Book Title: Aagam Manjusha 23 Uvangsuttam Mool 12 Vahnidasaa
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ _ नमो नमो निम्मलदंसणस्स पूज्य आनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरूभ्यो नमः On Line -आगममंजूषा [२३] वण्हिदसाणं * संकलन एवं प्रस्तुतकर्ता * मनि दीपरत्नसागर M.Com. M.Ed. Ph.D.] Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || किंचित् प्रास्ताविकम् || ये आगम-मंजूषा का संपादन आजसे ७० वर्ष पूर्व अर्थात् वीर संवत २४६८, विक्रम संवत-१९९८, ई.स.1942 के दौरान हुआ था, जिनका संपादन पूज्य आगमोद्धारक आचार्यश्री आनंदसागरसरिजी म.सा.ने किया था| आज तक उन्ही के प्रस्थापित-मार्ग की रोशनी में सब अपनी-अपनी दिशाएँ ढूंढते आगे बढ़ रहे हैं। हम ७० साल के बाद आज ई.स.-2012,विक्रम संवत-२०६८,वीर संवत-२५३८ में वो ही आगम-मंजूषा को कुछ उपयोगी परिवर्तनों के साथ इंटरनेट के माध्यम से सर्वथा सर्वप्रथम “ OnLine-आगममंजूषा ” नाम से प्रस्तुत कर रहे हैं। * मूल आगम-मंजूषा के संपादन की किंचित् भिन्नता का स्वीकार * [१]आवश्यक सूत्र-(आगम-४०) में केवल मूल सूत्र नहीं है, मूल सूत्रों के साथ नियुक्ति भी सामिल की गई है। [२]जीतकल्प सूत्र-(आगम-३८) में भी केवल मूल सूत्र नहीं है, मूलसूत्रों के साथ भाष्य भी सामिल किया है। [३]जीतकल्प सूत्र-(आगम-३८) का वैकल्पिक सूत्र जो “पंचकल्प” है, उनके भाष्य को यहाँ सामिल किया गया tic [४] “ओघनियुक्ति”-(आगम-४१) के वैकल्पिक आगम “पिंडनियुक्ति” को यहाँ समाविष्ट तो किया है, लेकिन उनका मुद्रण-स्थान बदल गया है। [५] “कल्प(बारसा)सूत्र” को भी मूल आगममंजूषा में सामिल किया गया है। -मुनि दीपरत्नसागर मुनि दीपरतसागर : Address: Mnui Deepratnasagar, MangalDeep society, Opp.DholeshwarMandir, POST:- THANGADH Dist.surendranagar. Mobile:-9825967397 jainmunideepratnasagar@gmail.com Online-आगममंजूषा Date:-12/11/2012 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ taya पुष्फलाणं सिस्सिणीयातो सरीरबाउसियाओ सव्वाओ अनंतरं चइता महाविदेहे वासे सिजि हिंति । २९॥ पुष्कचूलियाओ समत्ताओ चउत्यो वग्गो ११॥ आगम-२३- श्रीवदिशीवांगं जइ णं भंते! उक्खेवओ, उबंगाणं चउत्थस्स वग्गस्स पुष्कचूलाणं अयमडे पं० पंचमस्स णं भंते! वग्गस्स उवंगाणं वदिसाणं समणेणं भगवया जाव संपत्तर्ण के अड्डे पं० ? एवं खल जंबू ! जाव दुबालस अज्झयणा पं० वं० निसढे माअनि वह वहे पगता जुत्ती दसरह दढरहे य। घणू महापणू सत्तधणू नामे सयधणू य ॥५॥ जइ णं भंते! समणेणं जाव दुबालस अज्झयणा पं० पढमस्स णं भंते! उक्खेवओ, एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं बारवई नाम नगरी होत्या दुवालसजोयणायमा जाव पञ्चक्खं देवलोयभूया उत्तरपुरच्छिमे दिसीभाए एत्थ र्ण रेवयए नाम पड़ए होत्था, तुंगे गगणतलमणुरिहंतसिहरे नाणाविहरुक्खगुच्छगुम्मलता बाली परिगताभिरामे हंसमियमयूरकों चसारसकागमयणसालकोइलकुलोववेते तडकडगवियरउज्सरपवालसिहपउरे अच्छरगणदेवसंघविजाहरमिदुणसंनिंचित्रे निश्चत्यणए दसारवरवीरपुरिसतेलोकपलवगाणं सोमे सुभए पियदंसणे