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व्याचा दाली इतिमाहात्माऊटिवामाचामाहात्माये को उलेश्रावक श्रमात्मा उ हे यानें कि म्रुतितलें दाली येक उलारे प्रति लाथि को मिले (उमेमा एवोभोनिन्न्थयोः सात्मानही अतिभाव कम ही इक दी कपिल बूक चैनमाहारथी जिसे य
वीसें व रूस गयेऊं तें एवलका नदी तिरेश्रामादागिर रिनो शिष्यधन गुप्त तिनो शिष्य ग गाचायति नदीने अल एयसिर दें गुरुवैले लटें रहते गंगाचार्यशिष्य गुरुने वा दिवाच्या या पगेनदा नाता होयोला बेल माथे सूर्य नो तापयेचवें जैव दोनच नव उगावे श्री वीतरागनों क्चनजे एके वारेबिजययोगन एवचन अमानव राजगृहनगरिवार उद्यान वनि प्रणिनायकयनेन वने ऊतस्यैौ । तिलोक आगलिसम्मकाले बिलय योग जवि वा स्वरूप सूत्ररूयेति वेय मोरपारि कोयदेषामी निंगोरियाया एवायमानिन्थमा दावा रथ की स्युप्रास इमका बूकवेपि बुकेनी महावीरथ की याचसे वो लीसे वर सगयें तें तर एका नगरी श्रावेलिनृपने द्यानें श्री गुप्राचार्य शिष्परो सरसा वैतेश्वेंएक परिब्राजकश्मिक सिं। विद्याये पेट फाटे ते रूजलीपेटे लोहनीया है। बोधे जे बुवृद्धनी सार्थे धरत अनिमान करतो | राजसनायेजश्वादमा समस्त वादी जीता जिंनधिततेावे तसे राजानो उपयोग वृद्धि सिंघनाक साथ की। श्री गुप्ताचार्य रो गुप्तशिष्य मोकल्या | पुरुदत्त विद्याने बलें । परवादाने जीवा जीवाजीव स्वायत्तो त्रीजन दार्थनो जीवथायी वादजीपी रोहरुको रेक स कि एयुक्ति परवादी मिथा बीजी उनलो पिएनो जिव थापोते सूत्र (तिजली उंमिलामि कडे घे (एवोरुवचन