Book Title: Aagam Manjusha 24 Painnagsuttam Mool 01 Chausaranam
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदंसणस्स पूज्य आनंद-क्षमा-ललित-सुशील सुधर्मसागर गुरुभ्यो नमः On Line – आगममंजूषा [२४] चउसरणं * संकलन एवं प्रस्तुतकर्ता * मुनि दीपरत्नसागर [M.Com., M.Ed., Ph.D.] Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || किंचित् प्रास्ताविकम् || ये आगम-मंजूषा का संपादन आजसे ७० वर्ष पूर्व अर्थात् वीर संवत २४६८, विक्रम संवत-१९९८, ई.स.1942 के दौरान हुआ था, जिनका संपादन पूज्य आगमोद्धारक आचार्यश्री आनंदसागरसरिजी म.सा.ने किया था| आज तक उन्ही के प्रस्थापित-मार्ग की रोशनी में सब अपनी-अपनी दिशाएँ ढूंढते आगे बढ़ रहे हैं। हम ७० साल के बाद आज ई.स.-2012,विक्रम संवत-२०६८,वीर संवत-२५३८ में वो ही आगम-मंजूषा को कुछ उपयोगी परिवर्तनों के साथ इंटरनेट के माध्यम से सर्वथा सर्वप्रथम “ OnLine-आगममंजूषा ” नाम से प्रस्तुत कर रहे हैं। * मूल आगम-मंजूषा के संपादन की किंचित् भिन्नता का स्वीकार * [१]आवश्यक सूत्र-(आगम-४०) में केवल मूल सूत्र नहीं है, मूल सूत्रों के साथ नियुक्ति भी सामिल की गई है। [२]जीतकल्प सूत्र-(आगम-३८) में भी केवल मूल सूत्र नहीं है, मूलसूत्रों के साथ भाष्य भी सामिल किया है। [३]जीतकल्प सूत्र-(आगम-३८) का वैकल्पिक सूत्र जो “पंचकल्प” है, उनके भाष्य को यहाँ सामिल किया गया tic [४] “ओघनियुक्ति”-(आगम-४१) के वैकल्पिक आगम “पिंडनियुक्ति” को यहाँ समाविष्ट तो किया है, लेकिन उनका मुद्रण-स्थान बदल गया है। [५] “कल्प(बारसा)सूत्र” को भी मूल आगममंजूषा में सामिल किया गया है। -मुनि दीपरत्नसागर मुनि दीपरतसागर : Address: Mnui Deepratnasagar, MangalDeep society, Opp.DholeshwarMandir, POST:- THANGADH Dist.surendranagar. Mobile:-9825967397 jainmunideepratnasagar@gmail.com Online-आगममंजूषा Date:-12/11/2012 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीचतुःशरणप्रकीर्णकम् सावजजोगविरई उकित्तण गुणवओ अ पडिवत्ती। स्वलिअस्स निंदणा रणतिगिच्छ गुणधारणा वेव ॥१॥ चारित्तस्स विसोही कीरह सामाइएण किल इहयं । सावजेअरजोगाण बजणासेवणतणओ॥२॥ ईसणयारविसोही चउबीसायस्थएण किच्चड य । अचम्भुअगुणकित्तणरूपेण जिणवरिंदार्ण ॥३॥ नाणाईआ उ गुणा तस्संपनपडिवत्तिकरणाओ। वनणएणं विहिणा कीरइ सोही उ तेसि तु ॥४॥ स्खलिअस्स य तेसिं पुणो विहिणा जं निंदणाइ पडिकमणं । तेण पडिकमगेणं तेसिपि अकीरए सोही ॥५॥ परणाइयाइयाणं जहरूम वणतिगिच्छरूवेणं । पडिकमणासुदाणं सोही तह काउसम्गेण ॥ ६॥ गुणधारणरूवेणं पचरखाणेण तवहारस्स। विरि. आयारस्स पुणो सव्वेहिवि कीरए सोही॥