सुरूवे पासादीए जाव पडिरूवे, तस्स णं रेवयगस्स पश्यरस अदूरसामंते एत्थ णं नंदणवणे नामं उज्जाणे होत्या सोउयपुण्फ जाव दरिसणिज्जे, तत्थ णं नंदणवणे उज्जाणे सुरप्पियस्स जक्खस्स जक्खायतणे होत्था चिराईए जाव बहुजणो आगम्म अति सुरप्पियं जक्खाययणं, से णं सुरप्पिए जक्खाययणे एगेणं महता वणसंडेणं सबओ समंता संपरिक्खिते जहा पुण्णभडे जाव सिलावट्टते, तत्थ णं वारवईए नयरीए कण्हे नाम वासुदेवे राया होत्या जाव पसासेमाणे विहरति, से णं तत्य समुदविजयपामोक्खाणं दसहं दसाराणं बलदेवपामोक्खाणं पंचन्हं महावीराणं उग्गसेणपामोक्खाणं सोलसण्ड् राइसाहस्सीणं पणपामोक्खाणं अदुद्वाणं कुमारकोडीर्ण संवपामोक्खाणं सट्टीए दुदंतसाहस्सीणं वीरसेणपामोक्खाणं एकवीसाए वीरसाहस्सीणं रुप्पिणिपामोक्खाणं सोलसहं देवीसाहस्सीणं अणंगसेणापामोक्खाणं अणेगाणं गणियासाहस्सीणं अण्णेसिं च बहूणं राईसरजावसत्यवाप्यभिईणं वेयइढगिरिसागरमेरागस्स दाहिणइडभरहस्स आहेबच जाव विहरति, तत्य णं वारवईए नयरीए बलदेवे नामं राया होत्या महया जाव रजं पसासेमाणे विहरति, तस्स णं बलदेवस्स रण्णो रेवई नामं देवी होत्या सोमाला जाव विहरति, तते णं सा रेवती देवी अण्णदा कदाई तंसि तारिसगंसि सयणिजंसि जाव सीहं सुमिणं पासित्ता पडिबुदा, एवं सुमिणदंसणपरिकहणं, कलातो जहा महाबलस्स, पंनासतो दातो पण्णासरायकण्णगाणं एगदिवसेणं पाणि नवरं निसढे नामं जाव उपिं पासादे विहरति, तेणं कालेनं० अरहा अरिटुनेमी आदिकरे दसघणूई वण्णतो जाव समोसरिते, परिसा निग्गया, तो णं से कण्हे वा सुदेवे इमीसे कहाए लबट्टे समाणे हट्ट • एत्तो य कुटुंबियपुरिसे सदावेति त्ता एवं वदासी- खिप्पामेव भी देवाणुप्पिया! सभाए मुहम्माए सामुदाणियं भेरिं तालेहि, तते णं ते कुटुंबियपु. रिसा जाब पडिमुणित्ता जेणेव सभाए सुहम्माए सामुदाणिया भेरी तेणेव उवा० ता तं सामुदाणियं भेरिं महता २ सद्देणं तालेति, तते णं तीसे सामुदाणियाए मेरीए महता २ सहेण तालियाए समाणीए समुहविजयपामोक्खा दसदसारा देवीओ जाव अणंगसेणापामोक्खा अणेगगणियासाहस्सीणं अन् य बहवे राईसर जाव सत्यवाप्यभितितो व्हाया जाव पायच्छित्ता सवालंकारविभूसिया जहाविभवइटिसकारसमुदाए अप्पेगइया हयगया जाब पुरिसवम्गुरापरिक्खित्ता जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव उवा० ता करतलः कण्हं वासुदेवं जाएणं विजएणं बद्धावेति तते गं से कण्हे वासुदेवे कोचियपुरिसे सदावेइ त्ता एवं बयासी विप्पामेव भो देवाणुप्पिया! आभिसेक हस्थिरयणं पडिकप्पेह हयगयरहृपवर जाब पचप्पियंति, ते से कहे वासुदेवे मज्जणपरे जाव दुरुडे अडुडुमंगलगा जहा कूणिए सेयवरचामरेहिं उदुवमाणेहिं समुदविजयपामोक्खेहिं दसहिं दसारेहिं जाव सत्थवाहम्पभितीहिं सद्धिं संपरिवुडे सविडीए जाव रखेणं बारबई नगरी मज्झमज्झेणं जहा कूणिओ जाव पजुवास, तते णं तस्स निसटस्स कुमारस्स उप्पि पासायवरगयस्स तं महता जणसहं च जहा जमाली जाव धम्मं सोचा निसम्म बंदइ नमसह ता एवं वदासी सदहामि णं भंते! निम्गंर्थं पावयणं जहा चित्तो जाव सावगधम्मं पडिवजति त्ता पडिगते, तेणं काले० अरहओ अरिद्वनेमिस्स अंतेवासी ९०६ निरयावल्या पांगपंचकं, वहि दसाण मुनि