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________________ यज्ञं नयागुरुरा एमईए एवं गिहवास चार्ज जंसफल होइ, तुम्हाणं २१ बत्ति एनईए महत्तरुच्चयव लेऊव६ मा विद्या मंतपदा सवसम्मत एसए जोग विहा जाई पढमं कालम विहा नई दिए १ बसदि काल वेला ३ दिसि ४ विसोही ६ सझायां बुच्चामि जहागमं सुगमं"दार" सचि तसा सोयस सुपंचमी सास कत्तियस्सय सुचदसा एमहानरझ पमिवयंते सु दिऐ सु दिसु लगो सुनु साव सिमार महाश्रयतिका कालग्रहणंजन हम१डक्क मातरं चन नजोग २ चिंता का गोकरेई श्रद्मुमरियं तो संजालाएं मं तीन सूरहणमुक्के तंच प्रणंच एवं चउग्रहणे मुद्दे सोवि दिवसोयरायश्यं गंधबलगर दिसि दाहन का विजूहिं इक पेरिसान गजिए दोपोरसा स सानु विज्य अनकतान जावसाइयंसा दसनवत्ता तावविज्र गजिहिंए सझान महभूमि कंपे ऋप्पहरं मंसरु हिर बुद्वीप नोइयाइमरसतघर अंतरेम छोर तंमहिमा र बुहार महा रायमर से रिसावा फूके धूलिमाईमहे गादप लावणो जच्चिरंदमिय कालगर 5 वियं तेजाव असमंजसे तावान शिरंतर ति साम धरा पंचां फुसियमित्ताइ सत्तरं दिलाय रे काय नावय तिमिवामान वसही पुरागायचे एन नयकाल दिवा ईहिसो हियचा तहातोव विह सोणिय मंसचम्मरुवं हियस संतसाहिनिर्जितरे पत्र एकान पोरिसितिगमा सोशि यं भूमि पहियं किए कम्पइमसे पुलवद्दि असोपकप्पई मरसागलाई पाए त हाजरा रसी तिगमसझान चिलाइएगा महाकाल मूसहितो सहिसमा महोरसमान दावा हे से दिवसे विलन गलिए अजय निगम कर्हि पतरियता मास रविवरं हे मिए तहेवप माहे परिव यहि र Jain Education International For Personal & Private Use Only Shiri Atmanand Jain baprary, 12 www.janelibrary.org
SR No.650036
Book TitleAngchulika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages32
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript
File Size5 MB
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