा भूमिभागं वियक्खोणो। सिणाणस्स य वच्चस्स संलोगं परिवज्जए। १०८. दग-मट्टियआयाणे बीयाणे हरियाणि य । परिवज्जेतो चिट्ठज्जा सव्विदियसमाहिए ॥२६।। १०९. तत्थ से चिट्ठमाणस्स आहरे पाण-भोयणं । अकप्पियं न गेण्हेज्जा पडिगाहेज्जा कप्पियं ||२७||११०. आहरंती सिया तत्थ परिसाडेज्जा भोयणं । देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ||२८|| १११. सम्मद्दमाणी पाणाणि बीयाणि हरियाणी य । असंजमकरि नच्चा तारिसं परिवज्जए ॥२९।। ११२. साहट्ट निक्खिवित्ताणं सच्चित्तं घट्टियाण य । तहेव समणट्ठाए उदगं संपणोल्लिया।॥३०॥ ११३. आगाहइत्ता चलइत्ता आहरे पाण-भोयणं । देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ||३१|| ११४. पुरेकम्मेण हत्थेण दव्वीए भायणेण वा। देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥३२॥ ११५. उदओल्लेण हत्थेण दव्वीए भायणेण वा। देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिस ।।३३।। ११६. ससिणिद्धेण हत्थेण दव्वीए भायणेण वा । देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं॥३४|| ११७. ससरक्खेण हत्थेण दव्वीए भायणेण वा । देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥३५।। ११८. मट्टियागतेण हत्येण दव्वीए भायणेण वा । देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥३६॥ ११९. ऊसगतेण हत्थेण दव्वीए भायणेण वा । देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥३७|| १२०. हरितालगतेण हत्थेण दव्वीए भायणेण वा । देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ||३८|| १२१. हिंगुलुयगतेण हत्थेण दव्वीए भायणेण वा । देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ||३९|| १२२. मणोसिलागतेण हत्येण दव्वीए भायणेण वा । देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं॥४०॥ १२३. अंजणगतेण हत्थेण दव्वीए भायणेण वा । देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥४१॥ १२४. लोणगतेण हत्थेण दव्वीए भायणेण वा। देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥४२॥ १२५. गेरुयगतेण हत्थेण दव्वीए भायणेण वा । देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥४३|| ॐ १२६. वण्णियगतेण हत्थेण दव्वीए भायणेण वा । देतियं पडियाइक्खेन मे कप्पइ तारिसं॥४४|| १२७. सेडियगतेण हत्थेण दव्वीए भायणेण वा । बेतियं पडियाइक्खे शन मे कप्पइ तारिसं ॥४५॥ १२८. सोरट्ठियगतेण हत्थेण दव्वीए भायणेण वा । देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥४६|| १२९. पिट्ठगतेण हत्थेण दव्वीएम MOKO$ 4555555555555555 श्री आगमगुणमजूषा - १६२७5555555555555555555555FOOR $$$ $ $$ $$ %$ S Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४२) दसवेयालियं (तइयं मूलसुत्त) अ. ५ / उ. १ [६] भायणेण वा । देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥४७॥। १३०. कुक्कुसगतेण हत्थेण दव्वीए भायणेण वा । देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥४८॥ १३१. उक्कट्ठगतेण हत्थेण दव्वीए भायणेण वा । देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥४९॥ १३२. असंसट्टेण हत्थेण दव्वीए भायणेण वा । दिज्जमाणं न इच्छेज्जा • पच्छकम्मं जहिं भवे ॥ ५०॥ १३३. संसद्वेण हत्थेण दव्वीए भायणेण वा । दिज्जमाणं पडिच्छेज्जा जं तत्थेसणियं भवे ॥ ५१ ॥ १३४. दोण्हं तु भुंजमाणाणं एगो तत्थ निमंतए । दिज्जमाणं न इच्छेज्जा छंद से पडिलेहए ।। ५२ ।। १३५. दोन्हं तु भुंजमाणाणं दो वि तत्थ निमंतए । दिज्नमाणं पडिच्छेज्जा जं तत्थेसणियं भवे ॥ ५३॥। १३६. गुव्विणीए उवन्नत्थं विविहं पाण-भोयणं । भुज्जमाणं विवज्जेज्जा भुत्तसेसं पडिच्छए ॥ ५४ ॥ १३७. सिया य समणट्ठाए गुब्विणी कालमासिणी । उट्ठिया वा निसीएज्जा निसन्ना वा पुणु || ५५॥। १३८. तं भवे भत्त-पाणं तु संजयाण अकप्पियं । देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पर तारिसं ॥ ५६ ॥ १३९. थणगं पज्जेमाणी दारगं वा कुमारियं । तं निक्खिवित्तु रोयंतं आहरे पाण-भोयणं ॥ ५७॥। १४० तं भवे भत्त-पाणं तु संजयाण अकप्पियं । देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ ५८ ॥ १४१. जंभवे भत्त-पाणं तु कप्पाऽकप्पम्मि संकियं । देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिस || ५९|| १४२. दगवारएण पिहियं नीसाए पीढएण वा । लोढेण वा वि लेवेण सिलेसेण व केई ||६०॥ १४३. तं च उब्भिदिउं देज्ना समणट्ठाए व दायए। देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पर तारिसं ॥ ६१ ॥। १४४. असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा। जं जाणेज्ज सुणेज्जा वा दाणट्ठा पगडं इमं ॥ ६२ ॥ १४५ तं भवे भत्त-पाणं तु संजयाण अकप्पियं । देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥६३॥ १४६. असणं पाणगं वा विखाइमं साइमं तहा। जं जाणेज्ज सुणेज्जा वा पुण्णट्ठा पगडं इमं ||६४ || १४७. तं भवे भत्तं-पाणं तु संजयाण अकप्पियं । देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ||६५|| १४८. असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा। जं जाणेज्जा सुणेज्जा वा वणिमट्ठा पगडं इमं |||६६ ॥। १४९. तं भवे भत्त-पाणं तु संजयाण अकप्पियं । देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥६७॥ १५०. असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा। जं जाणेज्ज सुणेज्जा वा समणट्ठा पगडं इमं ।। ६८ ।। १५१. तं भवे भत्त-पाणं तु संजयाण अकिप्पियं । देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ ६९ ॥ १५२. उद्देसियं कीयगडं पूईकम्मं च आहडं । अज्झोयर पामिच्वं मीसजायं वज्जए ॥७०॥ १५३. उग्गमं से पुच्छेज्जा कस्सऽट्ठा ? केण वा कडं ? । सोच्चा निस्संकियं सुद्धं पडिगाहेज्ज संजए ॥ ७१ ॥ १५४. असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा । पुप्फेसु हाज्न उम्मीसं बीएस हरिएस वा ॥ ७२ ॥। १५५ तं भवे भत्त-पाणं तु संजयाण अकिप्पियं । देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पर तारिसं ॥७३॥ १५६. असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा । उदगम्मि होज्ज निक्खित्तं उत्तिंग पणगेसु वा ॥ ७४ ॥ १५७. तं भवे भत्त-पाणं तु संजयाण अकप्पियं । देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ||७५।। १५८. असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा। अगणिम्मि होज्ज निक्खित्तं तं च संघट्टिया दए || ७६ ॥ १५९. तं भवे भत्त-पाणं तु संजयाण अकिप्पियं । देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पर तारिसं ॥७७॥ १६० असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा। अगणिम्मि होज्ज निक्खित्तं तं च उस्सक्किया दए ||७८|| १६१. तं भवे भत्त-पाणं तु संजयाण अकिप्पियं । देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिस || ७९ || १६२. असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा । अगणिम्मि होज्ज निक्खित्तं तं च ओसक्किया दए ||८०|| १६३. तं भवे भत्त-पाणं तु संजयाण अकिप्पियं । देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ ८१ ॥ १६४. असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा । अगणिम्मि होज्ज निक्खित्तं तं च उज्जालिया दए ॥ ८२ ॥ १६५ तं भवे भत्त-पाणं तु संजयाण अकिप्पियं । देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ ८३ ॥ १६६. असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा। अगणिम्मि होज्ज निक्खित्तं तं च पज्जालिया दए ॥ ८४ ॥ १६७. तं भवे भत्त पाणं तु संजयाण अकिप्पियं । देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिस ||८५|| १६८. असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा। अगणिम्मि होज्ज निक्खित्तं तं च निव्वाविया ॥ ८६ ॥ १६९. तं भवे भत्त-पाणं तु संजयाण अकिप्पियं । देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥८७॥। १७०. असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा । अगणिम्मि होज्ज निक्खित्तं तं च उस्सिचिया दए ||८८|| १७१. तं भवे भत्त-पाणं तु संजयाण अकिप्पियं । देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पर तारिसं ॥ ८९ ॥ १७२. असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा। अगणिम्मि होज्ज निक्खित्तं तं च निस्सिचिया दए ॥ ९०॥ १७३. तं भवे भत्त-पाणं तु संजयाण अकिप्पियं। देतियं NORO MOTOR श्री आगमगुणमंजूषा १६२८ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 100%%%%%% % %%%与明 (४२) दसवेयालिये (तइयं मूलसुत्त) अ.५/उ.१.२ " _555555555555555RROY FOON पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥९१।। १७४. असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा। अगणिम्मि होज्न निक्खित्तं तं च ओवत्तिया दए।।९।। १७५. तं भवे भत्तपाणं तु संजयाण अकप्पियं । देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ।।९३।। १७६. असणं पाणगं वा वि खाइमं साइमं तहा । अगणिम्मि होज्ज निक्खित्तं तं च ओयारिया दए ।९४|| १७७. तं भवे भत्त-पाणं तु संजयाण अकिप्पियं । देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥९५॥ १७८. होज्ज कटुं सिलं वा वि इट्टालं वा वि एगया। ठवियं संकमट्ठाएतं चे होज्ज चलाचलं न मे कप्पइ तारिसं ॥९६|| १७९. न तेण भिक्खू गच्छेज्जा दिट्ठो तत्थ असंजमो। गंभीरं झुसिरं चेव सव्विदियसमाहिए ॥९७|| १८०. निस्सेणिं फलगं पीढं उस्सवित्ताणमारुहे। मंचं कीलं च पासायं समणवाए व दावए ।।९८॥ १८१. दुरूहमाणी पवडेज्जा हत्थं पायं व लूसए । पुढविजीवे विहिंसेज्जा जे य तन्निस्सिया जगा ।।९९।। १८२. एयारिसे महादोसे जाणिऊण महेसिणो। तम्हा मालोहडं भिक्खं न पडिगेण्हंति संजया॥१००॥ १८३. कंदं मूलं पलंबं वा आमं चिन्नं च सन्निरं । तुंबागं सिंगबेरं च आमगं परिवज्जए॥१०१॥ १८४. तहेव सतुचुण्णाई कोलचुण्णाई आवणे । सक्कुलिं फाणियं पूयं अन्नं वा वि तहाविहं ।।१०२।। १८५. विक्कायमाणं पसढं रएण परिफासियं । देतियं पडियाइक्खेन मे कप्पइ तारिसं ॥१०३|| १८६. बहुअट्ठियं पोग्गलं अणिमिसं वा बहुकंटयं । अच्छियं तेंदुयं बिल्लं उच्छुखंड च सिंबलिं ॥१०४॥ १८७. अप्पे सिया भोयणज्जाए बहुउज्झियधम्मए। देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥१०५।। १८८. तहेवुच्चावयं पाणं अदुवा वारधोवणं । संसेइमं चाउलोधगं अहुणाधोयं विवज्जए॥१०६।। १८९. जं जाणेज्जा चिराधोयं मईए दंसणेण वा । पडिपुच्छिऊण सोच्चा वा जंच निस्संकियं भवे॥१०७|| १९०. अजीवं परिणयं नच्चा पडिगाहेज्जा संजए। अह संकियं भवेज्जा आसाइत्ताण रोयए॥१०८॥ १९१.थोवमासायणट्ठाए हत्थगम्मि दलाहि मे। मा मे अचंबिल पूई नालं तण्हं विणेत्तए॥१०९।। १९२. तं च अच्चंबिलं पूइं नालं तण्हं विणेत्तए । देतियं पडियाइक्खेन मे कप्पइ तारिसं ॥११०॥ १९३. तं च होज्ज अकामेणं विमणेण पडिच्छियं । तं अप्पणा न पिबे नो वि अन्नस्स दावए ।।१११|| १९४. एगंतमवक्कमित्ता अचित्तं पडिलेहिया । जयं परिट्ठवेज्जा परिठ्ठप्प पडिक्कमे ।।११२॥ १९५. सिया य गोयरग्गगओ इच्छेज्जा परिभोत्तुयं । कोट्टगं भित्तिमूलं वा पडिलेहत्ताण फासुयं ।।११३।। १९६. अणुन्नवेतु मेहावी पडिच्छन्नम्मि संवुडे । हत्थगं संपमज्जित्ता तत्थ भुजेज्ज संजए।।११४।। १९७. तत्थ से भुंजमाणस्स अट्ठियं कंटओ सिया। तण कटु सक्करं वा अन्नं वा वि तहाविहं ॥११५|| १९८. तं उक्खिवित्तु न निखिवे आसएण न छड्डए। हत्थेण तं गहेऊण एगंतमक्कमे ॥११६॥ १९९. गंतमवक्कमित्ता अच्चितं पडिलेहिया । जयं परिट्ठवेज्जा परिठ्ठप्प पडिक्कमे ॥११७॥ २००. सिया य भिक्खु इच्छेज्जा सेज्जामागम्म भोत्तुयं । सपिंडपायमागम्म उड्डयं पडिलेहिया ॥११८॥ २०१. विणएण पविसित्ता सगासे गुरुणो मुणी । इरियावहियमायाय आगओ य पडिक्कमे ।।११९|| २०२. आमोएत्ताण निस्सेसं अइयारं जहक्कम । गमणाऽऽगमणे चेव भत्त-पाणे व संजए॥१२०|| २०३. उज्जुप्पण्णो अणुव्विग्गो अव्वक्खित्तेण चेयसा। आलोए गुरुसगासे जं जहा गहियं भवे ॥१२१|| २०४. न सम्ममालोइयं होज्जा पुव्विं पच्छा व जं कडं । पुणो पडिक्कमे तस्स वोसट्ठो चिंतए इमं ॥१२२।। २०५. अहो ! जिणेहिं असावज्जा वित्ती साहूण देसिया । मोक्खसाहणहेउस्स साहुदेहस्स धारणा ॥१२३।। २०६. नमोक्कारेण पारेत्ता करेत्ता जिणसंथवं । सज्झायं पट्ठवेत्ताणं वीसमेज खणं मुणी ॥१२४॥ २०७. वीसमंतो इमं चिंते हियमटुं लाभमट्ठिओ । जइ मे अणुग्गहं कुज्जा साहू ! होज्जामि तारिओ ।।१२५।। २०८. साहवो तो चियत्तेणं निमंतेजं जहक्कमं । जइ तत्थ केइ इच्छेज्जा तेहिं सद्धिं तु भुंजए।१२६।। २०९. अह कोई न इच्छेज्जा तओ भुंजेज्ज एगओ। आलोए भायणे साहू जयं अपरिसाड़ियं ।।१२७।। २१०. तित्तगं व कडुयं व कसायं, अंबिलं व महुरं लवणं वा । एय लद्धमन्नट्ठपउत्तं महु-घयं व जेज्ज संजए॥१२८॥ २११. अरसं विरसंवा वि सूइयं व असूइयं । ओल्लं वा जइ वा सुक्कं मंथु-कुम्मासभोयणं ।।१२९।। २१२. उप्पन्नं नाइहीलेज्जा अप्पं वा बहु फासुयं । मुहालद्धं मुहाजीवी भुंजेज्जा दोसवज्जियं ॥१३०।। २१३. दुल्लहा उ मुहादाई मुहाजीवी वि दुल्लहा । मुहादाई मुहाजीवी दो वि गच्छंति सोग्गई ॥१३१॥त्ति बेमि ।। || पिंडेसणऽज्झयणे बीओ उद्देसओ २१४. पडिग्गहं संलिहिताणं लेवमायाए संजए। दुगंधं वा सुगंध वा सव्वं भुजे न म $听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听网 HOTO ELPAParsopaLLApply, )55555555554444444444 श्री आHISHTA 125555555555555555555555555446YOK Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FOR955555555555555 (४२) दसवेयालियं (तइयं मूलसुत्त) अ.५/उ. २ ८ ] 55555555555555xom DSCF历历明明明明明明明明明明明乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐听听听听听听听听听听听听听听玩乐听听听听听听听听听C छड्डए ॥१॥ २१५. सेज्जा निसीहियाए समावन्नो य गोयरे । अयावयट्ठा भोच्चा णं जइ तेण न संथरे ॥२॥ २१६. तओ कारणमुप्पन्ने भत्त-पाणं गवेसए । विहिणा पुव्ववुत्तेण इमेणं उत्तरेण य॥३|| २१७. कालेण निक्खमे भिक्खू कालेण य पडिक्कमे । अकालं च विवज्जेत्ता काले कालं समायरे॥४॥ २१८. अकाले चरसि भिक्खू ! कालं न पडिलेहसि । अप्पाणं च किलामेसि अन्निवेसं च गरहसि ।।५।।२१९. सइ काले चरे भिक्खू कुज्जा पुरिसकारियं । अलाभो त्तिन साएज्जा तवो त्ति अहियासए ॥६॥ २२०. तहेवुच्चावया पाणा भत्तट्ठाए समागया। तउज्जुयं न गच्छेज्जा जयमेव परक्कमे ॥७॥२२१. गोयरग्ग पविट्ठो उन निसीएज्ज कत्थई। कहं च न पबंधेज्जा चिट्ठित्ताण व संजए।।८।। २२२. अग्गलं फलिहं दारं कवाडं वा वि संजए। अवलंबिया न चिट्ठज्जा गोयरग्गगओ मुणी ।।९।। २२३. समणं माहणं वा वि किविणं वा वणीमगं । उवसंकमंतं भत्तट्ठा पाणट्ठाए व संजए ||१०|| २२४. तं अइक्कमित्तु न पविसे न चिट्ठे चक्खुगोयरे । एगंतमवक्कमित्ता तत्थ चिटेज संजए ।।११।। २२५. वणीमगस्स वा तस्स दायगस्सुभयस्स वा । अप्पत्तियं सिया होज्जा लहुत्तं पवयणस्स वा ।।१२।। २२६. पडिसेहिए व दिन्ने वा तओ तम्मि नियत्तिए । उवसंकमज्ज भत्तट्ठा पाणट्ठाए व संजए।।१३।। २२७. उप्पलं पउमं वा वि कुमुयं वा मगदंतियं । अन्नं वा पुप्फ सच्चित्तं तं च संलुचिया दए ।।१४।। २२८. तारिसं भत्त-पाणं तु संजयाण अकप्पियं । देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥१५॥ २२९. उप्पलं पउमं वा वि कुमुयं वा मगदंतियं । अन्नं वा पुप्फ सच्चित्तं तं च सम्मद्दिया दए ॥१६॥ २३०. तारिसं भत्त-पाणं तु संजयाण अकप्पियं । देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥१७॥ २३१. सालुयं वा विरालियं कुमुउप्पलनालियं । मुणालियं सासवनालियं उच्छुक्खंडं अनिव्वुडं ॥१८||२३२. तरुणगं वा पवालं रुक्खस्स तणगस्स वा । अन्नस्स वा वि हरियस्स आमगं परिवज्जए।।१९।। २३३. तरुणियं वा छेवाडिं आमियं भज्जियं सइं । देतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं॥२०॥ २३४. तहा कोलमणस्सिन्नं वेलुयं कासवनालियं । तिलप्पडगं नीमं आमगं परिवज्जए ॥२१॥ २३५. तहेव चाउलं पिढें वियर्ड वा तत्तनिव्वुडं । तिलपिट्ठ पूइपिन्नागं आमगं परिवज्जए ।।२२।। २३६. कविट्ठ माउलिंगं च मूलगं मूलगत्तियं । आम असत्परिणयं मणसा वि न पत्थए ।।२३।। २३७. तहेव फलमंथूणि बीयमंथूणि जाणिया। बिहेलगं पियालं च आमगं परिवजए॥२४॥ २३८. समुदाणं चरे भिक्खू कुलं उच्चावयं सया। नीयं कुमइक्कम्म ऊसढं नामधारए ।।२५।। २३९. अदीणो वित्तिमेसेज्जा न विसीएज्ज पंडिए। अमुच्छिओ भोयणम्मि मायन्ने एसणारए ।।२६।। २४०. बहुं परघरे अस्थि विविहं खाइम-साइमं । न तत्थ पंडिओ कुप्पे इच्छा देज्ज परो न वा ॥२७|| २४१. सयणाऽऽसण वत्थं वा भत्त-पाणं व संजए । अदेंतस्स न कुप्पेज्जा पच्चक्खे वि य दीसओ॥२८॥२४२. इत्थियं पुरिसंवा वि डहरं वा महल्लगं | वंदमाणं न जाएज्जा नो यणं फरुसं वए।।२९।।२४३.जे न वंदे न से कुप्पे वंदिओ न समुक्कसे । एवमन्नेसमाणस्स सामण्णमणुचिट्ठई ||३०|| २४४. सिया एगइओ ल« लोभेण विणिगूहई। मा मेयं दाइयं संतं दटूणं सयमायए।।३१।। २४५. अत्तट्ठगुरुओ लुद्धो बहुं पावं पकुव्वई। दुत्तोसओ य से होइ नेव्वाणं च न गच्छई॥३२॥ २४६. सिया एगइओ ल« विविहं पाण-भोयणं । भद्दगं भद्दगं भोच्चा विवण्णं विरसमाहरे॥३३॥ २४७. जाणंतु ता इमे समणा आययट्ठी अयं मुणी। संतुट्ठो सेवई पंतं लूहवित्ती सुतोसओ॥३४॥२४८. पूयणट्ठा जसोकामी माण-सम्माणकामए। बहुं पसवई पावं मायासल्लं च कुव्वई ||३५|| २४९. सुरं वा मेरगं वा वि अन्नं वा मज्जगं रसं । ससक्खं न पिबे भिक्खू जसं सारक्खमप्पणो॥३६|| २५०. पियाएगइओ तेणो न मे कोइ वियाणइ । तस्स पस्सह दोसाइं नियडिं च सुणेह मे ॥३७॥ २५१. वड्ढई सोडिया तस्स मायामोसं च भिक्खुणो। अयसो य अनिव्वाणं सययं च असाहुया ॥३८॥ २५२. निच्चुविग्गो जहा तेणो अत्तकम्मेहि दुम्मई । तारिसो मरणंते वि नाऽऽराहेइ संवरं ॥३९॥ २५३. आयरिए नाऽऽराहेइ समणे यावि तारिसो। गिहत्था वि णं गरहंति जेण जाणंति तारिसं ॥४०|| २५४. एवं तु अगुणप्पेही गुणाणं च विवज्जए। तारिसो मरणंते वि नाऽऽराहेइ संवरं ।।४१।। २५५. तवं कुव्वइ मेहावी पणीयं वज्जए रसं । मज्ज-प्पमायविरओ तवस्सी अइउक्कसो॥४२।। २५६. तस्स पस्सह कल्लाणं अणेगसाहुपूइयं । विउलं अत्थसंजुत्तं कित्तइस्सं सुणेह मे ॥४३॥ २५७. एवं तु गुणप्पेही अगुणाणं विवज्जए। तारिसो मरणंते वि आराहेइ संवरं ॥४४||२५८. आयरिए आराहेइ समणे यावि तारिसो। गिहत्था वि णं पूयंति जेण जाणंति तारिसं ॥४५|| २५९. तवतेणे वइतेणे रूवतेणे य जे नरे| आयार-भावतेणे य कुव्वई देवकिब्बिसं ॥४६।। २६०. लभ्रूण वि देवतं उववन्नो xeros श्री आगमगुणमजूषा - १६३० 5555555$$OOR 听听听听听听听听听乐乐乐乐乐乐乐乐玩玩乐乐乐听听听听听听听听听乐乐乐乐乐乐乐乐乐听听听听听听感 Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AGRO555555555555555 A am h ihari (४२) दसवयालय (तइय मूलसुत्त) अ.५.६ / उ.२ [९] 555555555555555EOXOY OCW乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听FOSC देवकिब्बिसे । तत्थावि से न याणाइ किं मे किच्चा इमं फलं ? ॥४७||२६१. तत्तो वि से चइत्ताणं लब्भिही एलमूयगं । नरयं तिरिक्खजोणिं वा बोही तत्थ सुदुल्लहा ॥४८॥ २६२. एयं च दोसं दटूणं नायपुत्तेण भासियं । अणुमायं पि मेहावी मायामोसं विवज्जए॥४९॥ २६३. सिक्खिऊण मिक्खेसणसोहिं संजयाण बुद्धाण सगासे। तत्थ भिक्खु सुप्पणिहिइंदिए तिव्वलज्जगुणवं विहरेज्जासि ॥५०॥त्ति बेमि ।। ।पिंडेसणाए बीओ उद्देसओ समत्तो * ॥ पिंडेसणऽज्झयणं समत्तं ॥५॥ ***६ छटुं धम्म-ऽत्थ-कामऽज्झयणं ★★★२६४. नाण-दसणसंपन्नं संजमे य तवे रयं । गणिमागमसंपन्नं उज्जाणम्मि समोसढं ॥१॥ २६५. रायणो, रायमच्चा य माहणा अदुव खत्तिया । पुच्छंति निहुयऽप्पाणो कहं मे आयरगोयरो? ||२|| २६६. तेसिं सो निहुओ दंतो सव्वभूयसुहावहो। सिक्खाए सुसमाउत्तो आइक्खइ वियक्खणो॥३॥ २६७. हंदि ! धम्म-ऽत्थ-कामाणं निग्गंथाणं सुणेह मे। आयार-गोयरं भीमं सयलं दुरहिट्ठियं ॥४॥२६८. नऽन्नत्थ एरिसं वुतं जं लोए परमदुच्चरं । विश्लट्ठाणभाइस्स न भूयं न भविस्सई॥५॥२६९. सखुड्डग-वियत्ताणं वाहियाणं च जे गुणा । अखंड-फुडिया कायव्वा तं सुणेह जहा तहा।।६||२७०. दस अट्ठ य ठाणीइं जाइं बालोऽसरज्झई । तत्थं अन्नयरे ठाणे निग्गंथत्ताओ भस्सई ॥७॥ २७१. तत्थिमं पढमं ठाणं महावीरेण देसियं । अहिंसा निउणा दिट्ठा सव्वभूएसुसंजमो॥८॥२७२. जावंति लोए पाणा तसा अदुव थावरा । तं जाणमजाणं वा न हणे नो वि घायए॥९॥२७३. सव्वजीवा वि इच्छंति जीविउंन मरिज्जिउं। तम्हा घाणवहं घोरं निग्गंथा वज्जयंति पां ॥१०॥ २७४. अप्पणट्ठा परट्ठा वा कोहा वा जइ वा भया । हिंसगं न मुसं बूया नो वि अन्नं वयावए॥११॥ २७५. मुसावाओ य लोगम्मि सव्वसाहूहि गरिहिओ। अविस्साओ य भूयाणं तम्हा मोसं विवज्जए ।१२।। २७६. चित्तमंतमचित्तं वा अप्पं वा जइ वा बहुं । दंतसोहणमेत्तं पि ओग्गहं सि अजाइया ॥१३॥ २७७. तं अप्पणा न गेण्हंति नो वि गेण्हावए परं । अन्नं वा गेण्हमाणं पि नाणुजाणंति संजया ॥१४॥ २७८. अबंभचरियं घोरं पमायं दुरहिट्ठियं । नाऽऽयरंति मुणी लोए भेयाययणवज्जिणो।।१५।। २७९. मूलमेयमहम्मस्स महादोसमुस्सयं । तम्हा मेहुणसंसगं निग्गंथा वज्जयंति णं ।।१६।। २८०. विडमुब्भेइमं लोणं तेल्लं सप्पिं च फाणियं । न ते सन्निहिमिच्छंति नायपुत्तवओरया॥१७॥ २८१. लोभस्सेसऽणुफासो मन्ने अन्नयरामवि । जे सिया सन्निही कामे गिही, पव्वइए नसे॥१८॥२८२. जं पिवत्थं व पायं वा कंबलं पायपुछणं । तं पि संजम-लज्जट्ठा धारेति परिहरेति य ।।१९।। २८३. न सो परिग्गहो वुत्तो नायपुत्तेण ताइणा। मुच्छा परिग्गहो वुत्तो इइ वुत्तं महेसिणा ॥२०|| २८४. सव्वत्थुवहिणा बुद्धा संरक्खणपरिग्गहे । अवि अप्पणो वि देहम्मि नाऽऽयरंति ममाझ्यं ।।२१।। २८५. अहो ! निच्चं तवोकम्मं सव्वबुद्धेहि वणियं । जाय लज्जासमा वित्ती एगभत्तं च भोयणं ।।२२।। संतिमे सुहमा पाणा तसा अदुव थावरा । जाइं राओ अपासंतो कहमेसणियं चरे? ॥२३|| २८७. उदओल्लं बीयसंसत्तं पाणा निव्वडिया महिं। दिया ताई विवज्जेज्जा राओ तत्थ कह चरे ? ॥२४|| २८८. एयं च दोसं दद्रूणं नायपुत्तेण भासियं । सव्वाहारं न भुजंति निग्गंथा राइभोयणं ॥२५|| २८९. पुढविकायं न हिंसंति मणसा वयस कायसा । तिविहेण करणजोएण संजया सुसमाहिया ॥२६।। २९०. पुढविकायं विहिंसंतो हिंसई तु तदस्सिए। तसेय विविहे पाणे चक्खुसे य अचक्खुसे||२७||२९१. तम्हा एयं वियाणित्ता दोसं दोग्गइवड्ढणं । पुढविकायसमारंभ जावज्जीवाए वज्जए||२८|| २९२. आउकायं न हिंसति मणसा वयस कायसा। तिविहेण करणजोएण संजया सुसमाहिया ।।२९|| २९३. आउकायं विहिसंतो हिंसई उ तदस्सिए । तसे य विविहे पाणे चक्खुसे य अचक्खुसे॥३०|| २९४. तम्हा एयं वियाणित्ता दोसं दोग्गइवड्ढणं । आउकायसमारंभं जावजीवाए वज्जए॥३१॥ २९५. जायतेयं न इच्छंति पावगं जलइत्तए। तिक्खमन्नयरं सत्थं सव्वओ वि दुरासयं ॥३२।। २९६. पाईणं पडिणं वा वि उड्डे अणुदिसामवि। अहे दाहिणाओ वा वि दहे उत्तरओ वि य ॥३३॥ २९७. भूयाणं एसमाघाओ हव्ववाहो, न संसओ। तं पईव-पयावट्ठा संजया किंचि नाऽऽरभे ॥३४॥ २९८. तम्हा एयं वियाणित्ता दोसं क है दोग्गइवड्डणं । तेउकायसमारंभं जावज्जीवाए वज्जए।