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________________ Jain Education International एम निशी हे अधिस्त नेबावीस वालिया षट्दर्शमाहे एक ति||एवंघश्रमिता तेऽविसवाणी यगा// पक्ष६ सायधम्मग्गा बाहें दरिस ऐमझे। एग दनिने लसरदहता पोतानो कल्पितनेऽनावकरीनें असंख्याता काल जावत् दुर्लभ बोभूयणं विदरिसमसमा सकपियंप पहावेमा ए॥ असंश्व काल | जावन बोदिया तिहाहे अभिन एह विषपणकर का लगे पाम्पा कर्मन योगे सुतहेलाथासे ति ॥ कामंपक रिस्संति। तच वारे दिलाई साफ़ श्रादक नाधर्मयीची घने छात गिदा सामिपरुवियस्स । सूयरसहीए सविस्सईन नियंश नो उदय हा सत्कार सन्मान आदर नपा प्रति5: जा प्रयास का रे सम्माणे सविस्तइ ॥ इड ते बावीसवालीया 58 जावत् वर्तता याएं यही समएए॥ निमाधाएं न कर धर्मपाल होसें निवार हे अभिन S करंधम्मपाल एसविरसई ॥। तर अगिता । तेऽविसवाायगा। 5हाजानपरिव समानुपूर्वे चार गतिमा समिएम नवा एक पर्याय द्यालीने १३ वर्ष पन्नरवर्षमपालना Burg PUNER तापन्नरस वा साई॥ श्रदिकिच प्रपुची चरंतनवनवश्वास ॥ परिभाग पान For Personal & Private Use Only host B... Inshine of histo Vijay Vallabh Smarak Comple Kill. O.T. Karnal Road, P.O. Alipur, www.janelibrary.org
SR No.650037
Book TitleVargchulika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages26
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_anykaalin
File Size5 MB
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