Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Shwetambar Agam Guna Manjusha
Author(s): Gunsagarsuri
Publisher: Jina Goyam Guna Sarvoday Trust Mumbai
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अनुत्तरोपपातिक सूत्र ॥ श्री आगम-गुण-मञ्जूषा। ॥श्री. मागम-गु-भं०४५।।। Il Sri Agama Guna Manjusa il (सचित्र) प्रेरक-संपादक अचलगच्छाधिपति प.पू.आ.भ.स्व. श्री गुणसागर सूरीश्वरजी म.सा. Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ११ अंगसूत्र ४५ आगमो का संक्षिप्त परिचय ४५ आगमो का संक्षिप्त परिचय १) श्री आचारांग सूत्र :- इस सूत्र मे साधु और श्रावक के उत्तम आचारो का सुंदर वर्णन है । इनके दो श्रुतस्कंध और कुल २५ अध्ययन है । द्रव्यानुयोग, गणितानुयोग, धर्मकथानुयोग और चरणकरणानुयोगोमे से मुख्य चौथा अनुयोग है। उपलब्ध श्लोको कि संख्या २५०० एवं दो चुलिका विद्यमान है। ६) २) श्री सूत्रकृतांग सूत्र :- श्री सुयगडांग नाम से भी प्रसिद्ध इस सूत्र मे दो श्रुतस्कंध और २३ अध्ययन के साथ कुलमिला के २००० श्लोक वर्तमान मे विद्यमान है । १८० क्रियावादी, ८४ अक्रियावादी, ६७ अज्ञानवादी अपरंच द्रव्यानुयोग इस आगम का मुख्य विषय रहा है। ३) श्री स्थानांग सूत्र :- इस सूत्र ने मुख्य गणितानुयोग से लेकर चारो अनुयोंगो कि बाते आती है। एक अंक से लेकर दस अंको तक मे कितनी वस्तुओं है इनका रोचक वर्णन है, ऐसे देखा जाय तो यह आगम की शैली विशिष्ट है और लगभग ७६०० श्लोक है। ४) श्री समवायांग सूत्र :- यह सूत्र भी ठाणांगसूत्र की भांति कराता है । यह भी संग्रहग्रंथ है। एक से सो तक कौन कौन सी चीजे है उनका उल्लेख है। सो के बाद देढसो, दोसो, तीनसो, चारसो, पांचसो और दोहजार से लेकर कोटाकोटी तक कौनसे कौनसे पदार्थ है उनका वर्णन है। यह आगमग्रंथ लगभग १६०० श्लोक प्रमाण मे उपलब्ध है। ५ ) श्री व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र ( भगवती सूत्र ) :- यह सबसे बड़ा सूत्र है, इसमे ४२ शतक है, इनमे भी उपविभाग है, १९२५ उद्देश है। इस आगमग्रंथ में प्रभु महावीर के प्रथम शिष्य श्री गौतमस्वामी गणधरादि ने पुछे हुए प्रश्नो का प्रभु वीर ने समाधान किया है । प्रश्नोत्तर संकलन से इस ग्रंथ की रचना हुई है। चारो अनुयोगो कि बाते अलग अलग शतको मे वर्णित है। अगर संक्षेप मे कहना हो तो श्री भगवतीसूत्र रत्नो का खजाना है। यह आगम १५००० से भी अधिक संकलित श्लोको मे उपलब्ध है। ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र :- यह सूत्र धर्मकथानुयोग से है। पहले इसमे साडेतीन करोड कथाओ थी अब ६००० श्लोको मे उन्नीस कथाओं उपलब्ध है। ७) श्री उपासकदशांग सूत्र :- इसमें बाराह व्रतो का वर्णन आता है और १० महाश्रावको जीवन चरित्र है, धर्मकथानुयोग के साथ चरणकरणानुयोग भी इस सूत्र मे सामील है । इसमे ८०० से ज्यादा श्लोक है। ८) श्री अन्तकृद्दशांग सूत्र :- यह मुख्यतः धर्मकथानुयोग मे रचित है। इस सूत्र में श्री शत्रुंजयतीर्थ के उपर अनशन की आराधना करके मोक्ष मे जानेवाले उत्तम जीवो के छोटे छोटे चरित्र दिए हुए है। फिलाल ८०० श्लोको मे ही ग्रंथ की समाप्ति हो जाती है । ९) श्री अनुत्तरोपपातिक दशांग सूत्र :- अंत समय मे चारित्र की आराधना करके अनुत्तर विमानवासी देव बनकर दूसरे भव मे फीर से चारित्र लेकर मुक्तिपद को प्राप्त करने वाले महान् श्रावको के जीवनचरित्र है इसलीए मुख्यतया धर्मकथानुयोगवाला यह ग्रंथ २०० श्लोक प्रमाणका है। १०) श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र :- इस सूत्र मे मुख्यविषय चरणकरणानुयोग है। इस आगम में देव-विद्याघर-साधु-साध्वी श्रावकादि ने पुछे हुए प्रश्नों का उत्तर प्रभु ने कैसे दिया इसका वर्णन है । जो नंदिसूत्र मे आश्रव-संवरद्वार है ठीक उसी तरह का वर्णन इस सूत्र मे भी है । कुल मिला के इसके २०० श्लोक है। ११) श्री विपाक सूत्र :- इस अंग मे २ श्रुतस्कंध है पहला दुःखविपाक और दूसरा सुखविपाक, पहेले में १० पापीओं के और दूसरे में १० धर्मीओ के द्रष्टांत है मुख्यतया धर्मकथानुयोग रहा है । १२०० श्लोक प्रमाण का यह अंगसूत्र है । १२ उपांग सूत्र १) श्री औपपातिक सूत्र :- यह आगम आचारांग सूत्र का उपांग है। इस मे चंपानगरी का वर्णन १२ प्रकार के तपों का विस्तार कोणिक का जुलुस अम्बडपरिव्राजक के ७०० शिष्यो की बाते है। १५०० श्लोक प्रमाण का यह ग्रंथ है। २) श्री राजप्रनीय सूत्र :- यह आगम सुयगडांगसूत्र का उपांग है। इसमें प्रदेशीराजा का अधिकार सूर्याभदेव के जरीए जिनप्रतिमाओं की पूजा का वर्णन है । २००० श्लोको से भी अधिक प्रमाण का ग्रंथ है। श्री आगमगुणमंजूषा GY Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ %。 %%%%%%85 २) त्रास %%%%%%%%%%% doOKHAR153835555555555555555555345555555555555555555555555ODXOS KAROKKAXXE E EEEE994%953589 ४५ आगमो का संक्षिप्त परिचय 985555359999999455889 श्री जीवाजीवाभिगम सूत्र :- यह ठाणांगसूत्र का उपांग है । जीव और अजीव के दश प्रकीर्णक सूत्र बारे मे अच्छा विश्लेषण किया है। इसके अलावा जम्बुद्विप की जगती एवं विजयदेव ने कि हुइ पूजा की विधि सविस्तर बताइ है। फिलाल जिज्ञासु ४ प्रकरण, क्षेत्रसमासादि श्री चतुशरण प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने में अरिहन्त, सिद्ध, साधु और गच्छधर्म जो पढ़ते है वह सभी ग्रंथे जीवाभिगम अपरग्च पनवणासूत्र के ही पदार्थ है । यह के आचार के स्वरूप का वर्णन एवं चारों शरण की स्वीकृति है। आगम सूत्र ४७०० श्लोक प्रमाण का है। श्री प्रज्ञापना सूत्र- यह आगम समवायांग सूत्र का उपांग है । इसमे ३६ पदो का वर्णन श्री आतुर प्रत्याख्यान प्रकीर्णक सूत्र :- इस आगम का विषय है अंतिम आराधना है। प्रायः ८००० श्लोक प्रमाण का यह सूत्र है। और मृत्युसुधार ५) श्री सुर्यप्रज्ञप्ति सूत्र : श्री चन्द्रप्रज्ञप्तिसूत्र :- इस दो आगमो मे गणितानुयोग मुख्य विषय रहा है। सूर्य, ३) श्री भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने में पंडित मृत्यु के तीन प्रकार (१) चन्द्र, ग्रहादि की गति, दिनमान ऋतु अयनादि का वर्णन है, दोनो आगमो मे २२००, भक्त परिज्ञा मरण (२) इंगिनी मरण (३) पादोपगमन मरण इत्यादि का वर्णन है। २२०० श्लोक है। श्री जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र :- यह आगम भी अगले दो आगमों की तरह गणितानुयोग ६) श्री संस्तारक प्रकीर्णक सूत्र :- नामानुसार इस पयन्ने में संथारा की महिमा का वर्णन मे है। यह ग्रंथ नाम के मुताबित जंबूद्विप का सविस्तर वर्णन है। ६ आरे के स्वरूप है। इन चारों पयन्ने पठन के अधिकारी श्रावक भी है। बताया है। ४५०० श्लोक प्रमाण का यह ग्रंथ है। श्री तंदुल वैचारिक प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने को पूर्वाचार्यगण वैराग्य रस के श्री निरयावली सूत्र :- इन आगम ग्रंथो में हाथी और हारादि के कारण नानाजी का समुद्र के नाम से चीन्हित करते है । १०० वर्षों में जीवात्मा कितना खानपान करे दोहित्र के साथ जो भयंकर युद्ध हुआ उस मे श्रेणिक राजा के १० पुत्र मरकर नरक मे इसकी विस्तृत जानकारी दी गई है। धर्म की आराधना ही मानव मन की सफलता है। गये उसका वर्णन है। ऐसी बातों से गुंफित यह वैराग्यमय कृति है। श्री कल्पावतंसक सूत्र :- इसमें पद्यकुमार और श्रेणिकपुत्र कालकुमार इत्यादि १० भाइओं के १० पुत्रों का जीवन चरित्र है। ८) श्री चन्दाविजय प्रकीर्णक सूत्र :- मृत्यु सुधार हेतु कैसी आराधना हो इसे इस पयन्ने । १०) श्री पुष्पिका उपांग सूत्र :- इसमें १० अध्ययन है । चन्द्र, सूर्य, शुक्र, बहुपुत्रिका में समजाया गया है। देवी, पूर्णभद्र, माणिभद्र, दत्त, शील, जल, अणाढ्य श्रावक के अधिकार है। ११) श्री पुष्पचुलीका सूत्र :- इसमें श्रीदेवी आदि १० देवीओ का पूर्वभव का वर्णन है। ९) श्री देवेन्द्र-स्तव प्रकीर्णक सूत्र :- इन्द्र द्वारा परमात्मा की स्तुति एवं इन्द्र संबधित ई श्री वृष्णिदशा सूत्र :- यादववंश के राजा अंधकवृष्णि के समुद्रादि १०पुत्र, १० मे अन्य बातों का वर्णन है। पुत्र वासुदेव के पुत्र बलभद्रजी, निषधकुमार इत्यादि १२ कथाएं है। अंतके पांचो उपांगो को निरियावली पञ्चक भी कहते है। १०A) श्री मरणसमाथि प्रकीर्णक सूत्र :- मृत्यु संबधित आठ प्रकरणों के सार एवं अंतिम आराधना का विस्तृत वर्णन इस पयन्ने में है। %%%%% %%% %%%% %% %%%% %%%% %%%%% १०B) श्री महाप्रत्याख्यान प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने में साधु के अंतिम समय में किए जाने योग्य पयन्ना एवं विविध आत्महितकारी उपयोगी बातों का विस्तृत वर्णन है। (GainEducation-international 2010-03 VOON N54555554454549 श्री आगमगुणमजूषा E f54 www.dainelibrary.00) $$# KOR Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 乐乐乐乐玩玩乐乐听听听听听听圳坂圳乐乐听听听听的 १०८) श्री गणिविद्या प्रकीर्णक सूत्र :- इस पयन्ने में ज्योतिष संबधित बड़े ग्रंथो का सार है। ३) उपरोक्त दसों पयन्नों का परिमाण लगभग २५०० श्लोकों में बध्य हे। इसके अलावा २२ अन्य पयन्ना भी उपलब्ध हैं। और दस पयन्नों में चंदाविजय पयन्नो के स्थान पर गच्छाचार पयन्ना को गिनते हैं। श्री नियुक्ति सूत्र :- चरण सत्तरी-करण सत्तरी इत्यादि का वर्णन इस आगम ग्रन्थ में ७ है। पिंडनियुक्ति भी कई लोग ओघ नियुक्ति के साथ मानते हैं अन्य कई लोग इसे अलग आगम की मान्यता देते हैं । पिंडनियुक्ति में आहार प्राप्ति की रीत बताइ हें। ४२ दोष कैसे दूर हों और आहार करने के छह कारण और आहार न करने के छह कारण इत्यादि बातें हैं। छह छेद सूत्र श्री आवश्यक सूत्र :- छह अध्ययन के इस सूत्र का उपयोग चतुर्विध संघ में छोट बडे सभी को है । प्रत्येक साधु साध्वी, श्रावक-श्राविका के द्वारा अवश्य प्रतिदिन प्रात: एवं सायं करने योग्य क्रिया (प्रतिक्रमण आवश्यक) इस प्रकार हैं : (१) सामायिक (२) चतुर्विंशति (३) वंदन (४) प्रतिक्रमण (५) कार्योत्सर्ग (६) पच्चक्खाण (१) निशिथ सूत्र (२) महानिशिथ सूत्र (३) व्यवहार सूत्र (४) जीतकल्प सूत्र (५) पंचकल्प सूत्र (६) दशा श्रुतस्कंध सूत्र इन छेद सूत्र ग्रन्थों में उत्सर्ग, अपवाद और आलोचना की गंभीर चर्चा है । अति गंभीर केवल आत्मार्थ, भवभीरू, संयम में परिणत, जयणावंत, सूक्ष्म दष्टि से द्रव्यक्षेत्रादिक विचार धर्मदष्टि असे करने वाले, प्रतिपल छहकाया के जीवों की रक्षा हेतु चिंतन करने वाले, गीतार्थ, परंपरागत क उत्तम साधु, समाचारी पालक, सर्वजीवो के सच्चे हित की चिंता करने वाले ऐसे उत्तम मुनिवर जिन्होंने गुरु महाराज की निश्रा में योगद्वहन इत्यादि करके विशेष योग्यता अर्जित की हो ऐसे * मुनिवरों को ही इन ग्रन्थों के अध्ययन पठन का अधिकार है। दो चूलिकाए १) श्री नंदी सूत्र :- ७०० श्लोक के इस आगम ग्रंन्थ में परमात्मा महावीर की स्तुति, संघ की अनेक उपमाए, २४ तीर्थकरों के नाम ग्यारह गणधरों के नाम, स्थविरावली और पांच ज्ञान का विस्तृत वर्णन है। चार मूल सूत्र श्री दशवकालिक सूत्र :- पंचम काल के साधु साध्वीओं के लिए यह आगमग्रन्थ अमृत सरोवर सरीखा है। इसमें दश अध्ययन हैं तथा अन्त में दो चूलिकाए रतिवाक्या व, विवित्त चरिया नाम से दी हैं । इन चूलिकाओं के बारे में कहा जाता है कि श्री स्थूलभद्रस्वामी की बहन यक्षासाध्वीजी महाविदेहक्षेत्र में से श्री सीमंधर स्वामी से चार चूलिकाए लाइ थी। उनमें से दो चूलिकाएं इस ग्रंथ में दी हैं। यह आगम ७०० श्लोक प्रमाण का है। श्री अनुयोगद्वार सूत्र :- २००० श्लोकों के इस ग्रन्थ में निश्चय एवं व्यवहार के आलंबन द्वारा आराधना के मार्ग पर चलने की शिक्षा दी गइ है । अनुयोग याने शास्त्र की व्याख्या जिसके चार द्वार है (१) उत्क्रम (२) निक्षेप (३) अनुगम (४) नय यह आगम सब आगमों की चावी है। आगम पढने वाले को प्रथम इस आगम से शुरुआत करनी पड़ती है। यह आगम मुखपाठ करने जैसा है। ॥ इति शम्॥ श्री उत्तराध्ययन सूत्र :- परम कृपालु श्री महावीरभगवान के अंतिम समय के उपदेश इस सूत्र में हैं । वैराग्य की बातें और मुनिवरों के उच्च आचारों का वर्णन इस आगम ग्रंथ में ३६ अध्ययनों में लगभग २००० श्लोकों द्वारा प्रस्तुत हैं। ) Gain Education International 2010_03 Mora :58498499934555555555; आगमगुणमजूषा-5555555555555555555555555 ) Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ YOKO ALLA RURU RAREO ai i ferox (9) (3) KC国乐国为乐明明明明明明明明乐明明明明明F%%%%明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明军5B Introduction 45 Agamas, a short sketch I Eleven Angas : Acäränga-sutra : It deals with the religious conduct of the monks and the Jain householders. It consists of 02 Parts of learning, 25 lessons and among the four teachings on entity, calculation, religious discourse and the ways of conduct, the teaching of the ways of conduct is the main topic here. The Agama is of the size of 2500 ślokas. Sayagadanga-sutra : It is also known as Sütra-Kytänga. It's two parts of learning consist of 23 lessons. It discusses at length views of 363 