३५।। २९९. अनिलस्स समारंभ बुद्धा मन्नंति तारिसं । सावज्जबहुलं चेयं नेयं ताईहि सेवियं ॥३६।। ३००. तालियंटेण पत्तेण साहाविहुयणेण वा । न ते वीइउमिच्छंति वीयावेऊण वा परं॥३७॥ ३०१.जं पि वत्थं व पायं वा कंबलं पायपुंछणं । न ते वायमुईरंति जयं परिहरंति C%听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听明明明明明明明明明明明明明明 For Prvate & Personal Use Only in Education International 2010_03 o vaa - -. -.-. -.-.-. m -.-. -. -.-. - - - - - - - - - - - - - Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Ro5555555555555卐 (२) दसवेयालियं (तइय मूलसुत्त) अ. ६,७ [१०] 55555555555555550xot MOKO乐听听听听听听听听听听听听听乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐乐听听听听听听听听听听听听听听听乐%乐乐乐 य॥३८|| ३०२. तम्हा एयं वियाणित्ता दोसं दोग्गइवड्डणं । वाउकायसमारंभं जावज्जीवाए वज्जए॥३९|| ३०३. वणस्सइंन हिंसंति मणसा वयसा कायसा। तिविहेण केरणजोएण संजया सुसमाहिया ||४०|| ३०४. वणस्सइं विहिंसंतो हिंसई उ तदस्सिए । तसे य विविहे पाणे चक्खुसे य अचक्खुसे ||४१|| ३०५. तम्हा एयं वियाणित्ता दोसं दोग्गइवड्डणं । वणस्सइसमारंभं जावज्जीवाए वज्जए॥४२।। ३०६. तसकायं न हिंसंति मणसा वयसा कायसा । तिविहेण करणजोएण संजया सुसमाहिया ॥४३॥ ३०७. तसकायं विहिंसंतो हिंसई उ तदस्सिए। तसेय विविहे पाणे चक्खुसे य अचक्खुसे॥४४॥ ३०८. तम्हा एयं वियाणित्ता दोसं दोग्गइवटुंणं । तसकायसमारंभं जावज्जीवाए वज्जए।।४५|| ३०९. जाई चत्तारिऽभोज्जाइं इसिणाऽऽहारमाइणि | ताई तु विवज्जेंतो संजमं अणुपालए॥४६॥ ३१०. पिंडं सेज्जं च वत्थं च चउत्थं पायमेव य । अकप्पियं न इच्छेज्जा पडिग्गाहेज्ज कप्पियं ।।४७|| ३११. जे नियागं ममायंति कीयमुद्देसियाऽऽहडं । वहं ते समणुजाणंति इइ वुत्तं महेसिणा ॥४८॥ ३१२. तम्हा असण-पाणाई कीयमुद्देसियाऽऽहडं । वज्जयंति ठियप्पाणो निग्गंथा धम्मजीविणो॥४९॥ ३१३. कंसेसु कंसपाएसु कुंडमोएसु वा पुणो। भुंजतो असण-पाणाई आयारा परिभस्सई॥५०|| ३१४. सीओदगसमारंभे मत्तधोयणछड्डणे । जाइं छण्णंति भूयाई सो तत्थ दिट्ठो असंजमो॥५१॥ ३१५. पच्छाकम्मं पुरेकम्मं सिया तत्थ न कप्पई । एयमटुं न भुंजंति निग्गंथा गिहिभायणे ।।५२।। ३१६. आसंदी-पलियंकेसु मंच-मासालएसु वा । आणायरियमज्जाणं आसइत्तु सइत्तु वा ॥५३॥ ३१७. नाऽऽसंदी-पलियंकेसुन निसेज्जा न पीढए। निग्गंथाऽपडिलेहाए बुद्धवुत्तमहिट्ठगा ॥५४॥ ३१८. गंभीरविजया एए पाणा दुप्पडिलेहगा। आसंदी पलियंको य एयमढें विवज्निया ॥५५।। ३१९. गोयरग्गपविट्ठस्स निसेज्जा जस्स कप्पई । इमेरिसमणायारं आवज्जइ अबोहियं ।।५६।। ३२०. विवत्ती बंभचेरस्स पाणाणं च वहे वहो । वणीमगपडिग्घाओ पडिकोहो य अगारिणं ॥५७।। ३२१. अगुत्ती बंभचेरस्स इत्थीओ यावि संकणं । कुसीलवडणं ठाणं दूरओ परिवज्जए॥५८|| ३२२. तिण्हमनकनयरागस्स निसेज्जा जस्स कप्पई । जराए अभिभूयस्स वाहियस्स तवस्सिणो ॥५९।। ३२३. वाहिओ वा अरोगी वा सिणाणं जो उ पत्थए । वोक्कंतो होइ आयारो जढो हवइ संजमो॥६०|| ३२४. संतिमे सुहुमा पाणा घसासु भिलुगासु य । जे उ भिक्खू सिणायंतो वियडेणुप्पिलावए ॥६१॥ ३२५. तम्हा ते न सिणायंति सीएण उसिणेण वा। जावज्जीवं वयं घोरं असिणाणमहिट्ठगा ॥६२।। ३२६. सिणाणं अदुवा कक्कं लोद्धं पउमगाणि य। गायस्सुव्वट्टणट्ठाए नाऽसरंति कयाइ वि॥६३।। ३२७. नगिणस्स वा वि मुंडस्स दीहरोम-नहंसिणो । मेहुणा उवसंतस्स किं विभूसाए कारियं ? ॥६४|| ३२८. विभूसावत्तियं भिक्खू कम्मं बंधइ चिक्कणं । संसारसायरे घोरे जेणं पडइ दुरुत्तरे ॥६५॥ ३२९. विभूसावत्तियं चेयं बुद्धा मन्नति तारिसं। सावज्जबहुलं चेयं नेयं ताईहि सेवियं ।।६६।। ३३०. खवेति अप्पाणममोहदंसिणो तवे रया संजमे अज्जवे गुणे। धुणंति पावाइं पुरेकडाई नवाई पावाई न ते करेति ॥६७|| ३३१. सओवसंता अममा अकिंचणा सविज्जविज्जाणुगया जसंसिणो । उउप्पसन्ने विमले व चंदिमे सिद्धिं विमाणाई उति ताइणो ॥६८॥ त्ति बेमि || || धम्म-ऽत्थ-कामऽज्झयणं छठे समत्तं ॥६॥*** ७ सत्तमं वक्कसुद्धिअज्झयणं ★★★ ३३२. चउण्हं खलु भासाणं परिसंखाय पन्नवं । दोण्हं तु विणयं सिक्खे दो न भासेज सव्वसो ॥१॥ ३३३. जा य सच्चा अवत्तव्वा सच्चामोसा य जा मुसा । जा य बुद्धेहिऽणाइन्ना न तं भासेज्ज पण्णवं ॥२॥ ३३४. असच्चमोसं सच्चं च अणवज्जमकक्कसं । समुप्पेहमसंदिद्धं गिरं भासेज पण्णवं ।।३।। ३३५. एयं च अट्ठमन्नं वा जंतुनामेइ सासयं । स भासं सच्चमोसं पितं पि धीरो विवज्जए।।४।। ३३६. वितहं पितहामुत्ति जं गिरं भासए नरो। तम्हा सो पुट्ठो पावेणं, किं पुणं जो मुसं वए।?||५।। ३३७. तम्हा गच्छामो वक्खामो अमुगं वा णे भविस्सई । अहं वा णं करिस्सामि एसो वाणं करिस्सई ।।६।। ३३८. एवमाई उजा भासा एसकालम्मि संकिया। संपयाईयमढे वा तं पि धीरो विवज्जए |७|| ३३९. अईयम्मि य कालम्मी पच्चुप्पन्नमणागए। जमहूँ तु जाणेज्जा ‘एवमेयं' ति नो वए ।।८।। ३४०. अईयम्मि य कालम्मि पच्चुप्पन्नमणागए। जत्थ संका भवे तं तु 'एवमेयं' ति नो वए॥९॥ ३४१. अईयम्मि य म कालम्मि पच्चुप्पन्नमणागए। निस्संकियं भवे जंतु 'एवमेयं' ति निद्दिसे ॥१०॥ ३४२. तहेव फरुसा भासा गुरुभूओवघाइणी । सच्चा वि सान वत्तव्वा जओ पावस्स 明明明明明明明明斯乐历历历明听听听听听听听听听听听听听听听乐乐乐乐乐与乐明历乐乐听听听听听听听听2G FOR MO:05555555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा - १६३२555555555555555555555555551STOR Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४२) दसवेयालियं (तइयं मूलसुत्तं) अ. ७ [११] आगमो ||११|| ३४३. तहेव काणं 'काणे' त्ति पंडगं 'पंडगे' त्ति वा । वाहियं वा वि 'रोगि' त्ति तेणं 'चोरे' त्ति नो वए ||१२|| ३४४. एएन्त्रेण अद्वेण परो जेणुवहम्मई । आयारभावदोसण्णू ण तं भासेज्ज पण्णवं ॥ १३॥ ३४५. तहेव 'होले' 'गोले' त्ति 'साणे' वा 'वसुले' त्तिय । 'दमए' 'दूहए' वा वि न तं भासेज्ज पण्णवं ॥ १४॥ ३४६. अज्जिए पनि वा वि अम्मो माउसिय त्ति वा । पिउस्सिए भाइणेज्ज त्ति धूए नत्तुणिए त्तिय ॥ १५ ॥ ३४७. हले हले त्ति अन्ने त्ति भट्टे सामिणि गोमिणि । होले गोले वसुले त्ति इत्थियं नेवमालवे || १६ || ३४८. नामधेज्जेण णं बूया इत्थीगोत्तेण वा पुणो । जहारिहमभिगिज्झ आलवेज्ज लवेज्ज वा ॥ १७॥ ३४९. अज्जए पज्जए वा वि प्पो चुल्ल पिउत्तिय । माउला भाइणेज्ज त्ति पुत्ते णत्तुणिय त्तिय ॥१८॥। ३५०. हे हो हले त्ति अन्ने त्ति भट्टा सामिय गोमिय । होल गोल वसुल त्ति पुरिसं नेवमालवे ॥१९॥ ३५१. नामधेज्जेण णं बूया पुरिसगोत्तेण वा पुणो । जहारिहमभिगिज्झ आलवेज्ज लवेज्ज वा ॥ २०॥ ३५२. पंचिदियाण पाणाणं एस इत्थी अयं पुमं । जाव विजाना ताव जाइ त्ति आलवे ॥ २१ ॥ ३५३. तहेव मणुसं पसुं पक्खिं वा वि सरीसिवं । थूले पमेइले वज्झे पाइने त्ति य नो वए ॥ २२॥ ३५४. परिवूढे त्तिणं बूया बूया उवचिए त्ति य । संजए पीणिए वा वि महाकाए त्ति आलवे ||२३|| ३५५. तहेव गाओ दुज्झाओ दम्मा गोरहग त्ति य । वाहिमा रहजोग्ग त्ति नेवं भासेज्ज पण्णवं ।।२४।। ३५६. जुवंगवे त्ति णं बूया धेणुं रसदय त्ति य । रहस्से महल्लए वा वि वए संवहणे त्ति य ॥ २५ ॥ ३५७. तहेव गंतुमुज्जाणं पव्वयाणि वणाणि य । रुक्खा महल्ल पेहा नेवं भासेज्न पण्णवं ॥ २६ ॥ ३५८. अलं पासायखंभाणं तोरणाण गिहाण य। फलिह-ऽग्गल नावाणं अलं उदगदोणिणं ||२७|| ३५९. पीढए चंगबेरे य नंगले मइयं सिया । जंतलट्ठी व नाभी वा गंडिया व अलं सिया ॥ २८॥ ३६०. आसणं सयणं जाणं होज्जा वा किंचुवस्सए । भूओवघाइणिं भासं नेवं भासेज्ज पण्णवं ॥ २९ ॥ ३६१. तहेव गंतुमुज्जाणं पव्वयाणि वणाणि य । रुक्खा महल्ल पेहाए एवं भासेज्जा पण्णवं ||३०|| ३६२. जाइमंता इमे रुक्खा दीहवट्टा महालया । पयायसाला विडिमा ए दरिसणि त्ति य । ३६३. तहा फलाई पक्काई पायखज्जाइं नो वए। वेलोइयाइं टालाई वेहिमाइं ति नो वए ||३२|| ३६४. असंथडा इमे अंबा बहुनिव्वड्डिमाफला । वज्जा बहुसंभूया भूयरूव त्ति वा पुणो ||३३|| ३६५. तहोसहीओ पक्काओ नीलियाओ छवी इ य । लाइमा भज्जिमाओ त्ति पिहुखज्ज ति नो वए ||३४|| ३६६. विरूढा बहुसंभूया थिरा ऊसढा वि य । गब्भियाओ पसूयाओ ससाराओ त्ति आलवे ||३५|| ३६७. तहेव संखडि नच्चा किच्चं कज्जं ति नो वए। तेणगं वा विवज्झेत्ति सुतित्थे त्ति य आवगा || ३६ || ३६८. संखडिं संखडिं बूया पणियद्वं ति तेणगं । बहुसमाणि तित्थाणि आवगाणं वियागरे ||३७|| ३६९. तहा नईओ पुण्णाओ कायतिन त्ति नो वए। नांवाहिं तारिमाओ त्ति पाणिपेज्ज त्ति नो वए ||३८|| ३७०. बहुवाहडा अगाहा बहुसलिलुप्पिलोदगा । बहुवित्थडोदगा यावि एवं भासेज्ना पण्णवं ॥ ३९ ॥ ३७१. तहेव सावज्जं जोगं परस्सऽट्ठाए निट्टियं । कीरमाणं ति वा णच्चा सावज्जं नाऽऽलवे मुणी ||४०|| ३७२. सुकडे त्ति सुपक्के त्ति सुछिन्ने सुहडे मडे। सुनिट्ठिए सुलट्ठे त्ति सावज्जं वज्जए मुणी ॥४१॥ ३७३. पयत्तपक्के त्ति व पक्कमालवे, पयत्तछिन्ने त्ति व छिन्नमालवे। पवत्तलठ्ठे त्ति व कम्महेउयं, पहारगाढे त्ति व गाढमालवे ||४२|| ३७४. सव्वुक्कस्सं परग्धं वा अउलं नत्थि एरिसं । अचक्कियमवत्तव्वं अचियतं चेव णो वए ॥ ४३ ॥ ३७५. सव्वमेयं वइस्सामि सव्वमेयं ति नो वए । अणुवीइ सव्वं सव्वत्थ एवं भासेज्ज पण्णवं ||४४ || ३७६. सुक्कीयं वा सुविक्कीयं अकेज्जं केज्जमेव वा । इमं गेह, इमं मंच पणियं नो वियागरे ॥ ४५ ॥ ३७७. प्रवाह वा ए व विक्कए वि वा । पणियट्ठे समुप्पन्ने अणवज्जं वियागरे ||४६ || ३७८. तहेवाऽसंजयं धीरो आस एहि करेहि वा । सय चिट्ठ वयाहि त्ति नेवं भासेज्ज पण्णवं ॥४७॥। ३७९. बहवे इमे असाहू लोए वुच्वंति साहुणो । न लवे असाहुं साहुं ति साहु साहुं ति आलवे ||४८|| ३८०. णाण- दंसणसंपन्नं संजमे य तवे रयं । एवंगुणसमाउत्तं संजयं साहुमालवे ॥ ४९ ॥ ३८१. देवाणं मणुयाणं च तिरियाणं च वुग्गहे। अमुयाण जओ होउ, मा वा होउ त्ति नो वए ॥ ५० ॥ ३८२. वाओ वुद्धं व सीउण्हं खेमं धायं सिवं ति वा । पया णु होज्न एयाणि ? मा वा होउ त्ति नो वए ॥ ५१ ॥ ३८३. तहेव मेहं व नहं व माणवं न देवदेव त्ति गिरं वएना । समुच्छिए उन्न वा ओदेवज्जा वा 'वुट्ठे बलाहए' त्ति ॥ ५२ ॥ ३८४. 'अंतलिक्खे' त्तिणं बूया, 'गुज्झाणुचरियं' तिय । रिद्धिमंतं नरं दिस्स 'रिद्धिमंत' ति आलवे ॥ ५३ ॥ ३८५. तहेव सावज्जणुमोयणी गिरा ओहरिणी जा य परोवघाइणी । से कोह लोह भयसा व माणवो न हासमाणो वि गिरं वएज्जा ॥ ५४ ॥। ३८६. स-वक्कसुद्धिं समुपेहिया मुणी MORE श्री आगमगुणमंजूषा - १६३३ XOXO १०७ Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ OKS55555555555 (४२) दसवेयालियं (तइय मूलसुन) अ. ७.८ ___[१२] b历历步步步步步5555552.0L OTO乐乐乐乐乐乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听F6CM गिरं च दुटुं परिवज्जए सया। मियं अदु8 अणुवीई भासए सयाण मज्झे लहई पसंसणं ॥५५॥ ३८७. भासाए दोसे य गुणे य जाणिया तीसे य दुट्ठाए विवज्जए सया। छसुसंजए सामणिए सया जए वएज्ज बुद्धे हियमाणुलोमियं ।।५६।। ३८८. परिक्खभासी सुसमाहिइंदिए चउक्कसायावगए अणिस्सिए। स निद्भुणे धुण्णमलं पुरेकडं आराहए लोगमिणं तहा परं ॥५७|| ति बेमि || *॥ वक्कसुद्धिअज्झयणं सत्तमं समत्तं ॥७॥ *** ८ अट्ठमं आयारप्पणिहिअज्झयण *** ३८९. आयारपणिहि लद्धं जहा कायव्व भिक्खुणा। तं भे उदाहरिस्सामि आणुकुव्विं सुणेह मे ॥१॥ ३९०. पुढविदगअगाणिमारुयतणरुक्खसबीयगा। तसा य पाणा जीव त्ति इइ वुत्तं महेसिणा ।।२।। ३९१. तेसिं अच्छणजोएण निच्चं होयव्वयं सया । मणसा कायवक्केण एवं भवइ संजए ।।३।। ३९२. पुढविं भित्तिं सिलं लेखें नेव भिदे न संलिहे । तिविहेण करणजोएण संजए सुसमाहिए ||४|| ३९३. सुद्धपुढवीए न निसिए ससरक्खम्मि य आसणे । पमज्जित्तु निसीएज्जा जाणित्तु जाइयोग्गहं ।।५।। ३९४. सीओदगं न सेवेज्ना सिला वुटुं हिमाणि य । उसिणोदगं तत्तफसुयं पडिगाहेज संजए।।६।। ३९५. उदओल्लं अप्पणो कायं नेव पुंछे न संलिहे । समुप्पेह तहाभूयं नो णं संघट्टए मुणी ॥७॥ ३९६. इंगालं अगणिं अच्चिं अलायं वा सजोइयं । न उजेज्जा न घट्टेज्जा नो णं निव्वावए मुणी ॥८॥ ३९७. तालियंटेण पत्तेण साहविहुयणेण वा । न वीएज्ज अप्पणो कायं बाहिरं वा वि पोग्गलं ।।९।। ३९८. तणरुक्खं न छिदेज्जा फलं मूलं व कस्सइ । आमगं विविहं बीयं मणसा वि न पत्थए ।।१०॥ ३९९. गहणेसु न चिट्ठज्जा बीएसु हरिएसु वा । उदगम्मि तहा निच्चं उत्तिंग-पणगेसु वा ।।११।। ४००. तसे पाणे न हिंसेज्जा वाया अदुव कम्मुणा । उवरओ सव्वभूएसु पासेज विविहं जगं ॥१२।। ४०१. अट्ठ सुहुमाइं पेहाए जाई जाणित्तु संजए । दयाहिगारी भूएसु आस चिट्ठ सएहि वा॥१३।। ४०२. कयराइं अट्ठ सुहुमाइं ? जाई पुच्छेज्ज संजए। इमाई ताई मेहावी आइक्खेज वियक्खणे ॥१४||४०३. सिणेहं १ पुप्फसुहुमं २ च पाणुत्तिंग ३-४ तहेव य । पणगं ५ बीय ६ हरियं ७ च अंडसुहुमं ८ च अट्ठमं ।।१५।। ४०४. एवमेयाणि जाणित्ता सव्वभावेण संजए। अप्पमत्ते जए निच्चं सव्विंदियसमाहिए ।।१६।। ४०५. धुवं च पडिलेहेज्जा जोगसा पाय-कंबलं । सेज्जमुच्चारभूमिं च संथारं अदुवाऽऽसणं ।।१७।। ४०६. उच्चारं पासवणं खेलं सिंघाण जल्लियं । फासुयं पडिलेहित्ता परिठ्ठावेज्ज संजए॥१८॥ ४०७. पविसित्तु परागारं पाणट्ठा भोयणस्स वा । जयं चिट्टे, मियं भासे, न य रूवेसु मणं करे||१९|| ४०८. बहुं सुणेइ कण्णहिं बहुं अच्छीहिं पेच्छइ। न य दिलृ सुयं सव्वं भिक्खू अक्खाउमरिहइ ।।२०।। ४०९. सुयं वा जइ वा दिटुं न लवेजोवघाइयं । न य केणइ उवाएणं गिहिजोगं समायरे ॥२१॥ ४१०. निट्ठाणं रसनिज्जूढं भद्दगं पावगं ति वा। पुट्ठो वा अपुट्ठो वा लाभालाभं न निद्दिसे॥२२।। ४११.नय भोयणम्मि गिद्धो चरे उंछं अयंपिरो। अफासुयं न भुजेज्जा कीयमुद्देसियाऽऽहडं ॥२३।। ४१२. सन्निहिं च न कुव्वेज्जा अणुमायं पि संजए। मुहाजीवी असंबद्धे हवेज्ज जगनिस्सिए॥२४॥ ४१३. लहवित्ती सुसंतुढे अप्पिच्छे सुहरे सिया। आसुरत्तं न गच्छेज्जा सोच्चाणं जिणासासणं ॥२५॥ ४१४. कण्णसोक्खेहिं सद्देहिं पेमं नाभिनिवेसए । दारुणं कक्कसं फासं काएण अहियासए ॥२६॥ ४१५. खुहं पिवासं दुस्सेज्जं सीउण्हं अरई भयं । अहियासे अव्वहिओ देहे दुक्खं महाफलं ॥२७॥ ४१६. अत्थंगयम्मि आइच्चे पुरत्था य अणुग्गए। आहारमइयं सव्वं मणसा वि न पत्थए |२८|| ४१७. अतितिणे अचवले अप्पभासी मियासणे । हवेज्ज उयरे दंते थोवं लद्धं न खिसए ।।२९।। ४१८. न बाहिरं परिभवे अत्ताणं न समुक्कसे। सुयलाभे न मज्नेज्जा जच्चा तवसि बुद्धिए ॥३०|| ४१९. से जाणमजाणं वा कट्ट आहम्मियं पयं । संवरे खिप्पमप्पाणं बीयं तं न समायरे ॥३१॥ ४२०. अणायारं परक्कम्म नेव गृहे, न निण्हवे । सुई सया वियडभावे असंसत्ते जिइंदिए ॥३२॥ ४२१. अमोहं वयणं कुज्जा आयरियस्स महप्पणो । तं परिगिज्झ वायाए कम्मुणा उववायए॥३३|| ४२२. अधुवं जीवियं नच्चा सिद्धिमग्गं वियाणिया। विणियट्टेज भोगेसु, आउं परिमियमप्पणो ||३४|| बलं थामं च पेहाए सद्धामारोग्गमप्पणो । खेत्तं कालं च ॥ विण्णाय तहऽप्पाणं निजुंजए॥ ४२३. जरा जाव न पीलई वाही जाव न वड्ढणं । जाविदिया न हायंति ताव धम्म समायरे॥३५|| ४२४. कोहं माणं च मायं च लोभं च पाववड्ढणं । वमे चत्तारि दोसे उ इच्छंतो हियमप्पणो ॥३६।। ४२५. कोहो पीइं पणासेइ, माणो विणयनासाणो। माया मित्ताणि नासेइ, लोभो सव्वविणासणो O2O年历历明历历明明明明明明明明明乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐乐听听听听听听听2LN FACEB OLLA Only OnEducation International 2010_03 MOY0555555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा - १६३४ 5455555555555555555555555GIOR Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ KOR95$$$$$$$$$5 (४२) दसवेयालियं (तइयं मूलसुत्त) अ.