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________________ पीस पिणाला विविध परोप्परांति हमारा चिरा हा लियु को मका इंपरप्पनगोदरा 50 मित्र सदा। हारमा दिपदिंनरकायाको ह मोडामड फुड एलिजाबय । तच विलंच पत्र विनो डा ग्रिड हराइया हूं। परंपरारक समातिः संसारे बी दणकरे जावा या तिवाय निरया। शांतकाला व्याख्या क दाल व मिरव शिवाना कलीकड तांदल विसे बातकरीदा लां शाकदती विदारिव। एतनमनधन स्पती नरक क सलिलकहतीपी गीतह हता मदन खुला कहती क्षे। सिवनी सिंचनादिका लघवी बंधनादिकरी यानी ग तिनव संधिवलयका ईयाजी वनवेंने डार का ताला निलक हतामिन इंवायुते दन्नु विविधनाना प्रकारे। काय पाकर घन संघ हिमस्क उपजिवी पतलमान इवाना रकेको तथा प्यारा प्यारा लिदा कहती परस्य दियंक Private & Personale C
SR No.650035
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages518
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript & agam_prashnavyakaran
File Size218 MB
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