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1940
पुष्प-प्राचार्य महात्मानैं | आयो रसिकरावेवे तिस्वेंमादात्मायेंक द्योगिष्टामादिलाई पोरसी करु (विचारेंगोष्ट माहिलें कलौ । तुम्हे जिए मिथ्या कटक न। अर्थयोरसी करूं । तेहवें मादामाए अर्थ योर सिकीय बी विंक इस्में नामें सिष्य दीजए चेतेचं तवे बेंथमेक मम एवाविक शिष्य एां चीतवत्तोसा-नली गोष्टामादिलवारीच्या गुरुकने श्मसाना ल्यो नथी। जो कम्बध स्पष्टनि काचित्तात्रिॐ दे ये तनजी वनेंमोहन होय तिहां क्लीविं कपूबैं जो इम ही तो किमतिगोष्ट माहिल बोल्यो नथी | जीमजी ने कर्मा स्वसंरेर ला बेंयि कर्म नेंजी चना प्रदेश स्पर्श काइन । अनेन जीवना प्रदेशसंघांत कर्म्मसंलदेि कर्म नोंदयकदेईन होटों एवों में गुरु ने 8वें सानत्य तो एनव-याचार्य पुजाले ति वारैवशिष्णु गुरुयासैजेोष्टमा दिलकश्तसर्वक संं। तिवारै गरेको कव्ययेतेंक के तिहिन बरू मनें गोष्टा मोदिलं काउबोटूसिंगुरे वा ऊ शिष्य ने सीषवीमो कल्पोरि ब्यजे गोष्टशमा हिलने करके जिमलो हुँ। आग में दितो एक जयंथा अनेजा थाई तिमी र कर्म नाप्रदेश संघातें मिले अनि माइयावरुनीय क्त करे तिएँ वीक शिष्यें। जीव कर्मनी स्थापना की ४ पिएंगोटा मादल न मानें तिस्वै एक चारवा ली गुरुमाहात्माने जलावै निमा पूर्वनो पद जिमप्रालातियात माहात्मानेंत्र व धीजीचय रवीतिप्रपचरकं ण जांए है। इस लाने गोष्टा मालिक हैए मोटो । पञ्चवाणरहितका जैतेनलो (प्रणामसहित काल कोईन मोकाई विलाजेनली बांलनी । प्रविधी कुईएपञ्चखा वै वस्तुलेवानी बा था इति संग्गुरेक सौ काल विधयच बोट