दीपरत्नसागर Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वरदने नामं अणगारे उराले जाव विहरति, तते णं से वरदत्ते अणगारे निसदं कुमारं पासति त्ता जातसदे जाव पजुवासमाणे एवं वयासी- अहो णं भंते ! निसटे कुमारे इट्टे इदुरूवे कते कंनरुचे एवं पिए मणुने मणामे मणामरूवे सोमे सोमरूवे पियदसणे सुरूवे, निसदेणं भंते ! कुमारेणं अयमेयारुवा माणुयइड्ढी किणा लद्धा किणा पना पृच्छा जहा सूरियाभस्स. एवं खलु वरदना ! तेणं कालेणं० इहेब जंबुद्दीवे मारहे वासे रोहीडए नामं नगरे होत्या रिद्धथिमियसमिदा महवत्ते उज्जाणे मणिदत्तस्स जक्खस्स जवाययणे, नन्थ णं रोहीडए नगरे महब्बले नाम राया, पउमावई नामं देवी, अन्नया कदाइ नंसि तारिसगंसि सबणिज्जसि सीहं सुमिणे एवं जम्मणं भाणियत्रं जहा महाबलस्स नवरं वीरंगतो नाम बत्तीसनो दातो बनीसाए रायवरकन्नगाणं पाणि जाव ओगिजमाणे २ पाउसवरिसारत्तसरयहेमंतगिम्हवसते छप्पि उऊ जहाविभवं संमाणेइ त्ता इट्टे सद्द जाब विहरति, तेणं कालेणं सिद्धल्या नाम आयरिया जातिसंपन्ना जहा केसी नवरं बहुस्सुया बहुपरिवारा जेणेव रोहीडए नगरे जेणेव मेहबत्ने उजाणे जेणेव मणिदत्तस्स जक्खस्स जक्वाययणे नेणेव उवागते, अहापडिरूवं जाव चिहरति, परिसा निग्गया, तते णं तस्स वीरंगतस्स महता जणसहं च जहा जमाली निग्गतो धर्म सोचा जं नवरं देवाणुप्पिया ! अम्मापियरो आपुच्छामि जहा जमाली निक्खनो जाव अणगारे जाते जाव गुत्तभयारी, तते णं से वीरंगते अणगारे सिद्धत्वाणं आयरियाणं अंतिए सामाइयमादियाई जाव एक्कारस अंगाई अहिजति त्ता बहईजाव चउत्थ जाव अप्पाणं भावेमाणे | बहुपडिपुण्णाइं पणयालीसवासाई सामनपरियायं पाउणित्ता दोमासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता सवीसं भत्तसय अणसणाए छेदिता आलोइयः समाहिपने कालमासे कालं किचा बंभलोए कप्पे मणारमे विमाणे देवत्ताए उववन्ने, तस्थ णं अत्यंगइयाणं देवाणं दस सागरोबमाई ठिई, तत्थ णं वीरंगवस्स देवस्स दस सागरोवमाई ठिई पंसे णं वीरंगते देवे तानो देवलोगाओ आउक्खएणं जाव अर्णतरं चयं चइत्ता इहेव वारवईए नयरीए बलदेवस्स रन्नो रेवईए देवीए कृञ्छिसि पुत्तनाए उववन्ने,तते णं सा रेवती देवी नर्सि: जंसि सुमिणदसणं जाव उप्पि पासायवरगते विहरति, तं एवं खलु वरदत्ता ! निसदेणं कुमारेणं अयमेयारुवा ओराला मणुयइड्ढी लदा०, पभू णं भंते ! निसढे कुमारे देवाणुप्पियाण अंतिए जाव पत्रइत्तए ?, हंता पभू, सेवं भते ! सेवं भंते !, इइ वरदने अणगारे जाव अप्पाणं भावेमाणे विहरति, तते णं अरहा अरिट्ठनेमी अण्णदा कदाइ पारवतीओ नगरीओ जाव बहिया जणवयविहारं विहरति, निसढे कुमारे समणोबासए जाए अभिगतजीवाजीवे जाव विहरति. तते णं से निसटे। दभसंधारोवगते विहरति, तते णं तस्स निसढस्स कुमारस्स पुवरत्तावरत्त धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झस्थिए धनाणं ते गामागरजावसंनिवेसा जत्थ णं अरहा अरिहनेमी विहरति, धन्ना णं ते राईसरजावसत्यवाहप्पभितिओ जे णं अरिट्टनेमि वंदनि नमसति जाव पजुवासति, जति णं अरहा अरिदुनेमी पुराणुपुनिंदणवणे विहरेजा नेणं अहं अरहं अरिडुनेमि बंदिजा जांब पनुवासिजा, तते णं अरहा अरिङ्कनेमी निसढस्स कुमारस्स अयमेयारूवं