doctrine-holders. Among them are 180 ritualists, 84 nonritualists, 67 agnostics and 32 restraint-propounders, though it's main area of discussion is the teaching of entity. It is available in the size of 2000 ślokas. Thápānga-sūtra : It begins with the teaching of calculation mainly and discusses other three teachings subordinately. It introduces the topic of one dealing with the single objects and ends with the topic of eight objects. It is of the size of 7600 ślokas. Samavāyanga-sutra : This is an encompendium, introducing 01 to 100 objects, then 150, 200 to 500 and 2000 to crores and crores of objects. It contains the text of size of 1600 Slokas. Vyakhya-prajñapti-sutra : It is also known as Bhagavati-sutra. It is the largest of all the Angas. It contains 41 centuries with subsections. It consists of 1925 topics. It depicts the questions of Gautama Ganadhara and answers of Lord Mahavira. It discusses the four teachings in the centuries. This Agama is really a treasure of gems. It is of the size of more than 15000 ślokas. Jäätādharma-Kathanga-sutra : It is of the form of the teaching of the religious discourses. Previously it contained three and a half crores of discourses, but at present there are 19 religious discourses. It is of the size of 6000 ślokas. Upasaka-dasānga-sutra : It deals with 12 vows, life-sketches of 10 great Jain householders and of Lord Mahavira, too. This deals with the teaching of the religious discourses and the ways of conduct. It is of the size of around 800 Slokas. (8) Antagada-dasänga-sutra : It deals mainly with the teaching of the religious discourses. It contains brief life-sketches of the highly spiritual souls who are born to liberate and those who are liberating ones: they are Andhaka Vrsni, Gautama and other 9 sons of queen Dharini, 8 princes like Akşobhakumara, 6 sons of Devaki, Gajasukumāra, Yadava princes like Jali, Mayāli, Vasudeva Krsna, 8 queens like Rukmini. It is available of the size of 800 Slokas. Anuttarovavayi-daśãnga-sútra: It deals with the teaching of the religious discourses. It contains the life-sketches of those who practise the path of religious conduct, reach the Anuttara Vimana, from there they drop in this world and attain Liberation in the next birth. Such souls are Abhayakumāra and other 9 princes of king Srenika, Dirghasena and other 11 sons, Dhanna Anagara, etc. It is of the size of 200 ślokas. (10) Prasna-vyakarana-sūtra : It deals mainly with the teaching of the ways of conduct. As per the remark of the Nandi-satra, it contained previously Lord Mahāvira's answers to the questions put by gods, Vidyadharas, monks, nuns and the Jain householders. At present it contains the description of the ways leading to transgression and the self-control. It is of the size of 200 ślokas. (11) Vipaka-sütrānga-sūtra : It consists of 2 parts of learning. The first part is called the Fruition of miseries and depicts the life of 10 sinful souls, while the second part called the Fruition of happiness narrates illustrations of 10 meritorious souls. It is available of the size of 1200 ślokas. 图纸娱乐明明明明明明明明明明垢玩垢圳明明听听听听听听听听听听听垢乐明明明明明明明明明听听听听听听听听 (5) (6) (1) II Twelve Upangas Uvaväyi-sütra : It is a subservient text to the Acāranga-sutra. It deals with the description of Campā city, 12 types of austerity, procession-arrival of Koñika's marriage, 700 disciples of the monk Ambada. It is of the size of 1000 ślokas. Rayapaseni-sutra : It is a subservient text to Süyagađanga-sutra. It depicts king Pradesi's jurisdiction, god Suryabha worshipping the Jina idols, etc. It is of the size of 2000 ślokas. (7) (2) www.Lainelibrary XXXX XXXXL PITJUGET TOYOX Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ShhhhĀMhMMMMMMMMMMMÁR ૪૫ આગમ સરળ અગ્રજી ખાવાથ (3) Jivabhigama-sutra: It is a subservient text to Thaṇānga-sūtra. It deals with the wisdom regarding the self and the non-self, the Jambu continent and its areas, etc. and the detailed description of the veneration offered by god Vijaya. The four chapters on areas, society, etc. published recently are composed on the line of the topics of this Sūtra and of the Pannavaṇa-sutra. It is of the size of 4700 slokas. (4) Pannāvaṇā-sūtra : It is a subservient text to the Samavāyāngasūtra. It describes 36 steps or topics and it is of the size of 8000 Ślokas. (5) Surya-prajñapti-sūtra and (6) Candra-prajñapti-sutra: These two falls under the teaching of the calculation. They depict the solar and the lunar transit, the movement of planets, the variations in the length of a day, seasons, northward and the southward solstices, etc. Each one of these Agamas are of the size of 2200 Ślokas. (7) Jambudvipa-prajñapti-sūtra: It mainly deals with the teaching of the calculations. As it's name indicates, it describes at length the objects of the Jambu continent, the form and nature of 06 corners (āra). It is available in the size of 4500 Slokas. Nirayavali-pancaka: (8) Nirayavali-sütra: It depicts the war between the grandfather and the daughter's son, caused of a necklace and the elephant, the death of king @renika's 10 sons who attained hell after death. This war is designated as the most dreadful war of the Downward (avasarpiņi) age. (9) Kalpavatamsaka-sutra: It deals with the life-sketches of Kalakumara and other 09 princes of king Śrenika, the life-sketch of Padamakumpra and others. (10) Pupphiya-upanga-sutra: It consists of 10 lessons that covers the topics of the