८,९/ उ.१ [१३] 155555555555 o g ॥३७॥ ४२६. उवसमेण हणे कोहं, माणं महवया जिणे । मायं चऽज्जवभावेण, लोभं संतोसओ जिणे ॥३८॥ ४२७. कोहो य माणो य अणिग्गहीया माया य लोभो य पवड्डमाणा। चत्तारि एए कसिणा कसाया सिंचंति मूलाइं पुणब्भवस्स ॥३९॥ ४२८. राइणिएसु विणयं पउंजे, धुवसीलयं सययं न हावएज्जा | कुम्मो व्ब अल्लीणपलीणगुत्तो परकमेज्जा तव-संजमम्मि ॥४०॥ ४२९. निदं च न बहुमन्नेज्जा, सप्पहासं विवज्जए। मिहोकहाहिं न रमे, सज्झायम्मि रओ सया ॥४१॥ ४३०. जोगं च समणधम्मम्मि जुंजे अणलसो धुवं । जुत्तो य समणधम्मम्मि अह्र लहइ अणुत्तरं ॥४२॥ ४३१. इहलोग-पारत्तहियं जेणं गच्छइ सोग्गई । बहुसुयं पज्जुवासेज्जा, पुच्छेज्जऽत्थविणिच्छयं ।।४३|| ४३२. हत्थं पायं च कायं च पणिहाय जिइंदिए। अल्लीणगुत्तो निसिए सगासे गुरुणो मुणी।।४४।। ४३३. न पक्खओ न पुरओ नेव किच्चाण पिट्ठओ। न य ऊरुं समासेज्जा चिद्वेज्ना गुरुणंतिए।४५|| ४३४. अपुच्छिओ न भासेज्जा भासमाणस्स अंतरा। पिट्ठमंसं न खाएज्जा, मायामोसं विवज्जए ॥४६॥ ४३५. अप्पत्तियं जेण सिया, आसु कुप्पेज्ज वा परो । सव्वसो तं न भासेज्जा भासं अहियगामिणिं ॥४७॥ ४३६. दि8 मियं असंदिद्धं पडिपुण्णं वियं जिय। अयंपिर-मणुव्विग्गं भासं निसिर अत्तवं ॥४८॥ ४३७. आयारपण्णत्तिधरं दिट्ठिवायमहिज्जगं । वइविक्खलियं णच्चा न तं उवहसे मुणी ॥४९॥ ४३८. नक्खत्तं सुमिणं जोगं निमित्तं मंतभेसज । गिहिणो तं न आइक्खे भूयाहिगरणं पयं ॥५०॥ ४३९. अन्नद्रं पगडं लेणं भएज्न सयणा-ऽऽसणं । उच्चारभुमिसंपन्न इत्थीपसुविविज्जियं ॥५१॥ ४४०. विवित्ता य भवे सेज्जा, नारीणं न लवे कहं । गिहिसंथवं न कुज्जा, कुज्जा साहूहि संथवं ॥५२।। ४४१. जहा कुक्कुडपोयस्स निच्चं कुललओ भयं । एवं खु बंभयारिस्स इत्थीविग्गहओ भयं ॥५३।। ४४२. चित्तभित्तिन निज्झाए, नारिं वा सुअलंकियं । भक्खरं पिव दखूणं दिट्टि पडिसमाहरे॥५४॥ ४४३. हत्थ-पायपडिच्छिन्नं कण्ण-नासविगप्पियं । अविवाससइं नारिं बंभयारी विवजए॥५५॥ ४४४. विभूसा इत्थिसंसग्गी पणीयरसभोयणं । नरस्सऽत्तगवेसिस्स विसं तालउडं जहा ।।५६।। ४४५. अंग-पच्चंगसंठाणं चारुल्लविय-पेहियं । इत्थीणं तं न निज्झाए कामरागविवड्डणं ॥५७|| ४४६. विसएसु मणुण्णेसुं पेमं नाभिनिवेसए। अणिच्चं तेसिं विण्णाय परिणामं पोग्गलाण य॥५८।। ४४७. पोग्गलाण परीणामं तेसिं णच्चा जहा तहा। विणीयतण्हो विहरे सीईभूएण अप्पणा ॥५९।। ४४८. जाए सद्धाए निक्खंतो परियायट्ठाणमुत्तमं । तमेव अणुपालेज्जा गुणे आयरियसम्मए॥६०|| ४४९. तवं चिमं संजमजोगयं च सज्झायजोगं च सया अहिट्ठए। सूरे व सेणाए समत्तमाउहे अलमप्पणो होइ अलं परेसिं॥६१।। ४५०. सज्झाय-सज्झाणरयस्स ताइणो अपावभावस्स तवे रयस्स। विसुज्झई जं से मलं पुरकडं समीरियं रुप्पमलं व जोइणा ॥६२।। ४५१. से तारिसे दुक्खसहे जिइंदिए सुएण जुत्ते अममे अकिंचणे । विरायइ कम्मघणम्मि अवगए कसिणऽब्भपुडावगमे वचंदिम॥६३॥ त्ति बेमि★★★॥आयारप्पणिहिअज्झयणं अट्ठमंसमत्तं ॥८॥★★९ नवमं विणयसमाहिअज्झयणं पढमो उद्देसो *** ४५२. थंभा व कोहा व मय-प्पमाया गुरुस्सगासे विणयं न सिक्खे । सो चेव ऊ तस्स अभूइभावो फलं व कीयस्स वहाय होइ॥१॥ ४५३. जे यावि मंदे त्ति गुरूं विइत्ता डहरे इमे अप्पसुए त्ति नच्चा । हीलंति मिच्छं पडिवज्जमाणा करति आसायण ते गुरूणं ।।२।। ४५४. पगईए मंदा वि भवंति एगे डहरा वि य जे सुय-बुद्धोववेया । आयारमंता गुण-सुट्ठियप्पा जे हीलिया सिहिरिव भास कुज्जा ॥३|| ४५५. जे यावि नागं डहरे त्ति नच्चा आसायए से अहियाय होइ । एवाऽऽयरियं पि हु हीलयंतो नियच्छइ जाइपहं खुमंदे ॥४॥ आसीविसो यावि परं सुरुट्ठो किं जीयनासाओ परं नु कुज्जा ? | आयरियपाया पुण अप्पसन्ना अबोहि आसायण नत्थि मोक्खो।।५।। ४५७. जो पावगं जलियमवेक्कमज्जा हासीविसं वा वि हु कोवएज्जा । जो वा विसं खायइ जीवियट्ठी एसोवमाऽऽसायणया गुरूणं ॥६॥ ४५८. सिया हु से पावय नो डहेज्जा आसीविसो वा कुविओ न भक्खे । सिया विसं हालहलं न मारे न यावि मोक्खो गुरुहीलणाए ।।७।। ४५९. जो पव्वयं सिरसा भेत्तुमिच्छे सुत्तं व सीहं ॐ पडिबोहएजा। जो वा दए सत्तिअग्गे पहारं एसोवमाऽऽसायणया गुरूणं ।।८।। ४६०. सिया हु सीसेण गिरि पि भिदे सिया हु सीहो कुविओ न भक्खे। सिया न भिदेज वसत्तिअग्गंन यावि मोक्खो गुरुहीलणाए।।९।। ४६१. आयरियपाया पुण अप्पसन्ना अबोहि आसायण नत्थि मोक्खो। तम्हा अणाबाहसुहाभिकखी गुरुप्पसायाभिमुहो 69乐明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明听听听听听听听2O V . - Hero####555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा - १६३५ ]555555555555555555555555LOR Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४२) दसवेयालियं (तइयं मूलसुतं) अ. ९ / उ. १,२,३ प्र रमेज्जा ||१०|| ४६२. जहाऽऽ हियग्गी जलणं नम॑से नाणाहुईमंतपयाभिसित्तं । एवाऽऽयरियं उवचिट्ठएज्जा अणतंणाणोवगओ वि संतो ॥११॥ ४६३. जस्संतिए धम्मपयाई सिक्खे तस्संतिए वेणइयं पउंजे । सक्कारए सिरसा पंजलीओ कायग्गिरा भो ! मणसा य निच्वं ॥ १२ ॥ ४६४. लज्जा दया संजमबंभचेरं कल्लाणभागिस्स विसोहिठाणं । जे मे गुरु सययमणुसासयति ते हं गुरू सययं पूययामि ॥ १३ ॥ ४६५. जहा निसंते तवणऽच्चिमाली पभासइ केवल भारहं तु । एवाऽऽयरिओ सुयसील - बुद्धि विरायई सुरमज्झे व इंदो || १४ || ४६६. जहा ससी कोमुइजोगजुत्ते नक्खत्त-तारागणपरिवुडप्पा | खे सोहई विमले अब्भमुक्के एवं गणी सोहइ भिक्खुमज्झे ॥ १५ ॥ ४६७. महागरा आयरिया महेसी समाहिजोगे सुय-सील-बुद्धिए । संपाविउकामे अणुत्तराई आराहए तोसए धम्मकामी ।।१६।। ४६८. सोच्चाण महावि सुभासियाई सुस्सए आयरिएऽप्पमत्तो । आराहइत्ताण गुणो अणेगे से पावई सिद्धिमणुत्तरं ति बेमि ||१७|| ★★★ ॥ विणयसमाहीए पढमो उद्देस समत्तो॥९.१॥ विणयसमाहीए बीओ उद्देसो ★★★ ४६९. मूलाओ खंधप्पभवो दुमस्स खंधाओ पच्छा समुवेति साला । साहप्पसाहा विरुहंति पत्ता तओ से पुप्फं च फलं रसो य || १ || ४७०. एवं धम्मस्स विणओ मूलं, परमो से मोक्खो । जेण कित्तिं सुयं सग्धं निस्सेसं चाभिगच्छई ||२|| ४७१. जे य चंडे मिए थद्धे दुव्वाई नियडीसढे । वुब्भई से अविणीयप्पा कट्टं सोयगयं जहा ॥३॥ ४७२. विणयं पि जो उवाएण चोइओ कुप्पई नरो । दिव्वं सो सिरिमेज्जंति दंडेण पडिसेहए ॥४॥ ४७३. तहेव अविणीयप्पा उववज्झा हया गया। दीसंति दुहमेहंता आभिओगमुवट्टिया ॥ ५॥ ४७४. तहेव सुविणीयप्पा उववज्झा हया गया। दीसंति सुहमेहंता इङ्किं पत्ता महायसा ||६|| ४७५. तहेव अविणीयप्पा लोगंसि नर-नारिओ । दीसंति दुहमेहंता छाया ते विगलिंदिया ||७|| ४७६. दंड-सत्थपरिजूण्णा असन्भवयणेहि य । कलुणा विवन्नछंदा खुप्पिवासाए परिगया ॥ ८॥ ४७७ तहेव सुविणीयप्पा लोगंसि नर-नारिओ । दीसंति सुहमेहंता इद्धिं पत्ता महायसा ||९|| ४७८. तहेव अविणीयप्पा देवा जक्खा य गुज्झगा। दीसंति दुहमेहंता आभिओगमुवट्ठिया ॥ १०॥। ४७९. तहेव सुविणीयप्पा देवा जक्खा य गुज्झगा। दीसंति सुहमेहंता इड्डि पत्ता महायसा ||११|| ४८०. जे आयरिय उवज्झायाणं सुस्सूसावयणंकरा । तेसिं सिक्खा पवडुंति जलसित्ता इव पायवा ||१२|| ४८१. अप्पणट्ठा परट्ठा वा सिप्पा उणियाणि य। गिहिणो उवभोगट्ठा इहलोगस्स कारणा ।।१३।। ४८२. जेण बंधं वहं घोरं परियावं च दारुणं । सिक्खमाणा नियच्छंति जुत्ता ते ललिइंदिया ॥ १४ ॥ ४८३. ते वि तं गुरुं पूयंति तस्स सिप्पस्स कारणा । सक्कारंति नमसंति तुट्ठा निद्देसवत्तिणो ॥ १५॥ ४८४. किं पुण जे सुयग्गाही अणंतहियकामए । आयरिया जं वए भिक्खू तम्हा तं नाइवत्तए । १६ ।। ४८५. नीयं सेज्जं गई ठाणं नीयं च आसणाणि य। नीयं च पाए वंदेज्जा, नीयं कुज्जा य अंजलि || १७|| ४८६. संघट्टइत्ता काएणं तहा वहिणामवि । 