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वली पदवा
कीतेनाश्वशतकरी सल पहचानी साठा कहती नारकी नवे वाघासासा लीसंजात्राकाम्रो तघार सियक हतीवाद करता लगि रचना ऊ वियक हता कृष्णा नारकी राक्षसोललीसंजाताकाय तथा करती प हवाज नरकपात्ल र्मिकतेहनाज जितत जिवान शाज सिर पापी सांमतन रहि दास्पर्श तदूषिजे। यहवान जनवचना तथा ] हम्मी बोलतकर (ए) गिएट लेदिरेमास्पई। एदवाववनता परक्कमपर शहरलकटादिक एहन प्रहार किनिंदरख डा दिक इंदि लिंदसालश्करील दिनप्पाडे हि मितल कीकपाडि| करकणादिश्राषिनी गोलकऊ षिणिबाहिरा काढिकेन्ना दिना प्रमुख कापि विकन्ता हि वि पिचाज्ञाह वली मा रिविहग विशेषरह णिमा रिविठ्ठलक द तांगल हघीन बाहिरिका निघाना कता वनजमा दिप्रवेशिएतावता मा दितिघा कठकेदनहीना पणमाहमुतापि तप्ता विकछ कहता वली बली नइयाब
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