अज्झत्थियं जाब वियाणिना अट्ठारसहिं समणसहस्सेहिं जाव नंदणवणे उजाणे, परिसा निग्गया, तते णं निसढे कुमारे इमीसे कहाए लढे समाणे हट्ट चाउम्घंटेणं आसरहेणं निग्गते जहा जमाली जाव अम्मापियरो आपुच्छित्ता पायिने अणगारे जाव गुत्तभयारी, तते णं से निसढे अणगारे अरहतो अरिट्टनेमिस्स नहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिजति ना पहुई चउत्थछट्ठ जाव विचितेहिं तबोकम्मेहि अप्पाणं भावेमाणे बहुपडिपुण्णाई नव वासाई सामण्णपरियागं पाउणति ना बायालीसं भत्ताई अणसणाए छेदेति त्ता आलोइयपडिकने समाहिपने आणुपदीए कालगते, तने णं से वरदत्ते अणगारे निसढं अणगारं कालगत जाणित्ता जेणेव अरहा अरिङ्कनेमी तेणेव उवात्ता जाव एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी निसढे नामं अणगारे पगनिभदए जाव विणीए, सेणं भंते ! निसदे अणगारे कालमासे कालं किचा कहिं गते०?. बरदत्तादि: अरहा अरिट्ठनेमी वरदन अणगारं एवं वयासी-एवं खल वरदना ममं अंतवासी निसद नाम अणगार पगइभहजाब विणाए ममतहारूवाण थेराणं अतिए सामाइयमाइयाई एकारस अंगाई अहिनित्ता बहुपडिपण्णाईनव वासार्ड सामण्ण अणसणाए छेदेता आलोद्यपडिकते समाहिपत्ते कालमासे कालं किया उडढं चंदिमसरियगहनखत्ततारारुवाणं स त कालमास कालकिचा उढचादमसूरियगहनखत्ततारारुवाण साहम्मीसाणजावअचुते निष्णिय अद्वारसुत्तरे गविजविमाणावाससते वीतीवतित्ता सबट्ठसिदविमाणे देवत्ताए उवषण्णे, तत्थ णं देवाणं तेत्तीसं सागरोचमाई ठिई पं०, से णं भंते ! निसढे देवे तातो देवलोगाओ आउक्खएणं जाव अणतरं चयं चइना कहि गच्छिहिति०?, वरदत्ता ! इहेब जंबुद्दीवे महाविदेहे वासे उन्बाते नगरे विसुद्धपिइवंसे रायकुले पुत्तत्ताए पचायाहिति, तते णं से उम्मुक्कबालभावे विण्णयपरिणयमित्ते जोव्यणगमणुष्पने तहारूवाणं घेराणं अंतिए केवलबोहिं बुज्झित्ता अगाराओ अणगारियं पयज्जिहिति, से णं तत्थ अणगारे भविस्सति इंरियासमिते जाय गुनर्वभयारी, से तस्य बहुहिं चउत्थछट्टट्ठमदसमदुवालसेहिं मासद्धमासखमणेहिं विचित्तेहिं तवोकम्मेहिं अप्पार्ण भाषेमाणे बहुई बासाई सामण्णपरियागं पाउणिस्सति त्ता मासियाए सलेहणाए अत्ताणं झुसिहिति ना सहि ९०७ निरयावल्याधुपांगपंचकं, दिसा मुनि दीपरत्नसागर Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मलाई अणसणाए विहिनिला जस्सहाए कीरति णग्गमावे मुंडमावे अण्हाणए जाय अदंतवणए अउत्तए अणोवाहणए फलहसेजा कट्ठसेजा केसलोए भवेवासे परघरपवेसे पिंडवायलजावलो उचावया य गामकंटया अहियासिजति नम8 आराहेति ता परिमेहिं उम्सासनिस्सासेहिं सिजिनहिनि जाव सम्बदुस्खाणं अंत काहिति. एवं खलु जंषु ! समणेणं भगश्या महा जाब निक्षेपओ, निसढायण १,एवं सेसावि एकारस अज्झयणा नेयम्बा संगहणीजणुसारेण अहीणमारिता एकारससुवि।३०॥॥२.१२ वहिदसा पंचमो वग्गो 12 // G卐.卐 निरयावलियामुयखंधो समत्तो, समत्ताणि उवंगाणि, निरयावलियाउर्वगेणं एगो सुयखंधो पंच वग्गा पंचसु दिवसेमु उहिस्संनि.नत्य चउसु बस 2 उडेसगा पंचमवग्गे पारस उससगा / 31 / श्रीनिरयायलिकाधुपांगपशकं 8-12 // श्रीसिदाद्वितहट्टिकारातशिलोत्कीर्णसकलागमोपेतश्रीवर्धमानजैनागममंदिर शिलायामुत्कीर्ण वीरस्य 2468 //