Moon-god, Sun-god, Venus, queen Bahuputrikă, Pūrṇabhadra, Manibhadra, Datta, Sila, Bala and Anaḍdhiya. (11) Pupphaculiya-upanga-sutra: It depicts previous births of the 10 queens like Sridevi and others. (12) Vahnidaśā-upanga sutra: It contains 10 stories of Yadu king Andhakavṛṣṇi, his 10 princes named Samudra and others, the tenth Cain Education International 2010 03 JARNANAK one Vasudeva, his son Balabhadra and his son Nişaḍha. JARD DA DA DA DA DAS III Ten Payanna-sutras : (1) Aurapaccakhāṇa-sūtra : It deals with the final religious practice and the way of improving (the life so that the) death (may be improved). (2) Bhattaparinna-sūtra : It describes (1) three types of Pandita death, (2) knowledge, (3) Ingini devotee (4) Padapopagamana, etc. (4) Santharaga-payanna-sutra: It extols the Samstaraka. ** These four payannas can also be learnt and recited by the Jain householders. ** (5) Tandula-viyaliya-payanna-sūtra : The ancient preceptors call this Payanna-sutra as an ocean of the sentiment of detachment. It describes what amount of food an individual soul will eat in his life of 100 years, the human life can be justified by way of practising a religious life. (6) Candavijaya-payanna-sutra: It mainly deals with the religious practice that improves one's death. (7) Devendrathui-payanna-sūtra : It presents the hymns to the Lord sung by Indras and also furnishes important details on those Indras. (8) Maraṇasamadhi-payanna-sūtra : It describes at length the final religious practice and gives the summary of the 08 chapters dealing with death. (9) Mahāpaccakhāṇa-payanna-sūtra : It deals specially with what a monk should practise at the time of death and gives various beneficial informations. (10) Gaṇivijaya-payanna-sutra: It gives the summary of some treatise on astrology. These 10 Payannās are of the size of 2500 Ślokas. Besides about 22 Payannās are known and even for these above 10 also there is a difference of opinion about their names. The Gacchācāra is taken, by some, in place of the Candavijaya of the 10 Payannās. Only « KAAKAKKKKKKKKKKKKKKKKKKKKKKOYOX www.jainelibrary.o Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ YOKOK YU BALLU BURU VERLO PLA Xoxo (1) (2) IV Six Cheda-sūtras (1) Vyavahāra-sūtra, (2) Nisītha-Sutra, (3) Mahānisitha-sūtra, (4) Pancakalpa-satra, (5) Daśāśruta-skandha-Sotra and (6) Bhatkalpa-sutra. These Chedasätras deal with the rules, exceptions and vows. The study of these is restricted only to those best monks who are (1) serene, (2) introvert, (3) fearing from the worldly existence, (4) exalted in restraint, (5) self-controlled, (6) rightfully descerning the subtlety of entity, territories, etc. (7) pondering over continuously the protection of the six-limbed souls, (8) praiseworthy, (9) exalted in keeping the tradition, (10) observing good religious conduct, (11) beneficial to all the beings and (12) Who have paved the path of Yoga under the guidance of their master. VI Two Colikas Nandi-sutra : It contains hymn to Lord Mahavira, numerous similies for the religious constituency, name-list of 24 Tirtharkaras and 11 Ganadharas, list of Sthaviras and the fivefold knowledge. It is available in the size of around 700 Slokas. Anuyogadvāra-sutra : Though it comes last in the serial order of the 45 Ágamas, the learner needs it first. It is designated as the key to all the Agamas. The term Anuyoga means explanatory device which is of four types: (1) Statement of proposition to be proved, (2) logical argument, (3) statement of accordance and (4) conclusion. * It teaches to pave the righteous path with the support of firm resolve and wordly involvements. It is of the size of 2000 ślokas. ** ********* V Four Molas atras (1) Dajavaikalika-sutra : It is compared with a lake of nectar for the monks and nuns established in the fifth stage. It consists of 10 lessons and ends with 02 Colikas called Rativakya and Vivittacariya. It is said that monk Sthūlabhadra's sister nun Yakşă approached Simandhara Svāmi in the Mahavideha region and received four Calikas. Here are incorporated two of them. (2) Uttaradhyayana-sutra : It incorporates the last sermons of Lord Mahavira. In 36 lessons it describes detachment, the conduct of monks and so on. It is available in the size of 2000 Slokas. . (3) Anuyogadvara-sutra: It discusses 17 topics on conduct, behaviour, etc. Some combine Piryaniryukti with it, while others take it as a separate Agama. Pindaniryukti deals with the method of receiving food (bhiksă or gocari), avoidance of 42 faults and to receive food, 06 reasons of taking food, 06 reasons for avoiding food, etc. Avašyaka-sútra: It is the most useful Agama for all the four groups of the Jain religious constituency. It consists of 06 lessons. It describes 06 obligatory duties of monks, nuns, house-holders and housewives. They are: (1) Samayika, (2) Caturvimšatistava, (3) Vandana, (4) Pratikramana, (5) Kāyotsarga and (6) Paccakhana. 