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________________ उत्तराध्य तथको गुरुनें पगे लागो । वीतरागनौ पडवज्यो श्रेष्टिनंयरोहितनीयद्वीपी जाते श्रेष्टेक यनप-२५ इयरोदिते वारी श्री याने मागतो एहने एरवी फल देवाहिये। राजाचे प्रोदित नें देगे। धान्यकेत लेकदिन में प्रोहितनेमेष्टिक सौ गुरुनाचल बोली पावेतो मुंकुं तिमोहिते लोकस मुझे चरणोदकली श्रेष्टिनी प्रतिज्ञा संपूर्ण जीममात्मनिस कारपरिसद्सहिवो श्रेष्टेन सति साधनकर वौ । इति सत्कारपरिसरुजादि९९श्रीमतिलऽ श्रेयंनवडः॥ सेरा-अथ राष्ट्र नाथ का ज्ञान यावे एहवाका जेणें कार ऊता कहतामस तिउत्तरदे ग्लु जीनि आलटाल्या कौ केलेज मुरेि चाकमा विवागये ४ सेनूलमए पुग्छ। कम्मामा एक लाकडा (जेलांना निजालाम ठोके लाइक एहु ऽधियो एतनाथकीय के दिलउदय कर्मव्यज्ञानफलले जे हनए दवा एड्डे आत्माने आश्वा सरादों । जोलीनं कर्मनाक लविया आवस् की क्षतिकारों जेता हा उपाय कर्म कच्यहंकारन करे विर करी अरूपवान इति। कम्मा नाएफला कडा । एवमस्सा सिमप्पा मोठ्नपातनिरर्थक मेकनाथको हिंसाजणी विरऊन शनि रहगमिविरामिलाई संवुडो जोस खं नानिजाला मिधमं कलाणयाद्धर अथप्रज्ञापरिसरुहष्टांत माह उजेली नगरी का लिका चाय ते नाशिष्य अतिप्रमादत्रा जालि सिद्यातरश्रावक ने कहा यांच शिष्य मुंकी (पुरुवर्णलतटेंपो वा तिस आपलाशिष्य नसागर चंचला के पतापिलते उलबेनी| सिद्यातरभाव कने बै। कोई जाए गुरुकिहां ४२ मनुस्वरुप तत्व साक्षात स्फ [जेश कल्यान टप प्रगटन जो अथवा पापकर्म नरक हे विल 111 124/01/
SR No.650033
Book TitleLokashaha ki Hundi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages424
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript
File Size200 MB
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