७॥ गयवसहसीहअभिसेअदामससिविणयरं झयं कुर्म। पउमसर सागर विमाण-भवण स्यणुबय सिहि वंदिउं महावीरं । कुसलाणुवंधि बंधुरमायणं कित्तइस्सामि ॥९॥ च उसरणगमण दुक्कडगरिहा सुकडाणुमोअणा थेव। एस गणो अणवरयं कायष्यो कुसलहेउत्ति॥१०॥अरिहंत सिद्ध साहू केवलिकहिओ सुहावहो धम्मो। एए चउरो चउगइहरणा सरणं गृह धनो॥११॥ अहसो जिणभत्तिभरुत्थरंतरोमंचकंचुअकरालो । पहरिसपणउम्मीसं सीसंमि कयंजली भणइ ॥२॥ रागहोसारीणं हंता कम्मट्ठगाइअरिहंता। विसयकसायारीणं अरिहंता इंतु मे सरणं ॥३॥ रायसिरिमुवकसित्ता तवचरणं दुबरं अणुचरित्ता। केवलसिरिमरिहंता॥४॥ युद्धवंदण: मरिहता अमरिंदनरिंदपूअमरिहंता। सासयसुहमरहंता॥५॥ परमणगय मुर्णता जोईवमहिंदझाणमरहता । धम्मकई अरहंता० ॥६॥ सशजिआणमहिंसं अरहता समवयणमरहता। भायमरहता०॥ ७॥ ओसरणमवसरित्ता पाउतीसं अइसए निसेवित्ता। धम्मकहं च कहता०॥८॥एगाइ गिराऽणेगे संदेहे देहिणं समं छित्ता। तिहुयणमणुसासंता०॥९॥ वयणामएण भुवणं निवाविता गुणेसु ठावंता। जिअलोअमुबरता० ॥२०॥ अचम्भुयगुणवंते नियजसससहरपसाहियदिबते । नियमणाइअणते पडिवो सरणमरिहते ॥१॥ उजिमअजरमरणार्ण समत्ततुक्खत्तसत्तसरणाणं। तिहुअणजणसुहयाणं अरिहंताणं नमो ताणं ॥२॥ अरिहंतसरणमलसुदिलबसुविसुबसिबबहुमाणो। पणयसिररइयकरकमलसेहरो सहरिस भणइ ॥३॥क. म्मक्खयसिद्धा साहाविअनाणदसणसमिदा । सबट्ठलद्धिसिहा ते सिद्धा ९तु मे सरणं ॥४॥ तिअलोअमत्ययत्या परमपयत्या अचिंतसामत्था। मंगलसिद्धपयत्या सिद्धा सरणं मुहपसत्था ॥५॥ मूलुक्खयपडिवक्ला अमूढलक्खा सजोगिपञ्चक्ला। साहाविअत्तमुक्खा सिद्धा सरणं परममुक्खा ॥६॥ पडिपिछिअपडिणीया समग्गाणम्गिवड्ढभवबीआ। जोईसरसरणीया सिद्धा सरणं सुमरणीया ॥७॥ पावियपरमाणंदा गुणनीसंदा विभिन्न(प.विदिण्ण)भवकंदा । लहुईकयरविचंदा सिद्धा सरणं खविजवंदा ॥८॥ उपलवपरमबंभा दुलहलमा विमुकसरंभा। भुवणपरधरणखंभा सिद्धा सरणं निरारंभा ॥९॥ सिखसरणेण नवयंमहेउसाहुगुणजणिअबहुमाणो (म० अणुराओ)। मेइणिमिलतसुपसत्यमत्यो तस्थिम भणइ ॥३०॥ जिअलोअबंधुणो कुगइसिंधुणो पारगा महाभागा । नाणाइएहिं सिवसुक्खसाहगा साहुणो सरणं ॥१॥ केवलिणो परमोही विउलमई सुनहरा जिणमयंमि । आयरिअ उवमाया ते सधे साहुणो सरणं ॥२॥ चउदसदसनवपुषी दुवालसिकारसंगिणो जे अ। जिणकप्पाहालंदिअपरिहारविसुद्धिसाह अ॥३॥ खीरासवमहुआसवसंमिनस्सोअकुबुद्धी । चारणवेउविपयाणुसारिणो साहुणो सरणं ॥४॥ उज्झियवइरविरोहा निचमदोहा पसंतमुहसोहा। अभिमयगुणसंदोहा हयमोहा साहुणो सरणं ॥५॥ खंडिअसिणेहदामा अकामधामा निकामसुहकामा। सुपुरिसमणाभिरामा आयारामा मुणी सरणं ॥६॥ मिल्हिअविसयकसाया उज्झियघरपरणिसंगसुहसाया। अकलिअहरिसविसाया साहू सरणं गयपमाया ॥