明明明明明明明明明與乐乐乐为历历明明明明明明明明兵兵兵兵兵兵兵兵乐乐乐乐玩玩乐乐明步兵兵玩乐乐乐恩 * O YOK LOXOV L FT STATUTEUT- O 20:10 03 www.ainelibrary.org Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ત - ડ કડડડડડડડક ગામ- ૯ ધર્મષાનુયોગમય અનુત્તરોપપાતિક દશાંગસૂત્ર - ૯ સરળ ગુજરાતી ભાવાર્થ ]TM W EB Be! (૯) અધ્યયન : વેહાસ - માતા ચેલણા, પાંચ વર્ષનો શ્રમણ પર્યાય, વૈજયંત વિમાનમાં ઉત્પત્તિ. (૧૦) અધ્યયન : અભય - માતા નંદા, પાંચ વર્ષનો શ્રમણ પર્યાય, વિજય વિમાનમાં ઉત્પત્તિ. : ઉપરના બધા અધ્યયનોમાં રોષ વર્ણન પ્રથમ અધ્યયન મુજબ ર - છે અન્યનામ:- અણુત્તરો નવાઈયદા મૃતકંધ --* વર્ગ ------ અધ્યયન -- ઉદ્દેશક --- પઠ - - - - - ઉપલબ્ધ પાઠ ન શ્લોક પ્રમાણ ONO兵听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听取用少%%%% જ દ્વિતીય વર્ગ (૧-૨) અધ્યયનો: દીર્ધસેન અને મહાસેન આ વર્ગના આરંભે ૧૭ અધ્યયનોના નામ જણાવીને આ બે અધ્યયનોમાં રાજગૃહ નગરી, ગુણશીલ ત્ય, રાજા શ્રેણિક અને રાણી ધારિણીના રાજકુમારો દીર્ધસેન અને મહાસેન, ભગવાનનું સમવસરણ અને દેશના, વૈરાગ્ય અને પ્રવૃજ્યા પછી ૧૬ વર્ષનો શ્રમણ પર્યાય, એક માસની સંખનાથી માંડીને વિજય વિમાનમાં ઉત્પત્તિ વર્ણવી છે. (૩-૪) અધ્યયનો : લદંત અને ગૂઢદંત - વિજય વિમાનમાં ઉત્પત્તિ. (૫-૬) અધ્યયનો : શુદ્ધદંત અને હુલ્લ - જયંત વિમાનમાં ઉત્પત્તિ. (૭ - ૮) અધ્યયનો : કુમ અને દ્રુમસેન - અપરાજિત વિમાનમાં ઉત્પત્તિ. (૯ -૧૩) આ પાંચ અધ્યયનોમાં અનુક્રમે મહાદુમસેન, સિંહ, સિંહસેન, મહાસિદ્ધસેન અને પુણ્યસેન રાજકુમારોની સર્વાર્થસિદ્ધ વિમાનમાં ઉત્પત્તિ સુધીનું વૃત્તાંત વર્ણિત છે. ગઘસૂત્ર --- જ પઘસૂત્ર --- શ્રુતસ્કંધ પ્રથમ વર્ગ (૧) અધ્યયન: જાલી આ વર્ગના આરંભે દસ અધ્યયનોના નામ આપીને આ અધ્યયનમાં રાજગૃહ નગરી, ગુણદીલ થય, રાજા શ્રેણિક, રાણી ધારિણી વગેરેના વર્ણન પછી રાજકુમાર જાલીનો આઠ કન્યાઓ સાથે વિવાહ, ભગવાન મહાવીરનું સમવસરણ, દેશના, જાલીકુમારને વૈરાગ્ય, પ્રવજ્યા, ૧૧ અંગોનું અધ્યયન, ગુણરત્ન તપની આરાધના, ૧૬ વર્ષનો દીક્ષા પર્યાય, વિજય નામના અનુત્તર વિમાનમાં ઉત્પત્તિ અને ત્યાંથી ચ્યવીને મહાવિદેહમાં જન્મ તેમજ નિર્વાણ વગેરે વર્ણન છે. - તૃતીય વર્ગ (૨) અધ્યયન: મયાલી - ૧૬ વર્ષ દીક્ષા પર્યાય, વૈજયંત વિમાનમાં ઉત્પત્તિ. (૩) અધ્યયન : વિયાલી - ૧૬ વર્ષનું શમણ જીવન, જયંત વિમાનમાં ઉત્પત્તિ. (૪) અધ્યયન : પુરિસસેણ - ૧૬ વર્ષનું શ્રમણ જીવન, અપરાજિત વિમાનમાં ઉત્પત્તિ. (૫) અધ્યયન : શરિરાણ - ૧૬ વર્ષનું શ્રમણ જીવન, સર્વાર્થસિદ્ધ વિમાનમાં ઉત્પત્તિ. (૬) અધ્યયન : દીર્ધદંત - ૧૨ વર્ષનું શ્રમણજીવન, સર્વાર્થસિદ્ધ વિમાનમાં ઉત્પત્તિ. (૭) અધ્યયન : લણદંત - ૧૨ વર્ષનો. શ્રમણપર્યાય, અપરાજિત વિમાનમાં ઉત્પત્તિ. (૮) અધ્યયન: હલ્લ - માતાચલણા, ૧૨ વર્ષનો શ્રમણ પર્યાય, જયંત વિમાનમાં ઉત્પત્તિ. (૧) અધ્યયન: ધન્ય આ અધ્યયનમાં કાકંઠી નગરી, સહસ્રામવન ઉધાન, રાજા જિતશત્રુ, રાણી ભદ્રા 5 સાર્યવાહી, રાજકુમાર ધન્ય અને તેનો ૩૨ કન્યાઓ સાથે વિવાહ, ભગવાન મહાવીરનું સમવસરણ, ધન્યકુમારને વૈરાગ્ય, દીક્ષા-મહોત્સવ, ચાવજ જીવન છઠ્ઠી તપ, પારણામાં સર્વથા નીરસ અન્નગ્રહણની પ્રતિજ્ઞા, કાકંદીથી વિહાર, ૧૧ અંગોનું અધ્યયન, અણગાર ધન્યના તપોમય દેહનું નખશિખ વર્ણન આપ્યા પછી રાજગૃહ ના ગુણશીલ ચેત્યમાં ભગવાન મહાવીરનું સમવસરણ અને હેરાના, રાજા શ્રેણિકની ૧૪, ૦૦૦ શ્રમણોમાં અતિ ઉત્કૃષ્ટ તપશ્ચર્યા કરનાર શ્રમણ વિષે જિજ્ઞાસા, ભગવાન મહાવીર દ્વારા અણગાર ધન્યનો નામનિર્દે, રાજાના અણગાર ધન્યને વંદન અને સ્વસ્થાન ગમન વગેરે વર્ણન પછી સ્થવિરો સાથે અણગાર ધન્યની વિપુલગિરિ પર અંતિમ આરાધના, એક માસની સંખના, નવ છું મહિનાનું શ્રમણ જીવન, સમાધિ મરણ અને સર્વાર્થસિદ્ધ વિમાનમાં ઉત્પત્તિ, સ્થવિરો દ્વારા અણગાર ધન્યના આચાર ભાંડનું લાવવું, ધન્યનું વન અને મહાવિદેહમાં જન્મ,. #Bhhe M M શ્રી arryગુvrગૂંથા - 3 શ્રાવક K F S S T F S F S SS SK Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -સરળ ગુજરાતી ભાવાર્થ નિર્વાણ વગેરે વર્ણન છે. (૨) અધ્યયન : સુનક્ષત્ર - કામંદી નગરી, ઘણાં વર્ષોનો શ્રમણ પર્યાય. (૩-૪) અધ્યયનો : ઋષિદાસ અને પેહ્લક – રાજગૃહ નગરી, ઘણાં વર્ષોનો શ્રમણ પર્યાય. (૫-૬) અધ્યયનો : રામપુત્ર અને ચંદ્ર – સાકેત નગરી, ઘણાં વર્ષોનો શ્રમણ પર્યાય. (૭-૮ ) અધ્યયનોઃ પૃત્રિમ અને પેઢાલપુત્ર – વાણિજ્યગ્રામ, ઘણાં વર્ષોનો શ્રમણ પર્યાય. (૯) અધ્યયન : પોથ્રિલ – હસ્તિનાપુર, ઘણાં વર્ષોનો શ્રમણ પર્યાય. (૧૦) અધ્યયન : વેહલ – રાજગૃહ નગરી, પિતા દ્વારા દીક્ષા મહોત્સવ, છ માસનો શ્રમણ પર્યાય. 出版 श्री आगमगुणमंजूषा ३१ *** પુ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ nspire ucation international 2010/03 depu Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain ચણા 120 * અનુત્તરોષપાતિક સૂત્રઃ ૧) જાલી, ૨) મયાલી, ૩) ઉવયાલી, ૪) પુરિષણ, ૫) વારિપેણ, ૬) દીર્ધદંત, ૭) લઇદંત, ૮) વેહલ, ૯) અભય. દીર્ઘસેન, મહાસેન, લષ્ટદંત, ગૂઢદંત, શુદંત, હલ, દ્રુમ, ઝુમસેન, મહાદ્ગમસેન, સિંહ, સિંહસેન, મહાસિદ્ધસેન, પુણ્યસેન. ધન્ય, સુનક્ષત્ર, ઋષિદાસ, પેલેક, રામપુત્ર, ચંદ્ર, પૃષ્ટિમ, પેઢાલ, પોદિલ, અને વેહલ – આ બધા મુનિઓ સમાધિપૂર્વક કાળધર્મ પામી (૧) જય, (૨) વિજય, (૩) જયંત, (૪) અપરાજિત અને (૫) સર્વાર્થસિદ્ધ નામના અનુત્તર દેવલોકમાં ઉત્ત્પન્ન થાય છે. ત્યાં દેવોના ઈન્દ્ર વગેરે હોતા નથી પણ બધા પોતે જ ઇન્દ્ર (અહમિન્ત્ર) કહેવાય છે. * અનુત્તરોપવાતિ સૂત્ર : ૪) નાની, ૨) મયાતી, રૂ) કવયાની, ૪) રિપેળ, ૬) વરિષેળ, 6) વીર્યવંત, છ) નવંત, ૮) વેહન, ૨) સમય દીર્ધસેન, મહાસેન, હદવંત, જીવંત, શુદ્ધવંત, દન, કુમ, મુમસેન, મામસેન, સિંહ. સિક્વેન, મહાસિદ્ધોન, પુવસેના ધન્ય, સુનક્ષત્ર, ઋષિયાસ, પત્ત્ત, રામપુત્ર, ચંદ્ર, પૃષ્ઠિમ, પેઢાન, પોદિન, બાર વેદન - યે નવ મુનિ સમાધિપૂર્વક વાતધર્મનો પ્રાપ્ત છુણ બૌર (૬) નય, (૨) વિનય, (૩) નવંત, (४) अपराजित और (५) सर्वार्थसिद्ध नामक अनुत्तर देवलोक में उत्पन्न हुए। वहाँ देवों के इन्द्र आदि नहीं होते क्योंकि वे खुद ફ્રી ઇન્દ્ર (બહમિન્ત્ર) હોતે હૈં। Anuttaropapātika-sutra: 1) Jālī, 2) Mavali. 3) Uvayali, 4) Purisena, 5) Vārisena, 6) Dirghadanta, 7) Lastadanta 8) Vehalla, 9) Abhaya. Dirghasena, Mahasena, Lastadanta, Gūdhadanta, Suddhadanta, Malla, Druma, Drumasena, Mahadrunasena, Sinha, Simhasena, Mahāsiddhasena, Punyascna. Dhanya, Sunaksatra, Rsidasa, Pellaka, Rāmaputra, Candra, Prsthima, Pendhāla, Pottila and Vehalla - all these ascetics engrossed in Trance and died. After death they were born in the celestial planes called I) Jaya, 2) Vijaya, 3) Jayanta, 4) Aparajita, and 5) Sarvārthasiddha Here there are no Indra etc. of gods, but they themselves are Indra known as Ahamindra. Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 30666666666666 (९) अनुत्तरोववाय दसाओ पढमो वग्गो १० अज्झयणं बीओ वग्गो १३ अज्झयणं पिट्टको (१) [१] सिरि उसहदेव सामिस्स णमो । सिरि गोडी- जिराउला - सव्वोदय पास णाहाणं णमो । नमोऽत्थुणं समणस्स भगवओ - महइ - महावीर वद्धमाण सामिस्स । सिरि गोयम- सोहम्मार सव्वगणहराणं णमो । सिरि सुगुरु देवाणं णमो 555 श्रीअनुत्तरोपपातिकदशाङ्गम् तेणं कालेणं० रायगिहे नगरे अज्जसुहम्मस्स समोसरणं परिसा णिग्गया जाव जंबू पज्जुवासति० एवं व० जति णं भंते! समणेणं संपत्तेणं अडमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं अयमठ्ठे पं० नवमस्स णं भंते! अंगस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पं० १, तए णं से सुधम्मे अणगारे जंबूं अणगारं एवं व० एवं खलु जंबू ! समणेणं जाव संपत्तेणं नवमस्स अंगस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं तिण्णि वग्गा पं०, जति णं भंते! समणेणं जाव संपत्तेणं नवमस्स अंगस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं ततो वग्गा पं० पढमस्स णं भंते! वग्गस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं (प्र० समणेणं जाव संपत्तेणं) कइ अज्झयणा पं० ?, एवं खलु जंबू ! समणेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरोववाइदसाणं पढमस्स वग्गस्स दस अज्झणा पं० तं० जालि मयालि उवयालि पुरिससेणे य वारिसेणे य दीहदंते य लट्ठदंते य वेहल्ले वेहासे अभयेति य कुमारे। जइ णं भंते! समणेणं जाव संपत्तेणं ढग दस अज्झयणा पं० पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स अणुत्तरोव० समणेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पं० १, एवं खलु जंबू ! तेणं कालेनं० रायगिहे णगरे रिद्धत्थिमियसमिद्धे गुणसिलए चेतिते सेणिए राया धारिणी देवी सीहो सुमिणे जालीकुमारो जहा मेहो अट्ठट्ठओ दाओ जाव उप्पिं पासा० विहरति, सामी समोसढे सेणिओ णिग्गओ जहा मेहो तहा जालीवि णिग्गतो तहेव णिक्खंतो जहा मेहो, एक्कारस अंगाइ अहिज्जति गुणरयण तवोकम्मं, एवं जा चेव खंदगवत्तव्वया सा चेव चितणा आपुच्छणा थेरेहि सद्धिं विपुलं तहेव दुरूहति, नवरं सोलस वासाई सामन्नपरियागं पाउणित्ता कालमासे कालं किच्चा उड् ढं चंदिमसोहम्मीसाणजावआरणच्चुए कप्पे नव य गेवेज्जे विमाणपत्थडे उड्ढं दूरं वीतीवतित्ता विजयविमाणे देवत्ताए उववण्णे, तते णं ते थेरा भग० जालिं अणगारं कालगयं जाणेत्ता परिनिव्वाणवत्तियं काउस्सग्गं करेति त्ता पत्तचीवराइं गेण्हंति तहेव ओयरंति जाव इमे से आयारभंडए, भंते! त्ति भगवं गोयमे जाव एवं व० एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी जालिनामं अणगारे पगतिभद्दए० से णं जाली अणगारे काल० कहिं गते कहिं उववन्ने ?, एवं खलु गोयमा ! ममं अंतेवासी तहेव जधा खंदयस्स जाव काल० उड्ढं चंदिम जाव विमाणे देवत्ताण उववण्णे, जालिस्स णं भंते! देवस्स केवतियं कालं ठिती पं० ?, गोयमा ! बत्तीसं सागरोवमाई ठिती पं०, से भंते! ताओ देवलोयाओ आउक्खएणं० कहिं गच्छिहिति० ? गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति०, ता एवं जंबू ! समणेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरोववाइयदसाणं पढमवग्गस्स पढमज्झयणस्स अयमट्टे पं० अ० १ । एवं सेसाणवि अट्ठण्हं भाणियव्वं, नवरं सत्तधारिणिसुआ वेहल्लवेहासा चेल्लणाए, आइल्लाणं पंचण्हं सोलस वासातिं सान्नपरियातो तिण्हं बारस वासातिं दण्डं पंच वासातिं. आइल्लाणं पंचण्डं आणुपुव्वीए उववायो विजये वेजयंते जयंते अपराजिते सव्वट्ठसिद्धे, दीहदंते सव्वट्ठसिद्धे, उक्कमेणं सेसा, अभओ विजए, सेसं जहा पढमे, अभयस्स णाणत्तं रायगिहे नगरे सेणिए राया नंदा देवी माया सेसं तहेव, एवं खलु जंबू ! समणेणं जाव संपत्तेणं [ अणुत्तरोववाइयदसाणं पढमस्स वग्गस्स अयमट्ठे पं० | १ || वग्गो० १ ||] जति णं भंते! समणेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरोववाइदसाणं पढमस्स वग्गस्स अयमट्ठे पं० दोच्चस्स णं भंते! वग्गस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं समणेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पं० ? एवं खलु जंबू ! समणेणं जाव संपत्तेणं दोच्चस्स वग्गस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं तेरस अज्झयणा पं० तं० दीहसेणे महासेणे लट्ठदंते य गूढदंते य सुद्धदंते हल्ले दुमे दुमसेणे महादुमसेणे य आहिते सीहे य सीहसेणे य महासीहसेणे य पुन्नसेणे य बोद्धव्वे तेरसमे होति अज्झयणे । जति णं भंते! समणेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरोववाइयदसाणं दोच्चस्स वग्गस्स तेरस अज्झयणा पं० સૌજન્ય :- પ. પૂ. યુવાચાર્યશ્રી કલાપ્રભસાગરસૂ• મ.સા. ની રજત સંયમ યાત્રાએ માતુશ્રી પ્રેમકુંવરબેન રતનશી સાવલા નવાવાસ (કચ્છ) MOTOR श्री आगमगुणमंजूषा ७२ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ཕ' 4" ་ ཐད ། བྱ་ བྱཱ། '' ཀ ཀ ཀ ༧། (९) अनुत्तरोववाझ्य दसाओ ३ वम १० अज्झयण [२] 国万万岁万岁万岁万万岁男ROB C 15%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%C दोच्चस्स णं भंते ! वग्गस्स पढमज्झयणस्स सााव सं के अट्ठे पं० ?, एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं० रायगिहे णगरे गुणसिलते चेतिते सेणिए राया धारिणी देवी सीहो सुमिणे जहा जाली तहा जम्मं बालत्तणं कलातो नवरं दीहसेणे कुमारे सच्चेव वत्तव्वया जहा जालिस्स जाव अंतं काहिति. एवं तेरसवि रायगिहे सेणिओ' पिता धारिणी माता तेरसण्हवि सोलसवासा परियातो. आणुपुव्वीए विजए दोन्नि वेजयंते दोन्निजयंते दोन्नि अपराजिते दोन्नि. सेसा महादुमसेणमाती पंच सव्वट्ठसिद्धे. एवं खलु जंबू ! समणेणं० [अणुत्तरोववाइयदसाणं दोच्चस्स वग्गस्स] अयमढे पं०. मासियाए संलेहणाए दोसुवि वग्गेसु।२।। वग्गो २।। जति णं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरो० दोच्चस्स वग्गस्स अयमद्वे पं० तच्चस्स णं भंते ! वग्गस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं सम० जाव सं० के अटे पं० ?. एवं खलु जंबू ! समणेणं० अणुत्तरोववाइयदसाणं तच्चस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पं० २०-धण्णे य सुणक्खत्ते इसिदासे अ आहिते। पेल्लए रामपुत्ते य. चंदिमा पिट्ठिमाइया॥१|| पेढालपुत्ते अणगारे, नवमे पुट्ठिलेइ य (प्र० पुट्ठिले तहेवय) । वेहल्ले दसमे वुत्ते, एमेते दस आहिते ॥२॥ जति णं भंते ! सम० जाव० सं० अणुत्तर० तच्चस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पं० पढमस्सणं भंते ! अज्झयणस्स समणेणं जाव संपत्तेणं के अढे पं०?, एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं० कागंदी णामं णगरी होत्था रिद्धस्थिमियसमिद्धा सहस्संबवणे उज्जाणे सव्वोदुए जिअसत्तू राया, तत्थ णं कागंदीए नगरीए भद्दा णामं सत्थवाही परिवसइ अड्ढा जाव अपरिभूआ, तीसे णं भद्दाए सत्थवाहीए पुत्ते धन्ने नामं दारए होत्था अहीण जाव सुरूवे पंचधातीपरिग्गहिते तं०-खीरधाती जहा महब्बले जाव बावत्तरि कलातो अहीए जाव अलंभोगसमत्थे जाते यावि होत्था, तते णं सा भद्दा सत्थवाही धन्नं दारयं उम्मुक्कबालभावं जाव भोगसमत्थं वावि जाणेत्ता बत्तीसं पासायवडिंसते कारेति अब्भुग्गतमूसिते जाव तेसिं मज्झे भवणं अणेगखंभसयसन्निविट्ठ जाव बत्तीसाए इब्भवरकन्नगाणं एगदिवसेणं पाणिं गेण्हावेति त्ता बत्तीसओ दाओ जाव उप्पिंपासाय० फुटुंतेहिं जाव विहरति, तेणं कालेणं० समणे० समोसढे परिसा निग्गया राया जहा कोणितो नहा जियसत्तू णिग्गतो, तते णं तस्स धन्नस्स तं महता जहा जमाली तहा णिग्गतो. नवरं पायचारेणं जाव जं नवरं अम्मयं भई सत्थवाहिं आपुच्छामि तते णं अहं देवाणुप्पियाणं अंतिते जाव पव्वयामि जाव जहा जमाली तहा आपुच्छइ मुच्छिया वृत्तपडिवुत्तया जहा महब्बले जाव जाहे णो संचाएति जहा थावच्चा जियसत्तुं आपुच्छति छत्तचामरातो० सयमेव जियसत्तू णिक्खमणं करेति जहा थावच्चापुत्तस्स कण्हो जाव पव्वतिते० अणगारे जाते ईरियासमिते जाव बंभयारी,तते णं से धन्ने अणगारे जं चेव दिवसं मुंडे भवित्ता जाव पव्वतिते तं चेव दिवसं समणं भगवं महावीरं वंदति णमंसति त्ता एवं व०इच्छामिणं भंते ! तुब्भेणं अब्भणुण्णाते समाणे जावज्जीवाए छटुंछद्वेणं अणिक्खित्तेणं आयंबिलपरिग्गहिएणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावेमाणे विहरेत्तते छट्ठस्सविय णं पारणयंसि कप्पति मे आयंबिलं पडिग्गाहित्तते नो चेवणं अणायंबिलं तंपिय संसटुं णो चेवणं असंसट्ठ तंपिय णं उज्झियधम्मियं नो चेवणं अणुज्झियधम्मियं तंपि य ज अन्ने बहवे समणमाहणअतिहिकिवणवणीमगा णावकंखंति, अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं०, तते णं से धन्ने अणगारे समणेणं भगवता महावीरेण अब्मणुन्नाते समाणे हट्ठ० जावज्जीवाए छटुंछट्टेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावेमाणे विहरति, तते णं से धण्णे अणगारे पढमछट्ठक्खमणपारणगंसि पढमाए पोरसीए सज्झायं करेति जहा गोतमसामी तहेव आपुच्छति जाव जेणेव कायंदी णगरी तेणेव उवा०त्ता कायंदीणगरीए उच्च० जाव अडमाणे आयंबिलं जाव णावकंखति, तते णं से धन्ने अणगारे ताए अब्भुज्जताए पयत्ताए पग्गहियाए एसणाए एसमाणे जति भत्तं लभति तो पाणं ण लभति अह पाणं तो भत्तं न लभति, तते णं से धन्ने अणगारे अदीणे अविमणे अकलुसे अविसादी अपरितंतजोगी जयणघडणजोगचरित्ते अहापज्जत्तं समुदाणं पडिगाहेति त्ता काकंदी णगरीतोपडिणिक्खमति जहा गोतमे जाव पडिदंसेति, तते णं से धन्ने अणगारे समणेणं भग० अब्भणुन्नाते समाणे अमुच्छिते जाव अणज्झोववन्ने बिलमिव पण्णगभूतेणं अप्पाणेणं आहारं आहारेतित्ता संमजेणं तवसा० विहरति, समरे भगवं महावीरे अण्णया कयाई काकंदीएणगरीतो सहस्संबवणातो उज्जाणातोपडिणिक्खमति त्ता बहिया जणवयविहारं क विहरति,तते णं से धन्ने अणगारे समणस्स भ० महावीरस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिते सामाइयमाइययाइं एक्कारस अंगाई अहिज्जति संजमेणं तवसा अप्पाणं २ भावेमाणे विहरति, तते णं से धन्ने अणगारे तेणं ओरालेणं जहा खंदतो जाव सुहुय० चिट्ठति, धन्नस्स णं अणगारस्स पादाणं अयमेयारूवे तवरूवलावन्ने होत्था. से Kov.C%5 555555554 [ श्री आगमगुणमंजूषा - ७३० 555555555FFFFFFFFFFFOOK 為听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听FFFFFF听听听听听听听听听听听 Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Pror.95555 (९) अनुत्तरोववाइय दसाओ ३ वग १० अज्झयणं [३] 155555555555HOENoY %%%%%%%%%%%% जहाणामते सुक्कछल्लीति वा कट्ठपाउयाति वा जरग्गओवाहणाति वा एवामेव धन्नस्स अणगारस्स पाया सुक्का णिम्मंसा अट्ठिचम्मछिरत्ताए पण्णायंति णो चेव णं मंससोणियत्ताए, धन्नस्स णं अणगारस्स पायंगुलियाणं अयमेयारूवे० से जहाणामते कलसंगलियाति वा मुग्गसंगलियाति वा तरूणिया छिन्ना उण्हे दिन्ना सुक्काम समाणी मिलायमाणी २ चिट्ठति एयामेव धन्नस्स पायंगुलियातो सुक्कातो जाव सोणियत्ताते, धन्नस्स जंघाणं अयमेयारूवे० से जहा० काकजंघाति वा कंकजंघाति ढेणियालियाजंघाति वा जाव णो सोणियत्ताए, धन्नस्स जाणूणं अयमेयारूवे० से जहा० कालिपोरेति वा मयूरपोरेति वा ढे (प्र०वे) णियालियापोरेति वा एवं जाव सोणियत्ताए, धण्णस्स उरूस्स० जहानामते सामकरेल्लेति वा बोरी (सोम पा०) करील्लेति वा सल्लति० सामलि० तरूणिते उण्हे जाव चिट्ठति एयामेव धन्नस्स उरू जाव सोणियत्ताए, धन्नस्स कडिपत्त (ट्ट पा०) स्स इमेयारूवे० से जहा० उट्टपादेति वा जरग्गवपादेति वा जाव सोणियत्ताए, धन्नस्स उदरभायणस्स इमे० से जहा० सुक्कदिएति वा भज्जणयकभल्लेति वा कट्ठकोलंबएति वा एवामेव उदरं सुक्कं, धन्न० पांसुलियकडयाणं इमे० से जहा० था (प्र० वा) सयावलीति वा पाणा (प्र० पीण) वलीति वा मुंडावलीति वा, धन्नस्स पिढिकरंडयाणं अयमेयारूवे० से जहा० कन्नावलीति वा गोलावलीति वा वट्टया (प्र० वता) वलीति वा एवामेव० धन्नस्स उरकडयस्स अय०, से जहा० चित्तकट्ट (प्र० यह) रेति वा वियणपत्तेत्ति वा तालियंटपत्तेति वा एवामेव०, धन्नस्स बाहाणं० से जहाणामते समिसंगलियाति वा वाहायासंगलियाति वा अगत्थियसंगलियाति वा एवामेव०, धन्नस्स हत्थाणं० से जहा० सुक्कछगणियाति वा वडपत्तेति वा पलासपत्तेति वा एवामेव०, धन्नस्स हत्थंगुलियाणं० से जहा० कलायसंगलियाति वा मुग्ग० मास० तरूणिया छिन्ना आयवे दिन्ना सुक्का समाणी एवामेव०, धन्नस्स गीवाए० से जहा० करगगीवाति वा कुंडियागीवाति वा उच्चट्ठचणतेति वा एवामेव०, धन्नस्स णं हणुआए से जहा० लाउयफलेति वा हकुवफलेति वा अंबगतियाति वा एवामेव०, धन्नस्स उट्ठाणं से जहा० सुक्कजलोयाति वा सिलेसगुलियाति वा अलत्तगुलियाति वा एवामेव०, धण्णस्स जिब्भाए० से जहा० वडपत्तेइ वा पलासपत्तेइ वा सागपत्तेति वा एवामेव०, धन्नस्स नासाए से जहा० अंबगपेसियाति वा अंबाडगपेसियाति वा मातुलुंगपेसियाति वा तरूणिया एवामेव०, धन्नस्स अच्छीणं से जहा० वीणाछिड्डेति वा वद्धीसगछिड्डेति वा पाभातियतारिगाइ वा एवामेव०, धन्नस्स कण्णाणं० से जहा० मूलाछल्लियाति वा वालुंक० कारेल्लयच्छल्लियाति वा एवामेव०, धन्नस्स सीसस्स से जहा० तरूणगलाउएति वा तरूणगएलालुयत्ति वा सिण्हालएति वा तरूणए जाव चिट्ठति एवामेव०, धन्नस्स अणगारस्स सीसं सुक्कं लुक्खं णिम्मंसं अट्ठिचम्मच्छिरत्ताए पन्नायति नो चेव णं मंससोणियत्ताए, एवं सव्वत्थ, णवरं उदरभायणकन्नजीहाउट्ठा एएसिं अट्ठीण भन्नतिचम्मच्छिरत्ताए पण्णायइत्ति भन्नति, धन्नेणं अणगारेणं सुक्केणं भुक्खेणं पातजंघोरूणा विगततडिकरालेणं कडिकडाहेणं पिट्ठमवस्सिएणं उदरभायणेणं जोइज्जमाणेहिं पांसुलिकडएहिं अक्खखुत्तमालाति' वागणेज्जमाणेहिं पिट्ठिकरंडगसंधीहिं गंगातरंगभूएणं उरकडगदेसभाएणं सुक्कसप्पसमाणाहिं बाहाहिं सिढिलकडालीविव चलंतेहि य अग्नहत्थेहि कंपणवातिओविव वेवमाणीए सीसघडीए पव्वादवदणकमले उन्भडघडामुहे उन्मुड्डणयणकोसे जीवंजीवेणं गच्छति जीवंजीवेणं चिट्ठतिभासं भासिस्सामीति गिलाति० से जहाणामते इंगालसगडियाति वा जहा खंदओतहा जाव हुयासणे इव भासरासिपलिच्छन्ने तवेणं तेएणं तवतेयसिरीए उवसोभेमाणे २ चिट्ठति।