'खमेह अवराहं मे' वएज्जा 'न पुणो' त्तिय ॥ १८॥ ४८७. दुग्गओ वा पओएणं चोइओ वहई रहं । एवं दुब्बुद्धि किच्चाणं वुत्तो वृत्तो पकुव्वई ||१९|| ४८८. कालं छंदोवयारं च पडिलेहित्ताण हेउहिं । तेण तेण उवाएणं तं तं संपडिवायए ।। २० ।। ४८९. विवत्ती अविणीयस्स, संपत्ती विणियस्स य । जस्सेयं दुहओ नाय सिक्खं से अभिगच्छई ||२१|| ४९०. जे यावि चंडे मइइडिगारवे पिसुणे नरे साहस हीणपेसणे । अदिट्ठधम्मे विणए अकोविए असंविभागी न हु तस्स मोक्खो ॥२२॥ ४९१. निद्देसवत्ती पुण जे गुरूणं सुयत्थधम्मा विणयम्मि कोविया । तरित्तु ते ओहमिणं दुरुत्तरं खवित्तु कम्मं गइमुत्तमं गय ॥ २३ ॥ त्ति बेमि ॥ ॥ ★★★ विणयसमाहीए बीओ उद्देसो समत्तो ।।९.२॥ ★★★ विणयसमाहीए तइओ उद्देसो ★★★ ४९२. आयरियऽग्गिमिवाऽऽहियग्गी सुस्सूसमाणो पडिजागरेज्जा । आलोइयं इंगियमेव णच्चा जो छंदमाराहयई, स पुज्जो ॥१॥ ४९३. आयारमट्ठा विणयं पउंजे सुस्सूसमाणो परिगिज्झ वक्कं । जहोवइवं अभिकंखमाणो गुरुं तु नाssसाययई, स पुज्जो || २ || ४९४. राइणिएसु विणयं पउंजे डहरा वि य जे परियायजेट्ठा। नियत्तणे वट्टइ सच्चवाई ओवायवं वक्ककरे, स पुज्जो ॥ ३ ॥ ४९५. अन्नायउंछं चरई विसुद्धं जवणट्ठया समुयाणं च निच्चं । अलद्ध्यं नो परिदेवएज्जा लद्धुं न विकंथयई, स पुज्जो ॥४॥। ४९६. संथार - सेज्जाऽऽसण- भत्त-पाणे अप्पिच्छया अलाभे वि संते । जो एवमप्पाणऽभितोसज्जा संतोसपाहन्नरए, स पुज्जो ||६|| ४९७. सक्का सहेउं आसाए कंटया अओमया उच्छहया नरेणं । अणासए जो उ MOTO श्री आगमगुणमजूषा १६३६ 20 19 [१४] Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FOR95555555555595 विश दसवेयालिय (तइयं मूलसुत) अ.९,१०/उ. ३.४ [१५] 555555555555Sexong reso 乐纸$乐乐乐乐55玩乐乐听听听听听听听听听听听乐乐乐乐乐乐乐明乐%乐为乐明明明明明明明明明明明明 सहेज कंटए वईमए कण्णसरे, स पुज्जो ||६|| ४९८. मुहुत्तदुक्खा हु हवंति कंटया अओमया, ते वि तओ सुउद्धरा । वायादुरुत्ताणि दुरुद्धराणि वेराणुबंधीणि म महब्भयाणि ॥७॥ ४९९. समावयंता वयणाभिघाया कण्णंगया दुम्मणियं जणंति। धम्मो ति किच्चा परमग्गसूरे जिइंदिए जो सहई, स पुज्जो ॥८॥ ५००. अवण्णवायं च परम्मुहस्स पच्चक्खओ पडिणीयं च भासं । ओहारिणिं अप्पियकारिणिं च भासं न भासेज्ज सया, स पुज्जो ॥९॥५०१. अलोलुए अक्कुहए अमायी अपिसुणे यावि अदीणवित्ती । नो भावए नो वि य भावियप्पा अकोउहल्ले य सया, स पुज्जो ||१०|| ५०२. गुणेहिं साहू, अगुणेहऽसाहू गेण्हाहि साहूगुण, मुंचऽसाहू । वियाणिया अप्पगमप्पएणं जो राग-दोसेहिं समो, स पुज्जो ।।११।। ५०३. तहेव डहरं व महल्लगं वा इत्थी पुमं पव्वइयं गिहिं वा । नो हीलए नो वि य खिंसएज्जा थंभं च कोहं च चए, स पुज्जो||१२|| ५०४. जे माणिया सययं माणयंति जत्तेणं कन्नं व निवेसयंति। ते माणए माणरिहे तवस्सी जिइंदिए सच्चरए, स पुज्जो ॥१३॥ ५०५. तेसिं गुरूणं गुणसागराणं सोचाण मेहावि सुभासियाई । चरे मुणी पंचरए तिगुत्तो चउक्कसायावगए, स पुज्जो ॥१४॥ ५०६. गुरुमिह सययं पडियरिय मुणी जिणवयनिउणे अभिगमकुसले । धुणिय रय-मलं पुरेकडं भासुरमउलं गई गय ||१५|त्ति बेमि★★★| विणयसमाहीए तईओ उद्देसो समत्तो ॥९.३॥ ★★★ विणयसमाहीए चउत्थो उद्देसो *** ५०७. सुयं मे आउसं ! तेणं भगवया एवमक्खायं इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं चत्तारि विणयसमाहिट्ठाणा पण्णत्ता ॥१॥ ५०८. कयरे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं चत्तारि विणयसमाहिट्ठाणा पण्णत्ता ? ||२|| ५०९. इमे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं चत्तारि विणयसमाहिट्ठाणा पण्णत्ता। तं जहा विणयसमाही १ सुयसमाही २ तवसमाही ३ आयारसमाही ४ ॥३॥ ५१०. विणए १ सुए २ तवे ३ य आयारे ४ निच्चं पंडिया। अभिरामयंति अप्पाणं जे भवंति जिइंदिया ॥४॥ ५११. चउब्विहा खलु विणयसमाही भवइ । तं जहा अणुसासिजतो सुस्सूइ १ सम्म संपडिवज्जइ २ वेयमाराहइ ३ न य भवइ अत्तसंपग्गहिए चउत्थं पयं भवइ ४ ॥५॥ ५१२. भवइ य एत्थ सिलोगो पेहेइ हियाणुसासणं १ सुस्सूई २ तं च पुणो अहिट्ठए ३ । न य माणमएण मज्जई ४ विणयसमाही आययट्ठिए १ ॥६॥ ५१३. चउब्विहा खलु सुयसमाही भवइ । तं जहा 'सुयं मे भविस्सई' त्ति अज्झाइयव्वं भवइ १ 'एगग्गचित्तो भविस्सामि' त्ति अज्झाइयव्वं भवइ २ 'अप्पाणं ठावइस्सामि' त्ति अज्झाइयव्वं भवइ ३ 'ठिओ परं ठावइस्सामि' त्ति अज्झाइयव्वं भवइ चउत्थं पयं भवइ ४ ||७|| ५१४. भवइ य एत्थ सिलोगो नाण१ मेगग्गचित्तो २ य ठिओ ३ ठावयई परं ४ । सुयाणि य अहिज्जित्ता रओ सुयसमाहिए २॥८॥ ५१५. चउम्विहा खलु तवसमाही भवइ । तं जहा नो इहलोगट्ठयाए तवमहिद्वेज्जा १ नो परलोगट्ठयाए तवमहिढेज्जा २ नो कित्ति-वण्ण-सद्द-सिलोगट्ठयाए तवमहिढेजा ३ नऽन्नत्थ निज्जरट्ठयाए तवमहिढेज्जा चउत्थं पयं भवइ ४॥९॥ ५१६. भवइ य एत्थ सिलोगो विविहगुणतवोरए य निच्चं भवइ निरासए निज्जरट्ठिए। तवसा धुणइ पुराणपावगं जुत्तो सया तवसमाहिए ||१०|| ५१७. चउव्विहा खलु आयारसमाही भवइ । तं जहा नो इहलोगट्ठयाए आयारमहिद्वेज्जा १ नो परलोगट्ठयाए आयारमहिद्वेज्जा २ नो कित्ति-वण्णसद्दसिलोगट्ठयाए आयारमहिढेजा ३ नऽन्नत्थ आरहंतेहिं हेऊहिं आयारमहिट्ठज्जा चउत्थं पयं भवई ४ ॥११॥ ५१८. भवइ य एत्थ सिलोगो जिणवयणरए अतितिणे पडिपुण्णाययमाययट्ठिए । आयारसमाहिसंवुडे भवइ य दंते भावसंधए ४ ॥१२॥ ५१९. अभिगम चउरो समाहिओ सुविसुद्धो सुसमाहियप्पओ। विउलहियसुहावहं पुणो कुव्वइ सो पयखेममप्पणो॥१३|| ५२०. जाई-मरणाओ मुच्चई, इत्थंथं च चएइ सव्वसो। सिद्धे वा भवइ सासए, देवे वा अप्परए महिड्ढिए |१४||त्ति बेमि || |विणयसमाहीए चउत्थो उद्देसो समत्तो ||९.४॥★★★||विणयसमाहिअज्झयणं नवमं समत्तं ॥९॥★★★ १० दसम सभिक्खूअज्झयणं ★★★ ५२१. निक्खम्ममाणाय बुद्धवयणे निच्चं चित्तसमाहिओ भवेज्जा । इत्थीण वसं न यावि गच्छे वंतं नो पडियावियति जे, स भिक्खू ॥१॥ ५२२. पुढविं न खणे न खणावए, सीओदगं पिए न पियावए । अगणिसत्थं जहा सुनिसियं तं न जले न जलावए जे, स भिक्खू ||२|| ५२३. अनिलेण न वीए न वीयावए हरियाणि न छिदै न छिंदावए । बीयाणि सया विवज्जयंतो, सच्चित्तं नाऽऽहारए जे, स भिक्खू ॥३॥ ५२४. वहणं तस-थावराण होइ पुढवि-तण 明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明與乐乐乐乐听听听听听听听GE Pro:55555 55555555555 श्री आगमगुणमंजूषा - १६३७55555555555 5 A Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FOR$$$555555FFEE (४२) दसवेयालिय (तइयं मूलसुत्त) अ.१०/ पढमाचुला [k] 男男男男男男男男男男男男男C OTC$明听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听乐乐乐乐明明明明明乐乐6C कट्ठनिस्सियाणं । तम्हा उद्देसियं न भुजे नो वि पए न पयावए जे, स भिक्खू ॥४॥ ५२५. रोइय नायपुत्तवयणं अत्तसमे मन्नेज्न छप्पि काए। पंच य फासे महव्वयाइं पंचासवसंवरए जे, स भिक्खू ॥५॥ ५२६. चत्तारि वमे सया कसाए धुवजोगी य हवेज्ज बुद्धवयणे । अहणे निज्जायरूव-रयए गिहिजोगं परिवज्जए जे, स भिक्खू ||६|| ५२७. सम्मदिट्ठी सया अमूढे अत्थि हुनाणे तवे य संजमे य। तवसा धुणाई पुराणपावगं मण-वय-कायसुसंवुडे जे, स भिक्खू ॥७|| ५२८. तहेव असणं पाणगं वा विविहं खाइम साइमं लभित्ता । होही अट्ठो सुए परे वा तं न निहे न निहावए जे, स भिक्खू ।८।। ५२९. तहेव असणं पाणगं वा विविहं खाइम साइमं लभित्ता। छंदिय साहम्मियाण भुंजे भोच्चा सज्झायरए य जे, स भिक्खू ।।९।। ५३०. न य वुग्गहियं कहं कहेज्जा न य कुप्पे निहुइंदिए पसंते । संजमधुवजोगजुत्ते उवसंते अविहेडए जे, स भिक्खू ॥१०॥ ५३१. जो सहइ हु गामकंटए अक्कोस-पहार-तज्जणाओ य । भय-भेरवसहसप्पहासे समसुह-दुक्खसहे य जे, सभिक्खू ॥११॥ ५३२. पडिमं पडिवज्जिया मसाणे नो भाए भय-भेरवाइं दिस्स। विविहगुण-तवोरए य निच्वं न सरीरं चाभिकंखई जे, स भिक्खू॥१२॥ ५३३. असई वोसट्ठ-चत्तदेहे अक्कुठे व हए व लूसिए वा । पुढविसमे मुणी हवेज्जा अनियाणे अकोउहल्ले यजे, स भिक्खू॥१३॥ ५३४. अभिभूय काएण परीसहाई समुद्धरे जाइपहाओ अप्पयं । विइत्तु जाई-मरणं महन्भयं तवे रए सामणिए जे, स भिक्खू ॥१४॥५३५. हत्थसंजए पायसंजए वायसंजए संजइंदिए। अज्झप्परए सुसमाहियप्पा सुत्तत्थं च वियाणई जे, स भिक्खू ॥१५|| ५३६. उवहिम्मि अमुच्छिए अगढिए अण्णायउंछं पुलनिप्पुलाए। कय-विक्कय-सन्निहिओ विरए सव्वसंगावगए य जे, स भिक्खू ॥१६॥ ५३७. अलोलो भिक्खू न रसेसु गिद्धे उंछं चरे जीविय नाभिकंखे । इडिं च सक्कारण पूयणं च चए ठियप्पा अणिहे जे, स भिक्खू ॥१७|| ५३८. न परं वएज्जासि 'अयं कुसीले जेणऽन्नो कुप्पेज्ज न तं वएज्जा । जाणिय पत्तेय पुण्ण-पावं अत्ताणं न समुक्कस्से जे, स भिक्खू ।।१८।। ५३९. न जाइमत्ते न य रूवमत्ते न लाभमत्ते न सुएण मत्ते । मयाणि सव्वाणि विवज्जइत्ता धम्मज्झाणरए य जे, स भिक्खू ||१९|| ५४०. पवेयए अज्जपयं महामुणी धम्मे ठिओ ठावयई परं पि । निक्खम्म वज्जेज्ज कुसीललिंगं न यावि हासं कहए जे, स भिक्खू ॥२०|| ५४१.तं देहवासं असुई असासयं सया चए निच्चहियट्ठियप्पा । छिदित्तु जाई-मरणस्स बंधणं उवेइ भिक्खू अपुणागमं गई ॥२१॥ त्ति बेमि ।। ।। सभिक्खूअज्झयणं दसमं समत्तं ॥१०॥★★★११ पढमा रइवक्का चूला-एक्कारसमं अज्झयणं *५४२. इह खलु भो ! पव्वइएणं उप्पन्नदुक्खेणं संजमे अरइसमावन्नचित्तेणं ओहणुप्पेहिणा अणोहाइएणं चेव हयरस्सि-गयंकुस-पोयपडागाभूयाई इमाइं अट्ठारस ठाणाई सम्म संपडिलेहियव्वाइं भवंति। तं जहा हंभो ! दुस्समाए दुप्पजीवी १ । लहुस्सगा इत्तिरिया गिहीणं कामभोगा २ । भुज्जो य साइबहुला मणुस्सा ३ । इमं च मे दुक्खं न चिरकालोवट्ठाइ भविस्सइ ४ । ओमजणपुरक्कारे ५। वंतस्स य पडियाइयणं ६ । अहरगइवासोवसंपया ७। दुल्लभे खलु भो गिहीणं धम्मे गिहवासमझे वसंताणं ८। आयंके से वहाय होइ ९ । संकप्पे से वहाय होइ १० । सोवक्केसे गिहवासे, निरुवक्केसे परियाए ११ । बंधे गिहवासे, मोक्खे परियाए १२ । सावज्जे गिहवासे, अणवज्जे परियाए १३ । बहुसाहारणा गिहीणं कामभोगा १४ । पत्तेयं पुण्ण-पावं १५ । अणिच्चे खलु भो ! मणुयाण जीविए कुसग्गजलबिंदुचंचले १६ । बहुं च खलु पावं कम्मं पगडं १७। पावाणं च खलु भो! कडाणं कम्माणं पुव्विं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिक्कंताणं वेयइत्ता मोक्खो, नत्थि अवेयइत्ता, तवसा वा झोसइत्ता, अट्ठारसमं पयं भवइ १८॥१॥ ५४३. भवइ य एत्थ सिलोगो जया य चयइ धम्म अणज्जो भोगकारणा। से तत्थ मुच्छिए बाले आयइं नावबुज्झई ।।२।। ५४४. जया ओहाविओ होइ इंदो वा पडिओ छमं । सव्वधम्मपरिब्भट्ठोस पच्छा परितप्पई ॥३२॥ ५४५. जया य वंदिमो होइ पच्छा होइ अवंदिमो । देवया व चुया ठाणा स पच्छा परितप्पई ॐ ॥४॥ ५४६. जया य पूइमो होइ पच्छा होइ अपूइमो । राया व रज्जपब्भट्ठो स पच्छा परितप्पइ ॥५॥ ५४७. जया य माणिमो होइ पच्छा होइ अमाणिमो । सेट्टि व्व कव्वडे छूढो स पच्छा परितप्पई ।।६।। ५४८. जया य थेरओ होइ समइक्वंतजोव्वणो। मच्छो व्व गलं गिलित्ता स पच्छा परितप्पई ||७|| जया य कुकुडुंबस्स कुतत्तीहिं विहम्मई। हत्थी व बंधणे बद्धो स पच्छा परितप्पई। ५४९. पुत्त-दारपरिकिण्णो मोहसंताणसंतओ। पंकोसन्नो जहा नागो स पच्छा परितप्पई ||८|| GO乐听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明d. Rox99555555555 श्री आगमगुणमंजूषा- १६३८ E OPOR Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 00%事 先事$5% %%%%% मिश दसवेयालिय (तइयं मूलसुत) बिइया चूलिया [17) 历历明明听听听听听听听听听听听2C C%劣纲听听听听听听听听听听听听听明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明听听听听听听FM 550. अज्ज याहं गणी होतो भावियप्पा बहुस्सुओ। जइ हरमंतो परियाए सामण्णे जिणदेसिए॥९॥ 551. देवलोगसमाणो उ परियाओ महेसिणं / रयाणं, अरयाणं च महानिरयसालिसो // 10 // 552. अमरोवमं जाणिय सोक्खमुत्तमं रयाण परियाए, तहाऽरयाणं / निरओवमं जाणिय दुक्खमुत्तमं रमेज्ज तम्हा परियाए पंडिए ||11|| 553. धम्मओ भट्ट सिरिओ ववेयं जन्नग्गि विज्झायमिवऽप्यतेयं / हीलंति णं दुविहियं कुसीला दाढुद्धियं घोरविसं व नागं / / 12 / / 554. इहेवऽधम्मो अयसो अकित्ती दुन्नामधेज्जं च पिहुज्जणम्मि। चुयस्स धम्माओ अहम्मसेविणो संभिन्नवित्तस्स य हेटुओ गई / / 13 / / 555. भुंजित्तु भोगाइं पसज्झ चेयसा तहाविहं कट्ट असंजमं बहुं / गइं च गच्छे अणभिज्झियं दुह, बोही य से नो सुलभा पुणो पुणो / / 14 / / 556. इमस्स ता नेरइयस्स जंतुणो दुहोवणीयस्स किलेसवत्तिणो। पलिओवमं झिज्जइ सागरोवमं किमंग ! पुण मज्झ इमं मणोदुहं ? ||15|| 557. न मे चिरं दुक्खमिणं भविस्सई असासया भोगपिवास जंतुणो / न चे सरीरेण इमेणऽवेस्सई अवेस्सई जीवियपज्जवेण मे / / 16 / / 558. जस्सेवमप्पा उ हवेज निच्छिओ चएज्ज देहं, न उ धम्मसासणं / तं तारिसं नो पयलेति इंदिया उवेतवाया व सुदंसणं गिरिं // 17 // 559. इच्चेव संपस्सिय बुद्धिमं नरो आयं उवायं विविहं वियाणिया। काएण वाया अदु माणसेणं तिगुत्तिगुत्तो जिणवयणमहिढेजासि ॥१८॥त्ति बेमि / / / / रइवक्कचूला नाम चूला पढमा समत्ता / / / / एक्कारसमं रइवक्कऽज्झयणं समत्तं ||11|| 12 बिझ्या चूलिया चूला बारसमं अज्झयणं *** 560. चूलियं तु पवक्खामि सुयं केवलिभासियं / जं सुणेत्तु सपुण्णाणं धम्मे उप्पज्जई मई // 1 // 561. अणुसोयपट्ठिए बहुजणम्मि पडिसोयलद्धलक्खेणं / पडिसोयमेव अप्पा दायव्वो होउकामेणं / / 2 / / 562. अणुसोयसुहो लोगो पडिसोओ आसवो सुविहियाणं / अणुसोओ संसारो, पडिसोओ तस्स उत्तारो ||3|| 563. तम्हा आयारपरक्कमेण संवरसमाहिबहुलेणं / चरिया गुणा य नियमा य होति साहूण दट्ठव्वा ||4|| 564. अणिएयवासो समुयाणचरिया अण्णायउंछं पइरिक्कया य / अप्पोवही कलहविवज्जणा य विहारचरिया इसिणं पसत्था // 5 / / 565. आइण्ण-ओमाणविवज्जणा य उस्सन्नदिट्ठाहड भत्त-पाणे / संसट्ठकप्पेण चरेज्ज भिक्खू तज्जायसंसट्ठ जई जएज्जा // 6 / / 566. अमज्ज-मसासि अमच्छरीया अभिक्खणं निव्विगईगया य / अभिक्खणं काउस्सगकारी सज्झायजोगे SO明明明明明明明明明明明明明明明明听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听G गिहिणो वेयावडियं न कुज्जा अभिवायणं वंदण पूयणं वा / असंकिलिटेहि समं वसेज्जा मुणी चरित्तस्स जओ न हाणी // 9 // 569. न या लभेज्जा निउणं सहायं गुणाहियं वा गुणओ समं वा / एक्को वि पावाई विवज्जयंतो विहरेज कामेसु असज्जमाणो ||10|| संवच्छरं वा वि परं पमाणं बीयं च वासं न तहिं वसेज्जा / सुत्तस्स मग्गेण चरेज्ज भिक्खू सुत्तस्स अत्थो जह आणवेइ // 11|| 571. जो पुव्वरत्तावररत्तकाले संपेहई अप्पगमप्पएणं / किं मे कडं ? किं च मे किच्चसेसं ? किं सक्कणिज्ज न समायरामि ||12 // 572. किं मे परो पासइ ? किं व अप्पा ? / किं वाहं खलियं न विवज्जयामि / इच्चेव सम्म अणुपासमाणो अणागयं नो पडिबंध कुज्जा॥१३॥ 573. जत्थेव पासे कइ दुप्पउत्तं कारण वाया अदु माणसेणं / तत्थेव धीरो पडिसाहरेज्जा आइण्णो खिप्पमिव क्खलीणं / / 14 / / 574. जस्सेरिसा जोग जिइंदियस्स धिईमओ सप्पुरिसस्स निच्चं / तमाहु लोए पडिबुद्धजीवी सो जीवई संजमजीविएण // 15 / / 575. अप्पा खलु सययं रक्खियव्वो सव्विदिएहिं सुसमाहिएहिं / अरक्खिओ जाइपहं उवेई सुरक्खिओ सव्वदुहाण मुच्चइ ||१६||त्ति बेमि / / || बीया चूलिया चूला समत्ता // // बारसमं अज्झयणं समत्तं // 12 // // दसवेयालियं समत्तं // hindAEROINCOPony On Education International_2010_03 www.jainelibrary.com MO505555555555555555555555555 श्री आगमगुणमंजूषा-१६३९555444NEEEEEEEEEEEEEENE NEARNERIFICE