७॥ हिंसाइदोससुषा कयकारुणा सयंभुरुपमा (म०प्पुण्णा)। अजरामरपहखुन्ना साहू सरणं सुकयपुन्ना॥८॥ कामविडवणचुका कलिमलमुका विवि(म)कचोरिका। पावरयसुरमरिका साहु गुणस्यणचश्चिक्का ॥९॥ साहुत्तसुट्ठिया जं आयरिआई तओ य ते साहू। साहुभणिएण गहिया तम्हा ते साहुणो सरणं । ४०। पडिवन्नसाहुसरणो सरणं काउं पुणोवि जिणधम्म। पहरिसरोमचपवंचकंचुअंचिअतणू भणइ॥१॥ पवरसुकएहि पत्तं पत्तेहिवि नवरि केहिवि न पत्तं । तं केवलिपन्नतं धम्म सरणं पवन्नोऽहं ॥२॥ पत्तेण अपत्तेण य पत्ताणि अ जेण (२२७) ९०८ चतुःशरणप्रकीर्णकं. 10-१-र मुनि दीपरत्नसागर Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नरमुरमुहाई / मुक्खसुहं पुण पत्तेण नवरि धम्मो स मे सरणं // 3 // निहलिअकलसकम्मो कयसहजम्मो खलीकयअहम्मो। पमहपरिणामरम्मो सरणं मे होउ जिणधम्मो // 4 // कालत्तएविन मयं जम्मणजरमरणवाहिसयसमय। अमयंव बहुमयं जिणमयं च सरणं पवनोऽहं // 5 // पसमिअकामपमोहं दिहादिसु नकलिअविरोएं। सिवमुहफलयममोहं धम्म०॥६॥ नस्यगइगमणरोहं गुणसंदोहं पवाइनिक्सोह। निहणिअयम्महजोहं धम्म०॥७॥ भासुरसुवचसुंदरस्यणालंकारगारवमहग्धं / निहिमिव दोगचहरं धर्म जिणदेसिअं वंदे // 8 // चउसरजगमणसंचिअसुचरिअरोमंचअंचियसरीरो। कयदुकडगरिहो असुहकम्मक्खयकंखिरो भणइ // 9 // इहमविअमनमवि मिच्छत्तपवत्तणं जमहिगरणं / जिणपवयणपडिकुटुं दुहुँ गरिहामि तं पावं // 50 // मिच्छत्ततमंघेणं अरिहंताइसु अवनवयणं जं / अन्नाणेण विरइयं इहिं गरि०॥१॥ सुअधम्मसंघसाहुसु पावं पडिणीअयाइ जं रहअं / अनेसु अ पावेसुं इहिं. // 2 // असु य जीवेसुं मित्तीकरुणाइगोयरेसु कयं / परिआवणाइ दुस्ख इहि // 3 // जं मणवयकाएहिं कयकारिअअणुमईहिं आयरियं / धम्मविरुद्धमसुदं सर्व गरि०॥४॥ अह सो दुकडगरिहादलिउकडदुकडो फुडं भणइ। सुकढाणुरायसमुइनपुषपुलयंकुरकरालो // 5 // अरिहत्तं अरिहंतेसु जं च सिद्धत्तणं च सिद्धेसु। आयारं आयरिए उज्झायत्तं उवज्झाए // 6 // साहूण साहुचरिअंच देसविरई च सावयजणाणं / अणुमन्ने सचेसिं सम्मत्तं सम्मदिट्ठीणं ॥आअहवा सर्व चिअ बीअरायवयणाणुसारि जं सुकर्य। कालत्तएवि तिविहं (चिहियं) अणुमोएमो तयं सवं // 8 // सुहपरिणामो निचं चउसरणगमाइ आयरं जीवो। कुसलपयडीउ बंधइ बदाउ सुहाणुबंधाउ // 9 // मंदणुभावा पदा तिघणुभावाउ कुणइ ता चेव / असुहाउ निरणबंधाउ कुणइ तिचाउ मंदाओ॥६०॥ ता एवं काय बुहेहि निबंपि संकिलेसम्मि। होइ तिकालं सम्मं असंकिलेसंमि सुकयफलं // 1 // चउरंगो जिणधम्मो न कओ चउरंगसरणमवि न कयं। चउरंगभवच्छेओ न कओ हा हारिओ जम्मो // 2 // इअ- जीवपमायमहारिवीरभदंतमेअमजायणं / झाएसु तिसंझमवंझकारणं निघुइसुहाणं // 63 // इइ चउसरणं पयन्नं 1 //