३। तेणं कालेणं० रायगिहे णगरे गुणसिलए चेतिते सेणिए राया, तेणं कालेणं० समणे भगवं महावीरे समोसढे परिसा णिग्गया सेणिते नि० धम्मक० परिसा पडिगया, तते णं से सेणिए राया समणस्स० अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म समणं भगवं महावीरं वंदति णमंसति त्ता एवं व०-इमासिंणं भंते ! इंदभूतिपामोक्खाणं चोद्दसण्हं समणसाहस्सीणं कतरे अणगारे महादुक्करकारए चेव महाणिज्जरतराए चेव?, एवं खलु सेणिया! इमासिं इंदभूतिपामोक्खाणं चोद्दसण्हं समणसाहस्सीणं धन्ने अणगारे महादुक्करकारए चेव महाणिज्जरतराए चेव, से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चति इमासिं जाव साहस्सीणं धन्ने अणगारे महादुक्करकारए चेव महाणिज्जर० ?, एवं खलु सेणिया! तेणं कालेणं० * काकंदी नाम नगरी होत्था उप्पिं पासायवडिंसए विहरति, तते णं अहं अन्नया कदाति पुव्वाणुपुव्वीए चरमाणे गामाणुगाम दूतिज्जमाणे जेणेव काकंदी णगरी जेणेव सहस्संबवणे उज्जाणे तेणेव उवागते अहापडिरूवं उग्गहं० त्ता संजमे जाव विहरामि, परिसा निग्गता, तहेव जाव पव्वइते जाव बिलमिव जाव अहारेति, धण्णस्सणं PROOFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFF श्री आगमगुणमंजूषा - ७३१ #FFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFOROR 明明明明明明明明明明明明明明听听听听听听听 听听听听听听听听听乐听听听听听听听听听听听听听玩O %%%%%% Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Fox95555555555 (9) अनुत्तरोववाइय दसाओ 3 वग्ग 10 अज्झयणं [] $5555552 CS 听听听听听听听听听听听听听明明明明明明明明明明明明 $$$$$$$乐明明明乐乐 अणगारस्स पादाणं सरीरवन्नओसव्वोजाव उवसोभेमाणे 2 चिट्ठति, सेतेणटेणं सेणिया! एवं वुच्चति-इमासिंचउद्दसण्हं० साहस्सीणं धण्णे अणगारे महादुक्करकारए 卐 महानिज्जरतराए चेव, ततेणं से सेणिए राया समणस्स भगवतो महावीरस्स अंतिए एयमहूँ सोच्चा णिसम्म हट्टतुट्ठ० समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाणहिणं म करेति त्ता वंदति नमंसति त्ता जेणेव धन्ने अणगारे तेणेव उवागच्छति त्ता धन्नं अणगारं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेति त्ता वंदति णमंसवित्ता एवं व०-धण्णे सि णं तुम देवाणु० ! सुपुण्णे सुकयत्थे कयलक्खणे सुलद्धे णं देवाणुप्पिया ! तव माणुस्सए जम्मजीवियफलेत्तिकटु वंदति णमंसति त्ता जेणेव समणे० तेणेव म उवागच्छति त्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो वंदति णमंसति त्ता जामेव दिसिं पाउब्भूते तामेव दिसिं पडिगए।४। तए णं तस्स धण्णस्स अणगारस्स अन्नया कयाई पुव्वरत्तावरत्तकाले धम्मजागरियं० इमेयारूवे अब्भत्थिते० एवं खलु अहं इमेणं ओरालेणं जहा खंदओ तहेव चिंता आपुच्छणं थेरेहिं सद्धिं विउलं दुरूहति मासिया संलेहणा नवमासपरियातो जाव कालमासे कालं किच्चा उड्ढे चंदिम जाव णव य गेविजविमाणपत्थडे उड्ढं दूरं वीतीवतित्ता सव्वट्ठसिद्धे विमाणे देवत्ताए ) उववन्ने, थेरा तहेव ओयरंति जाव इमे से आयारंभडए, भंते ! त्ति (129) भगवं गोतमे तहेव पुच्छति जहा खंदयस्स भगवं वागरेति जाव सव्वट्ठसिद्धे विमाणे उववण्णे० धण्णस्स णं भंते ! देवस्स केवतियं कालं ठिती पं० ?, गोतमा ! तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिती पं०, से णं भंते ! ततो देवलोगाओ कहिं गच्छिहिति कहिं उववज्जिहिति?, गोयमा! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति०। तंएवं खलु जंबू ! समणेणं जाव संपत्तेणं० पढमस्स अज्झयणस्स अयमद्वे पं०१५॥ अ०१॥ जतिणं भंते !0 एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं० कागंदीए णगरीए भद्दाणामं सत्थवाही परिवसति अड्ढा०, तीसे णं भद्दाए सत्थवाहीए पुत्ते सुणक्खत्ते णामं दारए होत्था अहीण जाव सुरूवे पंचधातिपरिक्खित्ते जहा धण्णो तहा बतीसओदाओ जाव उप्पिं पासायवडेंसए विहरति, तेणं कालेणं० समोसरणं जहा धन्नो तहा सुणक्खत्तेऽवि णिग्गते जहा थावच्यापुत्तस्स तहा णिक्खमणं जाव अणगारे जाते ईरियासमिते जाव बंभयारी, तते णं से सुणक्खत्ते अणगारे जं चेव दिवसं समणस्स भगवतो म० अंतिते मुंडे जाव पव्वतितेतं चेव दिवसं अभिग्गहं तहेव जाव बिलमिव आहारेति, संजमेण जाव विहरति० बहिया जणवयविहारं विहरति, एक्कारस अंगाई अहिज्जति संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरति, तते णं से सुण० ओरालेणं जहा खंदतो, तेणं कालेणं० रायगिहे णगरे गुणसिलए चेतिए सेणिए राया सामी समोसढे की परिसा णिग्गता राया णिग्गतो धम्मकहा राया पडिगओ परिसा पडिगता, तते णं तस्स सुणक्खत्तस्स अन्नया कयाति पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजा० जहा खंदयस्स बहू वासा परियातो गोतमपुच्छा तहेव कहेति जाव सव्वट्ठसिद्धे विमाणे देवें उववण्णे तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिती पं०, सेणं भंते ! महाविदेहे सिज्झिहिति, एवं सुणक्खत्तगमेणं सेसावि अट्ठ भाणियव्वा, णवरं आणुपुव्वीए दोन्नि यारगिहे दोन्नि साएए दोन्नि वाणियग्गामे नवमो हत्थिणपुरे दसमो रायगिहे, नवण्हं भद्दाओ जणणीओ नवण्हवि बत्तीसओ दाओ नवण्हं निक्खमणं थावच्चापुत्तस्स सरिसं वेहल्लस्स पिया करेति छम्मासा वेहल्लते नव धण्णे सेसाणं बहू वासा मासं संलेहणा सव्वट्ठसिद्धे पुव्वमहाविदेहे सिज्झणा० / एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवता महावीरेणं आइगरेणं तित्थगरेणं सयं (प्र० सह) संबुद्धेणं लोगनाहेणं लोगप्पदीसेणं लोगपज्जुयगरेणं अभयदयेणं सरणदयेणं चक्खुदयेणं मग्गदयेणं धम्मदयेणं धमदेसएणं धम्मवरचाउरन्तचक्कवट्टिणा अप्पडिहयवरणाणदंसणधरेणं जिणेणं जाणएणं बुद्धेणं बोहएणं मोक्केणं मोयएणं तिन्नेणं तारयेणं सिवमयलमरुयमणंतमक्खयमव्वाबाहमपुणरावत्तयं सिद्धिगतिनामधेयं ठाणं संपत्तेणं [अणुत्तरोववाइयदसाणं तच्चस्स वग्गस्स) अयमढे पन्नत्ते / 6 // अणुत्तरोववाइयदसातो समत्तातो / / नवममंगं समत्तं / / अणुत्तरोववाइयदसाणं एक्को सुतक्खंधो तिण्णि वग्गा तिसु दिवसेसु उद्दिस्संति, तत्थ पढमवग्गे दसुद्देसगा बितीयवग्गे तेरस उद्देसगा ततियवग्गे दस उद्देसगा सेसं जहा धम्मकहाणं तहा नेतव्वं / इत्युत्कीर्ण नवमाङ्गं // 编听听听听听听听听历历乐乐听听听听听听听听听听听听听听听听乐乐乐历历明明明明明明明明明明明明明网 Hero )555555555) श्री आगमगुणमंजूषा-७३२ // 5555555555555555555SMOR